वीर तुम बढ़े चलो

  

'''पंचचामर छंद""

मापनी :-  IS IS IS IS IS IS IS IS =16


अखंड आर्यवर्त में प्रचंड सूर्य सा बनो ।

महान देश के लिए सुवीर रक्त में सनो ।।

ध्वजा तिरंग हाथ ले  मृदा कणों को साथ ले।

रहे अकाट्य वीरता विराट पुंज माथ ले।।१।।


महाभुजंग के समान फूॅंक दो अमित्र को।

चलायमान चित्त में सजा सुधीर चित्र को।।

नरेंद्र रूप में जनो विशुद्ध हिन्द में सनो ।

अधीन दुष्ट हो सदा कराल भाल से हनो।।२।।।


 समर भले अभेद्य हो डटे रहो पहाड़ सा

प्रगर्जना करो प्रचंड,  सिंघ के दहाड़ सा।

रुको नहीं झुको नहीं महान आर्य पुत्र हो ।

स्वदेश के लिए मरो स्वदेशधर्म सूत्र हो ।।३।।


निमग्न राष्ट्र प्रेम में जवान जान वार दो ।

कुलीन हो महान हो अजाद का विचार दो ।।

स्वरूप मातृभूमि की हजार वंदना करो ।

तनाभिमान छोड़ के विरक्त भावना भरो ।।४।।


सुनेत्र नीर बुंद से अरूण रश्मि दीप्त हो ।

प्रमाद छोड़ रक्त पी शरीर रक्त  सिक्त हो।।

असाध्य साधना करो  धरा उपासना करो।

सनातनी सुवीर हो अनंत सर्जना करो ।। 5।।


जगबंधु राम यादव

सुरंगपानी, पत्थलगांव-       

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