प्रो.डॉ. अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली
आपने देखा होगा कोई भी संस्था या कंपनी अपनी पहचान के लिए एक लोगो तैयार करवाती है जो बाद में जाकर उसकी पहचान बन जाता है । इस लोगो में संस्कृत या अन्य किसी भाषा में एक ध्येय वाक्य भी होता है । जो संस्था के उद्देश्य को या आदर्श को इंगित करता है । जैसे भारत सरकार 'सत्यमेव जयते' लिखती है । यह वाक्य मूलतः मुण्डक-उपनिषद का सर्वज्ञात मंत्र 3.1.6 है। पूर्ण मंत्र इस प्रकार है-
सत्यमेव जयते नानृतम सत्येन पंथा विततो देवयानः।
येनाक्रमंत्यृषयो ह्याप्तकामो यत्र तत् सत्यस्य परमम् निधानम्॥
अर्थात अंततः सत्य की ही जय होती है न कि असत्य की। यही वह मार्ग है जिससे होकर आप्तकाम (जिनकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों) मानव जीवन के चरम लक्ष्य को प्राप्त करते हैं।
इसी प्रकार
हमें अपनी संस्था ,फर्म या कंपनी,समाचार पत्र,पत्रिका का ध्येय वाक्य प्राकृत आगमों या साहित्य से भी ग्रहण करना चाहिए ।
संस्था ,मंदिर ,तीर्थ,पुस्तकालय की दीवारों पर इनको लिखवाया जा सकता है ।
पत्रकार बंधु अपने समाचार पत्र पत्रिका में प्रत्येक अंक में इस तरह की सूक्ति,ध्येय वाक्य प्रकाशित कर सकते हैं ।
हम खोजें तो हमें अपने ही ग्रंथों में हज़ारों वाक्य मिल सकते हैं जो हमारी श्रमण संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करते हैं और प्राकृत भाषा का भी । यहां उदाहरण के रूप में मात्र कुछ वाक्य संग्रह करके प्रस्तुत किये जा रहे हैं । इस प्रकार अनेक वाक्य खोजे जा सकते हैं ।
1. अहमेक्को खलु सुद्धो।
समयसार 1/38
मैं एक हूं और निश्चय ही शुद्ध हूं ।
2. जाणगभावो दु अहमेक्को ।
समयसार 7/6-7
मैं तो एक ज्ञायक भाव हूँ ।
3. अपरिग्गहो अणिच्छो।
समयसार 7/18-21
जिसके इच्छा नहीं है वह अपरिग्रही है ।
4. झाणस्स ण दुल्लाहं किंपि ।
आराधनसार /87
ध्यान से कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं है अर्थात ध्यान के द्वारा सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं ।
5. अज्झयणमेव झाणं ।
रयणसार/90
अध्ययन ही ध्यान है ।
6. अप्पा अपम्मि रओ ।
द्रव्यसंग्रह /56
आत्मा अपनी आत्मा में रमे।
7. कम्मिंंधणमहियं खमेण झाणाणलो दहइ ।
तिलोय प./9/22,भाग 3
ध्यान रूपी अग्नि बहुत भारी कर्म रूपी ईंधन को भी क्षण भर में जला देती है ।
8. णिच्चं जग्ग झाणपडहेण ।
मृच्छकटिक/8/1
ध्यान रूपी पटह( नगाड़े)से सदा जागृत रहना चाहिए ।
9. आदा मे संवरो जोगो ।
समयसार 8/41
मेरी आत्मा ही संवर और योग है ।
10. सत्थं समधिदव्वं ।
प्रवचनसार/ 1/93
शास्त्र का सम्यग प्रकार से अध्ययन करना चाहिए ।
11.सज्झाएण नाणावरनिज्जं कम्मं खवेइ !(उत्तरा. 29/18)
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है !
12.
आगमो हु कादव्वो
(भगवती आराधना-१५१)
आगम का स्वाध्याय करना चाहिये ।
13.चारित्तं खलु धम्मो ।
(प्रवचनसार 7 )
चारित्र ही धर्म है ।
14.वत्थु सहावो धम्मो ।
( वारसाणुवेक्खा 476)
वस्तु का स्वभाव धर्म है ।
15.जीवाणं रक्खणं धम्मो ।
( वारसाणुवेक्खा 476)
जीवों की रक्षा धर्म है ।
16. आदा णाण पमाणं ।
(प्रवचनसार 23)
आत्मा ज्ञान प्रमाण है ।
17.णाणस्स सारमायारो ।
ज्ञान का सार आचार है ।
( जैन विश्व भारती संस्थान,लाडनूँ का आदर्श वाक्य)
18.झाणं हवे सव्वं ।
(नियमसार 119)
-ध्यान सर्वस्व है।
19.णमो जिणाणं ।
( पंचास्तिकाय 1)
जिनेंद्र भगवानों( जिन) को नमस्कार । ( पागद भासा समाचारपत्र का ध्येय वाक्य )
20. रयणत्तयं च धम्मो
( वारसाणुवेक्खा 476)
रत्नत्रय धर्म है
21.धम्मे एयग्गमणो
( वारसाणुवेक्खा 477)
धर्म में एकाग्र हो ।
22.णाणं पयासयं ( मूलाचार )
ज्ञान प्रकाशक है ।
(भारतीय ज्ञानपीठ,नई दिल्ली,मुमुक्षु आश्रम, कोटा तथा प्राकृत टाइम्स का ध्येय वाक्य)
‘णाणं पयासयं’ ज्ञान अज्ञानरूपी अन्धकार को दूर कर सम्यग्ज्ञानरूपी सूर्य को प्रकाशित करता है।
णाणं पयासयं/णाणं पयासगं।- गाथा 97 अथवा 103, आवश्यक-निर्युक्ति, भद्रवाहु स्वामी, सम्पा.अनु.- डाॅ.समणी कुसुम प्रज्ञा, जैन विश्वभारती, लाडनूं, पहला संस्करण, 2006 ई.
23.
पण्णा समिक्खए धम्मं।
(उत्तराध्ययन सूत्र 23/25)
धर्म की प्रज्ञा से समीक्षा करो।
24.
पढमं नाणं तवो दया।
(दशवैकालिक सूत्र ४-१०)
पहले ज्ञान फिर दया
25.
विणओ सिक्खाए फलं।
(भगवती आराधना- १३०)
शिक्षा का फल विनय है।
26.सच्चं लोयम्मि सारभूयं | सत्य लोक में सारभूत है |
(भोगीलाल लहेरचंद इंस्टिट्यूट ऑफ़ इन्डोलोजी ,दिल्ली का ध्येय वाक्य )
27.केवली पण्णत्तो धम्मो मंगलं | केवली प्रणीत धर्म मंगल है|
(धर्म मंगल पत्रिका ,पुणे का ध्येय वाक्य )
२८.णाणुज्जोवो जोवो |
(अर्हत प्रवचन १९/४७ )
ज्ञान का प्रकाश ही सच्चा प्रकाश है |
( जैन विद्या संस्थान ,श्री महावीर जी का ध्येय वाक्य )
29. अप्पा अप्पम्मि रओ
( द्रव्य संग्रह गाथा 56,भाव पाहुड गाथा 56 )
आत्मा आत्मा में लीन रहे ।
30.जं सेयं तं समायरह
( भाव पाहुड गाथा 56)
जो श्रेष्ठ है उसका आचरण करें ।
31. सज्झाय वा निउत्तेणं , सव्व दुक्ख विमोक्खणे ।()
निरंतर स्वाध्याय करते रहने से समस्त दुखों से मुक्ति मिल जाती है । ( स्वाध्याय संदेश,हिंदी मासिक का ध्येय वाक्य)
32. णाणेण झाण सिद्धि ।
( रयणसार ,गाथा 150)
ज्ञान से ध्यान की सिद्धि होती है ।
33.एगा धम्मपडिमा, जं से आया पज्जवजाए।
(-स्थानांगसूत्र1/1/40)
एक धर्म ही ऐसा पवित्र अनुष्ठान है, जिससे आत्मा की विशुद्धि होती है।
34.अणुचिन्तिय वियागरे।
जो कुछ बोले, विचारकर बोले।
-सूत्रकृतांग १/९/२५
35.एगे चरेज्ज धम्मं।
भले ही कोई साथ नहीं दे, अकेले ही सद्धर्म करना चाहिए।
-प्रश्नव्याकरणसूत्र २/३
36.दीवेइ खेत्तमप्पं सूरो णाणं जगमसेसं।।- अर्हत्प्रवचन(गाथा-19/47),
अर्थ-ज्ञान का प्रकाश ही सच्चा प्रकाश है, क्योंकि ज्ञान के प्रकाश की कोई रुकावट नहीं है। सूर्य थोड़े क्षेत्र को प्रकाशित करता है, किन्तु ज्ञान पूरे संसार को प्रकाशित करता है।
यहाँ हमने कुछ संस्थाओं के ध्येय वाक्यों का भी उल्लेख किया है जिन्होंने प्राकृत जैन आगमों से उसे लेकर आदर्श स्थापित किया है | इस प्रकार अनेक और भी संस्थाएं हैं जो अपना ध्येय वाक्य प्राकृत भाषा में रखती हैं | हम सूचना मिलने पर उन्हें भी इस सूची में अवश्य सम्मिलित करेंगे | अभी तो मात्र प्रेरणा के लिए यहाँ उदाहरण मात्र दिया गया है |
No comments:
Post a Comment