श्रुत पंचमी महापर्व के पावन अवसर पर श्री जिनवाणी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली गई एवं श्रुतज्ञान वर्ध्दक विधान अनुष्ठान बड़ी ही भक्ति भाव से किया गया एवं प.पू. झारखण्ड राजकीय अतिथि श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी गुरुदेव के करकमलों से
श्रुत पंचमी महापर्व के पावन अवसर पर श्री जिनवाणी की भव्य शोभायात्रा शहर में निकाली गई एवं श्रुतज्ञान वर्ध्दक विधान अनुष्ठान बड़ी ही भक्ति भाव से किया गया एवं प.पू. झारखण्ड राजकीय अतिथि श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी गुरुदेव के करकमलों से ब्र. रामप्यारी देवी कौशम्बी (उ.प्र ) को क्षुल्लिका दीक्षा प्रदान की गई एवं उनका धवल श्री माता जी नाम रखा गया । मुनि श्री ने इसी दीक्षा प्रसंग पर सम्बोधित करते हुए कहा कि आज देश या विश्व के लिए अणुबमों की नही अणुव्रतों की जरूरत है । वस्तुतः अणुव्रतों से ही विश्व में शांति और अमन चैन हो सकता है व्रत नियम संयम ही मानव जीवन का श्रृंगार है । कहा की है नियम और संयम के बिना प्राणी पशु तुल्य है उन्होंने कहा कि दीक्षा का अर्थ है इच्छा का समापन, संसारिक वासनाओं की तिञ्जालि , कषायों का शमन, आत्म विशुद्ध का आयाम , मानवता का चरमोत्कर्ष,भगवान बनने की प्रक्रिया का नाम है जैनेश्वरी दीक्षा
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