जब भी माँ देती है थपकी ।

 जब भी माँ देती है थपकी ।

तभी शिशु लेता है झपकी ।।

रुदन शिशु करता जब भी,

वात्सल्य उँड़ेंले माता ।

माँ जैसे ही देती थपकी,

मधुर-शांति-रस पाता ।।

हलकी हलकी थपथपाहट से,

पाता है वह चैन ।

और सुनाती लोरी के माँ,

मीठे मीठे बैन  ।।

संग दुलार निद्रा का भी,

बंद करवा देता नैन ।

शिशु नहीं सो पाये जब तक,

रहती माँ बेचैन ।।

ममता का संपूर्ण खजाना,

करती जननी अर्पण ।

जैसे शांत-कमल-सा-मुखड़ा ही,

है उसका दर्पण  ।।

रोते हुए देख शिशु को, 

सब्र तोड़ माँ लपकी ।

उसे शयन करवाने हेतु,

देती हलकी थपकी ।।

(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)

 बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

     कोटा (राजस्थान)

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