ग़ज़ल

                   

ग़ज़ब की ज़िन्दगानी हो गयी है। 

मुसीबत की कहानी हो गयी है।।


मिला औक़ात से ज्यादा बहुत कुछ, 

ख़ुदा की मेहरबानी हो गयी है। 


महकता है बहुत यादों का गुलशन, 

वही अब रातरानी हो गयी है। 


नहीं इन्सान के बस का रहा कुछ, 

ये आफ़त आसमानी हो गयी है। 


जिन्हें जेलों में होना चाहिए था, 

उन्हीं की हुक्मरानी हो गयी है। 


ठहर सकता नहीं कोई यहाँ पर, 

ये दुनिया आनी जानी हो गयी है। 


कहाँ तक आप दुहराएँगे इसको, 

कहानी ये पुरानी हो गयी है। 


पतन की गर्त में आपादमस्तक, 

ये कैसी अब जवानी हो गयी है। 


मुदित मन है सभा में हर किसी का,

विजय की ख़ुशबयानी हो गयी है। 


विजय की बात के चर्चे बहुत हैं, 

ज़ुबाँ तो ज़ाफरानी हो गयी है। 

                  विजय तिवारी, अहमदाबाद

No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular