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जो आयु बीत गई उसका
मैंने कब रखा हिसाब है !
हर दिल में आशियाना हो ,
इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।
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दौलत रहे ना शोहरतें ,
ढह जाती यहाँ इमारतें ।
लिख दी जो नेकी ने कभी ,
मिट पाई कहाँ इबारतें !
ख्वाहिश जो मन में है उठी
टेसु में खिलता गुलाब है ।
हर दिल में आशियाना हो ,
इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।
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परहित में मैं तत्पर रहूँ ,
स्वार्थ से हो सदा फासला ।
मैं नेकराह चलती रहूँ
ना हो भले संग काफिला ।
देती दुआ दिल में पनाह ,
बरकत करे बेहिसाब है ।
हर दिल में आशियाना हो ,
इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।
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औरों के आँसू पोंछ दूं ,
ये हाथ इतने सक्षम हो ।
निडर हो सच का संग करूँ ,
हिम्मत-हौसला ना कम हो ।
चमके बदी में नेकी यूँ ,
ज्यों तारों में महताब है ।
हर दिल में आशियाना हो ,
इतना ही मेरा ख़्वाब है ।।
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लेखिका बिंदु पूर्णिमा
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना ।
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