अभी कल की ही बात है, जैसे मैं आफिस पहुँचा साहब का चपरासी आ गया और बोला साहब बुला रहे हैं. बुरा तो बहुत लगा, मन ही मन मैंने बास को दस बीस गालियाँ दे दिया क्योंकि यह मेरे चाय पीने का समय था , लेकिन जाना तो पड़ा ही. जाने के पहले मैंने अपना चेहरा एक दुखी और गरीब इंसान के तरह बनाया और चेम्बर में " मे आई कमिंग सर" कह कर घुस गया. बास ने बिना मेरी तरफ देखे कहा तुम्हें कोई भी काम ठीक से करने नहीं आता, पता नहीं तुम्हें कब अक्ल आयेगा और एक फाईल मेरे तरफ फेंक कर कहा गेट आउट.
मेरे समझ में नहीं आ रहा रहा था कि बास ने मुझे डांटने के लिए बुलाया था या फाईल देने के लिए. दूसरी बात अगर उनको यह समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे कब अक्ल आयेगा तो इसमें मेरा क्या दोष है? वह मेरे बास हैं, उन्हें तो अपने स्टाफ़ के बारे में इतना जानकारी तो होना ही चाहिए.
वैसे मैं बता दूँ कि मेरे पास अक्ल की कोई कमी नहीं है, अपना सारा काम मैं ठीक से और समय से करता हूँ. समय से आफिस आता हूँ, समय से घर जाता हूँ, समय से खाना खाता हूँ, समय से सोता हूँ, समय से उठता हूँ , अपनी पत्नी के साथ साथ बच्चों को भी खुश रखता हूं. आफिस के बाहर और परिवार में किसी को भी मुझसे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन पता नहीं क्यों आफिस में ही मेरे हर बास को लगता है कि मेरे पास अभी तक अक्ल नहीं आया है और अक्ल कब तक मेरे पास पहुंचेगा, यह हमारे किसी बास को पता नहीं. अब अक्ल का कोई पता या ठिकाना तो है नहीं कि वहाँ जा कर मैं पूछ लूं कि अक्ल महोदय आप मेरे बास के पास कब तक पहुंचोगे ! लेकिन फिर मैंने सोचा कि यह समस्या मेरे बास की है, मैं क्यों इतना चिंता कर रहा हूँ. बास अपना काम करें, मैं अपना काम करता हूँ. मैं कैंटीन में चला गया, आराम से अदरक का चाय पिया और अपने डेस्क पर आ गया.
फिर मैंने वह फाईल, जिसको मेरे बास ने मुझे देकर कहा था गेट आउट, खोल कर देखने लगा कि मैंने क्या गलती कर दिया है कि बास इतने नाराज हो गये. देखा वह फाईल तो मेरा था ही नहीं. फाईल तो त्रिपाठी का था! अब मेरे समझ में नहीं आ रहा था कि अक्ल मेरे पास नहीं है या ? बास को कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि उसके लिए फिर उनके चेम्बर में जाना पड़ता, तब शायद फिर उनसे डांट खाना पड़ता. मैंने चुप चाप फाईल त्रिपाठी को दे दिया. त्रिपाठी ने भी कुछ नहीं पूछा कि यह फाईल बास ने आपको क्यों दिया और मेरे पास तो खैर कुछ बताने के लिए था ही नहीं.
खैर साहब जिन्दगी अभी तक तो आराम से कट ही रहा है. तन्ख्वाह भी समय से मिल जाता है. पदोन्नति भी देर सबेर हो ही जाता है. लेकिन रोज एक दो बार अपने बास से सुनना ही पड़ता है कि पता नहीं तुम्हें कब अक्ल आयेगा. यार मैंने एम एस सी ( मैथ) से किया है, अखिल भारतीय प्रतियोगिता में मेरिट में आया था, अभी तक मेरे काम में किसी बास ने कोई कमी नहीं बताया, फिर भी हर बास को लगता है कि मेरे पास अक्ल नहीं है और अक्ल कब मेरे पास आयेगा यह भी उन्हें नहीं पता.
एक दिन मैंने अपने घनिष्ट मित्र राव से इस सम्बन्ध में बात किया. मेरी समस्या सुन कर राव साहब बहुत ही गम्भीर हो गये. वैसे भी राव साहब एक गम्भीर किस्म के आदमी हैं. मैंने कहा भाई मैं क्या करुं कि बास यह पूछना बन्द कर दें कि मुझे कब अक्ल आयेगा. राव साहब बोले देखो भाई थोड़ी बहुत यही समस्या मेरे साथ भी है लेकिन मुझे अपना ही कोई समाधान नहीं मिला तो आपकी क्या सहायता कर सकता हूँ. लेकिन मैं तुम्हें एक सलाह दूंगा कि इस तरह की समस्याओं का जिक्र किसी से भी मत करो. क्योंकि अभी तक जो लोग तुम्हें बुद्धिमान समझते हैं वे भी तुम्हारे बारे में शंका करने लगेंगे. मैं तो चौंक गया! राव साहब ने तो बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहा. मेरे पास अक्ल नहीं है यह तो केवल मेरा बास ही जानता है या मैं, और कोई नहीं, तो फिर मैं बिना मतलब सबसे क्यों कहता फिरूं. मैंने राव साहब को धन्यवाद दिया.
लेकिन राव साहब ने कहा कि निराश होने की कोई जरूरत नहीं है, आप अपनी पत्नी से बात करो, वह आपकी अर्धांगिनी है, इस समस्या का कोई न कोई समाधान वह अवश्य निकालेगी और इसमें कोई खतरा भी नहीं है. मैंने कहा राव साहब यार आप तो बहुत ही बुद्धिमान आदमी हो. आपको तो किसी बड़े़ कम्पनी में सलाहकार होना चाहिए. राव साहब ने एक गहरी सांस लिया और बोला, क्या करोगे दोस्त इस देश में प्रतिभा को समुचित सम्मान कहाँ मिलता है! इसीलिए न आजकल नवजवान देश से बाहर जा रहे हैं, देश से प्रतिभाओं का पलायन हो रहा है. मैंने कहा आप बिल्कुल सही कह रहे हैं.
खैर साहब रात में आफिस से घर पहुंचा . रात में खाना खाने के बाद मैंने एकांत में पत्नी से अपने आफिस की समस्या बतायी और पूछा यार कोई समाधान बताओ. पत्नी ने कहा इस तरह की बातों को दिल पर क्यों लेते हो ,यह तुम्हारे बास की समस्या है उन्हें सोचने दो. मैंने कहा तुम बात टाल रही हो.
बोली सही बात बताऊँ, लेकिन तुम बुरा तो नहीं मानोगे. मैंने कहा यार पहली बात तो यह है कि मैं बुरा मान कर भी तुम्हारा क्या कर लूंगा, दूसरी बात जब मैं ही पूछ रहा हूँ, तो अच्छा हो या खराब, बुरा क्यों लगेगा. पत्नी बोली नहीं तुम्हारा कोई ठिकाना नहीं, मेरी कसम खाओ तब बताऊंगी. मैंने कहा तुम्हारी कसम मेरी जान मैं बिल्कुल बुरा नहीं मानूँगा. पत्नी बोली देखो तुम सही में बहुत बुद्धिमान आदमी हो लेकिन शक्ल से एकदम बेवकूफ लगते हो. मैंने कहा यार यह बात हमारी शादी के पच्चीस साल बाद तुम्हें पता लगा या पहले से ही पता है. उसने कहा ईमानदारी से कहतीं हूँ, तुम्हें जब पहली बार देखा तभी समझ गयी थी कि तुम एकदम बेवकूफ आदमी हो. मैंने कहा फिर मुझसे शादी क्यों किया. पत्नी बोली अरे मेरे भोले पति इतना भी नहीं जानते हो, हर लड़की बेवकूफ पति ही खोजती है. मैंने कहा यार तुमने कभी यह बात बताया नहीं. पत्नी बोली देखो औरतें अपने बेवकूफ पति को कभी भी सीधे तौर पर बेवकूफ नहीं कहतीं, वे उन्हें मिट्टी का माधव कहतीं हैं. मै तुम्हें अक्सर मेरे मिट्टी का माधव कहतीं हूँ कि नहीं! बोलो!
अब मेरे लिए बोलने के लिए बचा ही क्या था! लेकिन मैंने स्वयं को सम्भाला और कहा यार चलो बेवकूफ ही सही, इसी बहाने मुझे तुम्हारी जैसी सुन्दर सुशील पत्नी तो मिल गयी.
( ----- ओमप्रकाश पाण्डेय)
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