ऐसा हो संकल्प हमारा
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पर-हित में संलग्न रहें हम,
गिरे हुओं को गले लगाऐं ।
ज़रुरतमन्दों का सहारा बन,
अन्तर में ज्योति जगाऐं ।।
विपत्तियों के मारों का,
"ढाल बनें" विकल्प हमारा ।
असहायों के बने सहायक,
ऐसा हो संकल्प हमारा ।।
पर-पीड़ा ही स्व-पीड़ा,
हमें उठाना यह बीड़ा ।
"असामाजिक" नाम का,
कभी न लग पाये कीड़ा ।।
ऐसे हों संकल्प हमारे,
हो ऐसी अमृत-वाणी ।
करने की कुछ दे क्षमता तू,
हे माँ अम्बे वीणा-पाणी ।।
( बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज")
कोटा (राजस्थान)
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