सखी

 

सखी

बातें करने को सखी से
मन इतना हुआ अधीर
अँखियाँ बदली सी बनीं
भर-भर आये नीर
उलसित मन इतना हुआ
दिल की कुछ धड़कन बढ़ी
जब आई याद सखी
सालों से न देखा था
बातें करनी थीं कई
मन की बस मन में रही
फिर संदेशा फोन पर
आया जब एक दिन
कुछ पल न समझ सकी
रोये, हँसे या क्या करे
जब शब्द ढूंढे मिल न सके
बचपन फिर सजग हो उठा
यादों के पन्ने पलटने लगे
मन पुलकित हुआ
नयन बरसने लगे
पल ठहर से गये
कुछ समय के लिये
जब सखी ने पुकारा उसे
फिर शब्दों का सैलाब
रुक न सका
एक दूजे से कितना 
कुछ कह गयीं
जिसमे सारे शिकवे
गिले बह गये
दूरियाँ मिट गयीं
पल गुजरते रहे
जब बातों के 
चलने लगे सिलसिले 
कुछ अपनी कही
कुछ उसकी सुनी
क्या हुआ जो
मिल न सकीं वह गले।

-शन्नो अग्रवाल


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