● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
एक–
डाली कहती डाल से, कस लो मुझको आज।
पेड़ सिसकता सोचता, गिरे न उनपर गाज।।
दो–
कली इधर बेचैन है, काँप रहा हर फूल।
रोते कोंपल दिख रहे, चूभ रहा है शूल।।
तीन–
माली चिन्तित है बहुत, कली बन रही फूल।
भौंरा उन्मादी बहुत, देता सबको हूल१।।
चार―
कली अनमनी दिख रही, कारण पूछें फूल।
माली भय से कह रहा, बेटी! जा सब भूल।।
पाँच―
बेटी सिहरन जी रही, माँ भी बहुत उदास।
बाप फफकता रह गया, कोई आस-न-पास।।
छ:―
बेटी मूक-बधिर बनी, बेटा खोया प्राण।
माँ-बाप भी नहीं रहे, कौन करेगा त्राण?२
सात―
सभी भाव अनाथ हुए, पीड़ा है असहाय।
सिसकी गूँगी दिख रही, किसका कौन सहाय?
शब्दार्थ :―
१ किसी नोकदार वस्तु से भोंकने की क्रिया।
२ रक्षा
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