आओ मिलकर दीप जलाएं

 आओ मिलकर दीप जलाएं।

मन का हर कोना महकाएं।

मंद मधुर मुस्कान अधर हो।

यही  समृद्धि सौहार्द लुटाएं।


कोई व्यथित न रहने पाए, आशाएं सबकी भर जाएं।

नदी,वृक्ष, पर्वत,सागर सब निज स्वरूप में ही लहराएं।


आओ मिलकर दीप जलाएं -----


जीवन का  आनंद यही हो।

स्वार्थरहित परमार्थ सुखी हों।

जीवन दीपोत्सव बन जाए,

कहीं उदासी तमस नहीं हो।


आओ मिलकर दीप जलाएं ------


प्रकृति का सामीप्य निरंतर

सूर्य- चंद्र जीवन अभ्यंतर।

निजता से ऊपर उठकर हम

अलख प्रीत की सदा जलाएं।


आओ मिलकर दीप जलाएं -----


कहीं वृद्ध अपमान नहीं हो।

कन्या का सम्मान सही हो।

हो अनाथ ना शिशु का जीवन

ऐसा प्रेम अमर छलकाएं।


आओ मिलकर दीप जलाएं -----


डा. (प्रो.)शुभदा पांडेय

हिन्दी विभागाध्यक्ष, मेवाड़ विश्वविद्यालय,चित्तौड़गढ़, राजस्थान !


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