आशियाना

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

जो आयु बीत गई उसका 

मैंने कब रखा हिसाब है !

हर दिल में आशियाना हो ,

इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

दौलत रहे ना शोहरतें , 

ढह जाती यहाँ इमारतें ।

लिख दी जो नेकी ने कभी ,

मिट पाई कहाँ इबारतें !

ख्वाहिश जो मन में है उठी 

टेसु में खिलता गुलाब है ।

हर दिल में आशियाना हो ,

इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

परहित में मैं तत्पर रहूँ ,

स्वार्थ से हो सदा फासला ।

मैं नेकराह चलती रहूँ

ना हो भले संग काफिला ।

देती दुआ दिल में पनाह  ,

बरकत करे बेहिसाब है ।

हर दिल में आशियाना हो ,

इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

औरों के आँसू पोंछ दूं ,

ये हाथ इतने सक्षम हो ।

निडर हो सच का संग करूँ ,

हिम्मत-हौसला ना कम हो ।

चमके बदी में नेकी यूँ ,

ज्यों तारों में महताब है ।

हर दिल में आशियाना हो ,

इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।

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लेखिका बिंदु पूर्णिमा 

सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना ।

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