सिलसिला

जिंदगी की श्वांसो का,

अजीब है ये सिलसिला।

कब कहां दे दे दगा,

भरोसा ना कर इनका।।


सुख दुख साथ लिए,

चलना ही पड़ता है।

कोई रहे या ना रहे,

जीना ही पड़ता है।

जीवन पथ का यही,

अजीब सिलसिला।

कब कहा दे दे दगा

भरोसा ना कर इनका।।


जिंदगी की राहों में,

कांटे भी आते हैं।

दामन उलझाए बिन,

राहें बनाते हैं।

फूल और शूल का,

अजब है सिलसिला।

कब कहा दे दे दगा,

भरोसा ना कर इनका।


जिंदगी की श्वासो का,

अजीब है ये सिलसिला।

कब कहा दे दे दगा,

भरोसा ना कर इनका।।


       रश्मि पांडेय, शुभि

             डिंडोरी, मध्यप्रदेश

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