मिसेज यूनिवर्स 2019 मुनि वीर सागर महाराज जी ससंघके चरणों में...
जैन संतों की चर्या से प्रभावित होकर आज मिसेज यूनिवर्स 2019 सविता जितेंद्र कुम्भार निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीर सागर महाराज जी ससंघके चरणों में आशीर्वाद लेने के लिए पहुंची ,वहां उन्होंने हथकरघा से प्रभावित होकर गुरुदेव के चरणों में निवेदन किया कि वह हथकरघा को प्रमोट करेंगी, अपूर्व जैन ,डॉ. नीलम जैन, डॉ. ममता जैन द्वारा उनका सम्मान किया गया , उल्लेखनीय है कि विश्व सुंदरी होते हुए इनका रात्रि भोजन का त्याग है एवं पूर्णतः शाकाहारी है। मुनि संघ ने भी उनको आशीर्वाद दिया।
ज्ञ की महिमा
कमलेश "कमल"
'ज्ञ' का अर्थ है– जाननेवाला। सर्वज्ञ सब कुछ जानता है, तत्त्वज्ञ 'तत्त्व' अथवा सार को जानता है, मर्मज्ञ मर्म को जानता है, अल्पज्ञ अल्प अथवा थोड़ा जानता है, बहुज्ञ बहुत जानता है, विशेषज्ञ विशेष(किसी विषय के बारे में) जानता है, शास्त्रज्ञ शास्त्रों के बारे में जानता है, रसज्ञ रस के बारे में जानता है और देवज्ञ देवताओं के बारे में जानता है। विज्ञ का अर्थ है– विशेष रूप से जानने वाला क्योंकि 'वि' उपसर्ग 'विशेष' का अर्थ देता है। चूँकि 'अ' उपसर्ग का अर्थ है– नहीं, इसलिए 'अज्ञ' का अर्थ हुआ– जो नहीं जानता है।
हम जानते हैं कि वर्णमाला में यह 'ज्ञ' एक संयुक्ताक्षर है, जो बनता है– ज् और ञ के मेल से। महत्त्वपूर्ण यह है कि विशेषण के रूप में यह जानने वाला, परिचित आदि का अर्थ देता है। इस स्थिति में इसकी निर्मिति है– [ज्ञा+क = ज्ञ]। ध्यान दें कि विज्ञ, अज्ञ आदि सभी सामासिक पदों में यह शब्द के अंत में जुड़ा है। संस्कृत में 'ज्ञा' का अर्थ है– जानना, सीखना, समझना, पहचानना अथवा परिचित होना। ज्ञा से ही बने ज्ञात(ज्ञा+क्त) का अर्थ होता है– जाना हुआ, सीखा हुआ। इसी 'ज्ञा' से बने 'अभिज्ञा' का अर्थ होता है– जानना, पहचानना आदि, जबकि 'अनुज्ञा' का अर्थ होता है– अनुमति अथवा स्वीकृति देना।
अब हम दो शब्द अभिज्ञ और अनभिज्ञ को देखते हैं: कुछ लोग अभिज्ञ और अनभिज्ञ को भिज्ञ से बना समझते हैं, जबकि 'भिज्ञ' कोई शब्द नहीं है। अभिज्ञ 'अनभिज्ञ' का विलोम है। अभिज्ञ शब्द में 'ज्ञ' से पूर्व 'अभि' उपसर्ग है। 'अभि' का अर्थ है– की ओर, की दिशा में, के लिए, अधिकता से, रखने वाला आदि। इस प्रकार 'अभिज्ञ' का अर्थ है– ज्ञान रखने वाला, ज्ञान की ओर मुड़ा हुआ, ज्ञान की प्रधानता वाला। अनभिज्ञ शब्द को देखें– [अन् + अभिज्ञ = अनभिज्ञ]। 'अन्' उपसर्ग का अर्थ होता है– नहीं। इस प्रकार, अनभिज्ञ शब्द का अर्थ हुआ– जो अभिज्ञ नहीं है। दूसरे शब्दों में– जिसे ज्ञात नहीं है या किसी विशेष संदर्भ में जानकारी नहीं है, वह अनभिज्ञ। उदाहरण– "मैं कहीं बाहर था, इसलिए इस बीच क्या घटित हुआ, उससे अनभिज्ञ हूँ।" ध्यातव्य है कि कोई एक विषय का विज्ञ और किसी अन्य विषय में अज्ञ हो सकता है अथवा उससे सर्वथा अनभिज्ञ भी हो सकता है।
भीलवाड़ा की श्रमिक की बेटी ने भारत का सीना चौड़ा किया
भीलवाड़ा (राजस्थान) के जवाहरनगर मे रहनेवाली एक श्रमिक मुकेश विश्नोई की सुपुत्री अश्विनी विश्नोई ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए, जॉर्डन के अमान सिटी मे आयोजित 'एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप अण्डर– १५' मे भाग लेते हुए, ६२ किलोग्राम भारवर्ग के अन्तिम चक्र मे 'स्वर्णपदक' जीतकर 'एशियाई कुश्ती-चैम्पियनशिप जीत ली है।
अश्विनी ने चीनी ताइपिए की ये चिन को ४-० से परास्त किया था। अश्विनी ने क्वार्टर फ़ाइनल मे किर्गिस्तान की ऐना असमावलोका को ८-० तथा सेमीफ़ाइनल मे जापान की नातसुखी कुमाझावा को ४-० से परास्त कर दिया था। उसका विजयरथ रुका नहीं, उसने फाइनल मे पुन: किर्गिस्तान की पहलवान ऐना असमावलोका को ४-० के अंक से परास्त कर, अपने देश के लिए स्वर्णपदक पर अधिकार कर लिया।
पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज;
साहित्य का कैशबैक (व्यंग्य)
मशहूर हिंदुस्तानी लेखक रस्किन बांड साहब ने फरमाया कि हिंदुस्तान में लिखने वाले ज्यादा हो गए हैं जबकि पढ़ने वाले कम ,उन्होंने अच्छी बात कही लेकिन पूरी बात नहीं कि हिंदुस्तान में अवार्ड देने वाले ज्यादा हो गए हैं जबकि लेने वाले कम ।एक दौर था कि एक पुरस्कार को लेने के लिये हजारों लोग प्रयास करते थे मिलता किसी एक खुशनसीब को था अब हालात बदल गए हैं पुरस्कार ज्यादा हैं आवेदक कम ,हजारों पुरस्कार बिना बंटे रह जाते हैं जिस तरह कंपनियों के गीजर और फ्रिज बिना बिके रह जाते हैं,तब कंपनियां उस पर छूट और कैशबैक का ऑफर चलाती हैं ।ऐसा ही एक आफर पिछले महीने मुझे भी आया।पुरस्कार की सूचना हर लेखक के लिये वैसे ही होती है जैसे फेसबुक पर 1095 लोगों के कमेंट रिप्लाई कर चुकी महिला पर 1096वां कॉमेंट बन्दा इस उम्मीद में कर देता है कि शायद इस बार मेरी दाल गल जाए सो वाकई ये दाल गलने जैसा ही था कि ईमेल में लिखा था कि हम आपकी कविताओं से प्रसन्न होकर साहित्य शिरोमणि का सम्मान आपको देने जा रहे हैं ,दस हजार नकद,शाल,मोमेंटो तो रहेगा ही जगह और दिन की सूचना जल्द ही दी जायेगी।पहले तो मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा जैसे कि कुछ रोज पहले हमारे दफ़्तर वाली मैडम सामने आकर अकेले में हमसे पूछ बैठीं "आज कैसी लग रही हूं मैं "।मैं क्या करता मैंने उस ख्वाब की ताबीर करते हुए कहा "कहर लग रही हो "।उसने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा "लेकिन बॉस ने कहा कि मैं तो बवंडर लग रही हूं और आपने सिर्फ कहर कहा'यू जेलस"।मैंने बात संभाली"बवंडर के बाद ही कहर आता है दोनों ही सूरत में बिजली तो आशिक के दिल पर ही गिरनी है "।और यही बिजली मुझ पर गिरी जब मैंने ईमेल को ध्यान से पढ़ा कि कविता हेतु सम्मान ,पर कविता तो मैं लिखता नहीं ,व्यंग्य लेखक को कविता का सम्मान मिलना ऐसा ही था जैसे हिंदी साहित्य के किसी दगे कारतूस को कोई अंग्रेज़ी मीडियम से पढ़ी और मल्टी नेशनल कंपनी में मोटी तनख्वाह पाने वाली युवती प्रेम निवेदन कर दे ।फिर अचानक ईमेल पर एक मोबाइल नंबर दिखाऔर नाम दिखा मैना विरहणी। मैंने मैना का मधुर स्वर सुनने के लिये उस नंबर को इतनी बार रिंग किया जितनी बार देश में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के कांग्रेस ने ख्वाब देखें हो मगर हर बार उस नंबर पर कौवे की भाँति यही कर्कश जवाब मिलता कि रिचार्ज ना कराने के कारण इन नंबर पर सेवाएं बन्द कर दी गयी हैं मुझे हैरानी हुई कि जो लोग बन्दी 35 रुपये का रिचार्ज ना करवा पा रही हो वो दस हजार का अवार्ड मुझे कैसे देगी लेकिन इस बात की तसल्ली भी होती थी कि अवार्ड कैश मिलेगा ,चेक से मिलने का खतरा नहीं है कि चेक बाउंस हो जाये और मैं काठ का उल्लू बना फिरूँ।दिन गुजरते गए लेकिन ना अवार्ड वाली का नंबर लगा और ना अवार्ड का दर्शन ।मेरी हालत उस भूखे इंसान की तरह हो गयी थी जिसे थाली का भोजन तो परोस दिया गया हो मगर उसे खाने की मनाही हो कि अभी ठाकुर जी का भोग नहीं लगा है।खाने की मनाही हो,भूख लगी हो ,थाली सामने रखी हो और भोजन की महक नथुनों में घुसी जा रही हो और बैकग्राउंड में गाना बज रहा हो
"जित्थे होती है हथियार दी पाबंदी ,वीर उतथे ही फायर करता " तो फिर बन्दे की हालत वैसी ही हो जाती है जैसे लालू के बेटों का अंग्रेज़ी में ट्वीट करना।
दिन ऐसे बीत रहे थे जैसे कि मानों धरती जल रही हो ,घर ,दफ्तर हर जगह वो ईमेल मैंने ही लीक किया था अब सब राफेल के रेट की तरह मुझसे सवाल पूछ रहे थे कि कब मिलेगा अवार्ड ,और मैं सोनाक्षी सिन्हा की तरह असमंजस में था जो पापा के लिए कांग्रेस का वोट मांगते हुए सपा को कोसती हैं और मम्मी के लिये सपा का वोट मांगते हुए कांग्रेस की लानत -मलानत कर डालती हैं ।मेरे लिये अब इस अवार्ड को हासिल करना उतना ही बड़ा यक्ष प्रश्न था जितना कि संसद में एक भी सीट ना होने के बावजूद मायावती का प्रधानमंत्री बनने का मंसूबे पालना।मैं उसी तरह हताश था जैसे कि सेक्युलर पार्टियों का साम्प्रदायिकता को ना हरा पाने पर होती हैं।यारों -दोस्तों से मैंने मिलना जुलना बंद कर दिया था ,हर जगह बस एक सवाल "कब मिलेगा अवार्ड"।।
अब तो जाते हैं बुतकदे से मीर।
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।।।
यही शेर सुनाकर मैं अपना अज्ञातवास काट रहा था।तब तक तक एक दिन मैना जी का फोन आया उन्होंने मुझसे कहा "देखिये हम जिम्मेदार लोग हैं साहित्य में शुचिता के पक्षधर ,अतः आप दस हजार नकद इनाम पाना चाहते हैं तो टीडीएस की रकम भिजवा दें दस परसेंट ।"मैंने उनसे विनम्र निवेदन किया "जी मैं कविता नहीं ,व्यंग्य "उन्होंने बात को काटते हुए कहा "दिल्ली आने की तैयारी कीजिये,टीडीएस की रकम तुरंत भेजें "ये कहकर उन्होंने फोन काट दिया ,मैंने बहुत बार उन्हें फोन मिलाया लेकिन वो फोन पर ऐसे ही नदारद रहीं जैसे लघुकथा की किताबों की बिक्री ।मैंने नेहरू कट,कुर्ता पायजामा और पंप शूज का इन्तजाम कर लिया और मैना की वाणी सुनने का ऐसे प्रतीक्षा करने लगा जैसे मुलायम सिंह यादव का सैफई महोत्सव ।एक दिन फिर मैना वाणी मेरे मोबाईल में मधुर वचनों से बोलीं "देखिये आपको बताना भूल गयी थी कि सरकार के नए कानून के हिसाब से अब कवियों पर जीएसटी 18 परसेंट कर दी गई है इसलिये आपको 8 परसेंट इनाम की रकम का और यानी आठ सौ रुपये और भेजने होंगे ,हम साहित्य में उच्च मानकों के पक्षधर हैं सो तुरंत पैसे भेजें और दो हफ्ते बाद पुरस्कार समारोह है"।मैंने कहा कि "लेकिन मैं कवि नहीं"तब तक फोन कट चुका था और उनका मेरी काल को रिसीव करना ऐसे ही था चंद्रबाबू नायडू का सरकार के पांचवें साल में भाजपा को खराब बताना।मैंने दुबारा उनकी कही रकम भेज दी ।और फिर ऐसे राह तकने लगा जैसे अमिताभ बच्चन ,अभिषेक बच्चन की किसी सोलो हिट फिल्म की राह तकते हों ।चन्द रोज बाद फिर उनका फोन आया और उन्होंने नाराजगी भरे स्वर में मुझसे कहा "मुझे पता नहीं था कि आप झूठे,बेइमान और फ्रॉड हो जबकि साहित्यकार होने का दम्भ भरते हो मुझे पता लगा है कि आप कवि नहीं हैं ,व्यंग्यकार हैं क्या ये बात सच है "ये कहते हुए उन्होंने केजरीवाल की भांति मुझ पर अनगिनत आरोप लगाए और मेरी एक ना सुनी ।मैं क्या करता ,अंत में उन्होंने कहा कि साहित्य के हित मे वो अवार्ड कैंसिल नही करेंगी इसलिये अब कविता की जगह व्यंग्य पर अवार्ड दिया जाएगा।चूंकि गलती मैंने की है जो उन्हें नहीं बताया इसलिये जो शाल,मोमेंटो कविता के पुरस्कार हेतु बनवाये गए थे वे बेकार हो गए और अब उनकी जगह पर सब व्यंग्य के नए सामान लेने पड़ेंगे । कविता का अवार्ड देने के लिए जो बड़े कवि बुलाये गए थे उनके किराये और होटल की एडवांस बुकिंग कैंसिल करनी पड़ेगी और फिर से किसी बड़े व्यंग्यकार से समय लेना पड़ेगा और किसी नई तारीख और जगह पर पुरस्कार वितरण करना पड़ेगा इसलिये कविता को व्यंग्य पुरस्कार में बदलने के लिये और अपनी गलती की भरपाई के लिये तुरंत आठ हजार रुपये भेज दो ,नहीं तो फेसबुक पर तुम्हारी अच्छी खबर लेगी हमारी संस्था"ये कहकर उन्होंने फ़ोन काट दिया ।मैंने बहुत मिन्नत की ,कि ये अवार्ड मुझको नहीं चाहिये लेकिन वो टस से मस ना हुईं।वो आठ हजार रुपये भरने पड़े अब ये पुरस्कार का लालच था या फेसबुक पर मुझे दी गई धमकी का असर था ये सवाल उठना ही जटिल था जितना ये पता लगाना कि करण जौहर की कलंक ज्यादा महान फ़िल्म है या राम गोपाल वर्मा की शोले।
इसी बीच मैना का एक और ईमेल आया है कि जल्द ही पुरस्कार समारोह दिल्ली में होने वाला है ।जगह और तारीख,,, जी बस पता चलते ही बता दूंगा और हाँ आप समारोह में आना जरुर☺️
-दिलीप कुमार
सभी भाव अनाथ हुए, पीड़ा है असहाय
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
एक–
डाली कहती डाल से, कस लो मुझको आज।
पेड़ सिसकता सोचता, गिरे न उनपर गाज।।
दो–
कली इधर बेचैन है, काँप रहा हर फूल।
रोते कोंपल दिख रहे, चूभ रहा है शूल।।
तीन–
माली चिन्तित है बहुत, कली बन रही फूल।
भौंरा उन्मादी बहुत, देता सबको हूल१।।
चार―
कली अनमनी दिख रही, कारण पूछें फूल।
माली भय से कह रहा, बेटी! जा सब भूल।।
पाँच―
बेटी सिहरन जी रही, माँ भी बहुत उदास।
बाप फफकता रह गया, कोई आस-न-पास।।
छ:―
बेटी मूक-बधिर बनी, बेटा खोया प्राण।
माँ-बाप भी नहीं रहे, कौन करेगा त्राण?२
सात―
सभी भाव अनाथ हुए, पीड़ा है असहाय।
सिसकी गूँगी दिख रही, किसका कौन सहाय?
शब्दार्थ :―
१ किसी नोकदार वस्तु से भोंकने की क्रिया।
२ रक्षा
ग़ज़ल
ग़ज़ब की ज़िन्दगानी हो गयी है।
मुसीबत की कहानी हो गयी है।।
मिला औक़ात से ज्यादा बहुत कुछ,
ख़ुदा की मेहरबानी हो गयी है।
महकता है बहुत यादों का गुलशन,
वही अब रातरानी हो गयी है।
नहीं इन्सान के बस का रहा कुछ,
ये आफ़त आसमानी हो गयी है।
जिन्हें जेलों में होना चाहिए था,
उन्हीं की हुक्मरानी हो गयी है।
ठहर सकता नहीं कोई यहाँ पर,
ये दुनिया आनी जानी हो गयी है।
कहाँ तक आप दुहराएँगे इसको,
कहानी ये पुरानी हो गयी है।
पतन की गर्त में आपादमस्तक,
ये कैसी अब जवानी हो गयी है।
मुदित मन है सभा में हर किसी का,
विजय की ख़ुशबयानी हो गयी है।
विजय की बात के चर्चे बहुत हैं,
ज़ुबाँ तो ज़ाफरानी हो गयी है।
विजय तिवारी, अहमदाबाद
आने की ख़बर
तेरे आने की ख़बर से,
मुस्कुरा जाते हैं लब,
उन पर होती है,
एक ही ध्वनि कि आओगे कब।
तेरे आने की ख़बर से,
रात बहुत लंबी कटती है,
किरण सूरज की बहुत देर बाद दिखती है,
बेताबी का आलम ये होता है कि,
हृदय कहता है ज़्यादा न तड़पाओगे अब।
नैना रास्ता देखते है,
जैसे विद्यार्थी छुट्टी की राह तकते हैं,
दिलासा देते रहते हैं कि,
जल्दी ही मुलाकात होगी,
सामने बैठाकर दिनभर उनसे बात होगी,
मिलने की आरज़ू बढ़ती ही जा रही है,
रहा नही जा रहा,
उम्मीद नही थी इतना सताओगे तुम अब।
ममतांश अजीत
बहरोड़ अलवर राजस्थान
लघु कथा"
लघु कथा"
" कमली अपनी 1० वर्षीय बेटी रमा के साथ रहती थी। आस-पास के घरों का काम करके अपना जीवन यापन करत़ी ।
रमा को पढ़ने स्कूल भेजती। कमली हमेशा रमा को समझाती थी ,कि बेटा बस तुम पढ़ -लिखकर कुछ बन जाओ! रमा भी मां का काम में सहयोग करती व पढ़ाई में अव्वल रहती ।
कमली की मालकिन " रेखा जी"व बेटी पुरवा भी ़रमा से कहती तुमको पढ़ने में यदि कोई सहारा चाहिए तो हम तुम्हें सहयोग कर सकते हैं ।
पूर्वा व रेखा जी सदा ही रमा व कमली का कपड़ों से, पैसे से, पढाई मेसहयोग करती रहती थी ।
पुरवा की मदद से रमा में कॉलेज की पढ़ाई अव्वल नंबर से पास कर ली और एक स्कूल में पढ़ाने लगी। साथ -ही -साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी भी करती रही!
कमली का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता था। रमा ने कमली को काम करना करवाना बंद कर दिया।
प्रतियोगी परीक्षा में रमा अव्वल रही व "कलेक्टर "बन गई! आज रमा को सरकार की तरफ से गोल्ड मेडल से सम्मानित किया जाना था! जब मंच पर रमा का नाम पुकारा गया तब रमा ने कमली के साथ ही रेखा जी व पूर्वा को भी मंच पर बुलाया और कहा कि--
यदि आज मै राज्य सम्मान में पहुंची हु ,तो इस सम्मान का श्रेय में अपनी मां की मेहनत व रेखा जी और पुरवा के सहारे को ही देती हूं ।।
डा श्रीमती राजकुमारी वी.अग्रवाल शुजालपुर मंडी मध्य प्रदेश
पितृ दिवस पर हाइकु ;
पितृ दिवस पर हाइकु ;
नीलू गुप्ता
1.पिता हमारे
अनुशासन वाले
राह दिखाएँ
2.स्नेहसिंचित
कर्मठ औ कठोर
साहस वाले
3.मान सम्मान
पिता हैं पहचान
अति महान
4.पिता चट्टान
अनिश्चितता दूर
पथ सुगम
5.घर बगिया
परिश्रम करके
चमचमाई
6.निराली शान
आन बान औ मान
सुन्दर ज्ञान
7.महत्वपूर्ण
जीवन ज्ञान सिखा
राह दिखाई
8.पिता अस्तित्व
घर भर की शोभा
माँ का सुहाग
9.चंचल बच्चे
पिता से ही डरते
सुधर जाते
10.पिता का मान
पिता का गुणगान
करता विश्व
11.पिता रक्षक
पिता का योगदान
अमिट छाप
12.अतुलनीय
अतीव शक्तिशाली
महामहिम
13.जग से न्यारे
हमारे रखवारे
आँखों के तारे
14.पिता जगत
पिता ही भगवान
पिता नमन
15.पितृ दिवस
समर्पित उनको
श्रद्धा सुमन
मौन
आज एक नहीं,दो द्रोपदियों की लाज लुटीं है
आज फिर से आदम और हौवा की बेटी
निर्वस्त्र खड़ी है
नारी होना इतना शापित है तो
देवी की प्रतिमा मंदिर में क्यों है लगी
जब बाँटा जाता है नारी अस्मिता को भी
राज्यों की सीमाओं में ,
तो फिर क्यों संपूर्ण भारत का
नारा लगाया जाता है
न जाने कितनी श्रद्धाओं को
यूँ ही रोज़ काटा जाता है
क्या पुरूष के पौरुष को
केवल इसी से तौला जाता है
क्या नहीं ये किसी की बेटी,
किसी बहन,किसी की माँए हैं?
फिर क्यों सब निशब्द बन कर
मौन को अपनाए हैं ?
आवाज़ नहीं तो कलम उठाओ
इतिहास को तुम फिर न दोहराओ
एक अबला की हाय ने
ध्वंस कर दिया था इन्द्रप्रस्थ
अंबा के प्रतिशोध की प्रतिज्ञा से
बाणों की शय्या पर सो गया था देव व्रत
नारी अब तुम ही नारी के लिए
आवाज़ उठाओ
चंडी बन रण में आओ
मौन नहीं शस्त्र उठाओ
दुर्योधनों को मार गिराओ
@डॉ ऋतु शर्मा (ननंन पाँडे)
नीदरलैंड 🇳🇱
डूब कर देखिये मुहब्बत में
डूब कर देखिये मुहब्बत में
काम आएगी यह मुसीबत में
जान कर वो नज़र झुकाते हैं
यह भी करते हैं वो नज़ाकत में
दिल तो कहता है देख लूं उनको
आँख उठती नहीं नफासत में
आग अपने भी दिल में लगती है
मुँह नहीं खोलते शराफत में
झूठी बातें हैं सबके होठों पर
काम कुछ कीजिए हिफाज़त में
'श्याम' तुम हो कहां बताओ तो
लुट गए हम यहाँ हकीकत में
श्याम मठपाल ,उदयपुर
क्या तुमने कभी प्यार किया है
" यही प्यार का सफर है
जितना प्यार
उतनी रुसवाई भी है
कभी मिलन
तो कभी जुदाई भी है
यही प्यार का सफर है
बढ़कर थाम लेते हो
कभी एक हिचकोले के बाद
कभी मुड़ कर भी नहीं देखते
बेदम गिरने के बाद
यही प्यार का सफर है
प्यार वर्षों का बित जाता है
लम्हों की तरह
रुसवाई पलों की नहीं कटती
वर्षों की तरह
यही प्यार का सफर है
तुम्हारे रूठने पर
लगता कोई अपना नहीं
मुस्कुरा दो तो लगता है
जीवन सपना तो नहीं
यही प्यार का सफर है
यही प्यार का सफर है। "
धन्यवाद
डा.श्रीमती राजकुमारी वी. अग्रवाल शुजालपुर मंडी मध्य प्रदेश
अंतर्विषयक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन
सामासिक संस्कृति के संवाहक :
भाषा,साहित्य एवं मीडिया
(अंतर्विषयक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन)
11एवं12अगस्त,2023
सम्मान्य विद्वतजन/शिक्षक बन्धु/प्रिय शोधार्थीगण
अतीव हर्ष के साथ सूच्य है कि “वीर बहादुर सिंह पूर्वाञ्चल विश्वविद्यालय, जौनपुर द्वारा द्विदिवसीय अंतर्विषयक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन "सामासिक संस्कृति के संवाहक: भाषा, साहित्य और मीडिया" का आयोजन दिनांक 11और 12 अ गस्त 2023 को होने जा रहा है । इस सम्मेलन का मूलोद्देश्य सामाज, संस्कृति और राष्ट्रोदय हेतु महत्वपूर्ण पक्षों पर मंथन करते हुए भाषा, साहित्य और मीडिया के योगदान को और अधिक सकारात्मक रूप से जोड़ना है, ताकि पुनः भारत को विश्वगुरु बनाने के मार्ग का नवोन्मेष हो सके। इस सम्मेलन के लिए विशेषज्ञों की एक उत्कृष्ट श्रृंखला को आमंत्रित किया गया है, जो विविध विषयों पर व्याख्यान,चिंतन ,मनन कर नए आयाम का उद्घाटन करेंगे। इसके अलावा, हमने भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों के विद्वानों, शोधकर्ताओं को अपने अद्यतन शोध पत्रों के प्रस्तुतिकरण हेतु आमंत्रित किया है। यह सम्मेलन एक विशेष अवसर है जहां साहित्य, भाषा और मीडिया के क्षेत्र में अध्ययनरत लोग एक साथ आने का अवसर पाएंगे और नवीनतम विचारों व अनुभवों का आदान-प्रदान करेंगे। हम आशा करते हैं कि आप सभी इस सम्मेलन में अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराएंगे और इसे सफल बनाकर न केवल हमारा उत्साहवर्धन करेंगे अपितु इस मंथन से निकले अमृतरस से राष्ट्रोत्थान में महत्वपूर्ण योग देंगे। यह गौरव का विषय है कि पूर्वांचल की उच्च शिक्षा का गौरव हमारा विश्वविद्यालय दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण सामासिक सांस्कृतिक विरासत वाले इस विशाल देश के सामाजिक एवं भाषिक पक्ष को उद्घाटित करने में एक सार्थक कदम उठाने जा रहा है।इस महनीय सत्कर्म का सूत्रपात प्रख्यात साहित्यकार,वैदुष्यपूर्ण व्यक्तित्व,माननीय कुलपति प्रोफेसर निर्मला एस. मौर्य के संरक्षकत्व में हम करने को कृतसंकल्प हैं।
अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के लिए सारांश, शोध पत्र एवं प्रतिभागिता आमंत्रित है।
शोध पत्र और सारांश भेजने की अंतिम तिथि 5 अगस्त 2023 है। सारांश व शोध पत्र सम्मेलन की ईमेल आईडी vbspuconference2023@gmail.com पर भेजे जा सकते हैं । सम्मेलन में पंजीकरण की अंतिम तिथि 10 अगस्त है जिसका गूगल लिंक निम्न है: https://forms.gle/KwXTTzNVAPY989z77
सम्मेलन में प्रतिभाग करने के लिए तथा शोध पत्र प्रस्तुति के लिए दिए गए लिंक से पंजीकरण अवश्य करें।
यदि आपको किसी विशेष विषय पर प्रस्तुति या संबंधित जानकारी चाहिए, तो कृपया हमसे संपर्क करें।
धन्यवाद और शुभकामनाएं!
सादर
डॉ. प्रमोद कुमार श्रीवास्तव "अनंग"
संयोजक संगोष्ठी
मो. 9450725810
बालसखा हैं सूर सभी के,अभिभावक रसखान कबीर
बालसखा हैं सूर सभी के
केवल अपने मन की सुनते, समझो सबके मन की पीर।
लेकर बैठा है सदियों से, जाने वह किसकी तस्वीर।।
समझ रहे हो जिसे बेवफा, कुछ तो मजबूरी होगी।
तोड़ नहीं सकता था केवल, परंपरा की वह जंजीर।।
अंधेरे को दीपक काफी, तुम सूरज के लिए अड़े।
रात बीत जाए बस उसका, क्या होगा लेकर जागीर।।
चरवाहे को उस मजूर को, मथुरा-काशी मत समझा।
बरसाने से जाओ ऊधो, हमको चहिए एक अहीर।।
जन-मन की चिंता मत करना, उसे चैन से रहने दो।
पूरी भले मिले ना उसको, खा लेगा वह कभी बखीर।।
रीढ़ के बिना केंचुवे भी, जी लेते हैं अपना जीवन।
एक दूजे के काम आ सका, वही जवानी वह बलबीर।।
अली-अली बजरंग बली कह, उठवाते छप्पर-छानी।
जाने क्या हो गया आज कि, दिखते हाथों में शमशीर।।
जिनको देखा नहीं उन्हीं पर, हमको गुस्सा आता है।
कब्रिस्तानों - श्मशानों से, ले आते क्यों रोज नजीर।।
जिसे देखिए वही मगन है, लुटने और लुटाने में।
राजा व्यापारी बन बैठा, बेच रहे हैं लोग जमीर।।
अपना मुल्क निराला, इसकी खूबी भूल गए हैं लोग।
बालसखा हैं सूर सभी के,अभिभावक रसखान कबीर।।.."अनंग"
खोटे सिक्के जहाँ पे चलते हैं
जब भी हम रास्ता बदलते हैं
पहले गिरते है फिर संभलते हैं
फर्श पर क्यूं न हो बसर अपनी
ख़ाक हैं ख़ाक पर ही पलते हैं
रख के नज़रों को दूर मंज़िल पर
बे धड़क पत्थरों पे चलते हैं
वैसे फ़ौलादी सीना है फिर भी
नर्म बातों से हम पिघलते हैं
तेरे इस शहर से मेरी तौबा
खोटे सिक्के जहाँ पे चलते हैं
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कपिल कुमार
बेल्जियम
आचार्य श्री विशुद्ध सागर महाराज जी का चातुर्मास बड़ौत में भव्यता से संपन्न हो रहा है
आचार्य 108 श्री विशुद्धसागर जी महाराज ससंघ (19 पिच्छी) का वर्ष 2023 का चातुर्मास धर्मनगरी बड़ौत (बागपत) उत्तर प्रदेश NCR में है।
विश्व प्रसिद्ध "त्रिलोक तीर्थ" बड़ागांव एवं तीन-तीन तीर्थंकरों की कल्याणक भूमि "श्री हस्तिनापुर जी" बड़ौत के निकट ही स्थिति हैं। तीर्थ यात्रियों की सुविधा हेतु एक 3 दिवसीय यात्रा चार्ट दिया जा रहा है। जो कि दिल्ली से शुरू हो कर दिल्ली में ही सम्पन्न हो रहा है। चार्ट में एक तीर्थ से दूसरे तीर्थ की दूरी, कहां भोजन व रात्रि विश्राम की व्यवस्था है, आदि जानकारी संक्षेप में दी गयी है। यात्री अपनी सुविधानुसार यात्रा-दिवस कम या ज्यादा कर सकते हैं।

"बड़ौत" नगर दिल्ली-शामली-सहारनपुर हाईवे पर स्थित है। यह उत्तर रेलवे और सड़क मार्ग (नेशनल हाइवे 709 B) दोनों से जुड़ा हुआ है। नई दिल्ली से बड़ौत- 60 km




पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से प्रातः काल से लेकर शाम 8 बजे तक बड़ौत के लिए अनेक ट्रेन है।

बस के लिए कश्मीरी गेट दिल्ली व लोनी बस स्टैंड से प्रातः काल से रात्रि 8:00 बजे तक व्यवस्था है।
नोट - टेक्सी या अपनी कार से आप लोग किसी भी समय बड़ौत आ सकते हैं।

9837410421 , 9568880070 , 9410030037, 9412102000

9528606122 , 9412101755 , 9045832217 , 9837048154
संलग्न-
1. यात्रा चार्ट (हिंदी में)

जैन मुनि की निर्मम हत्या के विरोध में भागलपुर में निकली रैली
[8:27 PM, 7/20/2023] Neelam: 5जुलाई को कर्नाटक के बेलगावी जिले के चिक्कोडी कस्बे में साधनारत जैन आचार्य श्री कामकुमार नंदी जी की अपहरण करके नृशंस हत्या करके उनके भौतिक शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके बोरवेल में फेंक दिया गया था।इस निर्मम हत्या के विरोध में जैन समाज द्वारा आज पूरे भारतवर्ष में बन्द के साथ रैलियां निकाली गई।इसी सन्दर्भ में आयोजित सभा में श्रमण श्री विशल्य सागर जी ने सम्बोधित करते हुये कहा कि यह कुकृत्य राम कृष्ण महावीर के देश की संस्कृति पर जघन्य कुठाराघात हैं।यह भारत के इतिहास में अतिनिन्दनीय क्रूरतम काला अध्याय है।दिगम्बर जैन साधु का किसी से वैरभाव नहीं होता।फिर निग्रन्थ मुनियों के साथ यदि देश में ऎसा अक्षम्य अपराध होता है तो न यह देश बचेगा, न यहाँ की संस्कृति बचेगी और न ही प्रकृति बचेगी।भारत का विश्व गुरु बनने का सपना चूर-चूर होकर तिरोहित हो जायेगा।मुनिश्री ने हुंकार भरते हुये कहा कि विश्व में भारत ही एकमात्र देश है जहाँ विभिन्न धर्म,मत,सम्प्रदाय,बोली, भाषा और संस्कृति के लोग रहते हैं। सबको सुरक्षा और संरक्षण देना केन्द्र सरकार की जिम्मेदारी हैं।उन्होंने सभी राज्यों में दिगम्बर संतो की सुरक्षा के लिये निकाय गठित करने की पुरजोर मांग की ।उन्होंने कहा कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत व विशिष्ट संस्कृति के लिए पहचाना जाता है।लेकिन यहाँ पिछले कुछ वर्षो में साधु-संतों खासकर जैन साधुओं पर जगह-जगह उपसर्ग होते रहे हैं जो चिन्तनीय है। विगत दिनों में हुई निर्मम हत्या से जैन समाज मर्माहत व आक्रोशित हैं। सभा में सभी ने एक स्वर में इस घटना की घोर भर्त्सना की गई।इस जघन्य घटना के विरोध में भागलपुर जैन समाज द्वारा 26 जुलाई को सभी प्रतिष्ठान बंद रखे जायेंगे और विरोध रैली भी आयोजित की जायेगी।संयोगवश भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री शाहनवाज हुसैन मुनिश्री का दर्शन करने पहुँचे और उन्होंने मुनिश्री को श्रीफल अर्पित करके आशीर्वाद लिया। जब उन्हें कर्नाटक में दिगम्बर साधु की निर्मम हत्या के बारे में जानकारी दी गयी तो इस लोमहर्षक घटना को सुनकर एकबारगी वो निशब्द व स्तब्ध रह गये।उन्होंने कहा कि जैन साधुओं की इस तरह निर्मम हत्या स्वतंत्र भारत में पहली बार सुनने में आयी है। उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी लेते हुये मुनिश्री को आश्वस्त किया कि केंद्रीय स्तर पर इस संगीन मुद्दे को मैं अवश्य उठाऊंगा और साधु-संतों के संरक्षण हेतु निश्चित ही इस पर संज्ञान लेकर जरूरी कदम उठाये जायेंगे।
आजादी पर पहरे क्यों हैं
आम आदमी के मन यहां पर,
इतने ठहरे ठहरे क्यों हैं।
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।
तुमको सत्ता हमने सौंपी,
रोशन होगी हर दीवाली,
दुःख के द्वार बंद होंगे सब,
छाये चेहरों पर खुशहाली,
झोंपड़ियों में ये बतलाओ,
फिर घनघोर अंधेरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।1।।
तन ढकने को वसन नहीं है,
नहीं पेट भरने को रोटी,
महंगाई से तन की गिरवी,
रखी हुई है बोटी बोटी,
तुमतो ऐश करो बंगलों में,
यहां इतने दुःख गहरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।2।।
चौराहों पर लुटे द्रोपदी,
जूं तक कानों में नहीं रेंगे,
न्याय और कानून को गुंडे,
दिखा रहे हंस हंस कर ठेंगे,
नहीं पुकार सुनाई देती,
तुमको इतने बहरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।3।।
राहजनी होती राहों में,
सरेआम यहां पर रोजाना,
थाने और तहसील मौन हैं,
रहवर के घर भरे खजाना,
तुम सच्चे हैं तो द्वारे पर,
इतने खडे लुटेरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।4।।
दफ्तर दफ्तर में बैठे हैं,
मणिधारी यहां नाग बिषैले,
हर फ़ाइल पर वज़न मांगते,
घर ले जाते भरकर थैले,
हिस्सा नहीं तुम्हारा तो फिर,
इतने यहां लुटेरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।5।।
थानों से बंधी है जारी,
तहसीलों से महावारी है,
हर आफिस से महिने महिने,
आता हिस्सा सरकारी है,
ये समझादो इर्द-गिर्द ये,
बैठे आज कमेरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।6।।
सरेआम काले नागों को यहां,
पर दूध पिलाया जाता,
डंक मारने को पल पल में,
नाजों से सहलाया जाता,
सत्य नहीं तो लुटे लुटे से,
बैठे आज सपेरे क्यों हैं,
सत्ता सीनों ये बतलाओ,
आजादी पर पहरे क्यों हैं।।7।।
हरीश चंद्र हरि नगर
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
अपनापन का गला घोट वहाँ,
फूट है भाईचारों में
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
मन स्वार्थी होता चला जहाँ
इन्सानियत खोता चला जहाँ
"तेरे मेरे" का चलन जहाँ
हर इक में होती जलन जहाँ
गंगाजल जैसे संस्कार अब बिक रहे बाज़ारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
हर ज़मीं ज़मीं पर सदा लड़े
कौड़ी कौड़ी पर सदा लड़े
अपना ही मतलब पूरा हो,
दुनियाँ गड्ढे में चाहे पड़े
जहाँ प्यार नहीं सम्मान नहीं नहीं समझ अक्ल के मारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
उन मात-पिता ने बड़ा किया
अपने पैरों पर खड़ा किया
बलिदान किये कितने ही जो,
सपनों का महल जड़ा दिया
उन मात-पिता को अलग अलग करते बेटे बँटवारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
जो छोटे थे बन रहे बड़े
अपनी हैंकड़ में रहे अड़े
अज्ञान मयी तिमिर के कारण,
मति पर ताले रहे पड़े
एक नहीं ऐसे कितने ही मिले कई बाज़ारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
पीढ़ी कभी समझ न पाती,
ऐसा भी कोई पल होगा
जैसी करनी वो करें आज,
उनका भी कोई कल होगा
नीलाम हुई इज़्जत बूढ़ों की जग के कई नज़ारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
त्रेता-सतयुग नहीं रहा,
यह कलियुग का प्रभाव है
मात-पिता और गुरूजनों से,
हर कोई खाता भाव है
हवा-पानी-खान-पान का असर है दुराचारों में,
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
अपनापन का गला घोट,
वहाँ फूट है भाईचारों में
कुछ टूट रहा परिवारों में
कुछ छूट रहा व्यवहारों में
बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"
कोटा (राजस्थान)
प्रेम गीत लिखो मीत
प्रेम गीत लिखो मीत , कहें सभी उसे प्रीत , यही रीत है पुनीत , बनना तुम साया l
लोग सभी देख रहे , नहीं कभी भेद कहें , प्रेम गंग सदा बहे, मिली हमें काया l l
कृष्ण सदा चित्त चोर , बाँध रहे मुझे डोर , नाच रहे देख मोर , मन को है भाया l
देख चले है बयार , झूम रहा तार - तार , पावन है देख प्यार , कान्हा की माया l l
प्रेम गीत लिखो मीत , करो हाथ तभी पीत , सभी कहें यह पुनीत , प्रभु जी की माया l
करो नहीं कभी तंग , चलो सदा आप संग , रहो बने एक अंग , बनी रहे छाया l l
सखियों से हुई जंग , देख रहे सभी दंग , बिगड़ रहे आज ढंग , मन भी तर साया l
तुमसे ही प्यार मुझे , ढूँढ रही देख तुझे , लगे आज बुझे - बुझे , सावन है आया l l
डॉ. राजेश कुमार जैन
श्रीनगर गढ़वाल
उत्तराखंड
एकाकार
'मैं मृत्यु हूँ। तुम मेरी प्रतीक्षा का अंतिम विराम हो। मैं तुम्हारी होना चाहती हूँ पर तुम्हें मरा हुआ नहीं देख सकती..,' जीवन के प्रति मोहित मृत्यु ने कहा।
'मैं जीवन हूँ। तुम ही मेरा अंतिम विश्राम हो। तुम्हारी इच्छा पूरी करूँगा क्योंकि मैं तुम्हें हारा हुआ नहीं देख सकता..', मृत्यु के प्रति आकर्षित जीवन ने उत्तर दिया।
समय ने देखा जीवन का मृत होना, समय ने देखा मृत्यु का जी उठना, समय ने देखा एकाकार का साकार होना।
संजय भारद्वाज
जैन मुनि की हत्या के विरोध में सकल जैन समाज पुणे की विशाल रैली एवं कलेक्टर ऑफिस में ज्ञापन
पुणे, 20 जुलाई,कर्नाटक के बेलगावं चिकौड़ी में दिगम्बर जैनाचार्य कामकुमार नंदी महाराज की हत्या से आक्रोशित सकल जैन समाज पुणे द्वारा एक विशाल रैली निकाली गई। समाज के सैंकड़ों महिला-पुरूष, बच्चे हाथों में जैनध्वज पताकाएं, मांग सम्बन्धित पट्टिकाएं, बैनर लिए चल रहे थे। मौन जुलूस में जैन समाज के लोग हाथों में कालीपट्टी बांध कर चल रहे थे। ओसवाल जैन भवन से कलेक्टर ऑफिस तक जाने वाली किस रैली में हजारों की संख्या में लोग उपस्थित रहे और डिप्टी कलेक्टर ज्योति कदम मैडम को सभी संस्थाओं के प्रमुख अधिकारियों ने ज्ञापन सौपते हुए मांग की कि दोषियों को शीघ्र से शीघ्र कड़ा दंड दिया जाए ,साधुओं की सुरक्षा की जाए ऐसे प्रबंध किए जाएं कि भविष्य में ऐसे दुष्कृत्य की कभी पुनरावृत्ति ना हो ज्ञातव्य है .. ज्ञातव्य है चिकोड़ी गांव में 5 जुलाई को अहिंसक आचार्य जैन मुनि की बर्बर हत्या कर दी गई उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर बोरवेल में डाल दिए गए जिससे समस्त देश विदेश की जैन समाज में आक्रोश है।
ककनूस-
लघुकथा
ककनूस-
'साहित्य को जब कभी दफनाया, जलाया या गलाया जाता है, ककनूस की तरह फिर-फिर जन्म पाता है।'
उसकी लिखी यही बात लोगों को राह दिखाती पर व्यवस्था की राह में वह रोड़ा था। लम्बे हाथों और रौबीली आवाज़ों ने मिलकर उसके लिखे को तितर-बितर करने का हमेशा प्रयास किया।
फिर चोला तजने का समय आ गया। उसने देह छोड़ दी। प्रसन्न व्यवस्था ने उसे मृतक घोषित कर दिया। आश्चर्य! मृतक अपने लिखे के माध्यम से कुछ साँसें लेने लगा।
मरने के बाद भी चल रही उसकी धड़कन से बौखलाए लम्बे हाथों और रौबीली आवाज़ों ने उसके लिखे को जला दिया। कुछ हिस्से को पानी में बहा दिया। कुछ को दफ़्न कर दिया, कुछ को पहाड़ की चोटी से फेंक दिया। फिर जो कुछ शेष रह गया, उसे चील-कौवों के खाने के लिए सूखे कुएँ में लटका दिया। उसे ज़्यादा, बहुत ज़्यादा मरा हुआ घोषित कर दिया।
अब वह श्रुतियों में लोगों के भीतर पैदा होने लगा। लोग उसके लिखे की चर्चा करते, उसकी कहानी सुनते-सुनाते। किसी रहस्यलोक की तरह धरती के नीचे ढूँढ़ते, नदियों के उछाल में पाने की कोशिश करते। उसकी साँसें कुछ और चलने लगीं।
लम्बे हाथों और रौबीली आवाज़ों ने जनता की भाषा, जनता के धर्म, जनता की संस्कृति में बदलाव लाने की कोशिश की। लोग बदले भी लेकिन केवल ऊपर से। अब भी भीतर जब कभी पीड़ित होते, भ्रमित होते, चकित होते, अपने पूर्वजों से सुना उसका लिखा उन्हें राह दिखाता। बदली पोशाकों और संस्कृति में खंड-खंड समूह के भीतर वह दम भरने लगा अखंड होकर।
फिर माटी ने पोषित किया अपने ही गर्भ में दफ़्न उसका लिखा हुआ। नदियों ने सिंचित किया अपनी ही लहरों में अंतर्निहित उसका लिखा हुआ। समय की अग्नि में कुंदन बनकर तपा उसका लिखा हुआ। कुएँ की दीवारों पर अमरबेल बनकर खिला और खाइयों में संजीवनी बूटी बनकर उगा उसका लिखा हुआ।
ब्रह्मांड के चिकित्सक ने कहा, 'पूरी तन्मयता से आ रहा है श्वास। लेखक एकदम स्वस्थ है।'
अब अनहद नाद-सा गूँज रहा है उसका लेखन।अब आदि-अनादि के अस्तित्व पर गुदा है उसका लिखा, 'साहित्य को जब कभी दफनाया, जलाया या गलाया जाता है, ककनूस की तरह फिर-फिर जन्म पाता है।'
संजय भारद्वाज
मूक माटी में कला और विज्ञान का भव्य विमोचन
प्रख्यात विदुषी अनेक पुस्तकों की लेखिका मौलिक चिंतन के लिए विख्यात डाo नीलम जैन द्वारा लिखित मूक माटी में कला और विज्ञान का भव्य विमोचन संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के परम शिष्य निर्यापक श्रमण पूज्य श्री वीर सागर महाराज जी पूज्य श्री विशाल सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में पुणे में संपन्न हुआ । इस पुस्तक में डॉo नीलम जैन ने आचार्य श्री विद्यासागर जी द्वारा लिखित बहुचर्चित बहु प्रसिद्ध और देश के अनेक विश्वविद्यालयों में जिस पर अनेक शोध हुए हैं ऐसी मूक माटी के अंतरंग में निहित कला और विज्ञान संबंधी तथ्यों को उजागर किया है ।
यह नवीन दृष्टिकोण से किया गया प्रथम मौलिक प्रयास है ।समाज के गणमान्य वरिष्ठ व्यक्तियों एवं साधु-संतों ने पुस्तक को अपना आशीर्वाद प्रदान किया है।उल्लेखनीय है कि अभी हाल में नीलम जैन की प्रकाशित कृति प्राकृत भाषा में राम नेअनेक पुरस्कार प्राप्त किए और अपना विशिष्ट स्थान बनाया है। उल्लेखनीय है दोनों पुस्तकों को देश के प्रख्यात प्रकाशक वाणी प्रकाशन दिल्ली ने प्रकाशित किया है।
ये दोनो पुस्तक amazon पर उपलब्ध हैं ।
पुणे में बनेगा कीर्तिमान , प्रतिभा जागृति के माध्यम से मिलेगा हजारों बेटियों को रहने स्थान
पुणे में बनेगा कीर्तिमान , प्रतिभा जागृति के माध्यम से मिलेगा हजारों बेटियों को रहने स्थान
शहर के अलग अलग क्षेत्रों में होगा हॉस्टल का निर्माण, प्रतिभा जागृति नाम से मिलेगी पहचान
युग शिरोमणि आचार्य भगवन श्री विद्यासागर जी महाराज के विशेष आशीर्वाद के फलस्वरूप युवा मार्गदर्शक निर्यापक श्रमण श्री वीरसागर जी महाराज ससंघ का मंगल चातुर्मास पुणे में होने जा रहा है।
यह चातुर्मास इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस चातुर्मास का उद्देश्य साधर्मी सहायता के माध्यम से युवाओं को स्थापित करवाना है।
महान करुणाधारी गुरुदेव का इस प्रकल्प के पीछे मनोभाव है कि बाहर गांव और शहर से आई समाज की बेटियां सुरक्षा और संस्कारो के माहौल में रहने का स्थान प्राप्त कर सकें।
जिससे बेटियां अपनी प्रतिभा के माध्यम से समाज और देश को आगे ले जा सकें
👉इस योजना के तहत पुणे शहर में एक सेंट्रल हॉस्टल होगा जिसकी क्षमता लगभग 300 बालिकाओं और कामकाजी महिलाओं के लिए होगी , जहां पूर्ण धार्मिक वातावरण एवं संस्कारों से सजा एक परिवार होगा
👉 साथ ही साथ कुछ सैटेलाइट हॉस्टल शहर के अलग अलग स्थान पर शुरू हो सकेंगे जिसमें लगभग 100 - 100 बेटियों की क्षमता होगी।
👉आचार्य भगवन गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज ने इन परिसरों का नाम स्वयं अपने मुखारविंद से प्रतिभा जागृति दिया है
👉 निर्यापक श्रमण श्री वीर सागर जी महाराज ससंघ का यह चातुर्मास सक्रिय विद्या सर्वोपयोग के लिए समर्पित रहेगा, चतुर्मास का मुख्य उद्देश्य साधर्मी को संरक्षित करना है
👉आप से भी अनुरोध है इस योजना और चातुर्मास से जुड़कर आप धर्म को संरक्षित कर सकते है क्योंकि गुरुदेव कहते है यदि एक बेटी को संस्कारित किया जाए तो वह आने वाली कई पीढ़ी तक धर्म को सुरक्षित रखती है
👉अपने लिए बहुत किया अब अपनों के लिए करने की बारी है आइए इस मुहिम में तन मन धन से जुड़कर गुरु सपना साकार करें
मंगल चातुर्मास और मुनिश्री वीरसागरजी महाराज से जुडी समस्त प्रकार की जानकारी अपने फ़ोन पर प्राप्त करने के लिए नीचे दिए हुए लिंक से जुड़ें
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डा ममता जैन
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