'हाइकु, तांका और चोका : सरलीकृत रूप में समझें!'

 'हाइकु, तांका और चोका : सरलीकृत रूप में समझें!'

कमलेश कमल

भारतीय-भाषाओं में जहाँ पहले सिर्फ अँगरेज़ी-काव्य का व्यापक प्रभाव था, वहीं आज जापानी-काव्य-विधाओं ने भी अपनी महती-पैठ बना ली है।


इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता है कि अध्यात्म, प्रेम आदि आंतरिक अनुभूतियों को संक्षिप्तता एवं सघनता से अभिव्यक्त कर पाने की जापानी कोशिश को पिछले कुछ दशकों में भारतीय काव्य-जगत् ने औदात्य के साथ अंगीभूत किया है। अस्तु, जिन तीन पद्यात्मक विधानों ने यहाँ पैठ बनाई है, वे हैं–हाइकु, तांका और चोका ।


ये तीनों ही शिल्प-विधान की दृष्टि से सुस्पष्ट नियमों के अनुपालन की अभीप्सा विनिर्दिष्ट करते हैं। तीनों ही वार्णिक प्रकृति के होते हैं अर्थात् इनमें मात्राओं को नहीं गिना जाता और ये वर्ण प्रधान होते हैं। तीनों ही नित्य-विषमवर्णी (हर पद में विषम वर्ण) और नित्य-विषमपदी (पदों की संख्या भी विषम) होते हैं। आइए, देखते हैं–


हाइकु-

3 पंक्ति और 17 वर्णों में बिंब-सामीप्य (juxtaposition of the images) से गुम्फित-भावों को दिखा देने वाली जापानी लघु कविता को हाइकु कहते हैं। ऐतिहासिक रूप से देखें तो हाइकु के अप्रतिम हस्ताक्षर मात्सुओ बाशो के काल (17 वीं शताब्दी) में यह विधा जीवन-दर्शन से जुड़ गई और जापानी कविता की युगधारा के रूप में स्थापित हो गई। उद्दाम-अनुभूति की कोमलकांत अभिव्यंजना इसका सर्वप्रमुख गुण है। 

कालांतर में यह विधा जापानी-साहित्य की सीमाओं का अतिक्रमण करती हुई विश्व साहित्य की निधि-सदृश हो चुकी है। वैसे, आज जिस मात्रा में हाइकु लिखी जा रही है, वह उस गुणवत्ता का वाचक तो नहीं ही है, जो हाइकु से अपेक्षित है। 


#हाइकु के शिल्प विधान में पाँच बातें महत्त्वपूर्ण हैं– 

1. तीन पद

2.वर्ण-5-7-5, कुल वर्ण-17

3.अर्द्धवर्ण (संयुक्ताक्षर/स्वर रहित) नहीं गिना जाता, उदाहरण के लिए– प्यार, उक्ति आदि में दो ही वर्ण गिने जाएँगे

4.तीन अलग-अलग वक्य हों

5.भाव-सघनता सर्वप्रमुख तत्त्व


एक उदाहरण देखें -

# वेलेंटाईन डे/ हाइकु / कमलेश कमल


दिन ख़ामोश             (5)

रात-भर रो लिया        (7)

प्रेम का पर्व          (5)


अब अगर उपर्युक्त में पदों की संख्या 5 हो जाए और अंत के दो पद 7-7-के हों; तो इसे तांका कहेंगे। सभी पदों में सुसंबद्धता आवश्यक है। इसमें कुल वर्ण-31 होते हैं। जो आज तांका है, वह पहले वाका कहा जाता था। (‘वा’ अर्थात् जापानी और “का” अर्थात् गीत।) 


इससे स्पष्ट है कि जिसे हम लघुगीत कहते हैं, वह जापानी में तांका है, जिसका अपना शिल्प-विधान है। आरम्भ में ऐसा होता था कि एक कवि हाइकू (5-7-5)लिखता था, दूसरा उससे संबध्द 7,7 वर्ण की दो पंक्ति लिखता था और तांका बनाता था। इस तरह इसमें कौशल के साथ सहभागिता का तत्त्व भी सन्निहित था।

दो उदाहरण देखें:


1.व्यर्थ की दौड़/ तांका/ कमलेश कमल


प्रेम की तृष्णा         (5)

एक बेसुध दौड़       (7)

जीवन-भर              (5)

हासिल कुछ नहीं     (7)

इस वर्तुल पर           (7)


2.छाँह की तलाश/ तांका/ कमलेश कमल


कड़ी धूप में                (5)

व्यर्थता बोध भर           (7)

भागा जा रहा              (5)

ढेरों परिछाईयाँ             (7)

छाँह को ढूँढ रहा         (7) 


ध्यातव्य है कि अगर पदों की संख्या बढ़ जाए, तो यह चोका (लंबी कविता) बन जाती है, जिसके नियम निम्नवत् हैं–


1.पंक्तियाँ इसमें भी 5 और 7 वर्णों के क्रम में ही व्यवस्थित होती हैं, किंतु अंत में 7 की एक और समापक पंक्ति होती है,  यथा 5-7, 5-7, 5-7–7 आदि।


2.  पदों की संख्या सदैव विषम होती है।


3.इसमें लम्बाई की कोई सीमा सुनिश्चित नहीं है; बस, अंत में 7 वर्ण की समापक पंक्ति रखते हैं। 5-7, 5-7 की शृंखला के अंत में 7 वर्णों की एक और पंक्ति जोड़कर समाप्त करना होता है। एक और विन्यास देखें–5-7, 5-7, 5-7, 5-7,5-7, 5-7-7 


6.  जापान में ये कविता उच्च स्वर में गाई जाती रही है।


7.  प्रत्येक पंक्ति स्वतंत्र अर्थात् कोई पंक्ति अर्थ के लिए दूसरी पंक्ति पर निर्भर नहीं होगी, फिर भी सुसंबद्धता रहेगी।


चोका का एक उदाहरण देखें:-

#तुम थे दूर/ चोका / कमलेश कमल


तुम थे दूर

रात भर बारिश

छूटती डोर

मन हुआ विह्वल

क्या जानो तुम

टप-टप-टपकीं

अँखिया खुली-खुली।


ध्यातव्य है कि इन तीनों में बिम्बों में अपनी बात कह देना सर्वोपरि है। साथ ही, इसकी चर्चा भी यहाँ समीचीन है कि इन विधानों में नियमों का अनुपालन अनिवार्य है। अगर नियम न सधें अथवा भाव की सुंदरता बिगड़ रही हो, तो इसे हाइकु/तांका/ चोका लिखने की जगह 'क्षणिका' लिखें! भाव और शिल्प-सौंदर्य से समझौता कर हाइकु, तांका अथवा चोका लिखना कोई समझदारी भरा निर्णय नहीं!


आपका ही,

कमल

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