आराधना

तेरा तुझको अर्पण प्यारे रहा और क्या जीवन-धन,

डोर तिहाँरे हाथ साँवरे लाज राखियो जीवन-धन ।

अन्तर्यामी परमेश्वर सर्वस्व व्याप्त हैं घट-घट में,

छिपा न ऐसा कोई जिसको नहीं जानते जीवन-धन ।।

फिक्र हमें अपने मतलब की मगर उन्हें सम्पूर्ण जगत की ।

संचालन जो करें विश्व का टेक रखें "पुखराज" भक्त की ।।

तृण को गिरि-गिरि को तृण करती वो जो अद्भुत शक्ति ।

हों चरणों में साष्टांग करलें हम सब उनकी भक्ति ।।

करें समर्पण अपना सब कुछ पार लगाऐं जीवन-धन,

डोर तिहाँरे हाथ साँवरे लाज राखियो जीवन-धन ।

अन्तर्यामी परमेश्वर सर्वस्व व्याप्त हैं घट-घट में,

छिपा न ऐसा कोई जिसको नहीं जानते जीवन-धन ।।

तेरा तुझको अर्पण प्यारे रहा और क्या जीवन-धन,

डोर तिहाँरे हाथ साँवरे लाज राखियो जीवन-धन ।

अन्तर्यामी परमेश्वर सर्वस्व व्याप्त हैं घट-घट में,

छिपा न ऐसा कोई जिसको नहीं जानते जीवन-धन ।।

बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

         कोटा (राजस्थान)

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