खोटे सिक्के जहाँ पे चलते हैं

 जब  भी  हम रास्ता  बदलते हैं

पहले गिरते है फिर  संभलते हैं


फर्श पर क्यूं न  हो बसर अपनी

ख़ाक हैं ख़ाक  पर  ही पलते हैं


रख के नज़रों को दूर मंज़िल पर

बे  धड़क  पत्थरों   पे   चलते  हैं


वैसे  फ़ौलादी  सीना है  फिर भी

नर्म  बातों  से  हम   पिघलते  हैं


तेरे  इस   शहर   से   मेरी  तौबा

खोटे  सिक्के  जहाँ  पे  चलते हैं

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कपिल कुमार

बेल्जियम

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