◆ आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

 आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय 

■ यदि आपको इसमे से किसी भी प्रकार की अशुद्धि दिखे तो हमारा समुचित मार्गदर्शन करें, स्वागत है।

◆ यहाँ वे शब्द हैं, जिनका विश्व-समाज जाने-अनजाने ('अंजाने'और 'अन्जाने' अशुद्ध हैं।)अशुद्ध और अनुपयुक्त व्यवहार करता आ रहा है।

■ शब्द :– शुभ रात्रि; शुभ दिन; गुड नाइट; गुड मॉर्निंग; गुड डे; अभिवादन तथा आदाब।

  ये सभी शब्द-प्रयोग 'अर्थहीन' हैं; क्योंकि शुभ का अर्थ 'कल्याण' है और रात्रि का 'रात'। 'सु' का अर्थ 'अच्छा' और 'सुन्दर' है। इन दोनो शब्दों के क्रमश: अर्थ हैं, 'कल्याण रात' और 'अच्छी'/'सुन्दर रात'। अब प्रश्न है, इन शब्दों के प्रयोग का औचित्य क्या है? जिस भाव, अर्थ तथा आशय के लिए इनका प्रयोग किया जाता है, क्या इनकी सार्थकता है? इसका उत्तर उन लोग के पास नहीं है, जो 'गुड मॉर्निंग', 'गुड नाइट', 'सुप्रभात', 'शुभ प्रभात', 'शुभ रात्रि' इत्यादिक शब्दों का व्यवहार करते आ रहे हैं।

   शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग हैं :– १– आपकी रात्रि शुभमयी हो!

२–आपकी रात्रि कल्याणकारिणी हो! 

३– आपकी शुभमयी रात्रि की कामना करता हूँ। 

४– आपकी रात्रि कल्याणमयी हो! 

   यहाँ 'शुभमयी', 'कल्याणकारिणी' तथा 'कल्याणमयी' का प्रयोग इसलिए किया गया है कि विशेष्य-शब्द 'रात्रि' स्त्रीलिंग है; इस कारण विशेषण-शब्द भी उसी लिंग का होगा।

   इसी तरह से वाक्य मे पिरोते हुए, 'सुप्रभात' और 'शुभ प्रभात' का भी व्यवहार किया जायेगा।

    ! यह चिह्न इच्छासूचक/कामनाबोधक तथा आज्ञाबोधक वाक्य के अन्त मे लगता है, जिसे 'इच्छासूचक' और 'आज्ञासूचक-चिह्न' कहते हैं। 'गुड नाइट' और 'गुड डे' के प्रयोग भी अर्थहीन हैं और आपत्तिजनक भी। आप अब शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग देखें :– 

१– यू हैव ए गुड नाइट। 

२– यू हैव ए गुड मॉर्निंग।

३– यू हैव ए गुड डे। 

    इनका क्रमश: अर्थ है :–

१–  आपकी भली रात्रि हो! 

२– आपकी सुब्ह ('सुबह' अशुद्ध है।) भली हो। 

                (अथवा)

आपका उत्तम/भला/अच्छा प्रात: हो।

३– आपका भला दिन हो! 

   कुछ लोग 'हैव ए गुड डे', 'हैव ए गुड मॉर्निंग' तथा 'हैव ए गुड नाइट' का प्रयोग करते हैं। ये तभी तक शुद्ध और उपयुक्त प्रयोग माने जायेंगे जब तक दो मित्र/शुभचिन्तक आमने-सामने हों वा (अथवा) दो के मध्य प्रत्यक्ष-परोक्ष संवाद (कथोपकथन)


किया जा रहा हो। (अथवा) एक मित्र दूसरे मित्र को पत्र लिख रहा हो।

    अब 'अभिवादन' शब्द पर विचार करते हैं। यह 'मुक्त मीडिया' (सोसल मीडिया) मे 'कोविड' और 'कोरोना'-रोग की तरह से व्याप्त हो चुका है। अभिवादन का शाब्दिक अर्थ है, 'सश्रद्धा (श्रद्धापूर्वक/श्रद्धासहित) किया जानेवाला प्रणाम अथवा नमस्कार'। इसके अन्य अर्थ 'प्रशंसा' और 'स्तुति' हैं। 'नमस्कार' का अर्थ है, 'झुककर अभिवादन करना'। इन शब्दों का जिस भाव और अर्थ मे प्रयोग किया जाता है, वह व्यर्थ है। हम जब केवल 'नमस्ते' शब्द का व्यवहार करते हैं तब वह पूर्ण अर्थ को व्यक्त करता है; क्योंकि वह एक वाक्य है :– नमस्ते। 

   नमस्ते की रचना 'नम:+ते' के योग से होती है। यह विसर्ग सन्धि का उदाहरण है, जिसका अर्थ है–  'आपको नमस्कार है।'

   'अभिवादन' के अन्तर्गत 'नमन' ('नमन्' अशुद्ध है।), 'नमस्कार' अथवा 'प्रणाम' किये जाते हैं; परन्तु इसका शुद्ध प्रयोग है :– 

१– प्रणमामि। (प्रणाम करता हूँ।)

२– नमस्करोमि। (नमस्कार करता हूँ।)

३– आपको प्रणाम/नमस्कार/नमन करता हूँ। (अथवा) मेरा प्रणाम/नमस्कार/नमन स्वीकार करें। 

  यदि किसी ने कहा :– मै आपको नमस्ते करता हूँ। (अथवा) मेरा नमस्ते स्वीकार करें तो उसका यह प्रयोग हास्यास्पद हो जाता है। आप कह सकते हैं :– मेरा यथोचित (जैसा उचित हो।) अभिवादन अङ्गीकार/स्वीकार करें ('स्वीकारें' अशुद्ध है।)। आपने यदि किसी को केवल 'अभिवादन' अथवा 'नमस्कार' वा (अथवा) 'प्रणाम' कहा तो आपका  कथन अर्थहीन माना जायेगा। इसके साथ कर्त्ता और क्रिया का प्रयोग अनिवार्य है।

     आप भली प्रकार से समझ लें कि 'प्रणाम', 'नमन' तथा 'नमस्ते' अवस्था मे स्वयं से ज्येष्ठ और सुयोग्य व्यक्ति को किया जाता है, जबकि 'नमस्कार'-शब्दप्रयोग स्वयं से कनिष्ठ अथवा सम-अवस्था और सम-स्तर के व्यक्ति को किया जाता है। 

    बहुसंख्य लोग अपने परिचितजन को 'आदाब' कहते हैं। यह भी ग़लत लफ़्ज़ का इस्तेमाल है। इस शब्द को व्यवहार मे लानेवाले लोग मे से बहुत कम ऐसे हैं, जो न तो इसकी उत्पत्ति से वाक़िफ़ (अभिज्ञ, जानकार तथा परिचित) हैं और न ही इसका शाब्दिक अर्थ जानते हैं। 'आदाब' अरबी-भाषा का शब्द है, जिसकी रचना 'अदब' (शिष्टता, शिष्टाचार) से हुई है। आदाब-शब्द (आदाब का शब्द) 'अदब' का बहुवचन है, जिसका अर्थ 'अभिवादन', 'प्रणाम', 'नमन' तथा 'नमस्कार' है। ऐसी स्थिति मे, सामनेवाले को कहना होगा :– आदाब अर्ज़ करता हूँ। 'अर्ज़' का अर्थ है, 'एक बार ज़ाहिर (प्रकट/व्यक्त) करना'। इस प्रकार इसका अर्थ हुआ :– अभिवादन व्यक्त/प्रकट करता हूँ ।

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राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सदस्य भारत सरकार रिनचेन ल्हामो

 प. पू. झारखण्ड राजकीय अतिथि श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी गुरुदेव के आशीर्वाद लेने के लिए आयी। राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की सदस्य भारत सरकार रिनचेन ल्हामो नई दिल्ली ।

पू. गुरुदेव के दर्शन से उन्होनें हार्दिक अभिव्यक्ति प्राप्त हुई ।पू . गुरूदेव से जैन धर्म के वाले में तत्वचर्चा की। पू. गुरुदेव ने अहिंसा, सत्य  का उपदेश दिया और कहा कि हमारा ये जीवन पांच अहिंसा रुपी सिद्धान्तों पर टिका है हमें अपने जीवन में इन सिद्धान्तों को आत्मसत् करना चाहिए हमें अहिंसा ,सत्य आदि को जीवन में अपनाना चाहिए। एवं पू . गुरुदेव की तीर्थंराज सम्मेद शिखर जी की रक्षा के विषय में भी चर्चा हुई उन्होंने कहा कि ये सम्मेद शिखर हमारा शाश्वत पर्वराज है उसकी पवित्रता की रक्षा करना हमारा धर्म एवं कर्तव्य है।उसकी पवित्रता का हमें पूरा - पूरा ध्यान रखना चाहिए। एवं उसके लिए प्रयास करना चाहिए । रिनचेन ल्हामो ने  भी गुरुदेव को आश्वासन दिया और कहा कि मैं अपने सदस्यता के साथ वहा जरूंगी एवं पूरा प्रयास करूंगी ।तीर्थंराज के लिए।और भी अन्य विषयों पर पू . गुरुदेव से गहन चर्चा की। तत्वचर्चा होने के बाद रिनचेन ल्हामो ने  कहा कि हे गुरुदेव आपके जीवन से हमें विभिन्न शिक्षा मिलती है आपका जीवन हमरे लिए प्ररेणा दायक है आज आपके दर्शन से मेरा जीवन धन्य हो गया। खूब गदगद भावों से पू. गुरुदेव को नमन ,वदन किया और कहा कि मेरा पूरा प्रयास रहेगा तीर्थंराज सम्मेद  शिखर जी के लिए ।जो उसकी पवित्रता है वह शाश्वत रहे। मेरा पूरा प्रयास रहेगा



इसकी रक्षा के लिए ।

महामहिम राष्ट्रपति महोदय को संबोधित ज्ञापन SDMविकासनगर को

 


 28 दिसम्बर 2022 को श्री सम्मेद शिखर जी के विषयक  देश की महामहिम राष्ट्रपति महोदय को संबोधित ज्ञापन ,श्री,SDMविकासनगर ,देहरादून (उत्तराखण्ड )के माध्यम से विकासनगर जैन समाज द्वारा दिया गया !

विक्रम संवत भूल न जाना

 अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना


निज संस्कृति और सभ्यता,

ध्यान रख हमको जश्न मनाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


ध्यान रखें पुरखों का गौरव,

सबका हम सम्मान करें,

अभिलाषा क्या वरिष्ठजनों की,

इसका पूरा ध्यान रखें,

सुख दुख के हमें संगी बनना,

परहित धर्म हमें अपनाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


नफरत के स्तंभ गिराएँ,

भाई भाई को गलें लगाएं,

व्यसनों से हम दूर रहें,

सतपथ पर हम कदम बढ़ाएं

धन धान्य भरपूर हो चाहे,

पर अहंकार न मन में लाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


शिक्षा से रोशन हो हर घर,

संस्कार के बनें प्रतिमान,

अपनी भाषा संस्कृति का,

करें सभी हम गौरव गान,

प्रगति के सोपान चढ़ें हम,

सुखी संपन्न हमें देश बनाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


हर हाथ को काम दिलाएं,

प्रतिभा को सम्मान दिलाएं,

अपव्यय की आदत को त्यागें,

सबका स्वाभिमान जगाएं,

करें अंत का उदय सभी हम,

मिले भूखे को भोजन खाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


गांधी सा जीवन हम जिएं,

बनें पटेल से दृढ़ता धारी,

भगत,सुभाष,शेखर से बनें हम,

बनें राष्ट्र के हम हितकारी,

खतरा जो भी बने देश का,

मिलकर उसे हमें निपटाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


बनें निरोगी सभी यहां पर,

घर घर योग का करें प्रसार,

आयुर्वेद,संस्कृत,हिन्दी,

को मन से हम करें स्वीकार,

कला,ज्ञान,में निपुण बनें हम,

विश्वगुरु पद हमको पाना,

अंग्रेजी नववर्ष मनाओ चाहे,

पर विक्रम संवत भूल न जाना।।


कैलाश चन्द गुप्ता (ताम्बी) "हिन्दुस्तानी"

बालाहेड़ी(दौसा)वाले


करवट ले रहा नया साल

 करवट ले रहा नया साल


 करवट ले रहा नया साल
-                                        शन्नो अग्रवाल

आओ कुछ उम्मीदें कर लें 

अरमानों के कुछ बूटों को

दामन में अपने भर लें l


जग में सबका भला मनायें 

न मायूस दिखे कोई चेहरा 

जीवन हो शांत तपोवन सा 

खुशिओं का रंग भरे गहरा l


न आग बने कोई चिंगारी

न आस बने कोई लाचारी 

जग में फैला हो अमन-चैन 

न कहीं भी हो कोई बेगारी l


ओंठों पे खिली तबस्सुम हो 

हर दिल में नूर हो इंसानी

आँखों में रोशन हों उम्मीदें

नफरत हो सबसे अनजानी l


आँधी सी ताकत हो बाहों में 

रोशनी हो झिलमिल राहों में 

ना कहीं भी हो ऐसा इंसा 

जो ढूँढे कोई सुकूं गुनाहों में l


-शन्नो अग्रवाल

जैन युवा परिषद-उत्तरप्रदेश द्वारा संस्कृति विभाग-उ.प्र. सरकार के अन्तर्गत संगमम् समारोह

 अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा परिषद-उत्तरप्रदेश द्वारा संस्कृति विभाग-उ.प्र. सरकार के अन्तर्गत समारोह…..


 मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने किया समारोह का उद्घाटन…..👌☺️




जैनत्व एवं शाकाहार के प्रचार प्रसार एवं सर्वसमाज में जैन समाज की उपस्थिति दर्ज कराने के उद्देश्य से सांस्कृतिक विभाग उत्तर प्रदेश सरकार एवं अमर उजाला के संयुक्त तत्वावधान में गोमतीनगर-लखनऊ में आयोजित संगमम् कार्यक्रम में अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन युवा परिषद उत्तर प्रदेश के द्वारा जैन संस्कृति को दर्शाने की जिम्मेदारी स्मृति जैन को प्रदान की गई जिसका मुख्य लक्ष्य जैनत्व का प्रचार एवं तीर्थ संरक्षण था। जिसमें काफी हद तक सफलता प्राप्त हुई आज अमर उजाला के 55 शहरों के संस्करणों में जैन समाज की सहभागिता की खबर को प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया है जो कि हम सभी के लिए गर्व का विषय है।


आदीश कुमार जैन सर्राफ़, लखनऊ

प्रदेश अध्यक्ष-युवा परिषद, उ.प्र.


सुदंर सफल आयोजन

 विश्वरंग व्यवस्थापक/आयोजक समिति भोपाल से पधारे कवि विचारक श्री बलराम गुमाश्ता जी की अध्यक्षता में

-भारत आस्ट्रेलिया साहित्य सेतु- के संचालक अनिल कुमार शर्मा की पहल व प्रयास से एवं सिडनी के गीतकार विजय कुमार सिंह जी  के सहयोग से एक सुदंर सफल आयोजन




 दिनांक 29-12-22 को 

डा० भावना कुँवर एवं प्रगीत कुँवर दम्पति के निवास पर हुआ 

भावना जी की 21 वीं पुस्तक “कूल कछुआ स्मार्ट कंगारू “का एवं 

विजय कुमार सिंह के प्रसिद्ध उपन्यास “ऋण मुक्त” का विमोचन  हुआ 

हिंदी प्रसार पर विमर्श एंव कवि गोष्ठी का अविस्मरणीय अद्भुत आयोजन हुआ ।गोष्ठी के तीन दौर 

एक से बढ़कर रचनाओं से सजे हुए रहे ।

अनिल कुमार शर्मा

विश्वरंग - विश्व को अपने रंग में रंग दिया विश्व रंग ने

 




विश्व को अपने रंग में रंग दिया विश्व रंग ने

भोपाल की धरा पर पग रखते ही दृष्टि को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी , ठीक गेट पर विश्व रंग की पट्टिका लिए कर्मवीर खड़े थे , कुली को भाड़ा देने के लिए अभी पर्स खुला भी नहीं कब उसे विदा कर दिया ज्ञात ही नहीं हुआ। होटल में प्रत्येक को व्यक्तिगत रूप से सुविधाएं प्रदान  कराने में संलग्न डॉo अरविंद चतुर्वेदी की  सचेष्टता सहजता समर्पणता के साथ विदाई तक यथावत रही फोन की एक कॉल पर रात दिन मुस्कराते हुए वे हर सुविधा के लिए उपलब्ध रहे 

हम अतिथि सत्कार की परिभाषा इनसे  सीखते रहे

 विश्व स्तरीय कलात्मक सज्जा से अलंकृत संपूर्ण परिसर न जाने कितने समय से कितने कलाविदो की कल्पना का प्रतिफल था  विश्व रंग का लुभावना अर्थ सम्मत लोगो(logo) में  सत्पर्णी विहंग उड़ान कला संस्कृति साहित्य सभी का समवेत प्रतीक बन प्रवेश द्वार से सभा स्थल 

उपहार किट प्रतीक चिन्ह सभी को आकर्षक बना रहा था

हम प्रवासियों को तो प्रदेश के विभिन्न विभागों ने सम्मान प्रदान कराकर आत्मीयता का अविस्मरणीय उपहार दिया

 आधुनिक तकनीक से सम्पन्न संपूर्ण सभास्थल तथा पृथक पृथक संचालित समानांतर सत्र प्रमुख हस्तियों के साक्षात्कार वार्ताएं एवम प्रश्नों ने  सजीव आकर्षक बना रखा 

चारों ओर जल काफी चाय की उदार व्यवस्था रही

  कार्यक्रम का संंयोजन अंतिम क्षण तक रोचक ज्ञानवर्धक बना रहा

संपूर्ण टीम की एकजुटता विनम्रता कर्मठता सजगता एवं आतिथ्य भावना  देखते ही बनती थी 

 देर रात तक अनुशासित सुनियोजित  तथा प्रसिद्ध रंगकर्मियों  की प्रस्तुति नगर भर में  चर्चित रही श्रोता दत्ता वैधान होकर अंत तक साहित्य सुधा पान करते रहे कुछ ऐसी प्रतिभाएं थे जिनका आक्षरिक परिचय तो था लेकिन साक्षात देख कर मन गदगद हो गया संपूर्ण कार्यक्रम में टीम वर्क तो था ही लेकिन मान्य कुलपति श्री संतोष चौबे जी के सहजता और विनम्रता सांस्कृतिक और साहित्यिक प्रतिभा संपन्न व व्यक्तित्व के लिए मैं प्रणाम करती हूं उन्होंने बहुत शांत और सरलता से हर पल चौकन्ना रहकर क्षण क्षण  इस कार्यक्रम को अनुशासित रखा उनकी कविताओं की संवेदना दिल में बस गई 

उनसे बहुत कुछ नया देखने सीखने और जानने को मिला किसी भी पल हमें ऐसा लगा ही नहीं कि हम कोई रिक्तता का अनुभव कर रहे हैं सचमुच संतोष चौबे जी ने रविंद्र नाथ टैगोर के नाम को सार्थक कर दिया और और संपूर्ण विश्वविद्यालय को शांतिनिकेतन बना दिया अपनी ज्ञान गरिमा के पावन प्रकाश से संपूर्ण कार्यक्रम को नभस्पर्शी ऊंचाइयों प्रदान की हमें विश्वास है कि भविष्य में भी यह हम सबको नया मन देगा ,नई संवेदना देगा, नया संबोधन देगा हम लौटने के बाद भी उनके अनवरत परिश्रम और बहुआयामी प्रतिभा की पग  ध्वनियों की अनुगूंज सुन रहे हैं आप सभी को बहुत-बहुत साधुवाद 

Dr Neelam Jain, US



पत्थरों को नया साल संगमरमर हो

फूलों को हो गुलाब

खगोल को आकाशगंगा हो

नदी को नया साल स्वच्छता हो

थकान को नया साल नींद हो

अवसाद को हो मुस्कराहट ये नया साल

ठहराव को गति हो 

स्वप्न को हो नया साल यथार्थ

अंधेरे को सुबह की रोशनी हो एक जनवरी

देश को हो ये वक्त शांति की सूरत

शब्दों को नया समय

असर सहित हो

संवेदना को सभी के वोट मिलें

एक दिन नहीं

आने वाले उस हर दिन जो

एक दिन के पीछे आ रहा है

स्वर को नया साल संगीत हो


ब्रज श्रीवास्तव





गंगे नमामि नमामि नमामि

 ।। गंगा स्तुति।।

 गंगे नमामि नमामि नमामि।

गंगे नमामि नमामि नमामि।।

किरपा करणी दुख हरणी दयानी।

गंगे नमामि नमामि नमामि।।


शिव जटाधारिणी शिव जटाधारिणी ।

गंगाधर नमामि नमामि नमामि।

 गंगे नमामि नमामि नमामि।।


भागीरथ उद्धारिणी भागीरथ उद्धारिणी

सगर पुत्र तारिणी तारिणी तारिणी।

 गंगे नमामि नमामि नमामि।।


जगत कल्याणिनी जगत कल्याणिनी। 

गंगाजल धारिणी धारिणी धारिणी ।

गंगे नमामि  नमामि         नमामि।।


ऋतु प्रिया खरे

श्रीदेशना पत्रिका




















ऋणी हैं हम जिनके.......

 सफर जारी है......1168 

बीना शर्मा

31.12.2022

ऋणी हैं हम जिनके.......

ऐसे ही थोड़े बड़ा बना जाता है, कितने कितने अपनों का साथ होता है, प्रियजनों की शुभकामना होती है, बड़ों का आशीष होता है, छोटों की स्नेह वर्षा होती है, मित्रों की उठा बैठक होती है, सत्पुरुषो की संगत होती है, निंदकों की छिद्रानवेशी  आलोचना होती है, जो बिन साबुन पानी के ही स्वभाव को निर्मल कर देती है इसलिए निंदक तो नियरे बने ही रहते हैं और कुटिया आंगन में छवा लेते हैं,शत्रुओं के इतने इतने तीखे व्यंग्य वाण होते हैं कि आपका कलेजा छलनी हो जाए और इन सबके साथ आपका छोटा सा नेक सा प्रयास होता है, दिन रात की मेहनत होती है। यह भी याद रखना होता है कि अकेले मेहनत से ही सब नहीं होता। आपका परिश्रम बहुत सारे घटकों में से एक है। ठीक वैसे ही जैसे कछु माखन को बल बढ्यो कछु गोपीन करी सहाय, और राधे जी की कृपा सो गोबर्धन लियो उठाय। जब उस नटवर नागर को, छैल छबीले कन्हैया को भी सारे ग्वाल वालों का साथ और माखन का बल चाहिए था, राधे रानी की कृपा चाहिए थी, राम जी को वानर भालू रीछ राज की सहायता चाहिए थी, गुरुओं ओर माता पिता का आशीष चाहिए था, प्रातकाल उठ के रघुनाथा, मात पितहु गुरु नावहि माथा तो हम जैसे मानुष इतने संपन्न कब से हो गए कि हमें ये अभिमान हो गया कि हमारे प्रयास ही रंग ले आए हैं, सब हमारा अकेले का किया धरा है। ऐसे नहीं होता मित्र, हमारी सफलता में न जाने हमारे अपनो की कितनी कितनी साधना छिपी है, उनकी दुआएं हैं, उनका आशीर्वाद है, उनका स्नेह संबल है तब जाके सफलता का परचम लहराता है, रिजल्ट कार्ड पर प्रथम लिखा जाता है, शाबासी मिलती है, पीठ थपथपाई जाती है, सिर पर स्नेह का हाथ फेरा जाता हैं,शुभकामनाएं दी जाती हैं। अर्जुन को भ्रम हो गया था कि महाभारत युद्ध में उन्हें अपनी वीरता के कारण सफलता मिल रही है तो जब रथ से उतरने का समय आया तब उन्होंने कृष्ण से पहले उतरने का निवेदन किया लेकिन सारथी कृष्ण ने पहले अर्जुन को उतारा और बाद में स्वयं उतरे, कृष्ण के उतरते ही रथ धू धू कर जल उठा तब अर्जुन को बोध हुआ कि रथ तो कृष्ण कृपा से इनकी सफलता का निमित्त बना था। यदि अर्जुन इतने बड़े धनुर्धर थे तो वे ही अर्जुन वे ही वाण होने पर भीलों ने उन अर्जुन के रहते गोपियों को कैसे लूट लिया, संदर्भ याद है न भीलन लूटी गोपिका वे ही अर्जुन वे ही वाण।

हां, इतना ज़रूर है कि आप स्वस्थ मन से अपने लक्ष्य के साथ अवश्य डटे रहे ।मुझे अटल जी याद आते हैं छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता और टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। मन की विशालता तो चाहिए ही,साथ ही उदारता,सहानुभुति, कृतज्ञता और सबसे अधिक सरलता की प्राथमिकता को झुठलाया नहीं जा सकता। आप को इस स्थान तक पहुंचाया किसने, यदि आपका ज़बाब केवल आपका प्रयास है तो आप मुगालते में है जनाब।अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा भला। याद  कीजिए जन्म माता पिता ने दिया, पाला पोसा उन्होंने, खुद गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाया, खुद कभी आधे पेट खाकर तो कभी भूखे रहकर पहले हम बच्चों की जिंदगी संभारी, अपनी आवश्यकताओं को परे सरका कर हमारी छोटी से छोटी मांग को प्राथमिकता दी, हम भले से रूठते मटकते फुनकते खीझते रहे पर उन्होंने वही करने की आज्ञा दी जो हमारे लिए उचित था, हमारी गलतियों पर वे मौन साधे नहीं बैठे रहे , हमें कूटा पीटा डांटा फटकारा लताड़ा। बाहर से ठोक ठोक के और अंतर हाथ सहार दे गढ़ते रहे, बुनते रहे, संस्कारित करते रहे, हमारी उपलब्धियों को ही अपनी मान हर्षित होते रहे, उल्लसित होते रहे, उमगते रहे। बिरादरी और चार लोगों के मध्य हमारी उपलब्धियां गिनाते रहे। मां आले में रखे भगवान जी की मूर्ति के आगे आस का दीपक जलाती रही, दुआ मांगती रही, पिता दौड़ दौड़ के हमारी मांगों की भरपाई करते रहे, इस उस के आगे हाथ फैलाते रहे, घर के बड़े भैय्या दीदी आशीषते रहे और छोटे भले से मिठाई के लालच में ही सही, आपकी सफलता की कामना करते रहे, इस गर्व से सिर ऊंचा किए रहे कि हमारी जिज्जी हमारा भैय्या फर्स्ट आया है उसे इनाम मिला है। और तुम सारा क्रेडिट अपने सर पर लाद सब को भुला बिसरा चुके। उन बूढ़े माता पिता से जिन्होंने तुम्हें गढ़ने में अपनी जिंदगी होम कर दी ,जो स्वर्ग में बैठे भी तुम्हारी कुशल मंगल मनाते हैं, वहीं से तुम्हें अशीषते हैं, तुम्हारी हर छोटी बड़ी सफलता पर दिल खोल खुशियां मनाते हैं , पूछते हो तुमने हमारे लिए किया ही क्या है। आज जो कुछ भी हूं सब अपने प्रयासों से हूं। तुम्हारे प्रयास की ऐसी की तैसी, जो वे तुम्हे माहौल नहीं देते, तुम्हारे अंदर कुछ करने का जज्बा नहीं भरते तो यह दिन देखना नसीब में नहीं होता।

       तो भाग्य सराहो अपने कि बिल्ली के भाग से छींका फूट गया, तुम्हें एक अच्छे संस्कारित परिवार में जन्मने का सौभाग्य मिला, सुघढ माता पिता मिले, एक नाम मिला, तुम पर जान लुटाने वाले तुम्हारा भला चाहने वाले तुम्हारी मंगल कामना करने वाले इतने प्यारे भाई बहिन मिले क्योंकि ये चुनने का अधिकार तुम्हें नहीं था, संयोग से अच्छे पड़ोसी अच्छे दोस्त मिले, सदाशयता रखने वाले गुरुवर वृंद मिले, सहयोगी मिले, तुम्हे सुधारने और अच्छा सच्चा मार्ग दिखाने को दोस्त मिले, तुम्हे सभागृह की जोरदार बजती तालियां मिली, शुभकामना मिली, दुआएं मिली तो आज मिली सफलता तुम्हारे अकेले की सफलता नहीं है जो मार इतराए जा रहे हो, ऐठ के मारे पैठ को जा रहे हो, किसी से सीधे मुंह बात तक नहीं कर रहे, अपने आपको कुछ विशेष सा मानने लगे हो। जब जब ये गुरूर उपजे, ये घमंड पैदा हो कि सब मेरे अकेले का ही किया धरा है, मैं प्रधान होने लगे तो सिर झटक लेना, सोच लेना कि मैं भाग्यशाली हूं जिसे अवसर मिला वरना एक से बढ़कर और योग्यता धारी तो अनेक थे  वो तो शुकर मना समाधियाने को नहीं तो डोलती दाने दाने को। फिर एक बार विचार कर लेना कि सारी सफलता के पीछे मैं अकेला ही खडा हूं अथवा बहुतों बहुतों का सहयोग है। तो उन सभी के प्रति श्रद्धानवत होते हैं, उनके ऋणी बने रहते हैं क्योंकि इससे उऋण तो नहीं ही हुआ जा सकता पर उन्हें मान सम्मान दिया जा सकता है, उन्हें याद रखा जा सकता है, उनका आभार व्यक्त किया जा सकता है उनका मान बनाए रखा जा सकता है। उन अभी के ऋणी हैं हम जिन्होने हमें रचा,हमें गढ़ा, हमें पढ़ने पढ़ाने सीखने सिखाने का अवसर दिया, कार्य करने को प्रेरित किया , हमें वक्त मुसीबत संभाले रहें, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं और मौन साधक बने रहते हैं।

नारी द्वारा नारी के अधिकारों का हनन....

"नारी के निर्बाध रूप से स्वधर्म पालन कर सकने के लिए बाहरी आपत्तियों से उसकी रक्षा हेतु पुरुष समाज को दिया गया उत्तरदायित्व 'नारी' है! कथन का तात्पर्य है, कि नारी के मानसम्मान,धर्म, इच्छाओं का पालन करने का दायित्व समाज ने पुरुष वर्ग को दिया है.इन उत्तरदायित्वओ का पालन वह बेटा, भाई,पिता, दादा तक के सभी पड़ाव पर  स्त्री जाति के प्रति समाज द्वारा तय अपनी मर्यादाओं का पालन करके करना होता है! वही नारी समाज को भी अपनी सामाजिक मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने रिश्ते निभाना, समाज,परिवार को अपने संस्कारों से सींचना भारतीय मातृ शक्ति का प्रथम कर्तव्य मना गया है 

 पर जब "शील कि, संस्कारों कि" मर्यादाओं की दीवारें टूटती है तो  असंयमित सीमेंट क्राकरी स्वरूप महिला का अमर्यादित आचरण पूरे समाज के वातावरण को धूमिल कर देती है. परिणाम स्वरूप समाज में नारी शोषण की घटनाएं आम होती नजर आ रही हैं.जैसे की... आपसी सहमति से लिव-इन में रहना "सामाजिक व्यवस्था शादी "से ज्यादा स्थाई अनुशासित संबंध पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, अति महत्वाकांक्षी स्वभाव के कारण आम होते तलाक के मामले रिश्तो के सम्मान एवं गंभीरता को कम कर रहे है.शादी का झांसा देकर कई सालों तक बलात्कार की शिकार महिला वर्ग की रक्षा के प्रति या तो कानून की उदासीनता या स्वयं महिला वर्ग की अपने अधिकारों के अनुचित उपयोग की मनोवृत्ति को दर्शाता है..यह ही नहीं कई सामाजिक संगठनों को भ्रमित कर उन्हें अपने दायित्व, कर्तव्य, कार्य से भ्रमित करते हैं, तथा समाज में विवादास्पद स्थिति को जन्म देते हैं, फलस्वरूप महिलाओं के प्रति समाज मे अविश्वास का माहौल बनता जारहा है!कई प्रकरण सुनने मे आते है जैसे....शादी के कई सालों बाद जब खुद के बच्चों की शादी हो चुकी हो या होने वाली हो महिला के प्रति दहेज प्रताड़ना की शिकायत किस सोच को प्रदर्शित करता है?

 नारी की विशिष्टता एवं सदाचार को प्रभावित करने के लिए संविधान में दंड का प्रावधान है, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर अल्प वस्त्र तरीकाएं नारी चरित्र को प्रदर्शन के पर्दे पर अपमानित करने के रिकार्ड तोड़ राही है,और सोशल मीडिया की टीआरपी इसको प्रचारित, प्रसारित करने की होड़ मे लगी है!नतीजन नवयुवतिओं मे इसका अत्यधिक प्रभाव देखने मे आरहा है लगता है जैसे लौकिक संस्कार धुएँ के छल्ले मे उड़ रहे है, जीवन के लक्ष्य किओर बढ़ने वाले कदम नशे मे लड़खड़ा रहे है!धार्मिक संस्कार 6,7 इंच के मोबाइल कैमरे मे सिर्फ दिखावे के लिये कैद हों रहे है !वर्तमान सुशिक्षित विकसित समानता का अधिकार देने वाला भारतीय समाज पाश्चात्य के भोंडे  प्रदर्शन की बलि चढ़ता नजर आ रहा है. जो किसी समाज के पतन का कारण हो सकता है.

         यहाँ यह चिंतन का विषय है कि, नारी शक्ति के संवैधानिक अधिकारों का स्वयं कुछ महिलाओं द्वारा स्वार्थवश उपयोग संविधान एवं कानून के प्रति सम्पूर्ण समाज कि आस्था एवं सम्मान को कम करता है. यहाँ विभिन्न स्तर पर गठित महिला संगठनों को अपनी अहम् भूमिका निभानी चाहिए,महिलाओं द्वारा किये जानेवाले अनैतिक कार्यों का   एवं वहीं दूसरी तरफ नारी चरित्र का दूषित प्रदर्शन करने वाली हस्तियों का जमकर विरोध करना हर महिला संगठन का दायित्व होना चाहिए, एवं भारतीय महिलाओं के लिये संस्कार शालायें आयोजित कर सँस्कारित करना चाहिये, ताकि परिवार एवं समाज कि सृजनकर्ता महिला वर्ग अपने सुसंस्कारों से सँस्कारित देश के निर्माण मे अपनी अहम् भूमिका निभा सके.

           साथ ही चाहें कोई भी जाती वर्ग हों नारी समाज को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का नारी समाज के हित में उचित तरीके से उपयोग हो तथा नारी के द्वारा नारी के अधिकारों का हनन ना हों सके यही संगठन का मुख्य उद्देश होना चाहिए.


बरखा विवेक बड़जात्या

मुनि विहर्ष सागरजी को तीर्थ रक्षक शिरोमणि उपाधि

 18 दिसंबर के लालकिला मैदान पर आयोजित भव्य, ऐतिहासिक और विशाल समारोह में श्रमण संस्कृति के अग्रहो विराग से ओतप्रोत, वात्सल्य भरा सरोवर, आज हिल्लौर कर निर्झर झरने सा, उमड़-उमड़कर, श्रमणों का आराध्य तीर्थंकरों की पगरज, भूमि की रक्षा को सिंह की गर्जना कर रहा है, अभिजात आराधक, श्रमण परंपरा के उन्नायक महायोगी श्रमण मुनिश्री विहर्ष सागरजी को तीर्थ रक्षक शिरोमणि का उपाधि से भारत की समस्त जैन समाज की ओर से अलंकृत किया गया।  



गुरुग्राम चातुर्मास 2022 को मिला तीर्थ संरक्षण के लिये प्रथम पुरस्कार


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गुरुग्राम चातुर्मास 2022 को मिला
तीर्थ संरक्षण के लिये प्रथम पुरस्कार
‘टुडे टी’ प्रबंध निदेशक राकेश जैन ने दिया अहिंसा पुरस्कार

लालकिले मैदान पर 18 दिसंबर को 20 हजार लोगों के समक्ष सांध्य महालक्ष्मी की ओर से आयोजित तथा टुडे टी द्वारा प्रायोजित तीर्थ संरक्षण मुहिम के अंतर्गत श्रेष्ठ जागरूकता फैलाने वाली चातुर्मास कराने वाली समाज को अहिंसा पुरस्कार जैन समाज गुरुग्राम को प्रदान किया गया। उन्हें 51 हजार का चेक टुडे टी के प्रबंधक श्री राकेश जैन के करमलों से प्रदान किया गया और गुरुग्राम समाज के पदाधिकारियों को सम्मानित किया गया।  

लालकिला मैदान से सम्मेद शिखरजी को पवित्र तीर्थ घोषित कराने की विहर्ष गर्जना

जिनेन्द्र महार्चना, मुनि दीक्षा एवं शिखरजी अभियान में हजारों श्रद्धालुओं ने भक्तिपूर्वक लिया भाग    

अनेक राजनेता एवं देश की शीर्षस्थ कमेटियों ने भाग लिया

दिल्ली। मुनि श्री विहर्ष सागरजी ससंघ के सान्निध्य में तीर्थराज श्रीसम्मेद शिखरजी को पवित्र तीर्थक्षेत्र घोषित कराने के उद्देश्य से 18 दिसंबर 2022 को लालकिला मैदान में भगवान महावीर महार्चना, मुनि दीक्षा का कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें देश भर से आए हजारों जैन श्रद्धालुओं ने भाग लिया। मुनिश्री ने कहा कि झारखंड स्थित तीर्थराज श्रीसम्मेद शिखरजी जैनों का सबसे बड़ा सिद्धक्षेत्र है। सरकार को उसे पर्यटन केंद्र न बनाकर पवित्र जैन तीर्थ घोषित करना चाहिए। शिखरजी का एक-एक कण पवित्र है, हम उसका बंटवारा नहीं होने देंगे। जैन समाज विद्रोह में विश्वास नहीं करता है। हम संख्या में भले ही एक प्रतिशत से कम हों, लेकिन सरकार को 24 प्रतिशत टैक्स जैन समाज देता है। सभी क्षेत्रों में जैन समाज का अमूल्य योगदान रहता है। उन्होंने आगे विहर्ष गर्जना के साथ कहा कि आज चैलेंज का दिन है, हम अहिंसावादी हैं, हम किसी को नहीं छेड़ते, यदि कोई हमें छेड़ता है तो हम उसे छोड़ते नहीं।
हमारे देश पर 500 वर्षों तक मुगलों का और 200 वर्ष तक अंग्रेजों का शासन रहा उनमें से किसी ने भी शिखरजी क्षेत्र को नहीं छेड़ा, अब उसे छेड़ने की कोशिश की जा रही है, उसे पर्यटन केंद्र बनाकर अपवित्र करने की कोशिश की जा रही है, जैन समाज यह कभी बर्दाश्त नहीं करेगा। सरकार को उसे अन्य तीर्थों के भांति पवित्र तीर्थ घोषित करना होगा।  
मुनिश्री सुबह 8.15 बजे लाल मंदिर से पूरे संघ के साथ भगवान महावीर की प्रतिमा के साथ लालकिला मैदान के लिए निकले तो नगाड़ों, बैंड बाजों के साथ सैंकड़ों नहीं हजारों श्रावक-श्राविकाएं जैन ध्वज लहराते हुए जय-जयकार करते हुए साथ चल रहे थे और बसों व गाड़ियों में दिल्ली एनसीआर से आने वाले भक्तों का तांता लगता चला गया। भव्य व विशाल पंडाल के मुख्य गेट पर पंडित डॉ. अरविंद जैन शास्त्री आदर्श के सान्निध्य में ध्वजारोहण तरुण जैन (अमेरिका) व अन्य साथियों ने किया। भव्य मंच का उद्घाटन गुड़गांव से आए विनय जैन व समाज के अन्य साथियों ने उत्साहपूर्वक किया।
विशाल पंडाल में हजारों की संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति में पंडित अरविंद जी ने सामूहिक पूजन, अभिषेक व शांतिधारा संपन्न कराई। समारोह में देश भर से हजारों श्रद्धालुओं ने शिखरजी के लिये इस कार्यक्रम में उत्सहापूर्वक भाग लिया।
महाअर्चना के लिए तरुण जैन अमेरिका, मधु जैन कनाडा, संदीप जैन गुड़गांव, विनय जैन गुड़गांव, दीपिका जैन ग्वालियर ने प्रमुख मंगल कलश तथा ग्यारह अन्य बंधुओं ने छोटे कलश लिए। गगन विहार समाज ने आचार्य विराग सागरजी के चित्र का अनावरण तो गुड़गांव समाज ने दीप प्रज्ज्वलित किया। संघस्थ मुनि श्री विजयेश सागरजी का विशेष निर्देशन रहा। ब्र. नीतू, प्रियंका का सहयोग रहा तथा रीना दीदी का कार्य सराहनीय था, जिसकी समाज में चहुं ओर प्रशंसा है। मुनि श्री विजयेश सागरजी ने भी शिखरजी की प्राचीनता और महानता का वर्णन करते हुए उसे पवित्र तीर्थ घोषित कराने की मांग की।    
इस अवसर पर विशेष रूप से उपस्थित आचार्य डॉ. लोकेश मुनिजी ने कहा कि इस विषय पर पूरा जैन समाज एकजुट है। सरकार इसे शीघ्र ही पवित्र तीर्थ घोषित, सरकार के पास 31 मार्च तक का समय है, यदि तब तक घोषणा नहीं होती, तो समाज देश भर में बड़ा आंदोलन करेगी। हम गिरनार क्षेत्र भी लेगें।  उनके साथ आए सनातन परंपरा के महंत बाबा कालीदास जी महाराज ने भी इस मांग का पुरजोर समर्थन किया।
चांदनी चौक क्षेत्र के सांसद पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि शिखरजी तो वास्तव में है ही पवित्र तीर्थक्षेत्र, इसमें कोई कन्फ्यूजन नहीं है। उसे शीघ्र ही पवित्र तीर्थ घोषित कराएंगे। मुझमें तो जैन संतों के संस्कार बचपन से ही हैं, इनकी दीक्षा, तपस्या व पदविहार सभी वंदनीय है।    
सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि हम संसद में इस विषय को उठाएंगे और झारखंड सरकार के नोटिफिकेशन को रद्द कराएंगे तथा शिखरजी की पवित्रता को नुकसान नहीं होने देंगे। बीजेपी के राष्ट्रीय महामंत्री दुष्यंत गौतम ने कहा कि सारी समाज की बात सरकार तक पहुंचा दी गई है, इस पर शीघ्र ही निर्णय होगा।
बीजेपी दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष विजय सचदेवा ने कहा कि हमारा समाज और देश तभी तक जीवित है, जब तक धर्म और संस्कृति जिन्दा है। आपकी बात सरकार तक पहुंचा दी गई है शीघ्र ही इसका परिणाम देखने को मिलेगा।
पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने कहा कि जैन समाज पूरे देश में समाज सेवा के सबसे अधिक कार्य करता है, जिसका लाभ पूरा समाज उठाता है, हम खैरात नहीं मांगते, शिखरजी का पूरा पहाड़ हमारे लिए पूजनीय है, हमने मोर पंख, अल्पसंख्यक मामलों में सरकार से टक्कर लेकर समाज का कार्य कराया है, इस कार्य में जहां समाज का पसीना बहेगा वहां मैं खून देने को तैयार रहूंगा।
विधायक अनिल वाजपेयी ने कहा कि इस लड़ाई में मैं आपके साथ हूं, मैंने इस संबंध में मंत्रियों को पत्र लिखे हैं, शिखरजी पवित्र तीर्थ ही रहेगा। श्री श्री रविशंकर जी ने कनाडा प्रवास के कारण अपने शिष्य राजेश गुप्ता को भेजकर मुनि श्री विहर्ष सागरजी को पूरा समर्थन दिया।
महासभाध्यक्ष गजराज जैन गंगवाल ने बताया कि अभी हमारा शिष्टमंडल लोकसभाध्यक्ष ओम बिरला जी से मिला था, हमने उनको शिखरजी के विषय में पूरी जानकारी दी जिसे उन्होंने ध्यानपूर्वक सुना और तुरंत ही फोन करके जानकारी ली, उन्होंने आश्वासन दिया कि इस संबंध में शीघ्र ही उचित कार्रवाई की जाएगी।  (शेष पृष्ठ 4 पर)
पृष्ठ 1 का शेष
जैन समाज दिल्ली के अध्यक्ष चक्रेश जैन ने कहा कि शिखरजी हमारा है, सबको पता है, इसे कोई नहीं छीन सकता। समाज ने देश के लिए बहुत काम किया है।  विश्व जैन संगठन के संजय जैन ने शिखरजी के बारें में वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी देते हुए गर्जना की कि यदि 31 मार्च तक पवित्र तीर्थ घोषित नहीं किया जाता, तो हम देश भर में जोर-शोर से आंदोलन शुरू करेंगें।
भारतीय जैन मिलन के संरक्षक विजय कुमार ने कहा कि शिखरजी मथुरा, स्वर्ण मंदिर की तरह पवित्र है।
रितुराज जैन ने कहा कि शिखरजी हमारा पवित्र तीर्थ था, है और रहेगा। हमारी लड़ाई जारी रहेगी, हम गिरनार भी लेकर रहेंगें।
महासमिति अध्यक्ष मणींद्र जैन ने कहा कि हम सभी देव, शास्त्र, गुरु के उपासक हैं, हम संकल्प करते हैं कि जब तक शिखरजी पवित्र क्षेत्र घोषित नहीं किया जाता हम चैन से नहीं बैठेंगे।
पंजाब केसरी के कार्यकारी अध्यक्ष स्वदेश भूषण जैन ने कहा कि शिखरजी हमारी आत्मा है, पवित्र क्षेत्र घोषित करने के अलावा हमें अन्य कोई निर्णय स्वीकार नहीं है। आदिनाथ चैनल के पवन जैन गोधा, जमना लाल हपावत, सहयोग के अध्यक्ष मनोज जैन, प्रद्युम्न जैन, शरद कासलीवाल, प्रमोद जैन-लेजर, जिनवाणी चैनल के नीरज जैन, पं. अशोक जैन धीरज, पं. संतोष जैन सिंघई आदि ने भी  इसे शीघ्र ही पवित्र तीर्थ क्षेत्र घोषित करने की मांग की। इस अवसर पर विदेशों से भी अनेक व्यक्ति पहुंचे।  

ब्र. डॉ.सुरेश जैन बने विश्वहर्ष सागर
 इस अवसर पर मुनि श्री विहर्ष सागरजी ने आगरा निवासी डा. सुरेश जैन को विधि-विधान पूर्वक मंत्रोच्चारण के साथ दिगंबर मुनि दीक्षा प्रदान की। नवीन पिच्छी व कमंडल भेंट कर उनका नया नाम मुनि श्री विश्वहर्ष सागर रखा गया। नवीन मुनि श्री की जयजयकार से वातावरण गूंज उठा। मुनि दीक्षा का यह अद्भुत और त्याग तपस्या की पराकाष्ठा का अविरल दृश्य देखकर हजारों आंखें नम हो गई।
मुनि श्री अनुमान सागरजी ने कहा कि हमे जैन कुल भगवान बनने के लिए ही मिला है। दीक्षा के परिणाम बड़े पुण्य से होते हैं, यह सबसे बड़ा आश्चर्य है। दिगंबर साधु के दर्शन बड़े दुर्लभ होते हैं।  
पूरे समारोह को आदिनाथ, जिनवाणी, पारस, वीएसपी, चैनल महालक्ष्मी व अन्य कई चैनलों ने कवर किया जिसे दुनिया भर में लाखों-करोड़ों लोगों ने देखा। इन सबके प्रतिनिधियों तथा शरद जैन, प्रवीन जैन, अपराजिता जैन व नवभारत टाइम्स के रमेश चंद्र जैन ने पूरे समय कवर करके मुनि संघ को भावभीनी विनयांजलि अर्पित की और शिखरजी के आंदोलन को पुरजोर समर्थन दिया।  
गरिमापूर्ण संचालन : समारोह का गरिमापूर्ण संचालन करते हुए  डॉ. श्रेयांस जैन-बड़ौत, श्री बिजेंद्र जैन ने शिखरजी के लिए अपना पूरा समर्थन प्रदान किया। लोकप्रिय भजन गायक रूपेश जैन जब- जागो, चेतो, उठो जैनियों हो जाओ तैयार, कहीं सम्मेदशिखरजी भी न बन जाए दूजा गिरनार। गाया तो हजारों दर्शक उसके साथ-साथ भजन गाते हुए झूम उठे।
स्याद्वाद युवा क्लब की कुशल व्यवस्था रही। क्लब के युवा सदस्यों द्वारा अनुशासनबद्ध तरीके से अभिषेक, रजिस्ट्रेशन काउंटर पर पूरे समय मुस्तैद रहना, भोजन व्यवस्था तथा मंच पर भी पूरा सहयोग मिला। यूं कह सकते हैं जो कार्य कहा, वह बखूबी निभाया। इसके लिये स्याद्वाद क्लब के अध्यक्ष शैलेष भाई विशेष अभिनंदन के पात्र हैं।
बस व्यवस्था में ज्योति नगर से नितिन जैन ने दिल्ली की अनेक कालोनियों से आने वाली बसों का तालमेल किया तो अ.भा. जैन मिलन मेरठ, बड़ौत, खतौली, आगरा, भिंड आदि अनेक जगहों से बसे लाया।
पूजन सामग्री व्यवस्था बनाने में कैलाश नगर से श्री सुभाष जैन भगत जी, दीपक जैन यमुना विहार एवं जैनम् फाउंडेशन का योगदान रहा।
मंच-टैंट आदि की व्यवस्था ज्योति नगर के रविन्द्र जी ने संभाली तो आवास व्यवस्था में बृजमोहनजी, सतेन्द्र जैन कवि, अजय जैन, शंटी आदि ने सहयोग दिया। अन्य व्यवस्थाओं में टीटू भाई, अतुल जैन समेत अनेक लोगों ने सहयोग दिया।
श्रमण संघ की आहारचर्या में पुनीत जैन लालमंदिर मैनेजर, प्रदीप-संजय जैन यमुना विहार आदि ने अच्छी व्यवस्था की।
लालमंदिर कमेटी का प्रमुख कार्य रहा। उन्होंने यात्रियों के लिये आवास, भोजन आदि की व्यवस्थायें बनाई। श्री चक्रेश जैन अध्यक्ष एवं मैनेजर पुनीत जैन ने सभी चीजों का विशेष ध्यान रखा। पूजा अर्चना के लिये बर्तनों के सैटों की व्यवस्था लालमंदिरजी एवं बड़ागांव त्रिलोकतीर्थ कमेटी ने की।
मीडिया का कार्य शरद जैन - प्रवीन जैन सान्ध्य महालक्ष्मी एवं टीूनी जैन, पंकज जैन (पारस), प्रियांग जैन, सुनील जैन (यमुनापार दिगंबर जैन समाज दिल्ली रजि. के महामंत्री) ने बखूबी निभाया। राजनीतिक हस्तियों से तालमेल करने में श्री प्रशांत कुमार गांधी नगर, टीनू जैन आदि लोगों का सहयोग मिला।
समारोह के संयोजन में श्री महावीर निर्वाण महोत्सव समिति, यमुनापार दिगंबर जैन समाज दिल्ली (रजि.), भारतीय जैन मिलन, लालमंदिर कमेटी, जैन समाज जैकबपुरा गुरूग्राम, अ. भा. दि. जैन महासभा, अ.भा. दि. जैन महासमिति, भा. दि. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी, दि. जैन ग्लोबल महासभा, दि. जैन शास्त्री परिषद, स्याद्वाद युवा क्लब, युवा परिषद, सान्ध्य महालक्ष्मी/ चैनल महालक्ष्मी आदि संगठनों, महिला संगठनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।  
 प्रस्तुति: रमेश जैन / प्रवीन कु. जैन


"काँटा"

 कंटक भरा जीवन सफर,

संभल - संभल चलना प्राणी,

गम ज़्यादा, खुशियाँ हैं कम,

सोच - सोच पग धरना प्राणी,

डाली से टूटा फूल मुरझाया,

काँटों को मुरझाने का खौफ नहीं,

शूल बन उतर गया जो,

फिर दर्द का इल्म नहीं,

कली बनी खिल न सकी,

कुचल दी गयी खिलने से पहले,

रखवालों ने ही नोंच डाला,

जो सिसकती थी कभी,

काँटा चुभने से पहले,

तन की पीड़ा तो सह लूँगी,

मन के घाव कैसे भरूँगी,

गहरा कितना काँटा चुभा दिल में,

उसका दर्द कैसे बयां करुँगी,

दर्द देकर उफ़ नहीं करते,

दुनिया का यही दस्तूर है,

होठों को सी लो, आँसू पी लो,

"शकुन" तुम्हारी यही तक़दीर है।।

 शकुंतला अग्रवाल, जयपुर


 ओंकार है स्वस्थ जीवन का आधार - मंत्र महर्षि योग भूषण


धर्मयोग फाउंडेशन के तत्वावधान में सुखद जीवन के स्रोत पर एक अत्यंत उपयोगी कार्यशाला का आयोजन परम श्रद्धेय, ध्यान प्रज्ञ, मंत्र महर्षि, धर्मयोगी संत (डॉ.) श्री योग भूषण जी महाराज की प्रभावशाली प्रेरणा व मंगल सान्निध्य में दिनांक 25 दिसम्बर 2022 को मुक्तधारा सभागार, गोल मार्केट (दिल्ली) में किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ महामंत्र णमोकार के उच्चारण से हुआ। ब्र. योगांशी दीदी ने पूज्य श्री के जीवन के विभिन्न आयामों से उपस्थित भक्तों को अवगत कराया।

अपनी ओजस्वी वाणी से सुखद जीवन के रहस्य को उद्घाटित करते हुए मंत्र महर्षि (डॉ.) योग भूषण महाराज ने कहा कि हमारा शरीर पांच रंगों को मिलाकर बना है। प्रत्येक रंग शरीर के प्रत्येक भाग को परिलक्षित करते हैं। शरीर में जिस रंग की मात्रा की कमी होने लगती है, उसके अनुरूप शरीर में वैसे ही रोग उत्पन्न होने लगते हैं। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। जैसे जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है, कुछ-कुछ पाने के लिए कुछ-कुछ छोड़ना पड़ता है, बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार जीवन में सब कुछ पाने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ता है।

गुरुदेव ने आगे कहा कि महामंत्र णमोकार के पांच पद पांच रंगों के प्रतीक हैं। प्रथम पद "अरिहंत" सफेद रंग का सूचक है, द्वितीय पद "सिद्ध" लाल रंग, तृतीय पद "आचार्य" पीला रंग, चतुर्थ पद "उपाध्याय" हरा रंग तथा पंचम पद "साधु" नीला रंग दर्शाता है। शरीर में जिस रंग का अभाव है, उसी रंग के अनुसार उस पद के मंत्र की साधना करने से चमत्कारिक नतीजे प्राप्त होते हैं। यह कोई नया प्रयोग नहीं है, अपितु मंत्र विज्ञान की पूर्ण व्याख्या पूर्वाचार्यों ने जिनागम में वर्णित की है। 

शरीर में 107 मर्म स्थान होते हैं और 1 मन - इस प्रकार से हम मंत्र साधना के माध्यम से अपने शरीर में 108 स्थानों का संतुलन बनाए रखते हैं। महामंत्र णमोकार के प्रत्येक पद के लिए एक एक बीजाक्षर है जिसके ध्यान से उर्जा शक्ति का संचार होता है। मन में उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव को तरंगों के माध्यम से बाहर किया जा सकता है। इसमें किसी धर्म की बात नहीं है, यह पूरा विज्ञान हैं जो प्राचीन काल से हमें उपलब्ध है। ओंकार ही सुखद जीवन का एकमात्र ऐसा स्रोत है जिसके द्वारा आत्मिक शांति तो मिलती ही है परंतु नवचेतना का संचार किया जाता है।

ओंकार की साधना से केवल मुक्ति ही नहीं ‌अपितु सांसारिक सुखों की पूर्ति भी होती है। सबसे खुशहाल जीवन का परम स्रोत यही प्रणव दिव्य ध्वनि है, जिसके बारे में सभी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं में बताया गया है। नासा के वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सूर्य के अंदर से आने वाली आवाज ओंकार स्वरूप ही है। अतः प्रतिदिन प्रातः काल इस दिव्य ध्वनि का अभ्यास करें और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि हासिल करें।

कार्यशाला के अंत में गुरुदेव ने एक गुरुमंत्र प्रदान कर सभी को अभीभूत किया। चलते, फिरते, उठते, बैठते प्रत्येक स्थिति में श्वास के अंदर बाहर होते हुए सोऽहम का अभ्यास करें। देशभर से पधारे धर्मयोगी सदस्यों ने मंत्र साधना के माध्यम से जीवन में आए बदलावों को सभी से साझा किया। गुरुवर ने उपस्थित जनसमुदाय को मंत्र हीलिंग देकर सुखद जीवन की मंगल कामना करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यशाला का समापन धर्मयोग गीत से हुआ।

- समीर जैन (दिल्ली)

पथ

 कविता - पथ



दूर भले हो पथ जीवन का

त्याग हौसिला कभी न मन का

चलना सीखो अपने पथ पर

चलते चलना बढ़ हर पग पर 

आलस में ना समय गवांना

बिना अर्थ ना समय बिताना

लक्ष्य तभी जब ना पाओगे

मलते हाथ ही रह जाओगे

सुख दु:ख दोनों मिलते पथ में

संग चले जीवन के रथ में

सुख में अक्सर खो जाते हम

दिक् भर्मित सा हो जाते हम

खुद विचार लो अपने मन में

क्या कुछ पाओगे जीवन में?

मलते हाथ न वापस आओ

पथ पर अपने बढ़ते जाओ

पहले यदि सुख गले लगेगा

सुख वैभव आनन्द मिलेगा

समय बाद में दुःख आयेगा

शेष समय दुःख में जायेगा

क्यों न पहले दुःख अपनाएं

इससे तनिक नही घबड़ाएं

पथ में कंकड़ पत्थर आते

बस केवल ठोकर दे जाते

धूल तनिक हम पर हैं आते

रोक नही ये हमको पाते



रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी 


"ऐतिहासिक स्मारक विवरण - आमेर का किला"

शकुंतला अग्रवाल,

  आमेर के किले को आंम्बेर के किले के नाम से भी जाना जाता है। यह जयपुर से मात्र 10 किलोमीटर दूर आमेर में उच्ची पहाड़ी पर स्थित है । आमेर नगरी वहाँ के मन्दिर किले, दुर्ग और राजपुती कला के लिये प्रसिद्ध है। यह कच्छवाहा वशं द्वारा बसाया गया यह दुर्ग आज भी फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद है। इसका मुख्य व्दार गणेश पोल कहलाता है। यहाँ की नक्काशी देखने लायक है किले की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाय़ें गये थे । बादशाह जहांगीर ने नाराज होकर उन चित्रों को प्लास्टर से ढ़कवा दिया। यह चित्र अब प्लास्टर उखड़ने की वजह से नजर आने लगें हैं।

शीश महल :-

आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बंदों और छतो पर शीशे के टुकडे इस प्रकार जडे हुये हैं कि मोमबती, माचिस वगैरा जलाने पर यह जगमगा उठता है प्रतिबिम्ब हर तरफ दिखाई देने लगता है। इसी की तर्ज पर मुग़ले आजम फिल्म में वह सैट बनवाया गया जिसमें प्यार किया तो डरना क्या के गाऩे में अनार कली का अक्ष सब जगह दिखाई दे रहा था। सुख महल व किले के बाहर भी झील व बाग अपूर्व छटा बिखेरते हैं। पत्थरों की कांट - छांट देखते ही बनती है। यहाँ का विशेष आकर्षण है। डाली महल जिसका आकार डोली यानि पालकी की तरह है । जिसमें की रानियाँ आया जाया करती थी। डोली महल से पहले एक भूल भुलैया भी हैं जिसमें की राजा और रानियाँ आंख मिचौली खेला करती थी। जब राजा मानसिंह युद्ध से आया करते थे, इसी भूल भुलैया में जो रानी पहले राजा मानसिंह जी ढूंढ पाती थी वह उनसे मिलन का सुख पाती थी। बादशाह अकबर और राजा मानसिंह के बीच कुछ ऐसा करार बताया जाता है जिसकी वजह से राजा मानसिंह को कभी भी धन का अभाव नहीं हुआ जिससे की जयपुर को बसाने व उसके रख रखाव में उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। यहाँ पर हाथी की सवारी के द्वारा भी ऊपर किले तक जाया जा सकता है अपनी सवारी से या पैदल सीढ़ियों से भी आप किले तक पहुंच सकते हैं।

शिलामाता मन्दिर :-

आमेर किले में माता शिला देवी का मन्दिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है शिला माता काली मां का रूप हैं और कछवाहा राजवंश की कुलदेवी भी है इतिहासकार मानते हैं की 1580 ईस्वी में शिला देवी की प्रतिमा आमेर के राजा मानसिंह लेकर आये जयपुर मेंआज भी यह कहावत प्रचलित है' सांगानेर को सांगो बाबा जैपुर को हनुमान आमेर की शीलादेवी लायो राजा मान' मुर्ति लाने के पीद्दे कई किद्वन्ति हैं। ऐसा कहा जाता है की बलि न मिलने के कारण मॉं शिला देवी ने नाराज होकर मुहं टेढ़ा कर लिया था सो वहआज भी टेढ़ा ही है। जयपुर निर्माण में बहुत सी दिक्कतें आ रही थी सो पण्डितों के कहने से राजा मानसिंह ने पूर्वमुखी प्रतिमा का मुंह उत्तरराभिमुखी करवाया ताकि माँ की तिरद्दी नजर जयपुर पर ना पडे  तभी जयपुर का निर्माण हो पाया। आमेर से एक गुफा जयगढ़ तक जाती है ताकि जब दुश्मन आक्रमण करें तो खजाना और राजा अन्दर ही अन्दर सुरक्षित निकल सके कहाँ जाता है कि जयगढ़ के किले में आज भी अरबों का खजाना दबा हुआ है यहां विश्व की धरोहर तोप भी रखी हुई है आमेर के किले को बनवाने में 100 वर्ष का समय लगा शुरू राजा मानसिंह ने किया  पुरा सवाई जयसिंह द्वितीय और राजा जयसिंह प्रथम द्वारा किया गया आमेर के किले में light & sound कार्यक्रम भी दिखाया जाता है घुमने के हिसाब से यह एक अच्छा विकल्प है। आप राजा महाराजाओं की शानो शौकत से अवगत हो पायेंगे। 

शकुंतला अग्रवाल,

जयपुर, राजस्थान,

9649701931   


 सम्मेद शिखर हमारी आत्मा है ,उसे नष्ट न करें



णमो सम्मेयसिहरस्स



वीसं तु जिणवरिंदा, अमरासुरवंदिदा धुव्‍वकिलेसा।

संमेदे गिरिसिहरे, णिव्‍वाणगया णमो तेसिं।।२।।


जो देव और असुरों के द्वारा वंदित हैं तथा जिन्‍होंने समस्‍त क्‍लेशों को नष्‍ट कर दिया है ऐसे बीस जिनेंद्र( तीर्थंकर) सम्‍मेदाचल के शिखर पर निर्वाण को प्राप्‍त हुए हैं, उन सबको नमस्‍कार हो।।


(आचार्य कुन्दकुन्द ,निर्वाण भक्ति ,प्रथम शताब्दी )


जिस प्रकार हिन्दू धर्म के लिए सबसे पवित्र चार धाम हैं , मुस्लिमों के लिए हज है ,सिक्खों के लिए स्वर्ण मंदिर गुरुद्वारा है  इसी प्रकार वर्तमान में झारखंड राज्य में स्थित सम्मेद शिखर जैन धर्म के लिए सबसे अधिक पवित्र पर्वत है जहाँ से जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकर निर्वाण को प्राप्त हुए थे । 


जैन आगमों के अनुसार यह शाश्वत पवित्र तीर्थ क्षेत्र है और अनादि से है । प्रत्येक जैन के लिए यहाँ की पवित्र यात्रा जीवन में अनिवार्य बनाई गई है । शास्त्रों में यहाँ की यात्रा के लिए कहा है - 


एक बार बंदे जो कोई ,ताहि नरक पशु गति नहीं होई 


अर्थात् जीवन में यदि किसी ने भाव पूर्वक एक बार भी इस पवित्र तीर्थ की वंदना कर ली तो वह कभी भी नरक और पशु योनि में नहीं जाता है । 


वर्तमान में इस पर्वत पर अनेक जैन मंदिर ,चरण चिन्ह,कूट, स्थापित हैं । इस पर्वत की तलहटी में हज़ारों जैन मूर्तियां विभिन्न मंदिरों में स्थापित हैं । सैकड़ों धर्मशालाएं और समाज सेवा के केंद्र हैं । 


परंपरा अनुसार अहिंसक जैन तीर्थ शराब,मांस,अंडा,प्याज लहसुन आदि अभक्ष्य पदार्थों से रहित होते हैं और यह जैन तीर्थों की न्यूनतम अनिवार्य शर्त होती है । 


जैन धर्मावलंबी नंगे पैर ,व्रत उपवास पूर्वक इस पवित्र पर्वत की वंदना करते हैं और यह अपवित्र न हो इस भावना से पर्वत पर कोई गंदगी नहीं फैलाते हैं । 


वर्तमान में सरकार ने पर्यटन उद्योग की दृष्टि से अधिक रेवेन्यू एकत्रित करने के उद्देश्य से इस पवित्र पर्वत को   पर्यटन क्षेत्र घोषित करने का नोटिफिकेशन जारी किया है । जिससे यहाँ शराबी कबाबी होटल,रेस्टोरेंट और असंयमी और व्यभिचारी टूरिस्टों का जमावड़ा लगने का रास्ता साफ हो गया है । 


पूरे विश्व के जैन धर्मावलंबी इस निर्णय से काफी आहत हैं और अहिंसक और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं । 


जैन धर्म भारत की हिन्दू संस्कृति का एक अभिन्न अंग है । मात्र आमदनी के लिए इस तरह के निर्णय एक अल्पसंख्यक हिन्दू संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने का कारण बन रहा है । हमारा विनम्र अनुरोध है कि सम्मेद शिखर जैनों की आत्मा है ,उसे नष्ट न करें ।


हमारी सरकार से गुजारिश है कि इस तरह की अधिसूचना को जैन अल्पसंख्यक समुदाय की भावना और उनके तीर्थ की पवित्रता का संरक्षण करते हुए ,रद्द करके अपनी उदारता का परिचय अवश्य दें ।



सैरगाह मत कहो खुदा के दर को शहंशाह. 

हम वहां इबादत को जाते हैं सैर को नहीं


प्रो अनेकान्त कुमार जैन

एवं

 डॉ रुचि जैन,प्रकाशक




परदा (कुंडली)


                            (1)

घूँघट परदा में लगे, नारी सुंदर रूप।

रूपवती नारी लखै, मोहित होते भूप।।

मोहित होते भूप, हरण बाकौ करबाते।

करते प्रेम विवाह, और मन को बहलाते।।

कहे देख"सुमनेश",होय ना भय से खटपट।

मुगल समय की रीत, नारियाँ करती घूँघट।।


                                (2)

होते जग में काम कुछ,पर्दे की ले ओट।

होते भ्रष्टाचार नित,मन में उपजे खोट।।

मन में उपजे खोट,काम ना करते वैसे।

रिश्वत दैनौ पाप, काम होएगो कैसे।। 

कहे देख "सुमनेश",काटते चक्कर थोते।

परदा की ले ओट,काम रिश्वत से होते।।


                                   (3)

नारी लज्जावान जो, घूँघट काढै रोज़।

बिन घूँघट जो डोलती, नयना करते खोज।।

नयना करते खोज, नारि वह होय सयानी।

घूँघट के पट खोल, बोलती मीठी बानी।।

कहे देख"सुमनेश" परिश्रम करती भारी।

 लज्जा रखे बचाय, रहे घूँघट में नारी।


                           (4)

सबसे परदा कर सकै, ईश्वर से ना होय।

सबके मन को जानता,सब जानत हैं मोय।।

सब जानत हैं मोय,ईश बिन हिलै न पत्ता।

मन में होते मुदित, ईश की कैसी सत्ता।।

रखें सभी "सुमनेश", लोग पर्दा मतलब से।

इक दिन पर्दा उठै,भेद खुल जावै सबसे।।


डॉ. सुरेश चतुर्वेदी "सुमनेश"

नमक कटरा भरतपुर राज

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ऐसे हों संकल्प हमारे,

 ऐसा हो संकल्प हमारा 

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पर-हित में संलग्न रहें हम,

गिरे हुओं को गले लगाऐं ।

ज़रुरतमन्दों का सहारा बन,

अन्तर में ज्योति जगाऐं ।।

विपत्तियों के मारों का,

"ढाल बनें" विकल्प हमारा ।

असहायों के बने सहायक,

ऐसा हो संकल्प हमारा ।।

पर-पीड़ा ही स्व-पीड़ा,

हमें उठाना यह बीड़ा ।

"असामाजिक" नाम का,

कभी न लग पाये कीड़ा ।।

ऐसे हों संकल्प हमारे,

हो ऐसी अमृत-वाणी ।

करने की कुछ दे क्षमता तू,

हे माँ अम्बे वीणा-पाणी ।।

( बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज")

           कोटा (राजस्थान)

पुस्तक समीक्षा

 
 पुस्तक समीक्षा

हीर हम्मो : उपन्यास 

लेखक  :  रामा तक्षक

 डॉ मीरा गौतम

"

 डॉ मीरा गौतम



"अल्लाह तुम हो तो कहांँ हो"


यह आर्त्तनाद उपन्यास की नायिका हीर हम्मो  और उस जैसी उन औरतों का है जो आइसिस के धर्मांध जेहादी  आतंकवादियों  के ज़ुल्मों की शिकार  हुई हैं।  

इस उपन्यास में युद्धों से आतंकित धरती के ऐसे गहरे सवाल टकरा रहे हैं जिनसे यह सदी लगातार त्रस्त हो रही है। 

यह उपन्यास फिक्शन नहीं है। इसके जीते - जागते पात्रों से लेखक की असल मुलाक़ातें और संवाद हुए हैं। आत्मकथ्य में लेखक ने इसकी साक्षी भी दी है। 

इस उपन्यास को नये ढंग से मापने की ज़रूरत है क्योंकि, हर रचना  समय, परिवेश और रचनात्मक स्तर पर अपनी कसौटियांँ स्वयं तय करती हुई चलती है। इसीलिए, इस उपन्यास को बने बनाए  परम्परागत सांँचे में नहीं ढाला जा सकता। स्वयं लेखक ने यह उपन्यास धरती पर सतायी जा रही संतप्त स्त्रियों के नाम किया है। करूण चीत्कारों और कृन्दन  की ध्वनियों के हाहाकार में, इस उपन्यास के पन्ने भीगे हुए हैं और क़लम की स्याही में बेबस स्त्री की आंँखें लहू के आँसुओं में डूब - उतरा रही हैं। 

इस उपन्यास का तानाबाना जेहादी आतंक के  विशेष परिवेश में बुना गया है  जिसे, नकारात्मक वैचारिक युद्ध भी कह सकते हैं। सीरिया, पाकिस्तान अफगानिस्तान और नाइजीरिया जैसे देश कट्टरपंथी युवाओं को प्रशिक्षण देते रहे हैं जो, सैनिक युद्ध नहीं है।

ये सीमा पर नहीं समाज के अन्दर रहते हुए अपना जाल फैलाते हैं। 

जो इस्लाम को नहीं मानता वह ' काफ़िर 'है और, उसे ही दुनिया भर से मिटाकर अपना धर्म  विश्वभर में फैलाना है। यही भावना इसकी जड़ में काम करती है। कुरान और शरीयत का हवाला देकर अलगाववाद  का डंका पीटते हुए  ख़ूनख़राबा  करना  और अपनी मान्यता के प्रचार -प्रसार के लिए  हिंसा से गुरेज न करना  इनके  मूल कर्म में शामिल हैं जिसे, किसी भी दृष्टि से न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।

बर्बरता की हदें पार करने वाले इस जेहादी कुकृत्य से हर उम्र की औरतें  हलकान हुई हैं। जेहाद के इस  कड़ुए सच  से आज सारी दुनिया त्राहि-त्राहि कर रही है। 

जिस जेहाद की चर्चा हम कर रहे हैं वहाँ ,  विवश पुरुषों के सिर काट डाले गयै हैं या उन्हें गोली से उड़ा दिया गया है। 

पश्चिमी देशों के सैंकड़ो बेरोज़गार युवा आइसिस के इसी झण्डे तले एकत्रित हुए हैं जिनके अपने -अपने  हित और कारण हैं।


प्रेमचंद ने बहुत पहले ही बेरोज़गारी को आतंकवाद की जड़ बता दिया था जो  इस सदी में सच होकर सामने आ रहा  है।


हम कह सकते हैं की  इस कथा में उन पुरुषों का दर्द भी शामिल किया जा सकता है जो,  स्त्रियों की दुर्दशा अपनी आंँखों के सामने देख कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। आसन्न मौत उनके  सामने थी। 

उपन्यास में नारी पात्रों की यह हताशा शिद्दत से सामने आयी है ।

उपन्यास का कथानक सीरिया के पास सिंजार नामक स्थान से शुरु होता है और हीर हम्मो की कथा तीसरे खण्ड से शुरु होकर अपने आख़िरी अंजाम तक  पहुँच जाती है।

पूरे कथाक्रम में कई अवांतर और प्रासंगिक प्रकरण  हैं जो प्रत्यक्ष और अपरोक्ष रूप में  मूलकथा से जुड़ते चले गये हैं। इनका तारतम्य भी नहीं टूटा है और पाठक भी इसके पात्रों से तादात्म्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ेंगे,ऐसी उम्मीद है। 

उल्लेखनीय है कि पात्रों में लेखक की आत्मीय  उपस्थिति और सहज संवादों  की ऊष्मा पाठकों को अपने और  करीब लाने में समर्थ होगी।

कथा कहीं  फ्लैशबैक और कहीं - कहीं  पात्रों के परस्पर संवादों   के माध्यम से मूल कथानक में जुड़ती हुई  चल रही है। 

इसमें दृश्यात्मक्ता  है। इस पर पटकथा के ज़रिए, समांतर सिनेमा  की तर्ज़ पर कला फ़िल्म बनायी जा सकती है और विश्व  के कटु यथार्थ  को सामने लाया जा सकता है। 

मंडी, बाज़ार, गमन, भूमिका,मंथन,अंकुर,आक्रोश जैसी कला फ़िल्में   इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं। 

यह  उपन्यास  अपनी पठनीयता में  सफल है, यह हम निश्चिंत होकर कह सकते हैं। 


संवेदनशील मुद्दों पर लेखकीय सूझबूझ से पाठकों के नेत्र विस्फारित  हो सकते हैं और मन आश्चर्यचकित। इसमें क़लम की  बारीक बुनाई  उन्हें  और हैरत में डाल सकती है कि उपन्यास में विश्व का ज्वलंत मुद्दा प्रेम, करूणा और शांति का संदेश किस कौशल से विश्व भर  में फैलाया गया है।


असहृय पीड़ा से गुज़र रही हीर हम्मो आख़िर एक सुखान्तिकी तक कैसे पहुंँच पायी है, पाठक  विस्मित हो सकते हैं।  

यह एक रहस्य है। इसे रहस्य ही बना रहने दिया गया है। इस जिज्ञासा में ,   पाठक तसल्ली का अनुभव करते हुए, इसे बार-बार पढ़ने को विवश हो सकते हैं। 

पश्चिमी कथा साहित्य में 'जिज्ञासा'  का तत्त्व विशेष महत्त्व रखता है। यहांँ  तक कि  कभी-कभी कथा के अंत तक को भी खाली छोड़ दिया  जाता है कि पाठक स्वयं  ही फ़ैसला करें कि आख़िर, बेहतर अंत क्या हो सकता  है। परन्तु, इस  उपन्यास का अंत स्पष्ट  और सुखांत है  जो इसे पश्चिमी कथा- साहित्य की अवधारणा से अलग करता है।

हम देखते हैं कि दृश्य और श्रव्य धारावाहिकों और पत्र-पत्रिकाओं में टंकित धारावाहिकों के अंत में, रोचकता बनाए रखने के लिए, यह रहस्य जानबूझकर रखा जाता है  ताकि  दर्शक,श्रोता और पाठकगण इन धारावाहिकों से  सतत बँधे रहें और आगामी अंकों की दिल थामकर प्रतीक्षा करें। 

मगर,यह एक समग्र उपन्यास है और मात्र एक रहस्य  ही यहांँ  पर छोड़कर रखा गया है कि  आख़िर हीर हम्मो, अंधे गायक कलाकार तक  पहुंँची तो कैसे पहुंची ?

निश्चित रूप से, उपन्यास के अंत को बेहद ख़ूबसूरत मोड़ देने की मंशा ही  यहाँ साफ़ झलकती है।

12 खण्डों के पड़ावों में रची-बसी  इस कथा के पन्ने पलटने से, यह  ज़ाहिर होता  है कि अभिधा में  रची- बसी इसकी भाषा का सहज  सम्प्रेषण कथा - प्रवाह को कहीं भी बाधित नहीं   होने देता । इसमें कई प्रकरण ठेठ राजस्थान की बांँगरु  मिश्रित बोली  में, ग्राम्य जीवन - शैली का परिवेश बुन रहे हैं  जिनसे, विस्फोटों से दहल रही धरती पर  कुछ क्षण के लिए ही सही, पाठक राहत महसूस कर सकते हैं।


हीर  हम्मो और उस जैसी  औरतों को जेहादियों ने सबाया यानि वेश्या  बनाया है। उन्हें कई-कई बार ख़रीदा और बेचा गया है।

बलात्कार से जन्मी सन्तानों को न जेहादियों ने स्वीकार किया न यजीदी मांँओं के परिवारों ने। घर वापिसी के लिए, सबाया स्त्रियों को शुद्धिकरण की जटिल प्रक्रिया से तो गुजरना पड़ता है परन्तु, बलात्कार से जन्मी उनकी सन्तानों को यजीदी परिवार  स्वीकार नहीं करते। वे  ताउम्र  लावारिस  ही बनी रह जाती  हैं और, उनकी मांँएं उनके सुरक्षित भविष्य  को लेकर सिसकती हुई  खड़ी रह जाती जाती हैं । यह अमानवीय और  कारूणिक यथार्थ इस उपन्यास में दर्ज़ हुआ है।

गर्भवती हम्मो का साथ  क़िस्मत ने  कुछ  इस तरह दिया है कि वह जेहादियों  के यातना शिविर   के चंगुल से  बचकर  निकल भागती है।  अमेरिका ने जेहादियों के खात्मे के लिए इराक पर बमवर्षा करके,  हताहतों के  लिए  जो शिविर बनाए थे वहांँ, उसने लोमहर्षक दृश्य देखे हैं। गड्ढा खोदकर ढेरों लाशों को  एकसाथ दफ़्न होते भी देखा है।

वहीं उसकी बेटी मरिया का जन्म होता है। दूरपार  के रिश्तेदार ने बच्ची के पालन-पोषण का जिम्मा भी लिया है परन्तु उसे वह निभा नहीं  पाया है।

यह नियति थी  या उसकी बेटी का भाग्य कि अनाथालय के पादरी का वात्सल्य उस बच्ची पर उमड़ पड़ता है और उसकी सही देखभाल  होने लगती है।


उपन्यास के अन्य महत्वपूर्ण पात्रों में जॉन - जॉनी दम्पत्ति और पत्रकार कैथरिना भी  हैं जो आपस में पारिवारिक हैं। 

जॉनी की मृत्यु हो चुकी है। जॉन और कैथरिना के संवादों में  रूस -यूक्रेन युद्ध पर गंभीर चर्चा होती है। जॉन 92 वर्ष की उम्र में भी टीवी पर चल रही यूक्रेन - रूस  युद्ध की ख़बरों पर गंभीर चर्चा करता है।

ये सभी पात्र धरती पर सुख- शांति की कामना करते हूए समाधान की तलाश कर रहे हैं। उपन्यास में युद्ध का घटनात्मक परिवेश खुलकर आया है जिससे, उपन्यास के कथ्य को विशेष गति मिली है  

और  लेखक  का विराट स्वप्न पूरी तरह अपनी आंँखें खोल रहा है।

पात्रों की चर्चा के केन्द्र  में आतंकवादियों द्वारा विश्व भर में जहाँ -तहांँ किये जा रहे हमलों की गहन चर्चा भी शामिल है। अमेरिका का ' ट्विन टावर 'हमला' और  ट्रेड सेंटर ' पर हुए हमले के साथ-साथ पेरिस में हुए हमल़ों 

का ज़िक्र भी यहांँ मौजूद है। युद्ध ,युद्ध ही होता है। उसका रूप चाहे जो हो। विध्वंस और विनाश ही उसकी अंतिम परिणति है ।

आज युद्धों के बदले हुए रूप मानवता का लगातार हनन कर रहे हैं। ये किन-किन रूपों  में सामने आये हैं, उपन्यास में महत्त्वपूर्ण  पात्रों और उनके  संवादों ने इसकी गवाही दी है। इनकी तहों में भी कई सवाल टकरा रहे हैं और इनकी ध्वनियाँ, दूरगामी  संकेत दे रही हैं। 

तेल  की राजनीति के साथ -साथ  सीमा -विस्तार, विकसित और विकासनशील  देशों की दुरभि :संधियांँ, छलछद्म और षड़यंत्र  भी यहांँ बराबर काम कर रहे हैं ।

ये अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएंँ सुरसा की तरह इन्सानियत का क़त्ल कर रही हैं  कि मानवता शर्मसार हो रही है । 

उपन्यास की ध्वनियों में धरती का दर्द बोल रहा है।

जेहादी आतंकवाद से त्रस्त औरतें पुरुषों की पाश्विकता, अन्याय और दमन के ख़िलाफ़ कुछ न कर पाने की असहायता को देखकर फ़ैसला करती हैं कि वे घर के पुरुषों को आगे से युद्ध में नहीं भेजेंगी। काम का वीभत्स तांडव यहाँ जारी है।

पुरुष इन युद्धों में मरते हैं और औरतें जीवन में अकेली रह जाती हैं।

पुरुषों की त्रासदी यह है कि  उनके सामने ही औरतों के साथ बलात्कार हो रहे हैं और वे  इसका प्रतिरोध तक नहीं कर पा  रहे  हैं। 

युद्ध होतै हैं तो पुरुष ही युद्धों में जाते हैं। स्त्रियांँ अपने पुरुषों को खो देती हैं। यह इन स्त्रियों को मंजूर नहीं इसीलिए वे, उन्हें युद्धों में भेजकर राजी नहीं हैं। परन्तु,  वे जो सोचती हैं, क्या वह कभी पूरा हो पाता है। हर स्त्री एक विवशता में बँधी हुई है।

इस उपन्यास के स्त्री पात्रों ने इस घुटन से मुक्ति पायी है और यह उनका क्रांतिकारी क़दम है।

हीर हम्मो की बेटी को पालने वाली पद्मा और सलमा ने स्त्री -विमर्श पर बिल्कुल नयी बहस का आगाज़ किया है।  पुरुषों में सत्ता संभालने की क्षमता नहीं है। दोनों ही पितृसत्ता को चुनौती दे रही हैं कि अब सत्ता स्त्रियों के हाथ में हो। 

दोनों को ससुराल में बहुत अधिक सताया गया है। बेकसूर सलमा को तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ का दंश झेलना पड़ा है  और वहीं, पद्मा का पति लौटकर आने की कहकर, कभी नहीं लौटकर नहीं आया। उसकी सूनी आंँखें रिक्त हैं। जिनमें हमेशा के लिए एक खालीपन भर  गया है। जब पति ने ही इज़्ज़त नहीं दी है तो दोनों के घरों की  बड़ी औरतों ने उन पर और भी कहर बरपाने शुरु कर  दिये हैं। यह समाज का कड़ुआ सच है जिसकी कालिख ,घर की दीवारों पर पुती हुई है। इन स्त्रियों को अपने  बेटों में कोई खोट नज़र  नहीं आता। स्त्री ही स्त्री की दुश्मन बन  गयी है और जीवन बरबाद हो रहे हैं। यह घर-परिवारों  का ऐसा सच है जिससे समाज अभी तक भी मुक्त नहीं हो पाया है।

मगर, दोनों स्त्रियों ने धैर्य नहीं खोया है और  अपनी नयी राहें तलाशी  हैं।यह इस उपन्यास का  महत्त्वपूर्ण  पहलू है।

उपन्यासकार का स्वप्न है कि स्त्रियांँ  मज़बूत  हों। समर्थ  बनें। इसीलिए

लेखक ने ऐसे स्त्री पात्रों का सृजन भी किया है और इसमें वह  पूरी तरह सफल भी हुआ है। यह रचनात्मक ज़िम्मेदारी  उपन्यास की ख़ूबसूरती है जिसे लेखक ने बख़ूबी निभाया  हैं। 

हीर हम्मो की बात करें तो विवाह की पूर्व संध्या पर जो मेंहदी उसके हाथों में रचायी गयी थी और फिर यकायक  जेहादी हमले में वह छूट भी गयी थी वह, उपन्यास के अंत में, और गहरी  होकर उसके हाथों में  खिल उठी है। उसे अंधे गायक की बांँहों का सहारा मिला  है और वह तर गयी है। 

सबाया बनीं औरतें  शुद्धिकरण के बाद घर लौटीं हैं। सलमा और पद्मा के जीवन की नयी राह में असहाय और विवश स्त्रियांँ अपने रास्ते तलाश सकती हैं।

वे  दोनों अकेली हैं मगर, उनके अकेलेपन में भी एक सोद्देश्यता है।

कुल मिलाकर कहें तो यह उपन्यास दुःख से सुखान्तिकी ओर बढ़ा है।

रचना वही सार्थक होती है जो किसी भी बड़ी  समस्या को उठाकर , उसे समाधान तक  ले जाती है। 

उपन्पयास में  सलमा और पद्मा हीर हम्मो की अनाथ बेटी  मरिया की मांँ और संरक्षक की भूमिका  में एक दृष्टांत पेश करती हैं।  

अलग जाति और  अलग धर्म की होने के बावजूद वे  मरिया को भले ही जन्म नहीं दे पायीं हैं परन्तु,ममता और वात्सल्य के स्तर पर वे  पूरी तरह माँ के रूप में दिखायी दे रही हैं।

वे मांँ हैं और मांँ की  कोई जाति या धर्म नहीं होता। जन्म देने भर से ही कोई मांँ नहीं बन जाता।

मांँ धरती है जो बिना किसी भेदभाव के सबको अपने आंँचल में  समेट लेती है। उपन्यास की यह सकारात्मक सोच मन को संबल देती है।

इस उपन्यास में आतंकवाद से सतायी गयी हीर हम्मो  को समाधान की दिशा मिली है  जो उसने ख़ुद तलाशी है। यह एक रास्ता जो स्त्री को  राह  दिखाता है। यह एक सिला है और एक मंज़िल भी।


इसमें सलमा और पद्मा के क़िस्से में नया यह  हुआ है कि जब  स्कूल में दाखिले के लिए हीर हम्मो की बेटी मरिया  के मांँ और पिता के नाम  लिखाने की बारी आती है तो दोनों, मांँ और पिता की जगह अपना नाम  लिखवा देती हैं। उनके इस फ़ैसले ने बनी-बनायी लीक को तोड़ा है।

पुरुषों की सतायी हुई पद्मा और सलमा को अब पुरुषों  की  बैसाखी  की ज़रूरत  नहीं  है। 

सलमा और पद्मा का मानना है कि पितृसत्तात्मक परिवारों में पुरुष अहंकारी ,दम्भी और निर्मम होते  हैं।

यह पुरुषों के प्रति उनकी यह सोच मोहभंग की स्थिति है।

यह स्त्री-विमर्श परम्परागत भले ही लग रहा है परन्तु इसमें बात नयी यह है कि वे पुरुष के अस्तित्व को सिरे से खारिज कर  रही हैं।  

यहांँ पुरुष लेखक  रामा तक्षक पूरी तरह संतप्त  स्त्री के पक्ष में खड़े  दिखाती दे रहे हैं।

स्त्री - पुरुष लेखन को अलग - अलग मानने वालों को समझना होगा कि संवेदनशील रचनाकार इस तरह के विभेद को मिटा देते हैं ।

संवेदना के स्तर पर इस तरह का विभाजन उचित भी नहीं है। लेखक ने यह साबित भी कर दिखाया है। यह इस उपन्यास की बड़ी रचनात्मक उपलब्धि है।


गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर  ने  सौ वर्ष पूर्व कहा था कि इतिहास के वर्तमान दौर में अभी सभ्यता पूरी तरह पुरुष प्रधान है। स्त्रियांँ छाया की तरह बगल में सरका दी गयी हैं। समय आ चुका है जब  स्त्री सामने आयें और ताक़त की मतिहीन गति में अपनी जीवन लय को जोड़ें। 'स्त्री' शीर्षक पर केन्द्रित   यह व्याख्यान स्त्री और पुरुष की चर्चा को नये  परिप्रेक्ष्य में अग्रसरित करता है।  

उनकी पुस्तक 'पर्सनैलिटी लेक्चर्स : डिलीवर्ड इन अमेरिका ' 1917 में यह व्याख्यान प्रकाशित हुआ है।


अब स्त्री- विमर्श किस रूप में है और इसकी असली पहचान क्या है का यक्ष प्रश्न अभी  भी सामने है।

'फेमिनिज्म' की वर्तमान स्थिति का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में,  हाल ही में जज बनीं केटांजी ब्राउन जैक्सन से पूछा गया कि क्या वह स्त्री को परिभाषित कर सकती हैं तो उन्होंने उत्तर देने में असमर्थता ज़ाहिर की। वह उत्तर देने से ही कतरा गयीं।

कितने आश्चर्य की बात है कि लगभग दो सौ साल पहले अमेरिका से ही शुरु हुआ स्त्री आंदोलन आज वहां अंतिम सांँसें ले रहा है।


अब देखें ,  हम्मो का क्या हुआ ?

हमें सलमा और पद्मा के छोर पकड़कर रखने की ज़रूरत है। उपन्यास के पहले और दूसरे खण्डों में दोनों के संवादों से ऐसी झलक मिलती है कि उससे इस कथा का सिरा सहज आगे जुड़ जाता  है।


सलमा थियेटर में एक शो को देखने पहुंँचती है और लौटने पर पद्मा को यह क़िस्सा सुनाती है और, कथानक  एकबारगी आपकी  पकड़ में आ जाता है।

क़िस्सा यों है कि  थियेटर के रहस्यमय आलोक में एक आकृति उभरती है।

एक अन्धा गायक और उसे संभाल रही एक स्त्री की आकृति भी साथ ही उभरती है। हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता है।

ज़ाहिर है कि एक स्थापित कलाकार से दर्शक  रु ब रु  हो रहे हैं।

वह पात्र अंधा है और गायक भी है। बोलने की कला में वह बड़ा ही पटु है। अपने बोलने से वह दर्शकों से तादात्म्य स्थापित कर लेता है।

 

एक प्रकरण में लेखक ने राजस्थान के गाडरिया लोहार समूह की जीवन-शैली  के सम्बन्ध में बताया है कि ये खानाबदोशी जीवन जीते हैं और इन्हें राणा प्रताप का वंशज माना जाता है। इनका रहन-सहन ,वेशभूषा और इनकी स्त्रियों  का गांँव के धनाढ्यों  द्वारा होने वाला दैहिक  शोषण साबित करता है कि आज भी ग़रीबी,क़र्ज़ और  चक्रवृद्धि ब्याज के अभिशाप से गांँव मुक्त नहीं हो पाये हैं। और इसकी क़ीमत उनकी स्त्रियों को चुकानी पड़ती है।

ऐसी ही पात्र लिच्छी है जो घर-घर शादी ब्याह के बुलावे देती  घूमती है। यह बिंदास स्त्री पात्र है और अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना चाहती है। गांँव के लड़कों पर उसका पूरा राज है और उसके सम्बन्ध हैं।

इसके मन में इस बात का मलाल है कि उसे बड़े घरों की उतरन क्यों पहननी पड़ती है। उसमें विद्रोह और बगावत के सुर तीखे हो उठे हैं।

वह अनब्याही गर्भवती  हो जाती है जिसमें, उसकी मर्ज़ी शामिल हैं। 

एक रात वह घर से गायब हो जाती है। यह आज भी गाँवों का यथार्थ है।

अभी भी गांँवों में ग़रीबी,अपढ़ता, दैहिक और आर्थिक शोषण की तस्वीरें बाक़ायदा देखी जा सकती हैं।

हीर हम्मो की बेटी  जॉन जैसे पात्रों के ही जरिए पद्मा और सलमा की देखरेख में पहुँची है। उसका नाम मरिया रखा गया है। 

कैथरिना रूस में पत्रकार  थी जिसे रुस-यूक्रेन  युद्ध के दौरान रूस छोड़ना पड़ा क्योंकि, रूस ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर पाबंदी लगा दी थी।

,ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःःयह उपन्यास शब्दों में बंँधा  लेखक का करूण गान है   जिसे आईसेक्ट पब्लिकेशन, भोपाल, मध्य प्रदेश, भारत ने छापा है  जो,  राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उच्च स्तरीय गुणवत्ता के कारण जाना- पहचाना जाता है। 

इसके स्वप्नदृष्टा श्री संतोष चौबे जी हैं जो स्वयं देश के मूर्धन्य साहित्यकार हैं।

उल्लेखनीय  है कि इसी पब्लिकेशन से  निकलने वाली विश्वस्तरीय  साहित्यिक और  सांस्कृतिक पत्रिका  'विश्वरंग 'के  वह प्रधान संपादक भी हैं। 

यह ज़िक्र इसलिये भी कि  'विश्वरंग ' की सम्पादक त्रयी में  श्री संतोष चौबे साहित्यिक और  सांस्कृतिक संस्था 'साहित्य का  विश्वरंग '  के महानिदेशक भी हैं । श्री संतोष चौबे जी और श्री  लीलाधर मंडलोई जी के साथ उपन्यास के लेखक  रामा तक्षक जी भी  'साहित्य का विश्वरंग ' संस्था के संयोजन और संपादन का गुरुतर कार्य नीदरलैंड्स में  सफलतापूर्वक संभाल रहे हैं। 

'साझा संसार', 'प्रवास: मेरा नया जन्म',   'हिंदी विश्व में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा  है '  और 'संस्कृत की वैश्विक विरासत 'जैसी  अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाएंँ   साहित्य और संस्कृति के बड़े समुच्चय हैं  जिनका संयोजन इस महान त्रयी का बड़ा स्वप्न है जो  विश्व के कई देशों में  निरन्तर साकार हो रहा है। प्रेम और करुणा इनका मर्म है।

कवि लीलाधर मंडलोई अपनी कविता में धरती पर कम होती जा रही प्रेम और करूणा  की भावनाओं को लौटा लाने का मार्मिक आग्रह कर रहे हैं, 

" इन वक़्तों  में

जबकि प्रेम कम हो रहा है 

करूणा रूठ गयी है

 इन्सानियत ठिठकी  है

बस पुकार लो

और दौड़कर थाम लो 

जो बिखरने को है 

फूल मुरझाना नहीं खिलना चाहते हैं...."।



उपन्यास हीर हम्मो का  मूल स्वर  भी ' प्रेम और करूणा ' पर आधारित है  जो इस स्वप्न को साकार कर रहा है।


विश्वरंग - 22 की थीम भी 'प्रेम और करूणा' पर  ही केन्द्रित रही है।

  

उपन्यास के केन्द्र में हीर हम्मो एक ऐसी नारी पात्र है जिसने, आइसिस के जेहादी आंतकवादियों के नृशंस बलात्कार को झेला, सहा और धैर्य के साथ, नये जीवन की तलाश की है। 'प्रेम और करूणा' की बुनियाद भी  रख दी है । जेहादियों की बर्बरता से  छटपटा रही हीर हम्मो ने अंत तक धैर्य नहीं खोया है और यही ,उसका हासिल है।


उपन्यास के तीसरे खण्ड में, 

ब्याह कीपहली सांँझ अपने भावी शौहर को  अपनी आंँखों में भरे हुए, सुख-सपनों में खोयी हीर हम्मो को, जेहादी आतंकवादी द्वारा अचानक लगायी गयी ठोकर ने, आने वाले समय के लिए आगाह कर, सुझबूझ का पहला पाठ पढ़ा दिया था। उसके ब्याह की तैयारियांँ भी धरी की धरी रह  गयीं थीं और दर्द का अनाम काफ़िला उसके संग चल निकला था।


12 खण्डों और 254 पृष्ठों में बंँधे इस उपन्यास में कई  सवाल हैं । उपन्यास से गुजरते हुए यह प्रवासी लेखक अपने पात्रों से स्वयं बोल -बतिया रहा है  और कई वैश्विक सवाल  उठाकर समाधान की और बढ़  रहा है। 

इस उपन्यास की ख़ासियत यह है कि यह  

स्त्री -विमर्श की उस मान्यता को  खारिज करता है कि रचनात्मक स्तर पर

स्त्री और पुरुष  की संँवेदनाएं अलग-अलग होती हैं ।


हालांँकि, दार्शनिक प्लेटो ने स्त्री और पुरुष  को भाषा और भावनात्मक स्तर पर अलग - अलग माना है परन्तु, उनके शिष्य अरस्तू ने उनकी इस  मान्यता को ध्वस्त कर दिया है। 

जो हृदय विदारक कृन्दन और हाहाकार उपन्यास की नायिका हीर हम्मो के कलेजे से  उठ रहा है वह, इस धरती के हृदय को  विदीर्ण करने को काफ़ी है।

उपन्यास के पात्र जटिल  सवालों को उठाकर  समाधान तक स्वयं पहुंँच रहे हैं। यह  इस उपन्यास की बड़ी उपलब्धि है। हीर हम्मो ने दृष्टिहीन कलाकार को जीवन साथी के रूप में चुना है। यह उसकी करूणा,सेवा और समर्पण का पवित्र भाव है।

अंधे गायक ने हीर हम्मो को  अपनी बांँहों में समेट लिया है।वह मन की आंँखों से इसे अनुभव कर रहा है। लेखक भी संग- संग गा  रहा  है,  "प्रीति की आंँखों से देखो, वहांँ अंधियारा नहीं है,

मन की आंँखों से  देखो, उजियारा हर कहीं है..। "

प्यार का प्रस्ताव और इकरार दोनों साथ-साथ हैं यहाँ.. और,यही जन्नत है..।

हीर हम्मो अंधे गायक की मुस्कराहटों में खोने लगी है...

वह उसका  चुम्बन लेने को  आगे बढ़ती ही  है कि बत्ती गुल कर दी जाती है...। हाल की गड़गड़ाहट ने इसकी साक्षी  भी दे दी है...  इस मंगल -उत्सव में आज..  सब जुड़ गये हैं...।


दर्शक हीर हम्मो की प्यार भरी फुसफुसाहट सुनते हैं... , मुझे अपनी बांँहों में यूंँ ही थामे रहो....,।"


इन क्षणों में  हम  भी  गा रहे हैं....शगुन मना रहे हैं..


शायर मख़दूम को  याद कर रहे हैं...


" फिर छिड़ी रात बात फूलों की,  रात है या बारात फूलों की.... "


फ़िल्म बाज़ार में इस ग़ज़ल का ख़ूबसूरत प्रयोग  हुआ है।



मीरा गौतम



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