तनहाई


  तनहा- तनहा सफर है तनहा मंजिल पाकर भी हम रहे

 भरी महफिल है ,लोगों के हैं कह- कहे

 कोई लगा रहा हंसी के ठहाके

 पर हम तन्हा बुझे दिल से अपने मन की किस से कहें

 तन्हा ही चले थे सफर पर, मंजिल पाकर भी तन्हा ही रहे 

तनहा तनहा सफर है, तनहा मंजिल पाकर भी रहे 

यूं तो कहने को सब अपने हैं

 पर मन के भीतर मेरे अपने ,कुछ मेरे अपने, मेरे अपने सपने हैं

 खो जाते हैं भरी महफिल में भी 

उदास से हो जाते हैं भरी महफिल में भी

 तनहाई में लगा लेते हैं अब मेले

 उसमें फिर अपने ही सपनों से, हम अपने ही ढंग से खेले

 कभी लगता है महफिल जमी है ,कभी लगता है अकेले

 तन्हा तन्हा सफर है तन्हा मंजिल पाकर भी रहे

 खिलौने भी सपने हो लिए

 सपने ही अब अपने हो लिए

 सिखाया तनहाई ने सबक नया

 दर्द अपना हर कहीं न करना बया

  गुम हो गए हम अपनी तन्हाई में 

अब मैं अपना ही अक्स ढूंढती हूं अपनी परछाई में

 तन्हा तन्हा सफर है तन्हा मंजिल पाकर भी रहे

 जो तुम तक कभी आए तो महफिल मैं गीत खुशी के गाए

 झूम के नाचे भी कभी, और कभी आंखो के जगमग जगमग दीप जलाए

 कभी हंसी की छोङी फुलझड़ी है

 तो कभी खिल खिलाए पर फिर वही ठोकर लगी, जागे,,

 तो साथ चल पड़े तन्हाई के साए

 तन्हा तन्हा सफर है तन्हा मंजिल पाकर भी रहे 

अब रास आ गई है ,मुझे मेरी यह तन्हाई 

कभी राधा सी होती हूं तन्हा मै

 आंखों में नन्हा मोती भिगोती हूं तन्हा मै

 तो कभी हो जाती हूं मुरली बजाती कन्हाई में

 तन्हा तन्हा सफर है तन्हा मंजिल पाकर भी रहे

 खुश हूं मेरी तन्हाई के साथ

 अब लगता है

 अब लगता है

 हो गई है, जैसे प्रेम सगाई तन्हाई के साथ

 तनहा तनहा सफर है तनहा मंजिल पाकर भी रहे।।

 

 डॉ शीतल श्रीमाली उदयपुर

 राजस्थान

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