आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

शुद्ध और उपयुक्त शब्दप्रयोग :-- आभार, कृतज्ञता, धन्यवाद तथा साधुवाद।


★ आभार-- यह ऐसा शब्द है, जिसका लोग एक पारम्परिक शब्दार्थ के रूप मे प्रयोग करते आ रहे हैं। जब कोई किसी पर उपकार करता है तब उस उपकारी व्यक्ति के प्रति उपकृत व्यक्ति 'आभार' प्रकट करता है। जैसे किसी आयोजन मे जब अतिथिवृन्द पहुँचते हैं तब आयोजन के समापन के समय आयोजक उनके प्रति अपना आभार-ज्ञापन करता है; लेकिन बहुसंख्य आयोजक 'धन्यवाद' प्रकट करते हैं, जो कि अनुपयुक्त है और भाव की दृष्टि से अशुद्ध भी।

★ कृतज्ञता-- 'आभार' और 'कृतज्ञता' शब्दों के अर्थ लगभग मिलते-जुलते हैं। जब किसी के किये गये अनुग्रह को 'आदरपूर्वक'  स्मरण किया जाये तब वह 'कृतज्ञता' कहलाता है। यह शब्द 'आभार' की तुलना मे अधिक 'विनम्र' है।

★ धन्यवाद-- अधिकतर लोग बिना अर्थ और भाव को समझे ही 'धन्यवाद' शब्द का प्रयोग करते हैं। यही कारण है कि कहाँ 'आभार' शब्द का प्रयोग होता है और कहाँ 'कृतज्ञता' का, इनका बोध नहीं रहता। यदि कोई व्यक्ति किसी की सहायता करता है; पढ़ाता-समझाता है अथवा उसके अच्छे कार्यों की सराहना करता है अथवा अतिथि के रूप मे किसी आयोजन में सहभागिता करता है तो उसके प्रति आतिथेयजन (अतिथि का सत्कार करनेवाले लोग) 'धन्यवाद' का ज्ञापन करते हैं, जो कि अनुपयुक्त है। यहाँ आयोजक'आभार-ज्ञापन' करेगा और जिसके प्रति आभार प्रकट किया जायेगा, वह व्यक्ति  'धन्यवाद' कहेगा। धन्यवाद का अर्थ है, 'धन्य करनेवाला विचार अथवा भाव अथवा कर्म'।

★ साधुवाद-- लोग 'साधुवाद' और 'धन्यवाद' को एक ही अर्थ मे प्रयोग करते हैं, जो कि ग़लत है। ऐसा इसलिए कि 'साधुवाद' विशिष्ट कोटि का शब्द है। जिस व्यक्ति की साधना, विशेषत: आध्यात्मिक साधना पूर्ण हो चुकी रहती है, उसका विचार अथवा कर्म 'साधुवाद' कहलाता है। यहाँ विचार अथवा भाव अथवा क्रिया मे 'साधुता' होती है। उस व्यक्ति का विचार और आचरण, जो सांसारिक प्रपंच से मुक्त होकर त्यागी और विरक्त हो गया हो, 'साधुवाद' की श्रेणी मे आता है। जब कोई उत्तम कर्म करता है अथवा उत्तम भाव अथवा विचार प्रकट करता है तब उससे प्रभावित होनेवाला व्यक्ति 'साधु-साधु' कहता है, जो कि साधुवाद का सूचक पद है।

(सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १४ अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)

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