एक दिव्य कॉमेडी।


है पड़ता दिखाई,

वह है जो, अदृश्य सा,

पर है दिखता, हर रोज।

ना चीज सी,

हवा में हिलती,

टहनी से गुंथा, है जन्मा।

है नहीं,

यहां कोई चूक,

भले है रेशा पतला।

पतलापन है कतई,

यहां महत्वपूर्ण नहीं।

है बुनी,

जिसने भी इस संरचना की सोच,

है वह,

जागरण की उच्चतम, आत्मा।

हैं जानते आप ?

निहार फूल को प्रश्न एक उपजा,

थे कहां तुम जन्म से पूर्व ?

उत्तर में झट से मन ने कहा "मैं रेशे की बुनावट में, एक कड़ी सा बना, तना खड़ा था।"

देखना फूल को।

तोड़ना नहीं,

केवल छूना,

उसमें छुपे संकेतों को।

है देवत्व सा मजाक,

लिए पतले रेशों की भूलभूलैया। 

एक पूर्ण संसार शायद,

रूप में लघु,

है यह समझ, शांत और खामोशी की।


हो एकाग्र, निहार,

फूल ने

है समझ का पर्दा उठाया।

देख! उठा आंखों पर तहों में पड़ा पर्दा,

होना इस गुलाब की पंखुड़ी के साथ एक,

एकाकार,

ही है परमात्मा।

मुझे रहे दिखता पुष्प,

परमात्मा चाहे न दिखे।

है यह मेरे लिए,

एक दिव्य कॉमेडी !

रामा तक्षक 

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