दीवाली हम मनाएंगे,
चिराग मिट्टी के नहीं,
आशाओं के जलाएंगे,
दीवाली हम मनाएंगे।।
अंधकार मिटा रवि से,
तमस औ' अज्ञानता का,
निज ज्ञान से मिटायेंगे,
दीवाली हम मनाएंगे।।
क्यों जलाएं फुलझड़ियाँ,
अन्याय छल और द्वेष की,
दुर्भावनाओं को मिटाकर,
दीवाली हम मनाएंगे।।
- अरुण कुमार पाठक
'हरिद्वार'
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