विश्व हिन्दी भाषा दिवस पर पुणे के शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से आन्तर्जालिक अंतर राष्ट्रीय संगोष्ठी का मंगलवार को आयोजन किया गया।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिन्दी के समक्ष चुनौतियां विषय पर आयोजित इस वर्चुअल संगोष्ठी में देश-विदेश से मनस्वी वक्ताओं ने सहभागिता की।
अमेरिका से डॉ. नीलम जैन की अध्यक्षता रही
मुख्य अतिथि के रूप में शिक्षा मंत्रालय के संदीप जैन उपसचिव उच्च शिक्षा मंत्रालय व विशिष्ट अतिथि के तौर पर अरुण माहेश्वरी उपस्थित थे।
प्रमुख वक्ताओं में रूस से प्रगति टिपनीस, नीदरलैंड से डॉ. रामा तक्षक, चीन से डॉ. विवेकमणि त्रिपाठी, नेपाल से डॉ. श्वेता दीप्ति, हरियाणा से डॉ. अशोक बत्रा, प्रयाग से पंडित पृथ्वीनाथ पांडेय, पुणे से डॉ. दामोदर खड़से, खंडवा से डॉ. श्रीराम परिहार, भोपाल से डॉ. जवाहरलाल कर्णावट व पुणे से डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव उपस्थित थे। डा श्रीराम परिहार ने हिंदी की राह में चुनौतियों से न घबराकर इसे हर क्षेत्र में उपयोग करना चाहिए उन्होंने कहा मानस भवन में आर्य जन जिसकी उतारें आरती भगवान भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती
देश और विदेश में हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए किए जा रहे प्रयासों पर सभी मनस्वी वक्ताओं में संतोष व्यक्त करते हुए कई महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए।
रूसी परिसंघ की प्रगति टिपनीस ने बताया कि रूस में हिन्दी न्यूज चैनल को कम प्रतिक्रिया मिलने के कारण रूस की सरकार ने बंद कर दिया है, लेकिन अब इस न्यूज चैनल को फिर से शुरू करने वहां के भारतीय लगातार प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. दामोदर खडसे ने कहा कि, हिन्दी शब्द कोष को और वृहद बनाने की आवश्यकता है।, क्योंकि अनेक शब्द ऐसे हैं जो एक ही अर्थ लिए हुए तो होते हैं, लेकिन वह शब्द लिखने की शैली भिन्न होने के कारण वह शब्द, कोष में ढूंढने में परेशानी होती है। जैसे हिंदी या हिन्दी।
यहां एक शब्द न कि जगह बिंदी लगा कर लिखा गया है तो दूसरा शब्द आधा न लगा कर लिखा गया है। इस प्रकार के शब्दों की एकरूपता होनी चाहिए।
नीदरलैंड के डॉ. रामा तक्षक ने भी अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि, अंग्रेजों के ज़माने में कई लोगों को मजदूर बना कर ले जाया गया था। इन लोगों की पीढियां आज भी अपनी भाषा में कुछ ऐसे हिन्दी शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो लुप्तप्राय हो चुके हैं। हिन्दी के प्रति इन लोगों का प्रेम आज भी जीवित है। डा विवेक मणि त्रिपाठी ने चीन में भी हिंदी की स्थिति की विस्तृत जानकारी दी
संगोष्ठी की अध्यक्ष व मार्गदर्शक डा नीलम जैन ने इस समय जानकारी देते हुए बताया कि संगोष्ठी में वक्ताओं के उद्बोधन से प्रभावित होकर शुभचिंतक फाउंडेशन ने प्रवासी साहित्य पर पुरस्कार की घोषणा की है। यह पुरस्कार समारोह पूर्वक प्रदान किया जाएगा अथवा अपरिहार्य परिस्थिति में साहित्यकार को सीधा भी संप्रेषित किया जा सकता है। इसकी विस्तृत रूपरेखा बनाकर तत्काल ही भेज दी जाएगी।
कार्यक्रम की संयोजक डॉ. ममता जैन ने बड़ी ही सुंदर शैली में कार्यक्रम का संचालन किया। आनंद सिंह ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने प्रो. डॉ. जयंत मधुकरराव चतुर, डॉ. शाकिर शेख, सुश्री अलका अग्रवाल का सहयोग मिला।
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