ओंकार है स्वस्थ जीवन का आधार - मंत्र महर्षि योग भूषण


धर्मयोग फाउंडेशन के तत्वावधान में सुखद जीवन के स्रोत पर एक अत्यंत उपयोगी कार्यशाला का आयोजन परम श्रद्धेय, ध्यान प्रज्ञ, मंत्र महर्षि, धर्मयोगी संत (डॉ.) श्री योग भूषण जी महाराज की प्रभावशाली प्रेरणा व मंगल सान्निध्य में दिनांक 25 दिसम्बर 2022 को मुक्तधारा सभागार, गोल मार्केट (दिल्ली) में किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ महामंत्र णमोकार के उच्चारण से हुआ। ब्र. योगांशी दीदी ने पूज्य श्री के जीवन के विभिन्न आयामों से उपस्थित भक्तों को अवगत कराया।

अपनी ओजस्वी वाणी से सुखद जीवन के रहस्य को उद्घाटित करते हुए मंत्र महर्षि (डॉ.) योग भूषण महाराज ने कहा कि हमारा शरीर पांच रंगों को मिलाकर बना है। प्रत्येक रंग शरीर के प्रत्येक भाग को परिलक्षित करते हैं। शरीर में जिस रंग की मात्रा की कमी होने लगती है, उसके अनुरूप शरीर में वैसे ही रोग उत्पन्न होने लगते हैं। स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का वास होता है। जैसे जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना पड़ता है, कुछ-कुछ पाने के लिए कुछ-कुछ छोड़ना पड़ता है, बहुत कुछ पाने के लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, ठीक उसी प्रकार जीवन में सब कुछ पाने के लिए सब कुछ छोड़ना पड़ता है।

गुरुदेव ने आगे कहा कि महामंत्र णमोकार के पांच पद पांच रंगों के प्रतीक हैं। प्रथम पद "अरिहंत" सफेद रंग का सूचक है, द्वितीय पद "सिद्ध" लाल रंग, तृतीय पद "आचार्य" पीला रंग, चतुर्थ पद "उपाध्याय" हरा रंग तथा पंचम पद "साधु" नीला रंग दर्शाता है। शरीर में जिस रंग का अभाव है, उसी रंग के अनुसार उस पद के मंत्र की साधना करने से चमत्कारिक नतीजे प्राप्त होते हैं। यह कोई नया प्रयोग नहीं है, अपितु मंत्र विज्ञान की पूर्ण व्याख्या पूर्वाचार्यों ने जिनागम में वर्णित की है। 

शरीर में 107 मर्म स्थान होते हैं और 1 मन - इस प्रकार से हम मंत्र साधना के माध्यम से अपने शरीर में 108 स्थानों का संतुलन बनाए रखते हैं। महामंत्र णमोकार के प्रत्येक पद के लिए एक एक बीजाक्षर है जिसके ध्यान से उर्जा शक्ति का संचार होता है। मन में उत्पन्न नकारात्मक प्रभाव को तरंगों के माध्यम से बाहर किया जा सकता है। इसमें किसी धर्म की बात नहीं है, यह पूरा विज्ञान हैं जो प्राचीन काल से हमें उपलब्ध है। ओंकार ही सुखद जीवन का एकमात्र ऐसा स्रोत है जिसके द्वारा आत्मिक शांति तो मिलती ही है परंतु नवचेतना का संचार किया जाता है।

ओंकार की साधना से केवल मुक्ति ही नहीं ‌अपितु सांसारिक सुखों की पूर्ति भी होती है। सबसे खुशहाल जीवन का परम स्रोत यही प्रणव दिव्य ध्वनि है, जिसके बारे में सभी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यताओं में बताया गया है। नासा के वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि सूर्य के अंदर से आने वाली आवाज ओंकार स्वरूप ही है। अतः प्रतिदिन प्रातः काल इस दिव्य ध्वनि का अभ्यास करें और अपने जीवन में सुख, शांति और समृद्धि हासिल करें।

कार्यशाला के अंत में गुरुदेव ने एक गुरुमंत्र प्रदान कर सभी को अभीभूत किया। चलते, फिरते, उठते, बैठते प्रत्येक स्थिति में श्वास के अंदर बाहर होते हुए सोऽहम का अभ्यास करें। देशभर से पधारे धर्मयोगी सदस्यों ने मंत्र साधना के माध्यम से जीवन में आए बदलावों को सभी से साझा किया। गुरुवर ने उपस्थित जनसमुदाय को मंत्र हीलिंग देकर सुखद जीवन की मंगल कामना करते हुए आशीर्वाद प्रदान किया। कार्यशाला का समापन धर्मयोग गीत से हुआ।

- समीर जैन (दिल्ली)

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