परिमंडल में नभ ललछौंहा

 परिमंडल में नभ ललछौंहा

अभिविश्रुत  ऊषा का द्वार 

दृश्य पटल पर सुमनित उभरा

मिले थे हम तुम पहली बार।


दिनांतक से दिनागमन तक

केवल आँखे मुखरित होतीं

रक्त शिराएँ आल्हादित थीं

सपनों- घर आशाएँ बोतीं

अभिकांक्षित परिकल्पन ऐसा

रूपांतरित रूपक संसार।


संवेदन  दिखलाए  दर्पण 

केश संवारे  लो ! भावुकता

अनुगायन ऐसे प्रसंग का

सहज भला कैसे हो सकता।

संप्रेषित अनुभाव क्या करे

रंगोल्लासित पल त्यौहार। 


आत्मायन में तुम ठहरे हो

ध्यान, मनन में तुमको जाना

हुई रसाई प्रेमपंथ की

आदृत दैविक मर्म पहचाना 

प्राण-प्रतिष्ठा  करो मिलन की

शेष अभी अव्यक्त मनुहार।


मेंहदी लगा  जभी हाथ में 

 अभिलाषा ने ली अँगड़ाई 

बारहमासी गाने उत्सुक

कजरी-चैती ढोलक  लाई

अनगढ़ मन की बातें प्रियतम

कर लेना तत्क्षण  स्वीकार। 


अनुरंजित अनुगुंजित छवियाँ

प्रेमाश्रयी मार्ग  अपनाया

प्रेम-ग्रंथ की पढ़ी भूमिका

फिर भी अब तक पार न पाया।

संतर्पण की रही कामना

प्रियतम ! करना आत्मोद्धार।


श्रीमती मधु प्रसाद 

29,गोकुल धाम सोसायटी

ऑफ बी आर टी एस सारथी बस स्टैंड, 

चाँरखेड़ा, 

अहमदाबाद-382424

(गुजरात)

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