ग़ज़ब की ज़िन्दगानी हो गयी है।
मुसीबत की कहानी हो गयी है।।
मिला औक़ात से ज्यादा बहुत कुछ,
ख़ुदा की मेहरबानी हो गयी है।
महकता है बहुत यादों का गुलशन,
वही अब रातरानी हो गयी है।
नहीं इन्सान के बस का रहा कुछ,
ये आफ़त आसमानी हो गयी है।
जिन्हें जेलों में होना चाहिए था,
उन्हीं की हुक्मरानी हो गयी है।
ठहर सकता नहीं कोई यहाँ पर,
ये दुनिया आनी जानी हो गयी है।
कहाँ तक आप दुहराएँगे इसको,
कहानी ये पुरानी हो गयी है।
पतन की गर्त में आपादमस्तक,
ये कैसी अब जवानी हो गयी है।
मुदित मन है सभा में हर किसी का,
विजय की ख़ुशबयानी हो गयी है।
विजय की बात के चर्चे बहुत हैं,
ज़ुबाँ तो ज़ाफरानी हो गयी है।
विजय तिवारी, अहमदाबाद
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