अनाचार को चलो मिटाएं

 अनाचार को चलो मिटाएं।।


अस्त्र  शस्त्र पर अरबों खर्चें , 

भूखे सोते कई लोग हैं।

रोग से मरते जाने कितने , 

अनचाहे ही कई भोग हैं।

खुले गगन के नीचे सोते , 

नए विश्व को आज बनाएं।

न्यायशील हम विश्व बना कर ,

अनाचार को चलो मिटाएं।।

 

लूट हत्या चोरी डकैती , 

अत्याचार अब निश दिन होते।  

नारी की अस्मत को लूटें , 

जानें अपनी हर दिन खोते।।

प्रेम प्यार का मार्ग सच्चा , 

आओ सबको हम बतलाएं।

न्यायशील हम विश्व बना कर ,

अनाचार को चलो मिटाएं।।


वंश लिंग की बात करें क्यों , 

भेद भाव क्यों करते सारे।

रंग पर इतना शोषण होता ,

 जाने इसने कितने मारे।

तोड़ो सारी सीमाओं को , 

इस धरा को एक बनाएं।

न्यायशील हम विश्व बना कर ,

अनाचार  को चलो मिटाएं।।


श्याम मठपाल,उदयपुर

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