आध्यात्मिक विकास कोई पार्ट-टाइम गतिविधि नहीं है।

 आध्यात्मिक विकास कोई पार्ट-टाइम गतिविधि नहीं है।

निर्मल जैन 

     आध्यात्मिक विकास कोई पार्ट-टाइम गतिविधि नहीं है।

  मछलियों को लगता था कि जिस तरह वे तड़पती हैं पानी के लिए, पानी भी उनके लिए वैसे ही तड़पता होगा। लेकिन जैसे ही मछलियों को पकड़ने वाला जाल खींचा जाता है तो पानी मछलियों को छोड़ कर जाल के छिद्रों से बाहर निकल भागता है। हमने भी सांसरिक उपलब्धियों सुविधाओं को लेकर ऐसा ही भ्रम पाल रखा है। अपने स्वस्थ्य और नैतिक मूल्यों को दाव पर लगा कर हम बड़ी बड़ी गाडियाँ, आलीशान भवन, सुख सुविधाओं के कितने ही उपकरण जुटाते हैं। गाड़ी में जरा सा डेंट आ जाए, कोई उपकरण सुविधा देना बंद कर दे या भवन के किसी कंगूरे में दरार दिख जाये तो मन व्याकुल हो उठता है। यह सब हमारी एकांगी आसक्ति है। वास्तविकता तो यह है कि जब हम इस संसार से विदा लेंगे तो वो हमारी लाड़ली कार या विशाल अट्टालिका और वे सारे उपकरण हमारी बिदाई पर लेशमात्र भी उदास नहीं होंगे न उनकी आँखें नाम होंगी। हमसे तो पक्षियों की सोच बेहतर है कि वो उन चीजों को पीछे छोड़ देते हैं जिन्हें साथ ले जाना जरूरी नहीं है। क्यों हम भी ईर्ष्या, वैमनस्य, उदासी, भय और पश्चाताप के  भार से मुक्त और सरल होकर उड़ना शुरू करें तब जानेंगे कि जिन्दगी कितनी खूबसूरत है।  

       आवश्यकता से अधिक संपदा का संग्रह हमें अपनी अंतरात्मा से विलग करता है। आत्मा या भावना से संबंध समाप्त होते ही उस खालीपन को भरने के लिए हम बाहरी स्रोतों जैसे शक्ति या संपदा के संचय पर अधिकाधिक आश्रित होते जाते हैं। जितना हम हम संपन्नता प्राप्त करते जाते हैं उतना ही रस हीन और खोखला जीवन जीने  लगते हैं। सुबह तैयार हो कर आखेट पर निकल पड़ते हैं। लौटते हैं देर रात को और सीधे बिस्तर की ओर भागते हैं। न कोई पारिवारिक जीवन, न सामाजिक जीवन। पद, पैसे और प्रभाव की वासना चौबीसों घंटे नचाती रहती है। यह दासता का आधुनिक संस्करण है। यह पैसे के लिए जीवन देना है, न कि जीवन जीने के लिए पैसा कमाना है। हम एक जिंदगी में दो जिंदगियां नहीं जी सकते। चिंताओं के साथ ऐश्वर्यपूर्ण जीवन या चिंता मुक्त सरल और शांत जीवन शैली? यह सच है कि सभी को अपनी पसंद का जीवन जीने का हक है। लेकिन खास बात यह है कि हम अपना विकल्प खुद चुन रहे हैं या विकल्प हम पर आरोपित किए जा रहे हैं। आज सब इस दौड़ में हाँफ रहे है कि  चाहे जैसे भी हो अमीर बनो, नहीं तो तुम्हारा जीने का अधिकार खतरे में है।

            शक्तिशाली आध्यात्मिक विकास कोई पार्ट-टाइम गतिविधि नहीं है। इसके लिए उच्च स्तर के आंतरिक फोकस और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है। धन इसमें बाधक नहीं, धन तो सापेक्ष है, उसका संग्रह और उस संग्रह की सुरक्षा समस्या है। इस संग्रह और सुरक्षा में हमारा आध्यात्मिक विकास की ओर उतना ध्यान नहीं दे पाते जितना अपेक्षित होता है। परिणाम होता है कि हम आध्यात्मिकता के प्रमुख ध्येय अहं, क्रोध, लालच, वासना और आसक्ति से मुक्त नहीं हो पाते और इन बुराइयों के शिकार हो जाते हैं। एक बुराई से चलकर दूसरे में पहुंचते हैं और इस तरह बुराई के दुष्चक्र में फंसकर अपनी सुख-शांति की बलि चढ़ाते रहते है।  एक और भूल करते हैं कि भौतिक समस्याओं पर ध्यान तो ध्यान केंद्रित किया जाता है, लेकिन उनको पैदा करने वाली मनोवृत्ति और आंतरिक समस्याओं की उपेक्षा करते रहते हैं। जबकि आंतरिक समस्याओं के निवारण होते ही भौतिक समस्याओं का स्वत: ही समाधान हो जाता है।

निर्मल जैन (सेवा निवृत्त जज)

मांसाहार पर वैज्ञानिकों की शोध

 

मांसाहार पर वैज्ञानिकों की शोध

प्राकृतिक आपदाओं पर हुई नई खोजों के नतीजें मानें तो इन दिनों बढ़ती मांसाहार की प्रवृत्ति भूकंप और बाढ़ के लिए जिम्मेदार है। आइंस्टीन पेन वेव्ज के मुताबिक in

 मनुष्य की स्वाद की चाहत खासतौर पर मांसाहार की आदत के कारण प्रतिदिन मारे जाने वाले पशुओं की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है।

सूजडल (रूस) में पिछले दिनों हुए भूस्खलन और प्राकृतिक आपदा पर हुए एक सम्मेलन में भारत से गए भौतिकी के तीन वैज्ञानिकों ने एक शोधपत्र पढ़ा। डा. मदन मोहन बजाज, डा. इब्राहीम और डा. विजयराजसिंह के अलावा दुनियाँ भर के 23 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा  तैयार किए शोधपत्र के आधार पर कहा गया कि भारत, जापान, नेपाल, अमेरिका, जार्डन, अफगानिस्तान, अफ्रीका में पिछले दिनों आए तीस बड़े भूकंपों में आइंस्टीन पैन वेव्ज (इपीडबल्यू) या नोरीप्शन वेव्ज बड़ा कारण रही है।

इन तरंगों की व्याख्या यह की गई है कि कत्लखानों में जब पशु काटे जाते हैं तो उनकी अव्यक्त कराह, फरफराहट, तड़प वातावरण में तब तक रहती है जब तक उस जीव का  माँस, खून, चमड़ी पूरी तरह नष्ट नही होती. उस जीव की कराह खाने वालों से लेकर पूरे वातवरण मे भय रोग और क्रोध उत्पन्न करती है। यों कहें कि प्रकृति अपनी संतानों की पीड़ा से विचलित होती है। अध्ययन मे बताया गया है कि प्रकृति जब ज्यादा क्षुब्ध होती है तो मनुष्य आपस में भी लड़ने भिड़ने लगते हैं चिड्चिडे हो जाते हैं और विभिन्न देश प्रदेशों में दंगे होने लगते हैं। सिर्फ स्वाद के लिए बेकसूर जीव जंतुओं की हत्या ही  इस तरह के दंगों का कारण बनती है और  कभी कभी आत्महत्या का भी । 

ज्यादातर मामलों में प्राकृतिक उत्पात जैसे अज्ञात बीमारियाँ, हार्टअटेक, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूकंप, ज्वालामुखी के विस्फोट जैसे संकट आते हैं। इस अध्ययन के मुताबिक एक कत्लखाने से जिसमें औसतन पचास जानवरों को मारा जाता है 1040 मेगावाट ऊर्जा फेंकने वाली इपीडब्लू पैदा होती है।

दुनिया के करीब 50 लाख छोटे बड़े कत्लखानों में प्रतिदिन 50 लाख करोड़ मेगावाट की मारक क्षमता वाली शोक तरंगे या इपीडव्लू पैदा होती है। विश्व के  700 से अधिक वैज्ञानिकों सहित अनेक डाक्टरों के  सम्मेलन में माना गया कि कुदरत कोई डंडा ले कर तो इन तंरगों के गुनाहगार लोगों को दंड देने नहीं निकलती। उसकी एक ठंडी सांस भी धरती पर रहने वालों को कंपकंपा देने के लिए काफी है।

कत्लखानों में जब जानवरों को कत्ल किया जाता है तो बहुत बेरहमी के साथ किया जाता है बहुत हिंसा होती है बहुत अत्याचार होता है। जानवरों का कतल होते समय उनकी जो चीत्कार निकलती है, उनके शरीर से जो स्ट्रेस हारमोन निकलते है और उनकी जो शोक वेभ निकलती है वो पूरी दुनिया को तरंगित कर देती है कम्पायमान कर देती है। परीक्षण के दौरान लैबरोट्री में भी जानवरों पर ऐसा हीं वीभत्स अत्याचार होता है।

जानवरों को जब कटा जाता है तोह बहुत दिनों तक उनको भूखा रखा जाता है और कमजोर किया जाता है फिर इनके ऊपर 80 डिग्री सेंट्रीगेड गर्म पानी की बौछार डाली जाती है उससे शरीर फूलना शुरु हो जाता है तब गाय भैंस बकरी तड़पना और चिल्लाने लगते हैं तब जीवित स्थिति में उनकी खाल को उतारा जाता है और खून को भी इकठ्ठा किया जाता है | फिर धीरे धीरे गर्दन काटी जाती है, एक एक अंग अलग से निकला जाता है।

आज का आधुनिक विज्ञानं ने ये सिद्ध किया है के मरते समय जानवर हो या इन्सान अगर उसको क्रूरता से या उम्र पूरी होने के पहले  मारा जाता है तो उसके शरीर से निकलने वाली जो चीख पुकार है उसकी बाइब्रेशन में जो नेगेटिव वेव्स निकलते हैं वो पूरे वातावरण को बुरी तरह से प्रभावित करता है और उससे सभी मनुष्यों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, खासतौर पर सबसे ज्यादा असर ऐसे जीव का उन मनुष्यों पर पड़ता है जो उसका माँस खाते है और ये दुष्प्रभाव एक बार खाने के बाद कम से कम 18 महीने तक रहता है बड़ी बात ये है कि  खाने वाले के परिजन और अधिक तनावग्रस्त, दुखी व  भयंकर  रोगॊ से पीडित होते जाते  है । इससे मनुष्य में जिद करने गाली देने, चोरी करने, दूसरो का धन हड़पने, के साथ अत्यंत क्रोध व  हिंसा करने की प्रवृत्ति बढ़ती है जो अत्याचार और पाप पूरी दुनिया में बढ़ा रही है |

अफ्रीका  के दो प्रोफेसर, दो जर्मनी, दो अमेरिका के,  एक भारतीय  मदनमोहन  और चार जर्मनी के वैज्ञानिकों ने अपने अपने हेड  मार्क फीस्ट्न, डेविड थामस, जुँनस अब्राहम व क्रिओइबोँद फिलिप् के साथ बीस साल इस विषय पर रिसर्च किया है और उनकी रिसर्च ये कहती है कि जानवरों का जितना ज्यादा कत्ल किया जायेगा जितना ज्यादा हिंसा से मारा जायेगा उतना ही अधिक दुनिया में भूकंप आएंगे, जलजले आएंगे, प्राकृतिक आपदा आयेगी उतना ही दुनिया में संतुलन बिगड़ेगा और लोग दुखी, तनाव्युक्त व हार्टअटेक से पीडित होंगे.

लाश खाना छोड़ो और शाकाहारी बनो
डा कल्याणमल गंगवाल

कमल की क़लम से ✒️

कमल की क़लम से ✒️

जाना पहचाना अनुभव.. पहले आजमाया फिर लिखने का दुस्साहस किया..


अनगिनत पथिक मिलेंगे ये मानव तुझे तो जीवन पथ में..!

विरले ही होंगे जो मार्गदर्शन करेंगे श्री कृष्ण बन अर्जुन रथ में..!


अजनबियों पर कभी विश्वास न करें सभी लायक नहीं होते हैं..!

जिसने भी जीवन में यह भूल की वो पक्के आजीवन रोते हैं..!


कमल की क़लम से ✒️कमल सिंह कमल

है दुआ से चन्द रिश्ते

है  दुआ  से  चन्द  रिश्ते


 चन्द बातें, चन्द क़िस्से

ऊँघते   हैं   आँख  मूँदे


चन्द घड़ियाँ, चन्द लम्हे

जा  रहे   हैं  बात करते


है  दुआ  से  चन्द  रिश्ते

चन्द रिश्ते  बददुआ- से


छूटने  को    हैं   तरसते

जाल में फँसकर परिन्दे


बज़्म  सारी  कह  रही है

शे 'र अच्छे हैं 'कपिल 'के

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कपिल कुमार

बेल्जियम

शोभा ताई धारीवाल महिला रत्न से सम्मानित

 शोभा ताई धारीवाल महिला रत्न से सम्मानित



मगरपट्टा पुणे में महावीर जयंती के पावन अवसर पर सकल दिगंबर जैन समाज मगरपट्टा पुणे एवं शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट ने भव्य आयोजन में नगर की गौरव दान शीला परम गुरु भक्त मृदुभाषी सौ शोभाताई  रसिकलाल धारीवाल को महिला रत्न पुरस्कार के अलंकरण से अलंकृत किया।

 इस अवसर पर नगर विधायक डिप्टी मेयर प्रशासनिक अधिकारी अनेक समाजसेवी नेताओं ने एवं एवं नगर की विभूतियों समाजसेवियों ने उन्हें बहुत-बहुत बधाई दी ।उल्लेखनीय है नगर में शोभा ताई के आरएमडी फाउंडेशन से शिक्षण  संस्थाएं चिकित्सालय एवं जन कल्याण की अनेक योजनाएं संचालित है शोभा ताई ने अपना संपूर्ण जीवन समाज हित और धर्म हित में समर्पित कर रखा है सभी उपस्थित जनसमूह ने करतल ध्वनि  एवं पुष्प वृष्टि से शोभा ताई का अभिनंदन किया

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