डॉ नीलम जैनआचार्य श्री शांतिसागर अवार्ड से सम्मानित

 22जनवरी 2023को सप्तम पट्टा धीश आचार्य श्री अनेकांत सागर महाराज जी के आठवें आचार्य पदारोहण दिवस पर अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विदुषी डॉक्टर नीलम जैन पुणे को आचार्य श्री शांतिसागर अवार्ड से सम्मानित किया गया यह पुरस्कार दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष श्री रामनिवास गोयल जी की उपस्थिति में श्री दिगंबर जैन समाज कृष्णानगर दिल्ली द्वारा प्रदान किया गया समारोह का अति भव्य आयोजन देवम पैलेस दिल्ली में किया गया जिसमें हजारों की संख्या में भारत के अनेक प्रदेशों से भक्तगण पधारे

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विश्व हिन्दी भाषा दिवस पर पुणे के शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से आन्तर्जालिक अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी






 विश्व हिन्दी भाषा दिवस पर पुणे के शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से आन्तर्जालिक अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी का मंगलवार को आयोजन किया गया। 

 वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी के समक्ष चुनौतियां विषय पर आयोजित इस वर्चुअल संगोष्ठी में देश-विदेश से मनस्वी वक्ताओं ने सहभागिता की।

अमेरिका से   डॉ. नीलम जैन की अध्यक्षता रही 

 मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा मंत्रालय के संदीप जैन उपसचिव उच्च शिक्षा  मंत्रालय व विशिष्ट अतिथि के तौर पर अरुण माहेश्वरी उपस्थित थे।

प्रमुख वक्ताओं में रूस से प्रगति टिपनीस, नीदरलैंड से डॉ. रामा तक्षक, चीन से डॉ. विवेकमणि त्रिपाठी, नेपाल से डॉ. श्वेता दीप्ति, हरियाणा से डॉ. अशोक बत्रा, प्रयाग से पंडित पृथ्वीनाथ पांडेय, पुणे से डॉ. दामोदर खड़से, खंडवा से डॉ. श्रीराम परिहार, भोपाल से डॉ. जवाहरलाल कर्णावट व पुणे से डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव उपस्थित थे। डा श्रीराम परिहार ने हिंदी की राह में चुनौतियों से न घबराकर इसे हर क्षेत्र में उपयोग करना चाहिए उन्होंने कहा मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती


देश और विदेश में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर सभी मनस्वी वक्ताओं में संतोष व्यक्त करते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।


रूसी परिसंघ की प्रगति टिपनीस ने बताया कि रूस में हिन्दी न्यूज चैनल को कम प्रतिक्रिया मिलने के कारण रूस की सरकार ने बंद कर दिया है, लेकिन अब इस न्यूज चैनल को फिर से शुरू करने वहां के भारतीय लगातार प्रयास कर रहे हैं। 


डॉ. दामोदर खडसे ने कहा कि, हिन्दी शब्द कोष को और वृहद बनाने की आवश्यकता है।, क्योंकि अनेक शब्द ऐसे हैं जो एक ही अर्थ लिए हुए तो होते हैं, लेकिन वह शब्द लिखने की शैली भिन्न होने के कारण वह शब्द, कोष में ढूंढने में परेशानी होती है। जैसे हिंदी या हिन्दी।

यहां एक शब्द न कि जगह बिंदी लगा कर लिखा गया है तो दूसरा शब्द आधा न लगा कर लिखा गया है। इस प्रकार के शब्दों की एकरूपता होनी चाहिए।


नीदरलैंड के डॉ. रामा तक्षक ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि, अंग्रेजों के ज़माने में कई लोगों को मजदूर बना कर ले जाया गया था। इन लोगों की पीढियां आज भी अपनी भाषा में कुछ ऐसे हिन्दी शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो लुप्तप्राय हो चुके हैं। हिन्दी के प्रति इन लोगों का प्रेम आज भी जीवित है। डा विवेक मणि त्रिपाठी ने चीन में भी हिंदी की स्थिति की विस्तृत जानकारी दी

संगोष्ठी की अध्यक्ष व मार्गदर्शक  डा नीलम जैन ने इस समय जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी में वक्ताओं के उद्बोधन से प्रभावित होकर  शुभचिंतक फाउंडेशन ने प्रवासी साहित्य पर पुरस्कार की घोषणा की है। यह  पुरस्कार समारोह पूर्वक प्रदान किया जाएगा अथवा अपरिहार्य परिस्थिति में साहित्यकार को सीधा भी संप्रेषित किया जा सकता है।  इसकी विस्तृत रूपरेखा बनाकर तत्काल ही भेज दी जाएगी।


कार्यक्रम की संयोजक डॉ. ममता जैन ने बड़ी ही सुंदर शैली में कार्यक्रम का संचालन किया। आनंद सिंह ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने प्रो. डॉ. जयंत मधुकरराव चतुर, डॉ. शाकिर शेख, सुश्री अलका अग्रवाल का सहयोग मिला।

संकटग्रस्त मानवता को बचाने की चेष्टा प्रवासी साहित्य में है –डॉ. मीरा सिंह


प्रवासी साहित्य बोध कराता है कि भारत की जड़ें गहरी हैं – प्रो शैलेंद्र शर्माप्रवासी साहित्य एवं संस्कृति : धरोहर और संवेदना पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी 

विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन की हिंदी अध्ययनशाला, पत्रकारिता एवं जनसंचार अध्ययनशाला और गांधी अध्ययन केंद्र द्वारा एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अमेरिका की वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डॉ. मीरा सिंह, फिलाडेल्फिया के मुख्य आतिथ्य में आयोजित यह संगोष्ठी प्रवासी साहित्य एवं संस्कृति : धरोहर और संवेदना पर केंद्रित थी। अध्यक्षता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने की। विशिष्ट अतिथि शिक्षाविद् श्री गौरीशंकर दुबे, इंदौर एवं वरिष्ठ लघुकथाकार श्री संतोष सुपेकर थे।

कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य प्रवाह, अमेरिका द्वारा प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा को उनके द्वारा साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में किए गए विशिष्ट योगदान के लिए साहित्य गौरव सम्मान से अलंकृत किया गया। सम्मानस्वरूप संस्थापक डॉ मीरा सिंह द्वारा उन्हें शॉल, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतीक चिन्ह द्वारा अर्पित किए गए।

कार्यक्रम में प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा, डीएसडब्ल्यू डॉ एस के मिश्रा एवं एसओईटी के निदेशक डॉ डी डी बेदिया ने शॉल, श्रीफल एवं साहित्य अर्पित कर यूएसए से पधारीं डॉ.मीरा सिंह को विश्व हिंदी सेवा सारस्वत सम्मान से सम्मानित किया। कार्यक्रम में अतिथियों द्वारा डॉ. मीरा सिंह के हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रह उद्गार का विमोचन किया गया।

संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. मीरा सिंह, यूएसए ने कहा कि प्रवासी व्यक्ति की पीड़ा उसी प्रकार की होती है जैसे लड़की का विवाह के बाद ससुराल में जाकर नए परिवेश में ढलना। वर्तमान दौर में मानवता संकट में है, उसे बचाने की चेष्टा प्रवासी साहित्यकार करता है। भारत के बाहर का परिवेश प्रवासी भारतीयों को अपने अनुरूप ढालता है, लेकिन हमारी संस्कृति हमें सजग बनाए रखती है। भारतीय संस्कृति सदैव मानवता की ओर प्रवृत्त करती है। भारतीय संस्कृति भीड़ में भी हमारी अलग पहचान कराती है। भारत की सांस्कृतिक धरोहर और संवेदनाओं का प्रारूप बहुत व्यापक है। प्रवासी भारतीय अपनी सभी प्रकार की धरोहरों के प्रति सजग हैं। समय के प्रवाह में विचार मंथन न होने के कारण मानवता समाप्त होती जा रही है। संस्कारों को विकसित करने का दायित्व स्त्रियों का है। नारियों को दायित्व बोध का बोध कराने व प्रेरणा जगाते हेतु उन्होंने अपनी कविता की अभिव्यक्ति इस प्रकार की-

आज धरा हो रही है 

प्रेम से रिक्त तो 

इस रिक्तता में 

पीयूष कौन डालेगा ?

प्रभारी कुलपति प्रो शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि प्रवासी भारतीयों ने अपने लेखन एवं कार्यों के माध्यम से सिद्ध किया है कि भारत की जड़ें पर्याप्त गहरी हैं। विश्व संस्कृति का निर्माण करने में भारत की संस्कृति का योगदान अद्वितीय है। भारत में रचे जा रहे साहित्य की तुलना में प्रवासी साहित्य में परिवेश के अंतराल से उपजी चिंताओं, सूनेपन, एकाकीपन और अलगाव के साथ जीवन संघर्ष, मूल्य और संस्कृतिगत अंतर दिखाई देता है। उनके साहित्य में जड़ों से दूर होने, भावनात्मक और सांस्कृतिक स्तर पर बहुत कुछ खोने का जीवंत चित्रण मिलता है। महात्मा गांधी ने अनेक दशकों पहले प्रवासी भारतीयों का नेतृत्व करते हुए अहिंसा, शांति और परस्पर प्रेम का संदेश दिया, जो आज भी प्रासंगिक है। भारतवंशी जहां भी गए उन्होंने उस भूमि को समृद्ध बनाने में अविस्मरणीय योगदान दिया।

साहित्यकार श्री गौरीशंकर दुबे, इंदौर ने कहा कि अमेरिका जैसे सम्पन्न देशों में शिक्षा, पर्यावरण और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं। दूसरी ओर वहां के जीवन में बंदूक की संस्कृति, अतिशय भोग विलासिता और विशृंखलित व्यवस्था संकट भी खड़े कर रही है। भारत में जिस प्रकार की शांति है, वह दुनिया के किसी भी देश में नहीं मिलती।

साहित्यकार श्री संतोष सुपेकर ने मैं उनसा नहीं और आंकड़े शीर्षक कविताएं सुनाईं। डीएसडब्ल्यू डॉ एस के मिश्रा एवं डॉक्टर डी डी बेदिया ने भी संबोधित किया।

6 जनवरी को मध्याह्न में आयोजन में प्रो गीता नायक, डीएसडब्ल्यू डॉ एस के मिश्रा, डॉ डी डी बेदिया, डॉ भोलेश्वर दुबे, इंदौर, डॉ सुशील शर्मा, डॉ अजय शर्मा, श्रीमती हीना तिवारी आदि सहित अनेक शोधार्थी एवं सुधीजन उपस्थित रहे। वाग्देवी भवन स्थित हिंदी अध्ययनशाला में सम्पन्न इस महत्वपूर्ण संगोष्ठी के प्रारंभ में श्री मोहन तोमर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की।


आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला

 

एक वाक्य के आधार पर व्याकरणीय सम्बोध/संज्ञान करें।

   वाक्य है :–

  ★ हमारे जीवन मे एक 'तिनके' की उपयोगिता है और महत्ता भी।

◆ यह वाक्य 'अनिश्चित वर्त्तमान/वर्तमानकाल/वर्त्तमान/वर्तमान-काल/ वर्तमान का काल/समय ('वर्त्तमान/वर्तमान काल' अशुद्ध है।) का है, जिसे हमारे अध्यापकवृन्द पढ़ाते हैं :– 'प्रेजेण्ट इण्डेफिनिट टेंस' और विद्यार्थी पढ़ते भी हैं, जबकि ये उच्चारण अशुद्ध हैं; विशेषण के रूप मे शुद्ध उच्चारण 'प्रेज़ण्ट' और क्रिया के रूप मे 'प्रि-ज़ेण्ट' है। अब हम इसके साथ (यहाँ 'इससे' का प्रयोग अशुद्ध है।) जुड़े दो अन्य शब्दों के उच्चारण पर विचार करते हैं। अगले शब्दों के क्रमश: उच्चारण हैं :–     

   'इण्डेफ़्इनिट' और  'टेन्स'। इस प्रकार शुद्ध उच्चारण होगा :– 'प्रेज़ण्ट इण्डेफ़्इनिट टेन्स'। यह  सकारात्मक वाक्य है।

    अब इन दो वाक्यगठन/वाक्य-गठन/वाक्य के गठन (यहाँ 'वाक्य गठन' अशुद्ध है। को देखें और समझें :–

प्रथम वाक्य– 'हमारे जीवन मे एक 'तिनके' की उपयोगिता है और महत्ता भी है।' 

द्वितीय वाक्य– 'हमारे जीवन मे एक 'तिनके' की भी उपयोगिता है और महत्ता भी है।'

     इस प्रथम वाक्य मे 'महत्ता भी है' का प्रयोग अशुद्ध है; क्योंकि वाक्य के प्रथम पद की क्रिया 'है' का उपयोग द्वितीय क्रिया मे निहित है, इसीलिए अन्त मे केवल 'भी' के प्रयोग की संगति बैठती है। यहाँ 'भी' का प्रयोग इसलिए है कि उपर्युक्त ('उपरोक्त' शब्द अशुद्ध है; क्योंकि इस अनुपयुक्त वाक्य का विच्छेदन किया ही नहीं जा सकता।) वाक्य मे यहाँ विचारणीय दो संज्ञा-शब्द हैं :– १– उपयोगिता २– महत्ता।   

   लगभग सभी पुस्तकों मे अंक-अंकित/अंक के अंकित करने के बाद भी यदि दो और दो से अधिक शब्द-प्रयोग किये जाते हैं तब वहाँ 'अल्प विरामचिह्न' (,) का व्यवहार दिखता है; जैसे :– १– रात्रि, २– प्रात:, ३– संध्या। यह अशुद्ध प्रयोग है। यहाँ अल्प विरामचिह्न का सेवन (प्रयोग/व्यवहार) नहीं होगा ; क्योंकि इनमे दिख रहे एक अंक के बाद दूसरे अंक पर पहुँचते ही वाचक (वाचन/पढ़ने करनेवाला) स्वत: ठहरता है। यदि यहाँ पर 'रात्रि, प्रात: और सन्ध्या' का प्रयोग शुद्ध है। यहाँ 'प्रात:' के आगे 'और' का प्रयोग इसलिए होगा कि 'प्रात:-सन्ध्या' का व्यवहार एक साथ होता है; 'प्रात: और रात्रि' और 'प्रात: और दिन' का नहीं, इसलिए यहाँ 'प्रात: तथा रात्रि' और 'प्रात: तथा दिन' का उच्चारण और लेखन किया जायेगा। हाँ, चूँकि 'रात्रि-दिवस' का प्रयोग एक साथ होता है, इसलिए यहाँ 'रात्रि और 'दिवस', 'निशि और दिवा' :– रातदिन/रात-दिन/रात और दिन व्यवहृत होगा। यहाँ यह 'और'-युक्त शब्दयुग्म 'द्वन्द्व ('द्वन्द' अशुद्ध है।) समास' का उदाहरण है। उर्दू मे उदाहरण को 'नज़ीर' कहते हैं, जो कि 'अरबी-भाषा' का स्त्रीलिंग-शब्द है। 

   ऊपर दिख रहे 'उपयोगिता' और महत्ता' के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं; अर्थात् 'यह और यह भी'। कुछ लोग 'महत्ता' को 'महत्तता', महतत्ता तथा 'महत्त्वत्ता' लिखते और बोलते हैं, जो कि अशुद्ध हैं और हास्यास्पद (हँसी उत्पन्न करनेवाला)भी। 

  अब इसे अँगरेज़ी ('अंग्रेजी' अशुद्ध है।) मे समझें।

   'उपयोगिता' को अँगरेज़ी मे 'यूटिल्इटि' ('यूटिलिटी' अशुद्ध है।) कहते हैं और 'महत्ता' को 'इम्पॉ:ट्अन्स' (इम्पार्टेन्स' अशुद्ध है।)। इन्हें उर्दू (अरबी, फ़ारसी, तुर्की, पश्तो आदिक।) मे क्रमश: 'इस्तेमाल' और 'अहम्मीयत' ('अहमियत' अशुद्ध है।) कहा जाता है। ये दोनो ही शब्द 'अरबी-भाषा' के हैं।

   ऊपर के 'द्वितीय वाक्य' मे दो बार 'भी' का प्रयोग 'द्विरुक्ति-दोष' के अन्तर्गत आता है, इसीलिए वाक्य के दूसरे पदान्त (पद के अन्त– षष्ठी तत्पुरुष समास)  पद+अन्त– दीर्घ स्वरसंधि) मे 'भी' लगाकर शुद्ध वाक्य का सर्जन ('सृजन' निरर्थक शब्द है; क्योंकि इसकी उत्पत्ति का कोई आधार नहीं है।) करना होगा।

शुद्ध वाक्य– हमारे जीवन मे एक 'तिनके' की उपयोगिता है और महत्ता भी।

◆ आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला नामक प्रकाशनाधीन पुस्तक से कृतज्ञता-सहित गृहीत  किया गया


बोलो करोगे क्या तुम

 बोलो करोगे क्या तुम, ये मेरी जान लेकर 

यानी फ़कीर का इक उजड़ा मकान लेकर 


जब उड़ गए  परिंदे , सारे ही  इस नगर से

ऐसे में क्या  करोगे  , ख़ाली जहान  लेकर 


बहलाए दिल तुम्हारा , ले लो वही खिलौना 

बोलो करोगे क्या तुम , दिल बेज़बान लेकर 


जब हुस्न अप्सरा का  , होता नहीं मुकम्मल 

इतरा रहे हो तुम क्यों ,  झूठा  गुमान लेकर 


तुम ढापतेही रहना,इस जिस्म को कफ़न में 

उड़  जाए रूह जब भी  , लंबी उड़ान लेकर 

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कपिल कुमार 

बेल्जियम

विपरीत परिस्थितियों का भी धन्यवाद

 विपरीत परिस्थितियों का भी धन्यवाद


सुबह  नल में पानी नहीं आ रहा था। शिखा ने मोटर  चलाई परंतु फिर भी पानी नहीं आया। नीचे जाकर देखा तो मेन पाइप लाइन टूट गई थी और पानी बाहर बह रहा था। अब क्या होना था होली के दिन पानी की घर में त्राहि-त्राहि मच गई। घर के सब सदस्य जाग चुके थे।
 मम्मी ने सुबह का नाश्ता कैसे न कैसे बनाया।  फिर पानी को टंकी में चढ़ाने के लिए जुगत बैठाने लगे पर होली के दिन कोई भी प्लंबर आने को राजी नहीं था।  भैया ने पड़ोसी की टंकी से पानी लेने का प्रयास किया परंतु वह उपाय भी नहीं बैठा  सीढ़ियों पर भैया भाभी भतीजा और मम्मी पापा बैठकर पानी को पहुंचाने के बारे में चर्चा करने लगे। जो लोग खाने की टेबल पर विचारो में मत भेद के कारण एक साथ नहीं बैठ पाते थे वह सभी एक विपरीत परिस्थिति में एक साथ हो गए।सभी   समस्या के समाधान पाने में लगे हुए थे। शिखा का मन ऐसी विपरित परिस्थितियों को भी  धन्यवाद कर रहा था।जिसमे नल के पाइप का टूटने ने पूरे घर को एक कर दिया था। पानी तो सब अलग-अलग कमरों में बने बाथरूम तक नहीं पहुंच पाया परंतु इस होली में पूरे घर को एक साथ एक समाधान तक पहुंचाने के लिए एक राह पर चला दिया था।



गरिमा खंडेलवाल 
उदयपुर राजस्थान

पतंग एक प्यार है

 पतंग एक प्यार है

     * हरिहर झा*

पतंग एक प्यार है

   

रूप बदले, रंग बदले

आभरण सुन्दर मढ़े

झोंके हवा के, पथ नए

नादान जैसे गढ़ लिए

आसमाँ में झाँकती दृष्टि बारंबार है

विछोह भी है, मिलन भी

सकून इसी में साधना

प्रेम के कोड़े पवन में

दर्द-ए-दिल से बाँधना

खुले नभ में मेल है हृदय में अभिसार है

डाल डोरे वासना के

विषधर माँझा आए जब

ईर्ष्या, जलन रॉकेट बन

बयार से टकराए जब

नियंत्रण, शांत नैनो के नजर की मार है

जाऊँ कैसे कब जाऊँ

राहें सुरक्षित है नहीं

भेंट हो जाए कहीं पर

साजन प्रतीक्षित है नहीं

जल गया दौर्बल्य, बस भय क्षितिज के पार है

आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला



◆ वे शब्द, जिनका विश्व-समाज अशुद्ध और अनुपयुक्त व्यवहार करता आ रहा है।

■ शब्दप्रयोग– आभार; शुक्रिय:/शुक्रिया, धन्यवाद, साधुवाद तथा थैंक यू।

    आइए! 'आभार' शब्द को समझते हैं। 'आभारी' का  समानार्थी शब्द 'कृतज्ञता' है। पढ़े-लिखे लोग बिना सोचे-समझे 'आभार' का प्रयोग करते आ रहे हैं; परन्तु वही लोग 'कृतज्ञता' का व्यवहार करने से कतराते हैं; क्यों?

     'आभार'-शब्द का जिस भाव और अर्थ मे प्रयोग किया जाता रहा है, वह अशुद्ध है और अनुचित भी। यहाँ तक कि विश्व के विचक्षणवृन्द (विद्वज्जन) केवल 'आभार' का व्यवहार करते देखे जाते हैं; परन्तु 'कृतज्ञता' का नहीं। आश्चर्य होता है, ऐसे प्रयोग के प्रति विषमता क्यों? 'आभार' और 'कृतज्ञता' का अर्थ है, 'किसी के उपकार के लिए व्यक्त की जानेवाली कृतज्ञता/ व्यक्त किया जानेवाला आभार'। ऐसी स्थिति मे, आपको कहना-लिखना होगा :–

१– आभार स्वीकार करें। 

२– आभारी हूँ। 

३– आपके प्रति आभार-ज्ञापन/आभार व्यक्त/ प्रकट करता हूँ।

   यहाँ 'मै' का प्रयोग इसलिए नहीं होगा कि 'मै' सर्वनाम-शब्द की स्थापना 'हूँ' क्रिया करती है; क्योंकि 'हूँ' का कर्त्ता केवल 'मै' है।

     'आभार' की तरह ही अरबी-भाषा का शब्द 'शुक्रिय:'/'शुक्रिया' है, जिसका अर्थ 'आभार' और 'धन्यवाद' है। जिसे देखिए, वही बिना सोचे-समझे 'शुक्रिया' का व्यवहार करता है, जबकि विशुद्ध शब्द 'शुक्रिय:' है। यदि कोई केवल 'शुक्रिय:'/'शुक्रिया' का प्रयोग करता है तो वह भी पूरी तरह से ग़लत माना जायेगा। सही प्रयोग होगा :– आपका शुक्रिय: अदा (चुकता/भुगतान) करता हूँ।

   'धन्यवाद' और 'साधुवाद' एक वाक्य हैं, जो कि 'धन्य हैं विचार अथवा कार्य' के अर्थ मे प्रयुक्त होता है। 'उत्तम हैं विचार अथवा कार्य' के लिए एक शब्द 'साधुवाद'  भी है, जिसमे से 'साधुता' की ध्वनि निर्गत (निकलती) होती है।

   आंग्ल शब्द 'थैंक्स' की भी स्थिति 'आभार' और 'शुक्रिय:' से पृथक् ('पृथक' अशुद्ध है।)/भिन्न नहीं है। जिसे देखिए, वही बिना सोचे-समझे 'थैंक्स' कह  देता है, जो कि अशुद्ध और अनुपयुक्त प्रयोग है। इसके स्थान पर कहना पड़ेगा :– थैंक यू। ('थैंक्यू' अशुद्ध और हास्यास्पद शब्दप्रयोग है।) यहाँ अन्तर्विरोध लक्षित होता है। पढ़ेलिखे लोग 'थैंक्स' कहते हैं और दूसरी ओर 'थैंक गॉड' भी। यद्यपि व्याकरण की दृष्टि से ये व्यवहार अशुद्ध हैं और अनुपयुक्त भी तथापि प्रचलन मे यह प्रयोग 'दौड़' रहा है।

    हमे भूलना नहीं चाहिए कि 'भाव' वा (अथवा) 'रस' स्वयं मे बहुवचन होता है; अलग से बहुवचन बनाने की आवश्यकता नहीं है। यदि ऐसा नहीं रहता तो 'आभारों', 'धन्यवादों', 'साधुवादों' तथा 'शुक्रियाओं' का व्यवहार किया जा रहा होता।

    अब सुशिक्षितजन मे भी 'संक्षिप्त मार्ग' का अनुकरण और अनुसरण करने की होड़ लग चुकी है, जिसका परिणाम और प्रभाव नकारात्मक दिख रहा है। इतना ही नहीं, व्याकरण के अंग-उपांग भी प्रभावित होते दिख रहे हैं और वही 'मान्य' भी होता जा रहा है, जो कि 'शोचनीय' ('सोचनीय' अशुद्ध है।) स्थिति है।

◆ आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला' नामक प्रकाशनाधीन पुस्तक से सकृतज्ञता गृहीत। (लिया गया।)

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सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर

 एक संत अपने शिष्यों से वार्तालाप करते हुए बताया कि ईश्वर द्वारा बनायी गयी इस सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है, अत: प्रत्येक जीव के लिए हमें अपने मन में आदर एवं प्रेम का भाव रखना चाहिए।

            एक शिष्य ने इस बात को मन में बैठा लिया, कुछ दिन बाद वह कहीं जा रहा था, उसने देखा कि सामने से एक हाथी आ रहा है, हाथी पर बैठा महावत चिल्ला रहा था - सामने से हट जाओ, हाथी पागल है, वह मेरे काबू में भी नहीं है, शिष्य ने यह बात सुनी; पर उसने सोचा कि गुरुजी ने कहा था कि सृष्टि के कण-कण में परमेश्वर का वास है, अत: इस हाथी में भी परमेश्वर होगा, फिर वह मुझे हानि कैसे पहुँचा सकता है ? 

              यह सोचकर उसने महावत की चेतावनी पर कोई ध्यान नहीं दिया, जब वह हाथी के निकट आया, तो परमेश्वर का रूप मानकर उसने हाथी को साष्टांग प्रणाम किया, इससे हाथी भड़क गया, उसने शिष्य को सूंड में लपेटा और दूर फेंक दिया, शिष्य को बहुत चोट आयी।

             वह कराहता हुआ संत के पास आया और बोला - आपने जो बताया था, वह सच नहीं है, यदि मुझमें भी वही ईश्वर है, जो हाथी में है, तो उसने मुझे फेंक क्यों दिया ? संत ने हँस कर पूछा कि क्या हाथी अकेला था ? 

            शिष्य ने कहा कि नहीं, उस पर महावत बैठा चिल्ला रहा था कि हाथी पागल है, उसके पास मत जाओ, इस पर संत ने कहा कि पगले, हाथी परमेश्वर का रूप था, तो उस पर बैठा महावत भी तो उसी का रूप था, तुमने महावत रूपी परमेश्वर की बात नहीं मानी, इसलिए तुम्हें हानि उठानी पड़ी।

            कथा का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक धारणा को, निहित विचार को विवेक बुद्धि से ग्रहण करना चाहिए, भक्ति या आदर भाव से ज्यों का त्यों पकड़ना, सरलता नहीं, मूढ़ता है। 

           शब्दों का अपना महत्व है, भावों का अपना महत्व, किसको, कब और कितना महत्व देना है वह अपने विवेक से तय करे, ज्ञान विवेक से ही चैतन्य होता है -विवेकहीन ज्ञान जड़ बोध मात्र है....... 

दीपक जैन पाटनी इचलकरंजी 


पर्यटन स्थल और तीर्थ क्षेत्र में क्या होता है अंतर,

 पर्यटन स्थल और तीर्थ क्षेत्र में क्या होता है अंतर, जानिए सम्मेद शिखर को लेकर क्यों मचा है बवाल, जानिए 

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जैन धर्म के तीर्थराज सम्मेद शिखरजी को झारखंड सरकार की ओर से पर्यटन स्थल घोषित किए जाने पर बवाल मचा हुआ है. देशभर में झारखंड सरकार के इस फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं. बीते मंगलवार (3 जनवरी) को सम्मेद शिखरजी की रक्षा के लिए अन्न-जल त्याग कर अनशन पर बैठे दिगंबर जैन मुनि श्री सुज्ञेय सागर महाराज का निधन होने के बाद ये मामला और गरमा गया है.


जैन समाज की मांग है कि 'श्री सम्मेद शिखर को धार्मिक स्थल ही रहने दिया जाए. इसके पर्यटन स्थल बनने से इस धार्मिक स्थान की पवित्रता भंग हो जाएगी. यहां लोग मांस-शराब का सेवन करेंगे. जिसके चलते जैन धर्म के ऐतिहासिक तीर्थ स्थलों पर खतरा बढ़ेगा.' जैन समुदाय का ये भी कहना है कि वो अपने तीर्थ स्थलों का व्यापारीकरण नहीं होने देंगे और ऐसे फैसले बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं हैं.


सम्मेद शिखरजी को लेकर जैन धर्म के लोगों के विरोध-प्रदर्शन के बीच इसे लेकर सियासी बवाल भी छिड़ गया है. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर पर्यटन स्थल और तीर्थ स्थल में क्या अंतर होता है? आइए जानते हैं कि सम्मेद शिखर को लेकर क्यों मचा है बवाल?


क्या होते है पर्यटन स्थल?


आमतौर पर पर्यटन स्थलों को टूरिस्ट प्लेस के तौर पर जाना जाता है. पर्यटन स्थल के रूप में लोगों के पास हिल स्टेशन, बीच से लेकर ऐतिहासिक इमारतों तक की एक लंबी-चौड़ी लिस्ट होती है. दरअसल, इन जगहों पर लोग अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के तनाव को कम करने और अपने परिवार के साथ मौज-मस्ती के कुछ पल बिताने या अकेले ही ये तमाम चीजें करने के लिए जाते हैं. पर्यटन स्थलों पर लोगों पर किसी तरह की कोई खास पाबंदी नहीं होती है. आसान शब्दों में कहें, तो खान-पान से लेकर कपड़ों तक को लेकर कोई नियम नहीं होते हैं.


कैसे बनाए जाते हैं पर्यटन स्थल?


पर्यटन स्थलों का निर्माण राज्य सरकारें अपने प्रदेश के नागरिकों को रोजगार और व्यवसायों को बढ़ावा देने के लिए करती हैं. किसी इलाके को पर्यटन स्थल घोषित करने के बाद सरकारें विकास योजनाओं के सहारे वहां का सौंदर्यीकरण समेत उस स्थान को पर्यटकों की पहुंच में लाने के लिए सड़क, रेल, हवाई मार्ग जैसी चीजों को विकसित करती है. इससे राज्य सरकार की आमदनी भी बढ़ती है.


क्या होते हैं तीर्थ स्थल?


अलग-अलग धर्मों के लिए कुछ जगहें अपने पौराणिक महत्व को लेकर समुदायों के बीच आस्था के केंद्रों के रूप में बहुत पवित्र स्थान रखती हैं. इन्हें ही तीर्थ स्थल कहा जाता है. इन तीर्थ स्थलों पर खान-पान, आचरण और पहनावे को लेकर कुछ नियम-कायदे होते हैं. पर्यटन स्थलों से अलग तीर्थ स्थलों में आध्यात्मिक माहौल में मानसिक शांति पाने के लिए आते हैं.


तीर्थ स्थल के लिए क्या करती हैं सरकारें?


अलग-अलग धर्मों के तीर्थस्थलों के लिए राज्य सरकारें संरक्षण से लेकर उनकी धार्मिक शुचिता को बनाए रखने के प्रयास करती है. यूपी सरकार ने बीते कुछ वर्षों में अयोध्या, काशी और मथुरा को तीर्थ क्षेत्र घोषित किया है. इन इलाकों शराब और मांस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर पवित्रता और आस्था को संरक्षित किया है. दुनियाभर में ऐसे तीर्थ स्थल हैं, जहां तमाम तरह के प्रतिबंध लागू होते हैं. उदाहरण के तौर पर इस्लाम धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल मक्का में गैर-मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित है.


जैन समाज के लिए क्यों मायने रखता है सम्मेद शिखरजी?


झारखंड के गिरिडीह जिले में आने वाली राज्य के सबसे ऊंचे पहाड़ पारसनाथ पहाड़ी को सम्मेद शिखरजी के नाम से जाना जाता है. सम्मेद शिखरजी पर जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने देह त्याग कर निर्वाण यानी मोक्ष प्राप्त किया था. इस पहाड़ी का नाम जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पारसनाथ के नाम पर है. जैन धर्म के लिए सम्मेद शिखर सर्वोच्च तीर्थ स्थल है. पारसनाथ पहाड़ी की तराई में मधुबन नाम का कस्बा बसा हुआ है. 


झारखंड सरकार का फैसला और मचा बवाल 


झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने 23 जुलाई 2022 को राज्य के पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नई झारखंड पर्यटन नीति जारी की. इसके तहत पारसनाथ पहाड़ी (सम्मेद शिखर), मधुबन और इटखोरी को पर्यटन स्थल घोषित कर दिया गया. झारखंड सरकार पारसनाथ पहाड़ी के एक हिस्से को वाइड लाइफ सेंचुरी और ईको सेंसिटिव जोन बनाने को लेकर कोशिशें कर रही थीं. इसे लेकर ही बवाल मचा हुआ है

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साभार: ABP News

संकलन: गणपत भंसाली (सूरत-जसोल)

सब मिलजुल कर , देश को बढ़ाइए

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कर रहे हैं विदाई , नई आस है जगाई।

यादें तेरी बहुत हैं , किस को भुलाइये।।


कुछ सुख हमें मिले , कुछ फूल भी हैं खिले ,

घाव भी तो मिले हमें , किसको बताइये।।


कुछ नया पाया भी है, अपनों को खोया भी है।

अपने हाथों में जो भी , उसी को बचाइये।।


आँधी व तूफ़ान आए , घर बार हैं लुटाये।

हार नहीं मानी कभी ,कदम बढ़ाइए।।


कुछ ने है हमें लूटा , सहारा ही सब छूटा।

नकली हैं कई लोग ,किसको दिखाइए।।


आज भी हैं भूखे कई , खुले में हैं सोते कई।

रोटी एक सपना है , राह तो सुझाइये ।।


बच्चे अब बिकते हैं ,माँगते भी दिखते हैं।

देश के ये नौनिहाल , इनको संवारिये ।।


देश मेरा आगे बढ़ा , चोटी पर वो है चढ़ा।

साहसी हैं वीर मेरे , हौंसला बढ़ाइए।।


कोरोना की जंग जीती , भूल गए सब बीती।

देश का भी मान बढ़ा ,खुशियाँ मनाइये।।


बेटियों को  काटा गया , ईज्जत को लूटा गया।

शरम से सर झुके , भूल मत जाइये।।


धरती हुई है लाल ,कितना हुवा मलाल।

आदमी पागल हुवा ,कोई समझाइये।।


चोरी व  डकैती होती , जनता है सब रोती।

पैसे में बिके  हैं सारे ,अलख जगाइए।।


रिश्वत का है बाजार , रिशतों में है दरार।

न्याय कहाँ मिलता है ,आँसू ही बहाइये।।


बातें सब हैं पुरानी , नई लिखनी कहानी।

सब मिलजुल कर , देश को बढ़ाइए।।


श्याम मठपाल ,उदयपुर 

उम्मीदों का नया साल है

 बुधवार

दिनांक -०४.०१.२०२३

कविता

प्रदत्त पंक्ति -उम्मीदों का नया साल है।



आशाओं से ही तो जीवन है।

 यही तो ,सबसे  प्यारा धन है।

आशाओं पर  टिका जगत  है।

 चाहे   विषम  रहा   विगत  है।

सुंदर   सबसे  यही  काल   है।

उम्मीदों   का   नया  साल  है।।


मन- उमंगे  हैं  ,मीत   हमारी।

मन से  मन  की प्रीत  हमारी।

जो भी खोया,अब फिर पायेंगे।

मेघ  खुशी के घिर-घिर आएंगे।

अनुपम मन का आज हाल  है।

उम्मीदों   का  नया  साल  है।।


सबका सुख अपना सुख होगा।

सुंदर- वासित वायु रुख होगा।

गंगा - यमुना  ,नेह  रीत   की।

अंतर्मन  के  सहज   गीत  की।

जिससे  ऊंचा  सदा  भाल  है।

उम्मीदों  का  नया  साल  है।।


प्रमाद भूत में रहा है जो भी।

दूर  होगा अब  ही ,वो  भी।

श्रम -साधना ही हाथ  हमारे।

जब श्वेद  सजेगा गात हमारे।

मेहनत  ही  तो  सदा ढाल है।

उम्मीदों  का  नयाक्ष साल है।।


भूले- भटके साथ में होंगे।

हाथ  हमारे  हाथ  में  होंगे।

कटुता का घट फूट  पड़ेगा।

अमि का सबको घूंट मिलेगा।

टूटेंगे  मनके सभी जाल हैं।

उम्मीदों का नया साल है।।

             

-निर्मल औदीच्य

भवानीमंडी, राजस्थान

अकेला ---- -----

 

यह सोच कर अक्सर

मैं परेशान बहुत रहता हूँ

अकेला हूँ मैं इस जमाने में

जमाने में हूँ बिल्कुल अकेला   ....... 1

तभी मेरे सामने दिखा 

गुलाब का सुन्दर फूल एक

इठला रहा था वह अपनी

खूबसूरती पर आनन्द से

बिखेर रहा था खुशियाँ

वह अपने चारों ओर

था तो आखिर 

वह भी अकेला! ....... 2

अकेला फूल जब इठला सकता है

अपनी खूबसूरती पर

बिखेर सकता है खुशियाँ

आपने चारों ओर अकेले ही

फिर मैं क्यों सोचूँ 

हूँ मैं दुनिया में अकेला

मेरी अच्छाईयां तो साथ हैं ही मेरे 

बिखेर सकता हूँ मैं भी

अपनी अच्छाईयों को 

जमाने में अकेले .......... 3

कोई इस जमाने में

नहीं होता अकेला

साथ होता  हैं उसके हमेशा

उसकी अच्छाईयां, कर्म, भाग्य

और हमेशा साथ होता 

ईश्वर उसका......... 4

चल पड़ो अपनी मंजिल पर अकेले

वह मंजिल भी तो है 

आखिर तुम्हारा ही  अकेला

राह में कोई मिले न मिले

क्या फर्क पड़ता है

अपनी अच्छाईयां  कर्म व 

अपने ईश्वर

के साथ ही  

बढ़ो  अपनी मंजिल की ओर 5

अकेले ही ......... ---- ओमप्रकाश पाण्डेय)

वीर तुम बढ़े चलो

  

'''पंचचामर छंद""

मापनी :-  IS IS IS IS IS IS IS IS =16


अखंड आर्यवर्त में प्रचंड सूर्य सा बनो ।

महान देश के लिए सुवीर रक्त में सनो ।।

ध्वजा तिरंग हाथ ले  मृदा कणों को साथ ले।

रहे अकाट्य वीरता विराट पुंज माथ ले।।१।।


महाभुजंग के समान फूॅंक दो अमित्र को।

चलायमान चित्त में सजा सुधीर चित्र को।।

नरेंद्र रूप में जनो विशुद्ध हिन्द में सनो ।

अधीन दुष्ट हो सदा कराल भाल से हनो।।२।।।


 समर भले अभेद्य हो डटे रहो पहाड़ सा

प्रगर्जना करो प्रचंड,  सिंघ के दहाड़ सा।

रुको नहीं झुको नहीं महान आर्य पुत्र हो ।

स्वदेश के लिए मरो स्वदेशधर्म सूत्र हो ।।३।।


निमग्न राष्ट्र प्रेम में जवान जान वार दो ।

कुलीन हो महान हो अजाद का विचार दो ।।

स्वरूप मातृभूमि की हजार वंदना करो ।

तनाभिमान छोड़ के विरक्त भावना भरो ।।४।।


सुनेत्र नीर बुंद से अरूण रश्मि दीप्त हो ।

प्रमाद छोड़ रक्त पी शरीर रक्त  सिक्त हो।।

असाध्य साधना करो  धरा उपासना करो।

सनातनी सुवीर हो अनंत सर्जना करो ।। 5।।


जगबंधु राम यादव

सुरंगपानी, पत्थलगांव-       

-आपका समय।

 मैं समय हूँ।


मैं समय हूँ। मैं अखंड हूँ, एक हूँ। अनादि, अनंत हूँ। मैं संसार में होने वाली समस्त छोटी से छोटी व बड़ी से बड़ी घटनाओं का सदैव साक्षी हूँ। पुराने से पुराने कलेंडर के प्रथम दिवस से पूर्व भी मेरी उपस्थिति ऐसी ही थी जैसी की आज है।


ब्रह्मांड में घटित ऐसी घटनाएँ जो एक निश्चित अवधि के बाद पुनः अपना दोहराव करती हैं, उन अवधियों को पृथ्वी पर रहने वाली मानव संस्कृतियों ने मेरे विभाजन का आधार बनाया है। साल, महीने, दिन, घंटे, मिनट, सेकेंड सब मेरी ही इकाइयाँ हैं। सौ साल की एक सदी और सदियों के समूह से समय की बड़ी से बड़ी इकाई का निर्माण किया जा सकता है । किंतु उन बड़ी इकाइयों, युगों में भी मुझे संपूर्ण नहीं समेटा जा सकता।

 

सभी ने अपनी सुविधा के लिए मेरा अलग-अलग तरह से विभाजन किया है। लोक व्यवहार से मुझे कभी भी अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ मेरा आकलन विरहणियों ने दीवारों पर लकीरें चिह्नित करके भी किया है , वहीं वैज्ञानिक नैनो सेकंड तक की गणना नवीनतम यंत्रों से करते हैं। संसार के समस्त कार्य मेरे ही अधीन हैं। मेरी जो इकाई व्यतीत हो जाती है वह पुनः लौट कर कभी नहीं आती अतः मैं प्रतिपल नया ही आता हूँ। फिर भी साल जैसी इकाई के प्रारंभ में मेरा स्वागत करना मुझे भाता है। जो भी मेरा सम्मान व सदुपयोग करता है वह सदैव शीर्ष पर रहता है। जो मेरा निरादर कर अवहेलना करता है वह व्यक्ति जीवन में सुखी नहीं रह पाता। 

आज ईसवी संवत के 2023वें वर्ष का पहला दिन है। 

आने वाला समय आपके लिए खुशियों भरा हो। 

  -आपका समय।


-शिशुपाल


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