डेक्कन कॉलेज यूनिवर्सिटी पुणे एवं श्री भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षण महासभा लखनऊ के संयुक्त तत्वाधान में जैन पुरातत्व के संदर्भ में 10 जून को जैन हेरिटेज पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मान्य वाइस चांसलर डॉo प्रमोद पांडे जी, मुख्य अतिथि डॉo मैनेजर सिंह पूर्व डायरेक्टर जनरल ऑफ कंजर्वेशन, रजिस्ट्रार डा o प्रसाद जोशी जी, विभागाध्यक्ष पी डी साबले, डॉ नीलम जैन एवं श्री देशना की संपादक डाo ममता जैन मंचासीन रहे। सभी आगत विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलन किया
इस कार्यक्रम के उद्देश्य एवं 125 वर्ष प्राचीन एवं पुरातत्व संरक्षण में संलग्न तीर्थ संरक्षिणी महासभा का विस्तृत परिचय दिया डा o नीलम जैन ने दिया एवं उपकुलपति महोदय ने सबको शुभकामनाएं प्रदान करते हुए महासभा कार कार्यों को आज की आवश्यकता बताया यह
डाo साबले जी ने कहा इस संस्था के साथ हमारा यह हमारा प्रथम प्रयास संपन्न किया जा रहा है परंतु ऐसे ही कार्य जागरूकता और पुरातत्व को संरक्षण करने में सहायक बनते हैं यहां हमें देश के प्रमुख तत्वों के सभी साथियों को कार्यशाला का प्रारंभ ममता जैन ने स्वागत भाषण द्वारा सभी का स्वागत किया ।
कार्यशाला का प्रारंभ हुआ था जैन मॉन्यूमेंट्स एंड इट्स कंजर्वेशन डीडीए सिंह ने पीपीटी द्वाराJain monuments and it's conservation पर अपनी प्रभावी प्रस्तुति दी ।उन्होंने अनेकों प्रतिमाओं की स्थिति को प्रदर्शित किया तथा कंजर्वेशन करते समय रखने वाली सावधानियों को भी बताया और क्या केमिकल यूज करने चाहिए क्या केमिकल प्रयोग करने चाहिए इसकी विस्तृत जानकारी दी डॉक्टर जैन ने एलोरा की जयंत प्रतिमाओं को विशेष रुप से व्याख्या करते हुए कहा कि संपूर्ण एलोरा की गुफाओं में जैन पेंटिंग्स बची हुई है जैन पेंटिंग्स के रंग बचे हुए हैं क्योंकि वहां कोई धुआं आदि का कार्य नहीं हुआ लेकिन उन्होंने देवगढ़ आदि की अनेक प्रतिमाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया कि वहां प्रतिमाओं में दरारें आई हैं और क्यों है समाज कोउनके प्रति ध्यान देना परम आवश्यक है डॉo नीलम जैन How to recognize Jain Idols जैन प्रतिमाओं को कैसे पहचाने इस विषय पर पीपीटी द्वारा जैन प्रतिमाओं की ,चरणों की विशेषता बताइए और अनेकों प्रकार के मंदिरों की व्याख्या की ।श्रीकांत गणवीर ने महाराष्ट्र में Jain caves in Maharashtra इस विषय पर सारगर्भित प्रस्तुति दी और बताया कि अनेकों गुफाएं महाराष्ट्र में हैं और जिन पर नमो अरिहंतानम लिखा हुआ है ऐसी प्रतिमाओं की भी उन्होंने चर्चा की जैन और बौद्ध गुफा में क्या अंतर है यह विस्तार से बताया और साथ ही यह भी बताया अभी गुफाएं हैं जिन पर नमो अरिहंतानम लिखा हुआ है लेकिन हम जैन घोषित नहीं कर सके हैं और उन्होंने जैन समाज को सजग होने के लिए कहा है
प्रख्यात पुरातत्वविद डा जे मैनुअल ने ऑनलाइन अपना प्रस्तुतीकरण किया और Indus Civilisation ang evidence of Jainism में सिंधु घाटी सभ्यता में पाए गए प्रतिकों मूर्तियों का विस्तृत विवेचन किया उनके द्वारा दी गई प्रतीक चिन्हों की जो बहुत महत्वपूर्ण थी और रोमांचक थी वहां सस्वास्तिक बनाने के तरीके भी उन्होंने दिखाएं
डाo गोपाल जोगे जी ने Jain heritage in Maharashtra में जैन प्रतिमा, जैन मंदिर ,जैन शास्त्र ,जैन शिल्प, जैन भित्ति चित्र जैन कला आदि की विस्तृत विवेचना की और कहा महाराष्ट्र में जैन पुरातत्व बहुतायत में प्राप्त होता है।
अंत में डा पी डी साबले जी ने कहा कि जैन प्रतीक बहुत महत्वपूर्ण और विशेष दुर्लभ है उनका संरक्षण किया जाना चाहिए यह देखकर दुख होता है कि जैन समाज बहुत समर्थ है ।लेकिन उनके मॉन्यूमेंट बहुत जर्जर अवस्था में हैं और क्षरण की ओर जा रहे हैं इसलिए जैन समाज को इस तरफ ध्यान देना चाहिए इस प्रकार की कार्यशाला के आयोजन से हमें जानकारी भी मिलती है और जागरूकता भी आती है | सभी का धन्यवाद ज्ञापन शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट के कार्याध्यक्ष अक्षय जैन ने किया कार्यशाला में शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट के पदाधिकारी उपस्थित थे ।
सोलापुर कोल्हापुर औरंगाबाद वर्तमान प्रतिष्ठान आदि अनेक स्थानों के शोध छात्र उपस्थित रहे स्थानीय विश्वविद्यालय में शोध और अनेक डिप्लोमा कर रहे छात्रों ने भी कार्यशाला में उपस्थित रहकर जैन पुरातत्व से परिचित हुए ।सभी छात्रों ने कार्यशाला को उपयोगी बताया सभी उपस्थित रजिस्टर्ड प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए विशिष्ट सभी अतिथि गण को डॉक्टर नीलम जैन द्वारा प्रतीक चिन्ह प्रदान किए गए तथा वक्ताओं को विशेष सम्मान प्रदान किया गया सभी ने ऐसे आयोजनों की आवश्यकता पर बल दिया संपूर्ण कार्यक्रम लाइव होने से देश विदेश से अनेक पुरातत्व प्रेमी जुड़े ।
डॉ ममता जैन
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Magarpatta
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