वात्सल्य में गगन सा विस्तार है
नहीं इसका कोई पार है
सहनशीलता में धरा सी तुम हो मां
प्रकृति की अथाह देन सा , त्याग तुम्हारा
सीख का तुम अथाह सागर
सरिता सी निर्मलता तुम्हारी।
मां तुम कितना कुछ देती हो हम समझ न पाए
उम्र की हर सीढ़ी चढ़ते उन गुणों का दीदार था
जीवन शैली तुमसे प्रभावित
तुम्हारे ही गुणों का प्रकाश था
सफलता का राज, सीखें तुम्हारी
धैर्य साहस का जामा तुम्ही ने पहनाया
शनै शनै तुमने बहुत कुछ सीखाया
व्यक्तित्व मेरा,दर्पण में छबि तुम्हारी
मेरे जीवन का उत्तरोत्तर विकास तुम हो
तुम जननी भी सखा भी गुरु भी हमारी
भगवान ने किस रूप में तुमको ढाला
चमत्कृत तुमसे स्वयं भगवान है।
हंसा मेहता इंदौर
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