नारी द्वारा नारी के अधिकारों का हनन....

"नारी के निर्बाध रूप से स्वधर्म पालन कर सकने के लिए बाहरी आपत्तियों से उसकी रक्षा हेतु पुरुष समाज को दिया गया उत्तरदायित्व 'नारी' है! कथन का तात्पर्य है, कि नारी के मानसम्मान,धर्म, इच्छाओं का पालन करने का दायित्व समाज ने पुरुष वर्ग को दिया है.इन उत्तरदायित्वओ का पालन वह बेटा, भाई,पिता, दादा तक के सभी पड़ाव पर  स्त्री जाति के प्रति समाज द्वारा तय अपनी मर्यादाओं का पालन करके करना होता है! वही नारी समाज को भी अपनी सामाजिक मर्यादाओं का पालन करते हुए अपने रिश्ते निभाना, समाज,परिवार को अपने संस्कारों से सींचना भारतीय मातृ शक्ति का प्रथम कर्तव्य मना गया है 

 पर जब "शील कि, संस्कारों कि" मर्यादाओं की दीवारें टूटती है तो  असंयमित सीमेंट क्राकरी स्वरूप महिला का अमर्यादित आचरण पूरे समाज के वातावरण को धूमिल कर देती है. परिणाम स्वरूप समाज में नारी शोषण की घटनाएं आम होती नजर आ रही हैं.जैसे की... आपसी सहमति से लिव-इन में रहना "सामाजिक व्यवस्था शादी "से ज्यादा स्थाई अनुशासित संबंध पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, अति महत्वाकांक्षी स्वभाव के कारण आम होते तलाक के मामले रिश्तो के सम्मान एवं गंभीरता को कम कर रहे है.शादी का झांसा देकर कई सालों तक बलात्कार की शिकार महिला वर्ग की रक्षा के प्रति या तो कानून की उदासीनता या स्वयं महिला वर्ग की अपने अधिकारों के अनुचित उपयोग की मनोवृत्ति को दर्शाता है..यह ही नहीं कई सामाजिक संगठनों को भ्रमित कर उन्हें अपने दायित्व, कर्तव्य, कार्य से भ्रमित करते हैं, तथा समाज में विवादास्पद स्थिति को जन्म देते हैं, फलस्वरूप महिलाओं के प्रति समाज मे अविश्वास का माहौल बनता जारहा है!कई प्रकरण सुनने मे आते है जैसे....शादी के कई सालों बाद जब खुद के बच्चों की शादी हो चुकी हो या होने वाली हो महिला के प्रति दहेज प्रताड़ना की शिकायत किस सोच को प्रदर्शित करता है?

 नारी की विशिष्टता एवं सदाचार को प्रभावित करने के लिए संविधान में दंड का प्रावधान है, वहीं दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर अल्प वस्त्र तरीकाएं नारी चरित्र को प्रदर्शन के पर्दे पर अपमानित करने के रिकार्ड तोड़ राही है,और सोशल मीडिया की टीआरपी इसको प्रचारित, प्रसारित करने की होड़ मे लगी है!नतीजन नवयुवतिओं मे इसका अत्यधिक प्रभाव देखने मे आरहा है लगता है जैसे लौकिक संस्कार धुएँ के छल्ले मे उड़ रहे है, जीवन के लक्ष्य किओर बढ़ने वाले कदम नशे मे लड़खड़ा रहे है!धार्मिक संस्कार 6,7 इंच के मोबाइल कैमरे मे सिर्फ दिखावे के लिये कैद हों रहे है !वर्तमान सुशिक्षित विकसित समानता का अधिकार देने वाला भारतीय समाज पाश्चात्य के भोंडे  प्रदर्शन की बलि चढ़ता नजर आ रहा है. जो किसी समाज के पतन का कारण हो सकता है.

         यहाँ यह चिंतन का विषय है कि, नारी शक्ति के संवैधानिक अधिकारों का स्वयं कुछ महिलाओं द्वारा स्वार्थवश उपयोग संविधान एवं कानून के प्रति सम्पूर्ण समाज कि आस्था एवं सम्मान को कम करता है. यहाँ विभिन्न स्तर पर गठित महिला संगठनों को अपनी अहम् भूमिका निभानी चाहिए,महिलाओं द्वारा किये जानेवाले अनैतिक कार्यों का   एवं वहीं दूसरी तरफ नारी चरित्र का दूषित प्रदर्शन करने वाली हस्तियों का जमकर विरोध करना हर महिला संगठन का दायित्व होना चाहिए, एवं भारतीय महिलाओं के लिये संस्कार शालायें आयोजित कर सँस्कारित करना चाहिये, ताकि परिवार एवं समाज कि सृजनकर्ता महिला वर्ग अपने सुसंस्कारों से सँस्कारित देश के निर्माण मे अपनी अहम् भूमिका निभा सके.

           साथ ही चाहें कोई भी जाती वर्ग हों नारी समाज को भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का नारी समाज के हित में उचित तरीके से उपयोग हो तथा नारी के द्वारा नारी के अधिकारों का हनन ना हों सके यही संगठन का मुख्य उद्देश होना चाहिए.


बरखा विवेक बड़जात्या

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