, मैं प्रिय कविता बन जाऊँ l

  

तुम कवि राज बनो हे प्रियतम , मैं प्रिय कविता बन जाऊँ  l

सदा बसू मैं सप्त सुरों में , तन - मन झंकृत कर पाऊँ   l l


बड़े जतन से पढ़ो मुझे तुम , हृदय सभी के मैं भाऊँ  l

रोम - रोम से ही मैं अपनी , प्रीत तुम्हारी छलकाऊँ  l l

रहूँ लेखनी में मैं हर पल , जब तुम बोलो मैं आऊँ  l

तुम कविराज बनो हे प्रियतम , मैं प्रिय कविता बन जाऊँ  l l

उर में अपने मुझे बसा लो , तेरी धड़कन बन जाऊँ  l

हृदय तरंगित तो हो जब तेरा , मधुशाला सी मुस्काऊँ  l l

बनकर यादें भूली बिसरी , दूर गगन में इतराऊँ  l

तुम कविराज बनो हे प्रियतम , मैं प्रिय कविता बन जाऊँ   l l


सदा रहूँ अविरल सी धारा , लगे सभी कुछ प्यारा सा l

झूम - झूम के नाचो - गाओ , हो जैसे ये सपना सा  l l

तुहिन कणों में रहूँ बिखरती , सबके मन को मैं भाऊँ  l

तुम कविराज बनो हे प्रियतम , मैं प्रिय कविता बन जाऊँ  l l


तुम कविराज बनो हे प्रियतम , मैं प्रिय कविता बन जाऊँ  l

सदा बसु  मैं सप्त सुरों में , तन - मन झंकृत कर पाऊँ   l l


डॉ. राजेश कुमार जैन 

श्रीनगर गढ़वाल  ,उत्तराखंड

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