पथ

 कविता - पथ



दूर भले हो पथ जीवन का

त्याग हौसिला कभी न मन का

चलना सीखो अपने पथ पर

चलते चलना बढ़ हर पग पर 

आलस में ना समय गवांना

बिना अर्थ ना समय बिताना

लक्ष्य तभी जब ना पाओगे

मलते हाथ ही रह जाओगे

सुख दु:ख दोनों मिलते पथ में

संग चले जीवन के रथ में

सुख में अक्सर खो जाते हम

दिक् भर्मित सा हो जाते हम

खुद विचार लो अपने मन में

क्या कुछ पाओगे जीवन में?

मलते हाथ न वापस आओ

पथ पर अपने बढ़ते जाओ

पहले यदि सुख गले लगेगा

सुख वैभव आनन्द मिलेगा

समय बाद में दुःख आयेगा

शेष समय दुःख में जायेगा

क्यों न पहले दुःख अपनाएं

इससे तनिक नही घबड़ाएं

पथ में कंकड़ पत्थर आते

बस केवल ठोकर दे जाते

धूल तनिक हम पर हैं आते

रोक नही ये हमको पाते



रचनाकार -रामबृक्ष बहादुरपुरी अम्बेडकरनगर यू पी 


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