कथा, कथन, मितकथन, कथक आदि शब्दों की व्याख्या
[अच्छी हिंदी : ©कमलेश कमल]
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कथन एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग हम बहुधा करते हैं– कभी सही; तो कभी ग़लत। 'कथन कहा’ अथवा ‘कथन किया’? – इसको लेकर स्थापित लेखकों के मन में भी संशय की स्थिति रहती है। आइए सबसे पहले 'कथन' शब्द को समझते हैं।
कथन शब्द ‘कथ्’ धातु से बना है। कथ् (कथयति, कथित) में कहने, समाचार देने, संकेत देने, वर्णन करने, घोषणा करने आदि का भाव है।
कथ् से 'कथनम्'( कथ् +ल्युट्) शब्द बना, जिसका वही अर्थ है– कहानी कहना, वर्णन करना।
इसी कथनम् का तद्भव 'कथन' है। कथन का अर्थ कहना या बोलना (क्रिया) भी हुआ और कहने का भाव भी हुआ। यह कथन अँगरेज़ी के statement या utterance के समानांतर है।
कथ शब्द को बोलकर देखें; तो अंत में ‘ह्’ सुनाई देगा। यह ‘थ’ ध्वनि भाषा-विज्ञान की दृष्टि से ‘त’ और ‘ह’ के मेल से बना है। प्रयत्न लाघव (सामान्य अर्थ में उच्चारण सुविधा) से ‘थ’ शब्द का ‘त्’ गायब हो गया और ‘ह्’ बच गया। इस प्रकार ‘कथ’ कह हुआ। फिर ‘कह’ का परिवार बढ़ा और कहना, कह, कहा, कहानी आदि शब्द आए। ऐसे, जो बात ‘कथ’ दी गई; वह कथा(वृत्तांत) हो गई।
कथा(कथ् +अङ्+टाप्) जैसा कि सर्वविदित है कि कहानी, कल्पित बातें, वृत्तांत आदि के लिए प्रयुक्त होनेवाला शब्द है। इसी से बने कथानकम् का मूल अर्थ है– छोटी कहानी। कथा कहने वाले अथवा वर्णन करने वाले के लिए शब्द है– 'कथक'। ध्यान दें कि कथक एक शास्त्रीय नृत्य की शैली भी है, जिसमें नृत्य के माध्यम से किसी 'कथा' की अभिव्यंजना होती है।
यहाँ ध्यातव्य है कि चूँकि कथन का अर्थ कोई बात, कहने की क्रिया का भाव, कहना, बोलना, उक्ति, सूक्ति आदि ही है, इसीलिए कथन के साथ 'कहना' नहीं प्रयुक्त होगा। यह पुनरुक्ति दोष माना जाता है। पुनश्च, “उसने यह कथन कहा”– ऐसे प्रयोग नहीं होने चाहिए। 'कथन किया' ठीक है; परंतु भाषा के अच्छे जानकार और शब्दों के खिलाड़ी ‘कथन कहा’ और ‘कथन किया’ दोनों से बचते हैं। वे इस तरह का प्रयोग करेंगे– उसके कथन का अभिप्रेत था कि…, उसके कथन सुनकर….आदि।
बहरहाल, कथन से ‘कथनी’ शब्द बना, जो कोई बात, कथा, उक्ति, कथन आदि के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसे ही, जो कहा जाने योग्य हो– वह 'कथनीय' हुआ। जो कह दिया गया, वह् 'कथित'(कथ्+क्त) हुआ। आगे चलकर 'कथ' से अकथ, अकथ्य, और अकथनीय आदि विपरीतार्थक शब्द बने, जिनके अर्थ स्वतः स्पष्ट हैं।
बढ़ा-चढ़ाकर कहना, अतिरंजना अथवा अत्युक्ति के लिए शब्द बना– ‘अतिकथन’। 'अल्पकथन' कम कहना है। 'मितकथन' अल्पकथन का समार्थक है, परंतु यह उससे अधिक अर्थगाम्भीर्य वाला शब्द है। मितकथन में सोच-समझकर शब्दों को ख़र्च करने का भाव भी अंतर्निहित है।
एक कथन के बाद दूसरा कथन अगर आए; तो वह ‘अनुकथन’ हुआ। आरोप अथवा अभियोग लगाने के लिए ‘अभिकथन’ शब्द है। कथन के बदले (उप) कथन के लिए शब्द बना– ‘कथोपकथन'। हितकथन का अभिप्राय ऐसे कथन से है, जिससे किसी का भला हो सकता है। हितकथन के लिए एक अन्य शब्द है– 'हितवचन'।
ज्ञातव्य है कि संस्कृत में कथ् से बनने वाला 'कथम्' एक अव्यय शब्द है, जिसका अर्थ है– कैसे, किस प्रकार, किस रीति से। इसी प्रकार वहाँ 'कथन्ता' आदि शब्द हैं, परंतु देखा जाए; तो सब ‘कथ्' की ही महिमा है।
कथा, कथन, मितकथन, कथक आदि शब्दों की व्याख्या
[अच्छी हिंदी : ©कमलेश कमल]
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कथन एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग हम बहुधा करते हैं– कभी सही; तो कभी ग़लत। 'कथन कहा’ अथवा ‘कथन किया’? – इसको लेकर स्थापित लेखकों के मन में भी संशय की स्थिति रहती है। आइए सबसे पहले 'कथन' शब्द को समझते हैं।
कथन शब्द ‘कथ्’ धातु से बना है। कथ् (कथयति, कथित) में कहने, समाचार देने, संकेत देने, वर्णन करने, घोषणा करने आदि का भाव है।
कथ् से 'कथनम्'( कथ् +ल्युट्) शब्द बना, जिसका वही अर्थ है– कहानी कहना, वर्णन करना।
इसी कथनम् का तद्भव 'कथन' है। कथन का अर्थ कहना या बोलना (क्रिया) भी हुआ और कहने का भाव भी हुआ। यह कथन अँगरेज़ी के statement या utterance के समानांतर है।
कथ शब्द को बोलकर देखें; तो अंत में ‘ह्’ सुनाई देगा। यह ‘थ’ ध्वनि भाषा-विज्ञान की दृष्टि से ‘त’ और ‘ह’ के मेल से बना है। प्रयत्न लाघव (सामान्य अर्थ में उच्चारण सुविधा) से ‘थ’ शब्द का ‘त्’ गायब हो गया और ‘ह्’ बच गया। इस प्रकार ‘कथ’ कह हुआ। फिर ‘कह’ का परिवार बढ़ा और कहना, कह, कहा, कहानी आदि शब्द आए। ऐसे, जो बात ‘कथ’ दी गई; वह कथा(वृत्तांत) हो गई।
कथा(कथ् +अङ्+टाप्) जैसा कि सर्वविदित है कि कहानी, कल्पित बातें, वृत्तांत आदि के लिए प्रयुक्त होनेवाला शब्द है। इसी से बने कथानकम् का मूल अर्थ है– छोटी कहानी। कथा कहने वाले अथवा वर्णन करने वाले के लिए शब्द है– 'कथक'। ध्यान दें कि कथक एक शास्त्रीय नृत्य की शैली भी है, जिसमें नृत्य के माध्यम से किसी 'कथा' की अभिव्यंजना होती है।
यहाँ ध्यातव्य है कि चूँकि कथन का अर्थ कोई बात, कहने की क्रिया का भाव, कहना, बोलना, उक्ति, सूक्ति आदि ही है, इसीलिए कथन के साथ 'कहना' नहीं प्रयुक्त होगा। यह पुनरुक्ति दोष माना जाता है। पुनश्च, “उसने यह कथन कहा”– ऐसे प्रयोग नहीं होने चाहिए। 'कथन किया' ठीक है; परंतु भाषा के अच्छे जानकार और शब्दों के खिलाड़ी ‘कथन कहा’ और ‘कथन किया’ दोनों से बचते हैं। वे इस तरह का प्रयोग करेंगे– उसके कथन का अभिप्रेत था कि…, उसके कथन सुनकर….आदि।
बहरहाल, कथन से ‘कथनी’ शब्द बना, जो कोई बात, कथा, उक्ति, कथन आदि के लिए प्रयुक्त होता है। ऐसे ही, जो कहा जाने योग्य हो– वह 'कथनीय' हुआ। जो कह दिया गया, वह् 'कथित'(कथ्+क्त) हुआ। आगे चलकर 'कथ' से अकथ, अकथ्य, और अकथनीय आदि विपरीतार्थक शब्द बने, जिनके अर्थ स्वतः स्पष्ट हैं।
बढ़ा-चढ़ाकर कहना, अतिरंजना अथवा अत्युक्ति के लिए शब्द बना– ‘अतिकथन’। 'अल्पकथन' कम कहना है। 'मितकथन' अल्पकथन का समार्थक है, परंतु यह उससे अधिक अर्थगाम्भीर्य वाला शब्द है। मितकथन में सोच-समझकर शब्दों को ख़र्च करने का भाव भी अंतर्निहित है।
एक कथन के बाद दूसरा कथन अगर आए; तो वह ‘अनुकथन’ हुआ। आरोप अथवा अभियोग लगाने के लिए ‘अभिकथन’ शब्द है। कथन के बदले (उप) कथन के लिए शब्द बना– ‘कथोपकथन'। हितकथन का अभिप्राय ऐसे कथन से है, जिससे किसी का भला हो सकता है। हितकथन के लिए एक अन्य शब्द है– 'हितवचन'।
#ज्ञातव्य है कि संस्कृत में कथ् से बनने वाला 'कथम्' एक अव्यय शब्द है, जिसका अर्थ है– कैसे, किस प्रकार, किस रीति से। इसी प्रकार वहाँ 'कथन्ता' आदि शब्द हैं, परंतु देखा जाए; तो सब ‘कथ्' की ही महिमा है।
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