आजादी पर पहरे क्यों हैं

आम आदमी के मन यहां पर,

इतने ठहरे ठहरे क्यों हैं।

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।। 

तुमको सत्ता हमने सौंपी,

रोशन होगी हर दीवाली,

दुःख के द्वार बंद होंगे सब, 

छाये चेहरों पर खुशहाली, 

झोंपड़ियों में ये बतलाओ,

फिर घनघोर अंधेरे क्यों हैं, 

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।1।।

तन ढकने को वसन नहीं है,

नहीं पेट भरने को रोटी, 

महंगाई से तन की गिरवी,

रखी हुई है बोटी बोटी,

तुमतो ऐश करो बंगलों में,

यहां इतने दुःख गहरे क्यों हैं,

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।2।।


चौराहों पर लुटे द्रोपदी,

जूं तक कानों में नहीं रेंगे,

न्याय और कानून को गुंडे,

दिखा रहे हंस हंस कर ठेंगे, 

नहीं पुकार सुनाई देती,

तुमको इतने बहरे क्यों हैं, 

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।3‌।।

राहजनी होती राहों में, 

सरेआम यहां पर रोजाना,

थाने और तहसील मौन हैं,

रहवर के घर भरे खजाना,

तुम सच्चे हैं तो द्वारे पर,

इतने खडे लुटेरे क्यों हैं,

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।4।‌।

दफ्तर दफ्तर में बैठे हैं,

मणिधारी यहां नाग बिषैले,

हर फ़ाइल पर वज़न मांगते,

घर ले जाते भरकर थैले, 

हिस्सा नहीं तुम्हारा तो फिर,

इतने यहां लुटेरे क्यों हैं,

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।5।।

थानों से बंधी है जारी, 

तहसीलों से महावारी है,

हर आफिस से महिने महिने,

आता हिस्सा सरकारी है,

ये समझादो इर्द-गिर्द ये,

बैठे आज कमेरे क्यों हैं,

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।6।।

सरेआम काले नागों को यहां,

पर दूध पिलाया जाता,

डंक मारने को पल पल में,

नाजों से सहलाया जाता,

सत्य नहीं तो लुटे लुटे से,

बैठे आज सपेरे क्यों हैं,

सत्ता सीनों ये बतलाओ,

आजादी पर पहरे क्यों हैं।।7।।

हरीश चंद्र हरि नगर

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