"ऐतिहासिक स्मारक विवरण - आमेर का किला"

शकुंतला अग्रवाल,

  आमेर के किले को आंम्बेर के किले के नाम से भी जाना जाता है। यह जयपुर से मात्र 10 किलोमीटर दूर आमेर में उच्ची पहाड़ी पर स्थित है । आमेर नगरी वहाँ के मन्दिर किले, दुर्ग और राजपुती कला के लिये प्रसिद्ध है। यह कच्छवाहा वशं द्वारा बसाया गया यह दुर्ग आज भी फिल्म निर्माताओं की पहली पसंद है। इसका मुख्य व्दार गणेश पोल कहलाता है। यहाँ की नक्काशी देखने लायक है किले की दीवारों पर कलात्मक चित्र बनाय़ें गये थे । बादशाह जहांगीर ने नाराज होकर उन चित्रों को प्लास्टर से ढ़कवा दिया। यह चित्र अब प्लास्टर उखड़ने की वजह से नजर आने लगें हैं।

शीश महल :-

आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बंदों और छतो पर शीशे के टुकडे इस प्रकार जडे हुये हैं कि मोमबती, माचिस वगैरा जलाने पर यह जगमगा उठता है प्रतिबिम्ब हर तरफ दिखाई देने लगता है। इसी की तर्ज पर मुग़ले आजम फिल्म में वह सैट बनवाया गया जिसमें प्यार किया तो डरना क्या के गाऩे में अनार कली का अक्ष सब जगह दिखाई दे रहा था। सुख महल व किले के बाहर भी झील व बाग अपूर्व छटा बिखेरते हैं। पत्थरों की कांट - छांट देखते ही बनती है। यहाँ का विशेष आकर्षण है। डाली महल जिसका आकार डोली यानि पालकी की तरह है । जिसमें की रानियाँ आया जाया करती थी। डोली महल से पहले एक भूल भुलैया भी हैं जिसमें की राजा और रानियाँ आंख मिचौली खेला करती थी। जब राजा मानसिंह युद्ध से आया करते थे, इसी भूल भुलैया में जो रानी पहले राजा मानसिंह जी ढूंढ पाती थी वह उनसे मिलन का सुख पाती थी। बादशाह अकबर और राजा मानसिंह के बीच कुछ ऐसा करार बताया जाता है जिसकी वजह से राजा मानसिंह को कभी भी धन का अभाव नहीं हुआ जिससे की जयपुर को बसाने व उसके रख रखाव में उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। यहाँ पर हाथी की सवारी के द्वारा भी ऊपर किले तक जाया जा सकता है अपनी सवारी से या पैदल सीढ़ियों से भी आप किले तक पहुंच सकते हैं।

शिलामाता मन्दिर :-

आमेर किले में माता शिला देवी का मन्दिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना है शिला माता काली मां का रूप हैं और कछवाहा राजवंश की कुलदेवी भी है इतिहासकार मानते हैं की 1580 ईस्वी में शिला देवी की प्रतिमा आमेर के राजा मानसिंह लेकर आये जयपुर मेंआज भी यह कहावत प्रचलित है' सांगानेर को सांगो बाबा जैपुर को हनुमान आमेर की शीलादेवी लायो राजा मान' मुर्ति लाने के पीद्दे कई किद्वन्ति हैं। ऐसा कहा जाता है की बलि न मिलने के कारण मॉं शिला देवी ने नाराज होकर मुहं टेढ़ा कर लिया था सो वहआज भी टेढ़ा ही है। जयपुर निर्माण में बहुत सी दिक्कतें आ रही थी सो पण्डितों के कहने से राजा मानसिंह ने पूर्वमुखी प्रतिमा का मुंह उत्तरराभिमुखी करवाया ताकि माँ की तिरद्दी नजर जयपुर पर ना पडे  तभी जयपुर का निर्माण हो पाया। आमेर से एक गुफा जयगढ़ तक जाती है ताकि जब दुश्मन आक्रमण करें तो खजाना और राजा अन्दर ही अन्दर सुरक्षित निकल सके कहाँ जाता है कि जयगढ़ के किले में आज भी अरबों का खजाना दबा हुआ है यहां विश्व की धरोहर तोप भी रखी हुई है आमेर के किले को बनवाने में 100 वर्ष का समय लगा शुरू राजा मानसिंह ने किया  पुरा सवाई जयसिंह द्वितीय और राजा जयसिंह प्रथम द्वारा किया गया आमेर के किले में light & sound कार्यक्रम भी दिखाया जाता है घुमने के हिसाब से यह एक अच्छा विकल्प है। आप राजा महाराजाओं की शानो शौकत से अवगत हो पायेंगे। 

शकुंतला अग्रवाल,

जयपुर, राजस्थान,

9649701931   


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