बिन फल-इच्छा-निश्छल मन से
दत्त-चित्त हो पूर्ण लगन से ।
इन्दियाँ एकाग्र निरंतर,
कर्म करूँ नित-नित्य मगन से ।।
कर्म साधना-कर्म ही तप है,
ज़र्रा-ज़र्रा कर्मभूमि है ।
हौसला है तपोवन मेरा,
सफलता चरण चूमी है ।।
जिसे समझले ऐरा-ग़ैरा,
अन्धविश्वास का मिटे अन्धेरा ।
लापरवाही न करे बसेरा,
कर्मभूमि ही तपोवन मेरा ।।
यही एक उत्थान मेरा,
ऐसा हिन्दुस्तान मेरा ।
राम-कृष्ण की वसुंधरा पर,
कर्मभूमि ही तपोवन मेरा ।।
(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)
बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"
कोटा (राजस्थान)
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