अंतर्मन की पीड़ा

कौन समझ पाया अंतर्मन की पीड़ा,

सभी ने मिलकर उसका उपहास किया।

कहा जब भी कि मैं दुखी हूँ अन्दर से,

लोगों ने उन बातों को दरकिनार किया।।


पीड स्वयं की स्वयं ही महसूस कर नादान,

सब स्वार्थी हैं यहाँ उनकी तू पहचान कर,

भीतरी घाव कोई नहीं ठीक कर पाएगा,

तेरा दर्द तुझसे ही बाँटा जाएगा,

निज आपबीती का सभी ने तिरस्कार किया।

कहा जब भी कि मैं दुखी हूँ अन्दर से,

लोगों ने उन बातों को दरकिनार किया।।


पीड़ा अंतर्मन की ये है कि,

कोई अपना बिना कहे ही सब आभास करें,

उदास,हताश हूँ तो बैठकर मेरे पास,

कुछ देर बात करें ,

मुझें कहे कि तू अकेला नही है सब है तेरे साथ,

सिर्फ़ इतना कहने से ही तेरे अन्दर हौंसला आएगा,

पीड़ा कैसी भी हो तू सब पार कर जाएगा,

जगत में वो ही श्रेष्ठ है जिसने स्वयं का उद्धार किया।

कहा जब भी कि मैं दुखी हूँ अन्दर से,

लोगों ने उन बातों को दरकिनार किया।।


ममतांश अजीत

बहरोड़ अलवर राजस्थान

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