किसे आईने दिखाएं कैसे.

 

हमेशा की तरह आज फ़िर ज़माने का एक कड़वा सच लेकर आई है क़लम-ए-कमल..!


रिश्ते सारे ही शून्य हो चले हैं इन्हें जोड़े कैसे घटाएं कैसे..!

हर तरफ अंधों की बस्तियां ऐसे में किसे आईने दिखाएं कैसे..!


कोई अपनों के तो कोई सियासत के हाथों जख्म खाएं बैठा है..!

हर हाथ में नमक है कोई अपना जख्म किसे बतलाएं कैसे..!


छल के दलदल में पूरी ही तरह समाया हुआ है हर एक आदमी..!

गैरों ने कम अपनों ने ज्यादा छला गमो से कोई उबर जाएं कैसे..!


ज़माना ले आया है आज आदमी को देखो तो किस मोड़ पर..!

हर हाथ में तो खंजर है कोई ख़ुद को ज़माने से बचाएं कैसे..!


सुकून की तलाश में हैं हर कोई पर सुकून तो गुमशुदा सा है..!

तभी तो हर एक दिल बेचैन सा है कोई सुकून पाएं तो पाएं कैसे..!


कमल की क़लम से✒️

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