कविता संजीवन बूँटी है,


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शक्ति क़लम की बढ़ जाती है,

नित उत्साह बढ़ाने से।

सागर में गोते खाता हूँ,

शब्द शक्ति पा जाने से।।

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किन्तु न सागर बाँधा जाये,

इन छोटी सी बाँहों में।

फूल शूल दोनों ही मिलते,

रहते जीवन-राहों में।।

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क़लमकार का बढ़े हौसला,

जन-गण सम्बल पाने से।

क्रांति जगाई है कविता ने,

पाई सीख ज़माने से।1।।

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हैं दस बन्द शेष कविता के,

जो न पटल पर डाले हैं।

रुख ना पाये भाव हृदय के,

मुश्किल गये सँभाले हैं।।

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शब्दों की क्रीड़ा है कविता,

कविता है रस जीवन का।

कविता संजीवन बूँटी है,

यह मधुवन कवि के मन का।।

वेद प्रकाश शर्मा "वेद"

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