दोस्तों..
ज़िंदगी को मैंने बड़े ही करीब से देखा है.. यह कभी पिता के हाथ सी लगी.. तो कभी माॅं के साथ सी लगी.. मन किया तो मेरे संग संग चली.. पल में बिछड़ी अक्सर बेवफाई कर गई.. इसके बहरूपिया पन को देखकर तो हम बस इतना कहेंगे जी..!!!!!
दरिया ए समझदारी में इस हद तक आज उतर गया हूॅं मैं..!
यह जिंदगी तेरे सारे इंम्तहानो से बेशक गुजर गया हूॅं मैं..!
हमने देखा है आज हर तरफ मौकापरस्तों का हुजूम सा है..!
किसे अपना कहे मतलबी दुनिया से बड़ा डर गया हूॅं मैं..!
तू कहती थी तलाश करो तो वफादार राही भी मिल जाते हैं..!
मुझे तो आज तक नहीं मिला जीवन राह में जिधर गया हूॅं मैं..!
एक आरजू पूरी होती तो दूसरी मुंह बाए खड़ी मिलती है..!
न जाने कितनी आरजूओं का अब तक कत्ल कर गया हूॅं मैं..!
कमल की क़लम से✒️
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