बुझे हुए पथ पर,फिर से ज्योत जलाने को,
प्रस्तुत किरणें कहती,तमस दूर भगाने को।
कालिमा छँट जाए मन से,धुँध पोंछ लेने को,
फिर देखो ,मन रोशन तो रोज़ दिवाली।
जग के तम मिटा,चाँदनी रात ने की अगुआई,
तारों की बरसात हो,तो जगमग आकाश हो।
मोम की तरह पिघलता जाए,तिमिर भरी रात,
तब मन रोशन तो रोज़ दिवाली।
अहंकार घमंड से दूर हट,जरूरतमंदों को,
गले लगाना है,
दान पुण्य करें उनको,गुलशन उनका भी महकाएँ।
रामराज्य नहीं बना,सकल विहान हो अवनी पर,
तब मन रोशन तो रोज़ दिवाली।
मन जब अमावस रात की तरह काली दिखती, तम मन से मिटा नहीं,रीता-रीता हो हर कोना।
वैरागी मन भटकता है,आकांक्षाएँ रोती रहती ,
ईश्वर ने जो दिया सौग़ात,ख़ुशियाँ उसी में मना जीना।
द्रवित मन रोता रहता,चैन को खोता रहता,
तब दीनन को गले लगाएँ,सुकून उर में भरें।
दिया ईश का सौग़ात,ग्रहण करते रहना है,
तब ,मन रोशन तो रोज़ दिवाली।
विभा वर्मा वाची
USA
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