ऋणी हैं हम जिनके.......

 सफर जारी है......1168 

बीना शर्मा

31.12.2022

ऋणी हैं हम जिनके.......

ऐसे ही थोड़े बड़ा बना जाता है, कितने कितने अपनों का साथ होता है, प्रियजनों की शुभकामना होती है, बड़ों का आशीष होता है, छोटों की स्नेह वर्षा होती है, मित्रों की उठा बैठक होती है, सत्पुरुषो की संगत होती है, निंदकों की छिद्रानवेशी  आलोचना होती है, जो बिन साबुन पानी के ही स्वभाव को निर्मल कर देती है इसलिए निंदक तो नियरे बने ही रहते हैं और कुटिया आंगन में छवा लेते हैं,शत्रुओं के इतने इतने तीखे व्यंग्य वाण होते हैं कि आपका कलेजा छलनी हो जाए और इन सबके साथ आपका छोटा सा नेक सा प्रयास होता है, दिन रात की मेहनत होती है। यह भी याद रखना होता है कि अकेले मेहनत से ही सब नहीं होता। आपका परिश्रम बहुत सारे घटकों में से एक है। ठीक वैसे ही जैसे कछु माखन को बल बढ्यो कछु गोपीन करी सहाय, और राधे जी की कृपा सो गोबर्धन लियो उठाय। जब उस नटवर नागर को, छैल छबीले कन्हैया को भी सारे ग्वाल वालों का साथ और माखन का बल चाहिए था, राधे रानी की कृपा चाहिए थी, राम जी को वानर भालू रीछ राज की सहायता चाहिए थी, गुरुओं ओर माता पिता का आशीष चाहिए था, प्रातकाल उठ के रघुनाथा, मात पितहु गुरु नावहि माथा तो हम जैसे मानुष इतने संपन्न कब से हो गए कि हमें ये अभिमान हो गया कि हमारे प्रयास ही रंग ले आए हैं, सब हमारा अकेले का किया धरा है। ऐसे नहीं होता मित्र, हमारी सफलता में न जाने हमारे अपनो की कितनी कितनी साधना छिपी है, उनकी दुआएं हैं, उनका आशीर्वाद है, उनका स्नेह संबल है तब जाके सफलता का परचम लहराता है, रिजल्ट कार्ड पर प्रथम लिखा जाता है, शाबासी मिलती है, पीठ थपथपाई जाती है, सिर पर स्नेह का हाथ फेरा जाता हैं,शुभकामनाएं दी जाती हैं। अर्जुन को भ्रम हो गया था कि महाभारत युद्ध में उन्हें अपनी वीरता के कारण सफलता मिल रही है तो जब रथ से उतरने का समय आया तब उन्होंने कृष्ण से पहले उतरने का निवेदन किया लेकिन सारथी कृष्ण ने पहले अर्जुन को उतारा और बाद में स्वयं उतरे, कृष्ण के उतरते ही रथ धू धू कर जल उठा तब अर्जुन को बोध हुआ कि रथ तो कृष्ण कृपा से इनकी सफलता का निमित्त बना था। यदि अर्जुन इतने बड़े धनुर्धर थे तो वे ही अर्जुन वे ही वाण होने पर भीलों ने उन अर्जुन के रहते गोपियों को कैसे लूट लिया, संदर्भ याद है न भीलन लूटी गोपिका वे ही अर्जुन वे ही वाण।

हां, इतना ज़रूर है कि आप स्वस्थ मन से अपने लक्ष्य के साथ अवश्य डटे रहे ।मुझे अटल जी याद आते हैं छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता और टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता। मन की विशालता तो चाहिए ही,साथ ही उदारता,सहानुभुति, कृतज्ञता और सबसे अधिक सरलता की प्राथमिकता को झुठलाया नहीं जा सकता। आप को इस स्थान तक पहुंचाया किसने, यदि आपका ज़बाब केवल आपका प्रयास है तो आप मुगालते में है जनाब।अकेला चना क्या भाड़ फोड़ेगा भला। याद  कीजिए जन्म माता पिता ने दिया, पाला पोसा उन्होंने, खुद गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाया, खुद कभी आधे पेट खाकर तो कभी भूखे रहकर पहले हम बच्चों की जिंदगी संभारी, अपनी आवश्यकताओं को परे सरका कर हमारी छोटी से छोटी मांग को प्राथमिकता दी, हम भले से रूठते मटकते फुनकते खीझते रहे पर उन्होंने वही करने की आज्ञा दी जो हमारे लिए उचित था, हमारी गलतियों पर वे मौन साधे नहीं बैठे रहे , हमें कूटा पीटा डांटा फटकारा लताड़ा। बाहर से ठोक ठोक के और अंतर हाथ सहार दे गढ़ते रहे, बुनते रहे, संस्कारित करते रहे, हमारी उपलब्धियों को ही अपनी मान हर्षित होते रहे, उल्लसित होते रहे, उमगते रहे। बिरादरी और चार लोगों के मध्य हमारी उपलब्धियां गिनाते रहे। मां आले में रखे भगवान जी की मूर्ति के आगे आस का दीपक जलाती रही, दुआ मांगती रही, पिता दौड़ दौड़ के हमारी मांगों की भरपाई करते रहे, इस उस के आगे हाथ फैलाते रहे, घर के बड़े भैय्या दीदी आशीषते रहे और छोटे भले से मिठाई के लालच में ही सही, आपकी सफलता की कामना करते रहे, इस गर्व से सिर ऊंचा किए रहे कि हमारी जिज्जी हमारा भैय्या फर्स्ट आया है उसे इनाम मिला है। और तुम सारा क्रेडिट अपने सर पर लाद सब को भुला बिसरा चुके। उन बूढ़े माता पिता से जिन्होंने तुम्हें गढ़ने में अपनी जिंदगी होम कर दी ,जो स्वर्ग में बैठे भी तुम्हारी कुशल मंगल मनाते हैं, वहीं से तुम्हें अशीषते हैं, तुम्हारी हर छोटी बड़ी सफलता पर दिल खोल खुशियां मनाते हैं , पूछते हो तुमने हमारे लिए किया ही क्या है। आज जो कुछ भी हूं सब अपने प्रयासों से हूं। तुम्हारे प्रयास की ऐसी की तैसी, जो वे तुम्हे माहौल नहीं देते, तुम्हारे अंदर कुछ करने का जज्बा नहीं भरते तो यह दिन देखना नसीब में नहीं होता।

       तो भाग्य सराहो अपने कि बिल्ली के भाग से छींका फूट गया, तुम्हें एक अच्छे संस्कारित परिवार में जन्मने का सौभाग्य मिला, सुघढ माता पिता मिले, एक नाम मिला, तुम पर जान लुटाने वाले तुम्हारा भला चाहने वाले तुम्हारी मंगल कामना करने वाले इतने प्यारे भाई बहिन मिले क्योंकि ये चुनने का अधिकार तुम्हें नहीं था, संयोग से अच्छे पड़ोसी अच्छे दोस्त मिले, सदाशयता रखने वाले गुरुवर वृंद मिले, सहयोगी मिले, तुम्हे सुधारने और अच्छा सच्चा मार्ग दिखाने को दोस्त मिले, तुम्हे सभागृह की जोरदार बजती तालियां मिली, शुभकामना मिली, दुआएं मिली तो आज मिली सफलता तुम्हारे अकेले की सफलता नहीं है जो मार इतराए जा रहे हो, ऐठ के मारे पैठ को जा रहे हो, किसी से सीधे मुंह बात तक नहीं कर रहे, अपने आपको कुछ विशेष सा मानने लगे हो। जब जब ये गुरूर उपजे, ये घमंड पैदा हो कि सब मेरे अकेले का ही किया धरा है, मैं प्रधान होने लगे तो सिर झटक लेना, सोच लेना कि मैं भाग्यशाली हूं जिसे अवसर मिला वरना एक से बढ़कर और योग्यता धारी तो अनेक थे  वो तो शुकर मना समाधियाने को नहीं तो डोलती दाने दाने को। फिर एक बार विचार कर लेना कि सारी सफलता के पीछे मैं अकेला ही खडा हूं अथवा बहुतों बहुतों का सहयोग है। तो उन सभी के प्रति श्रद्धानवत होते हैं, उनके ऋणी बने रहते हैं क्योंकि इससे उऋण तो नहीं ही हुआ जा सकता पर उन्हें मान सम्मान दिया जा सकता है, उन्हें याद रखा जा सकता है, उनका आभार व्यक्त किया जा सकता है उनका मान बनाए रखा जा सकता है। उन अभी के ऋणी हैं हम जिन्होने हमें रचा,हमें गढ़ा, हमें पढ़ने पढ़ाने सीखने सिखाने का अवसर दिया, कार्य करने को प्रेरित किया , हमें वक्त मुसीबत संभाले रहें, उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं और मौन साधक बने रहते हैं।

No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular