विश्ववाणी हिन्दी संस्थान- अभियान जबलपुर-वनमाली सृजनपीठ जबलपुर इकाई साहित्योत्सव -

 साहित्योत्सव  - २० अगस्त २०२३

•भारतवर्ष का हृदय है मध्यप्रदेश। महर्षि जाबालि की कर्म और तपोभूमि जबलपुर, मध्यप्रदेश का हृदय है जिसे  संत विनोबा भावे ने संस्कारधानी का विरुद प्रदान किया। इसी हृदयस्थल पर साहित्य-मनीषियों का विशाल संगम रविवार २० अगस्त २०२३ को, स्वामी दयानंद सभागार, आर्य समाज भवन, बराट मार्ग, नेपियर टाउन, जबलपुर में हुआ। अभियान के संस्थापक, संचालक, व्यवस्थापक इंजी. साहित्यकार, एडवोकेट आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के कुशल नेतृत्व में ‘अभियान’ का वार्षिकोत्सव के अवसर विशेष आमंत्रित अतिथि थे- लखनऊ के ख्यात छंदशास्त्री- संपादक-समीक्षक इं. अमरनाथ, कवि डॉ. अवधी हरि, दतिया के साहित्यकार डॉ. अरविंद श्रीवास्तव 'असीम', दमोह से ग़ज़लकार डॉ. अनिल जैन विभाग अध्यक्ष अंग्रेजी, गुना से सॉनेटकार नीलम कुलश्रेष्ठ, उपन्यासकार मधुर कुलश्रेष्ठ तथा युवा सॉफ्टवेयर इंजीनियर कुलश्रेष्ठ तथा कटनी से सुकवि सुभाष सिंह।

उद्घाटन तथा कार्यकारिणी 

 अध्यक्ष, कार्यकारिणी पदाधिकारी तथा अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन एवं कोकिलकंठी गायिका अर्चना मिश्रा द्वारा सरस्वती वंदना के गायन पश्चात पूर्वाह्न १०.४५ बजे सभा की कार्यवाही प्रारंभ हुई। प्रथम सत्र में सभापति आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' की अध्यक्षता में पदाधिकारियों सर्वश्री बसंत शर्मा अध्यक्ष, छाया सक्सेना मुख्यालय सचिव तथा हरि सहाय पांडे कोषाध्यक्ष द्वारा अपने प्रतिवेदन तथा विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर की भोपाल, शिवपुरी, दिल्ली, पलामू, भीलवाड़ा तथा दमोह इकाइयों की गतिविधियों की संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की गई। नवनिर्वाचित कार्यकारिणी (अध्यक्ष बसंत शर्मा, उपाध्यक्ष मीना भट्ट व मनीषा सहाय, मुख्यालय सचिव छाया सक्सेना, सचिव डॉ. अनिल बाजपेई, कोषाध्यक्ष-कार्यकारी सचिव हरि सहाय पाण्डेय, प्रकोष्ठ संयोजक- अस्मिता शैली संस्कृति,   मुकुल तिवारी साहित्य,   शोभित वर्मा विज्ञान-यांत्रिकी, अजय मिश्र प्रचार, कार्यकारिणी सदस्य  प्रेम प्रकाश मिश्रा, राकेश मालवीय व  प्रमोद कुमार स्वामी)  ने संस्था के संविधान के पालन तथा हिंदी का अधिकतम उपयोग करने शपथ गृहण की। 


कृति विमोचन सत्र 


                            विख्यात भाषा शास्त्री उपन्यासकार डॉक्टर सुरेश कुमार वर्मा, कालिदास पीठ के निदेशक संस्कृत विभाग रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी, वैदिक साहित्य की प्रकांड पंडिता डॉक्टर इला घोष, संरक्षक सुश्री आशा वर्मा, विदुषी उपन्यासकार डॉ. चंद्रा चतुर्वेदी, वनस्पति शास्त्री नाटककार कवियत्री डाॅ. अनामिका तिवारी, संस्कृतविद डाॅ. सुमन लता श्रीवास्तव, पूर्व प्राचार्य डॉक्टर निशा तिवारी, अर्थशास्त्री द्वय डॉक्टर जयश्री जोशी एवं डॉक्टर साधना वर्मा, पूर्व न्यायाधीश द्वय मीना भट्ट-पुरुषोत्तम भट्ट, रसायन शास्त्री डॉ. अनिल बाजपेई, डाॅ.स्मृति शुक्ला विभागाध्यक्ष हिंदी मानकुँवर बाई शासकीय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डॉ संजय वर्मा उप प्राचार्य तक्षशिला इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, प्रो.शोभित वर्मा विभाग अध्यक्ष इलेक्ट्रॉनिक तक्षशिला इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी,  डॉक्टर मुकुल तिवारी, इंजीनियर सुरेंद्र सिंह पवार, साहित्यकार आचार्य हरि शंकर दुबे, समीक्षक डॉक्टर वीणा धमणगाँवकर, नवगीतकार जयप्रकाश श्रीवास्तव, कवियत्री मनीषा सहाय, निष्णात चित्रकार अस्मिता शैली, गीतिका श्रीव, गायिका अंबिका वर्मा, आर्कीटेक्ट मयंक वर्मा, सुकवि डॉ. उदयभानु तिवारी 'मधुकर', प्रेम प्रकाश मिश्र, पत्रकार अजय मिश्रा, राकेश मालवीय, प्रमोद कुमार स्वामी तथा स्थानीय साहित्य प्रेमियों की उपस्थिति में कृति विमोचन सत्र का शुभारंभ हुआ । स्तर के अध्यक्ष डाॅ.सुरेश कुमार वर्मा, मुख्य अतिथि इं.अमरनाथ , सभापति आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' को संचालक श्री बसंत कुमार शर्मा ने मंचासीन कराकर तिलक वंदन, माल्यार्पण आदि से यथोचित सत्कार-सम्मान कराया। 


                           इस सत्र में तीन कृतियों का विमोचन किया गया। आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी द्वारा रचित हिंदी - ब्रज काव्य संग्रह 'क्षण के साथ चला चल' की विस्तृत समीक्षा डाॅ.सुमनलता श्रीवास्तव जी ने प्रस्तुत करते हुए कहा-


ओज  प्रसाद  मधुर  भाव  ग्राही रचना।

कितने जन है जग में भावुक काव्यमना।।


                           दूसरी कृति आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' द्वारा संपादित विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर की प्रस्तुति साझा संग्रह- 'हिंदी साॅनेट सलिला' में देश के ३२ साॅनेटकारों के ३२१ साॅनेट संकलित हैं। संपादक श्री सलिल ने यह संकलन अपने गुरु सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार-कवि श्री सुरेश उपाध्याय जी को समर्पित की है जिनसे शालेय जीवन में हिंदी की शिक्षा प्राप्त की थी। इस अवसर पर श्री उपाध्याय जी की उपस्थिति होने में सुहागा होती। कृति के आरंभ में दिवंगत हिंदी सेवियों भगवती प्रसाद देवपुरा, विनोद निगम, जगदीश किंजल्क तथा प्रवीण सक्सेना को श्रद्धा सुमन समर्पित किए गए हैं। कृति के नेट में सोनेट विधा की दो शैलियों के शिखर हस्ताक्षरों शेक्सपियर तथा मिल्टन का सचित्र स्मरण स्वागते परंपरा है। इस कृति की विवेचना करते हुए श्रीमती छाया सक्सेना जी ने विश्व की प्रमुख भाषाओं में लोकप्रिय रहे इंग्लिश सॉनेट का अध्ययन-विश्लेषण कर, हिंदी छंद शास्त्र की परंपरानुसार रूपांतरण कर केवल ५ माह में ५० से अधिक सॉनेटकारों को छंदविधान सिखाने, उनमें से ३२ सहभागी सॉनेटकारों के ३२१ सॉनेट चयनित-संपादित- प्रकाशित करने के सारस्वत अनुष्ठान को मूर्त करने के लिए श्री सलिल को साधुवाद दिया। श्री सलिल ने इंग्लिश सॉनेट के शिल्प विधान तथा कथ्य प्रस्तुतीकरण की जानकारी देते हुए कहा कि शीघ्र ही इटैलियन सॉनेट की कार्यशाला आयोजित कर उसका संकलन प्रकाशित किया जाएगा। 


तीन विश्व रिकॉर्ड - 


                           श्री सलिल ने 'हिंदी सॉनेट सलिला' के प्रकाशन से तीन विश्व रिकॉर्ड १. हिंदी का प्रथम साझा सॉनेट संकलन, २. ३२ सॉनेटकारों का प्रथम संकलन तथा ३. ३२१ सॉनेटों का प्रथम संकलन बनने की घोषणा करतल ध्वनि के मध्य की। श्री सलिल ने वनमाली सृजन पीठ जबलपुर इकाई द्वारा संचालित अध्ययन केंद्र द्वारा संचालित गतिविधियों व कार्यक्रमों की जानकारी दी।


                           तीसरी कृति नवगीतकार श्री जयप्रकाश श्रीवास्तव जी के नवगीत संग्रह 'चल कबीरा लौट चल' की सारगर्भित समीक्षा करते हुए छंदविद- संपादक संजीव वर्मा 'सलिल' ने इन नवगीतों को समय साक्षी तथा नवाचारित निरूपित किया। 


                           मुख्य अतिथि श्री अमरनाथ जी ने अभियान संस्था के जन्म के साथ अपने जुड़ाव, जबलपुर की पूर्व यात्राओं की यादों को साझा करते हुए सद्य  विमोचित तीनों कृतियों के लोकप्रिय होने की कामना की।


                           अध्यक्ष की आसंदी से आशीषित करते हुए डॉ. सुरेश कुमार वर्मा ने संस्कारधानी जबलपुर में हिंदी व्याकरण तथा छंदशास्त्र के प्रति अनुराग तथा स्तरीय सृजन की परंपरा पर प्रकाश डालते हुए विश्ववाणी हिंदी संस्थान अभियान जबलपुर के प्रयासों को सराहा।


कृति चर्चा सत्र


                           श्रीमती छाया सक्सेना जी के संचालन, डाॅ. इला घोष की अध्यक्षता तथा श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ के मुख्यातिथ्य में विमर्श सत्र के अंतर्गत ६ पुस्तकों पर चर्चा की गई।

 

                           डाॅ.सुमनलता श्रीवास्तव जी की कृति शोधग्रंथ संगीताधिराज हृदय नारायण देव पर डाॅ. वीणा धमणगाँवकर जी ने विस्तृत चर्चा की। 


                           दूसरी कृति श्री बसंतकुमार शर्मा जी के दोहा संग्रह ढाई आखर (भूमिका श्री नवीन चतुर्वेदी, प्रस्तावना आचार्य भगवत दुबे, आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' और डाॅ. राम गरीब पांडेय 'विकल') में १४० विषयों पर दोहे संकलित हैं। इस पर विस्तृत चर्चा की डाॅ. अनामिका तिवारी जी ने।

 

                           तीसरी कृति डाॅ. अनामिका तिवारी जी द्वारा रचित नाटक- शूर्पणखा पर प्रकाश डाला आचार्य हरिशंकर दुबे ने। 


                           चौथी कृति डाॅ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' एवं डॉ. पार्वती गोसाईं द्वारा संपादित 'आभासी दुनिया के नवगीत' पर विस्तृत चर्चा की आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' ने। वक्ता ने अंतर्जाल पर जबलपुर के रचनाकारों के महत्वपूर्ण अवदान की स्थानीय विश्व विद्यालय द्वारा शोध कार्य में उपेक्षा को शोचनीय बताया। डॉ. स्मृति शुक्ला ने भावी शोधकार्यों में इस ओर ध्यान देने की घोषणा की।


                           पाँचवी कृति नित्यकल्पा तुलसी-  डाॅ.चन्द्रा चतुर्वेदी जी द्वारा विरचित उपन्यास है जिस पर विस्तृत प्रकाश डालते डाॅ. स्मृति शुक्ला जी ने इसे दो पीढ़ियों के जीवन मूल्यों तथा जीवन शैली के मध्य भाव सेतु निरूपित किया। 


                           छठी कृति माण्डवी  आचार्य हरिशंकर दुबे द्वारा रचित उपन्यास है। इसके मूल में त्रेताकालीन रामानुज भरत की पत्नी माण्डवी की विरह वेदना है। कृति की समीक्षा इं.सुरेन्द्र सिंह पँवार ने की।


                           इस सत्र के समापन के पश्चात भोजन के लिए आमंत्रित किया गया। इतना स्वादिष्ट भोजन यदा-कदा ही नसीब हो पाता है। भोजन व्यवस्था से जुड़े श्री बसंत कुमार शर्मा जी और श्री राकेश बगड़वाल जी निःसन्देह प्रशंसा के पात्र हैं।


अलंकरण सत्र


                           भोजनोपरान्त अलंकरण सत्र के अध्यक्ष आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी और मुख्य अतिथि डाॅ. अनिल जैन रहे। संचालन श्रीमती छाया सक्सेना ने किया। इस सत्र में नौ व्यक्तियों को अलंकृत और सम्मानित किया। 


                           इं.अमरेन्द्र नारायण को आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी के सौजन्य से स्वामी सत्यमित्रानंद गिरी अलंकरण व ५००१ रु. सम्मान निधि से विभूषित किया गया।


                           लखनऊ से पधारे इंजी. अमरनाथ को "शांतिराज हिन्दी अलंकरण व ५००१ रुपये सम्मान निधि* आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' के सौजन्य से प्रदान किया गया। 


                           जबलपुर के यशस्वी साहित्यकार डाॅ.सुरेश कुमार वर्मा को *राजधर जैन मानसहंस अलंकरण व ५००१ रुपये सम्मान निधि" डाॅ. अनिल जैन जी के सौजन्य से दिया गया।


                           जबलपुर निवासी डाॅ.निशा तिवारी को स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण व २१०० रु. रुपये सम्माननिधि श्री बसंत कुमार शर्मा के सौजन्य से भेंट की गई। 


                           दतिया निवासी डाॅ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' को सिद्धार्थभट्ट स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण २१०० रुपये सम्मान निधि सौ. मीना भट्ट जी के सौजन्य से भेंट की गई। 


                           डाॅ.शिवकुमार मिश्र स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण व २१०० रु. सम्मान निधि से डाॅ. अवधी हरि लखनऊ  को डा.अनिल वाजपेयी जी के सौजन्य से अलंकृत किया गया।


                           दमोह से पधारे डा.अनिल जैन को सुरेन्द्रनाथ सक्सेना स्मृति हिन्दी गौरव अलंकरण व २१०० रु. सम्मान निधि मनीषा सहाय जी के सौजन्य से अलंकृत किया गया। 


                           भोपाल की सरला वर्मा जी को सत्याशा नवांकुर अलंकरण व ११०० रु. सम्मान निधि डा.साधना वर्मा जी के सौजन्य से भेंट की गई। 


                           गुना से पधारी श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ जी को कवि राजीव वर्मा स्मृति हिन्दी श्री अलंकरण व ११०० रु. सम्मान निधि  सुश्री आशा वर्मा जी के सौजन्य से भेंट  की गई।


                           मुख्य अतिथि डॉ. अनिल जैन (विभागाध्यक्ष अंग्रेजी, संयोजक दमोह इकाई) ने समसामयिक साहित्य की समीक्षा तथा साहित्यकारो के अवदान को समादृत करने को अनुकरणीय निरूपित किया।


                           अध्यक्ष आचार्य कृष्णकांत चतुर्वेदी जी ने साहित्य के मूल्यांकन को समाज में सद्विचारवर्धक निरूपित करते हुए इसके मूल में तटस्थ-निष्पक्ष दृष्टि होने पर बल दिया।


विमर्श सत्र 


                           यह  सत्र डाॅ. निशा तिवारी की अध्यक्षता तथा डाॅ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' दतिया के मुख्यातिथ्य में संपन्न हुआ। इस सत्र का संचालन श्री हरिसहाय पाण्डेय जी ने किया। इस सत्र में निम्न तीन विषयों पर विमर्श हुआ।

 

१.हिन्दी और आजीविका/रोजगार। इस विषय पर अर्थशास्त्री डाॅ. जयश्री जोशी से.नि. प्राचार्य ने हिंदी को रोजगारक्षम भाषा बताते हुए आँकड़े प्रस्तुत किए। डाॅ. मुकुल तिवारी नेभारत में व्यवसाय के लिए हिंदी को अपरिहार्य बताया।


२.हिन्दी और विज्ञानः शिक्षा लेखन और शोध के संदर्भ में- इस विषय पर इंजी. अमरनाथ ने तकनीकी शब्दों के भारतीय उत्स का प्रामाणिक उल्लेख किया। इंजी. संजय वर्मा (उप प्राचार्य- विभागाध्यक्ष सिविल, सचिव आई.जी.एस.) ने अभियांत्रिकी शिक्षण में हिंदी की उपादेयता प्रतिपादित की। नीलम कुलश्रेष्ठ जी ने शालेय शिक्षा में हिंदी को अपरिहार्य बताया।


३. हिन्दी का भविष्यः भविष्य की हिन्दी। इस विषय पर मुख्य वक्ता विदुषी डॉ. इला घोष ने मातृभाषा को शिक्षा, व्यवसाय तथा जीवन के सकल कार्य व्यवहार के लिए सर्वोत्तम बताया। डाॅ. अवधी हरि, मधुर कुलश्रेष्ठ आदि ने सारगर्भित विचार व्यक्त किए। मुख्य अतिथि डॉ. अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम' ने विदेशों के साहित्यिक कार्यक्रमों में समयानुशासन की प्रशंसा कर भारत के साहित्यिक कार्यक्रमों में अनुकरण की अवश्यकत प्रतिपादित की। सत्राध्यक्ष  डॉ. निशा तिवारी ने हिंदी संबंधी संवैधानिक प्रावधानों की जानकारी दी।


रचनापाठ सत्र


                           इस सारस्वत अनुष्ठान का समापन रचना पाठ सत्र से हुआ। इस सत्र के अध्यक्ष उपन्यासकार मधुर कुलश्रेष्ठ, मुख्य अतिथि अवधी हरि तथा संचालक प्रो. शोभित वर्मा रहे।  बसंत शर्मा, मनीषा सहाय, हरिसहाय पांडे, अजय मिश्र 'अजेय', प्रेमप्रकाश मिश्र, मीना भट्ट, इंजी. अमरनाथ, नीलम कुलश्रेष्ठ, अरविन्द श्रीवास्तव 'असीम', अरुणा पाठक, छाया सक्सेना 'प्रभु', आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', डा. शोभित  वर्मा आदि अखिलेश खरे, राजेश पाठक प्रवीण, विनोद नयन, विजय तिवारी किसलय, संतोष नेमा, विजय नेमा  'अनुज', डॉ. रानू राठौड़ 'रूही' आदि ने सहभागिता कर श्रीवृद्धि की।। दिन भर रुक रुक कर होती रही जल वृष्टि के बाद काव्य रस वर्षा ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के समापन पर श्री बसंतकुमार शर्मा जी ने सभी उपस्थित व्यक्तियों का आभार व्यक्त किया।


                           मंच पर सक्रिय दिख रहे चेहरे तो सभी की नजर में आ रहे थे। साहिर लुधियानवी जी ने कहा था-


साज  से  निकली  जो धुन, सबने सुनी है

तार पे जो गुजरी है, किस दिल को पता है।

 इस धुन को मधुर बनाने वालों में सभी समितियों के आयोजक, संचालक और स्वयंसेवकों को उनकी निष्ठा और कर्तव्य-बद्धता के प्रति नमन और सलाम पेश न करना कृतघ्नता होगी। आइये इन चेहरों को भी पहचान लीजिए।

१-आयोजन, अलंकरण, समाचार व्यवस्था समिति- इं.संजीव वर्मा 'सलिल', अजय मिश्रा, मनीषा सहाय, डॉ. अनिल बाजपेई। २.स्वागत, परिवहन, अलंकरण, बैनर, आमंत्रण पत्र समिति- बसंत कुमार शर्मा, हरिसहाय पांडे, प्रेम प्रकाश।

३.सरस्वती पूजन, मंच क्षव्यवस्था। मंजरी शर्मा, छाया सक्सेना।

४. भोजन व्यवस्था- बसंत कुमार शर्मा,राकेश बगड़वाल।

साहित्यकारों ने परस्पर अपनी-अपनी पुस्तकों का आदान-प्रदान और छायांकन कर इस अनुपम सारस्वत अनुष्ठान की मधुर स्मृतियाँ सहेजीं।


मोबाइल से नुकसान

 💐मोबाइल हमारे लिए वरदान या अभिशाप 💐


आज हमारे जीवन में मोबाइल जरूरत बन गया है।

आज इस टैक्नोलॉजी के कारण हम घर बैठे अपने वालो से बात कर सकते है विडियो के माध्यम से बहार बैठे बच्चों को कही भी हो  एक दुसरे को देख सकते है बात कर सकते है।

जब मोबाइल नही था उस वक्त सिर्फ एक पत्र ओर टेलीग्राम  का ही साधन था जिससे संदेश आने में 8,10 दिन लग जाते थे दुख सुख से हम परे रहते थे अब मोबाइल आने से एक एक सेंकड की खबर हमें परिवार दोस्तों की सुख दुख की खबर मिल जाती है। 

आज के जमाने में इतना नेटवर्क फैला हुआ है की हम आराम से घर बैठे खरिदारी कर सकते है।

अब न नल बिजली आदी का बिल भरने आफिस नही जाना पड़ता है मोबाइल से ही पैमेंट हो जाता है।

हर तरह की बैकिंग सेवा मोबाइल के थ्रू हो जाती है। ं

अब रेडियों सुनने की भी जरुरत नही पडती आपको मोबाइल पर हर तरह के गीत, गजल भजन, कविता हर तरह का संगीत भी सुनने को मिल जाता है।



 अगर आप 24 घंटे मोबाइल पर लगे रहते हैं तो मानव शरीर को बहुत सारी बीमारियां हो सकती है। 

मोबाइल फोन से निकलने वाले इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विक्की कारण आपको नुकसान पहुंचा देगा। 


इसके अलावा मोबाइल का अधिक इस्तेमाल आपको मानसिक रोगी कैंसर ब्रेन ट्यूमर डायबिटीज हृदय रोग आदि कई बीमारियां दे सकता है। 

मोबाइल से यह नुकसान भी है कि लोग अधिकतर अपनी गोपनील जानकारियां भी सेव कर लेते हैं जो कि गलत है। 

आजकल लोग इतने चतुर हो गए हैं की आपके गोपनीय जानकारियां को भी वह चुरा सकते हैं। 

 मोबाइल के कारण आजकल यूट्यूब पर इतने गंदे गंदे मैसेज गंदे गंदे वीडियो जो आते हैं इससे बच्चों के शारीरिक मानसिक पर असर पड़ता है और बच्चे उसी राह को पकड़ लेते हैं और बिगड़ जाते हैं। 

ऐसे कई गेम भी है जो उनकी जान को भी जोखिम में डाल देते है। 

आजकल मोबाइल से सबसे बड़ा नुकसान यह है की किसी का भी फोटो किसी के भी चेहरे से एडिट कर देते है बदनाम करने के लिए ब्लेक मेकिगं करने के लिए

। मोबाइल फोन हमेशा अपने जेब में साथ में सट्टा कर नहीं रखना चाहिए क्योंकि इससे  निकलने वाले रेडिएशन से मानव शरीर को नुकसान होता है। मोबाइल के कारण छात्रों की पढ़ाई लिखाई बहुत कमजोर हो रही है विशेष कर गणित में ना बच्चे पहाड़ी सीख पाते हैं ना जोड़ जोड़ घटाव भाग सीख पाते हैं क्योंकि  मोबाइल में कैलकुलेटर होता है। मोबाइल के कारण आजकल के बच्चे गणित में विशेष कमजोर होते जा रहे हैं। 

एक मोबाइल के कारण फिजूल खर्च भी बढ़ गया है पहले बैंक जाकर बाकायदा पैसे निकालते थे देते थे तो ध्यान रहता था कितना सेविंग है अब बस नेट पर पेमेंट कर देते हे शॉपिंग करने जाते हैं तो ध्यान ही नहीं रहता है बस नेट पेमेंट कर दिया उस चक्कर में फालतू सामान भी खरिदने लेते है। 

 मोबाइल का प्रयोग सोच समझ के विवेक से करना चाहिए जिससे हमारे मानसिक  शारीरिक स्वास्थ्य के लिए परेशानी का सबब न बने। ऐसे मोबाइल से लाभ काफी है और नुकसान भी अगर मोबाइल का सही इस्तेमाल किया जाए तो कुछ कारणों को छोड़कर मोबाइल वरदान है।


प्रभा तिवारी

डीजे के शोर में लुप्त होती पारंपरिक * वाद्य यंत्रों की मधुर धुन..*


                         शहनाई, वीणा,मुरली,तबला, ढोलक, आदि अनेकों पारंपरिक वाद्य यंत्र है,जो भारतीय  संगीत को मधुरता प्रदान करते हैं. भारत मे लोक एवं क्षेत्रीय भाषा में गाए जाने  वाले विभिन्न गीतों को विभिन्न वाद्य यंत्रों के संगीत उन गीतों को सुरमधुर कर्ण प्रिय बनाते है. मध्यम से तीव्र और तीव्र से मध्यम  हर लय पर सुखद मधुर अहसास होता है. देश विदेशों से आने वाले पर्यटक भी पारंपरिक वाद्य यंत्रों का संगीत सुन मंत्रमुग्ध हो आकर्षित होते हैं.

               विडंबना है कि वर्तमान में बढ़ते डीजे संस्कृति ने इन पारंपरिक मधुर संगीत की धुन औऱ कान फोड़ू, करकश तेज आवाज ने स्थान ले लिया, किसी रैली जुलूस धार्मिक यात्रा शादी विवाह में आजकल एक डीजे से तो काम ही नहीं चलता कम से कम दो या दो से अधिक डीजे होते हैं अगर ऐसे में अलग-अलग दल हो तो उसमें प्रतिस्पर्धा बेहतरीन और तेज आवाज वाले डीजे की होती है । अमूमन देखा भी जाता है, कानफोडू आवाज के साथ अवसर की मर्यादा भी धीरे-धीरे समाप्त होती जाती है धार्मिक जुलूस मे कर्णप्रिय भजनों की भक्ति में भक्ति  नृत्य की सुंदरता का स्थान फिल्मी गानों की अभद्रता लेने लग जाती है एवं धार्मिक अवसरों पर ऐसा होना धार्मिक आस्थाओं को गहरा आघात पहुंचाता है साथ ही ध्वनि प्रदूषण भी  फैलाता है!जो गहन चिंतन का विषय है.

              हाल ही के दिनों में देखा जा रहा है जिस निमाड़ की लोक संस्कृति से जुड़े भगोरिया पर्व का आगाज हो चुका है ऐसे में कुछ संगठनों द्वारा भगोरिया पर्व पर डीजे पर प्रतिबंध हेतु प्रयास किए जा रहे हैं जो बहुत ही अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय प्रयास है!पारंपरिक परिधानों में सजे आदिवासी जब,ढोल मांदल की थाप पर एक साथ एक से कदमो से थिरकते हैं ,और फिजा को रंग बिरंगा करते हैं तब तब उनका पूरा समूह सुंदर आकर्षण का केंद्र होता है हर कोई उनके साथ थिरकने लग जाता है. आज निमाड़ का भगोरिया अपनी इस परंपरागत शैली से ही प्रसिद्धि पा रहा है! जो कि संपूर्ण निमाड़ वासियों के लिए बहुत ही गर्व की बात है!

             ऐसी ही बातों का अनुसरण करते हुए आज हमारी युवा पीढ़ी को अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति सजग एवं जागरूक होने की  आवश्यकता है! वास्तव मे तो..संस्कृति का संवाहक ही सच्चा राष्ट्र भक्त है!



बरखा विवेक बड़जात्या

बाकानेर, जिला धार

मध्य प्रदेश

जश्न



जश्न मनाते जीत का,

            मन में उठे उमंग।

 नाचें गाएं खूब हम,

         देख हुए सब दंग।।1।।

 

चंद्रयान उतरा सही,

           खुशी हुई भरमार।

 जश्न मनाया देश में,

        मोदक बटे अपार।।2।।


 खुशी हुई त्यौहार सम,

              जमा देश में रंग।

 इसरो ने किया कमाल,

          रहे देखते दंग।।3।।


 दिवाली पर चल रहे,

           बंम पटाखे आज।

 जश्न मनाते साथ ही,

         बनते सारे काज।।4।।


 रक्षाबंधन आ रहा,

           बहनों का त्यौहार।

 राखी बांधे प्रेम से,

         जश्न मनाओ यार।।5।।


 मना देश में जश्न है,

         विजय चांद पर पाए।

 मिले खबर अब चांद से,

      सब हर्षित हो जाए।।6।।


 ढोल ढमाके बज रहे,

            हर्षित हैं नर नार।

 शादी का माहौल है

        जश्न मना रहे यार।।7।।


 मन मयूर सा नाचता,

         बादल गरजे खूब।

 गरज गरज बिजली गिरे,

          जश्न मनाती दूब।।8।।

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डॉ. सुरेश चतुर्वेदी "सुमनेश"

 नमक कटरा भरतपुर राज़

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आत्मानुभूति का महापर्व है दशलक्षण


    प्रो अनेकांत कुमार जैन

जैन परंपरा के लगभग सभी पर्व हमें सिखाते हैं कि हमें संसार में बहुत आसक्त होकर नहीं रहना चाहिए । संसार में रहकर भी उससे भिन्न रहा जा सकता है जैसे कमल कीचड़ में रहकर भी उससे भिन्न होकर खिलता है । यह कार्य अनासक्त भाव से रहने की कला जानने वाला सम्यग्दृष्टि साधक मनुष्य बहुत अच्छे से करता है । दशलक्षण पर्व भेद विज्ञान करना सिखाता है , वह कहता है कि पाप से बचने का और कर्म बंधन से छूटने का सबसे अच्छा उपाय है-भेद विज्ञान की दृष्टि । 


मूलाचार ,भगवती आराधना आदि दिगंबर परंपरा के आगमों में दसवें कल्प का नाम प्राकृत में  पज्जोसवणा लिखा है ,इसका संस्कृत रूप पर्युषणकल्प है , जिसका अभिप्राय है वर्षाकाल में चार महीने भ्रमण त्याग कर एक स्थान पर वास । पर्युषण का अर्थ चातुर्मास से लगाया जा सकता है । अतः इस दौरान जो भी पर्व आते हैं उन्हें पर्युषण पर्व कहा जा सकता है ।आठ दिन आत्मा की आराधना करने वाले श्वेताम्बर संप्रदाय में इस पर्व को पर्युषण पर्व ही कहा जाता है । दशलक्षण भी इन्हीं चातुर्मास में आते हैं अतः उसे भी उपचार से पर्युषण पर्व कह दिया जाता है । पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है- ‘परि आसमंतात् उष्यन्ते दह्यन्ते पाप कर्माणि यस्मिन् तत् पर्युषणम्’ अर्थात् जो आत्मा में रहने वाले कर्मों को सब तरफ से तपाये या जलाये, वह पर्युषण है । दशलक्षण पर्व में दस दिन तक आत्मा के दश लक्षणों की उपासना की जाती है ।


प्राय: प्रत्येक पर्व का संबंध किसी न किसी घटना, किसी की जयंती या मुक्ति दिवस से होता है। दशलक्षणमहापर्व का संबंध इनमें से किसी से भी नहीं है क्योंकि यह स्वयं की आत्मा की आराधना का पर्व है।दशलक्षण पर्व आत्मा (अंतस) तथा उसे ज्ञान दर्शन चैतन्य स्वभावी मानने वालों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। जैन परंपरा में इन दिनों श्रावक-श्राविकाएं, मुनि-आर्यिकाएं (जैन साध्वी) पूरा प्रयास करते हैं कि आत्मानुभूति को पा जाएं, उसी में डूबें तथा उसी में रम जाएं।


धम्मस्स दसलक्खणं खमा मद्दवाज्‍जवसउयसच्चा ।


                                     संजमतवचागाकिंयण्‍हं बंभं य जिणेहिं उत्तं ।


जिनेन्द्र भगवान् ने धर्म के दस लक्षण कहे हैं – उत्तम क्षमा , उत्तम मार्दव , उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य ।


क्षमा, मार्दव (अहंकार रहित), आर्जव (सरलता), सत्य, शौच (शुद्धि), संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य (परिग्रह का त्याग) और ब्रह्मचर्य जैसे दस लक्षण शुद्धात्मा के स्वभाव हैं, किंतु हम अपने निज स्वभाव को भूलकर परभाव में डूबे रहते हैं। अंतस के मूल शुद्ध स्वभाव को प्राप्त करने के लिए ही यह पर्व मनाया जाता है। पर्युषण पर्व सात्विक जीवन शैली के अभ्यास तथा आत्मानुभूति करवाने के लिए प्रति वर्ष आता है।ऐसा कहा जाता है कि इस विषम पंचम काल में भी जो इन दस धर्मों को यथा शक्ति धारण करता है ,वह अतीन्द्रिय आनंद और अनेकांत स्वरूपी आत्मा को प्राप्त करता है –


धारइ जो दसधम्मो पंचमयाले णियसत्तिरूवेण ।


सो अणिंदियाणंदं लहइ अणेयंतसरूवं अप्पं ।।


दशलक्षण पर्व  वर्ष में तीन बार मनाया जाता है। भाद्र, माघ तथा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी से लेकर चतुर्दशी तक दस दिन सभी भक्त अपनी-अपनी भक्ति तथा शक्ति के अनुसार व्रत का पालन करते हैं। चातुर्मास स्थापना के कारण भादों में आने वाले दशलक्षण महापर्व का महत्व वर्तमान में सर्वाधिक है। भाद्रपद शुक्ल पंचमी से भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी तक दस दिन यह पर्व दिगंबर संप्रदाय में विशेष रूप से मनाते हैं इसे ही दशलक्षण महापर्व कहते हैं  ।


दशलक्षण पर्व की शुरुआत कब से हुई? इस प्रश्र का उत्तर किसी तिथि या संवत् से नहीं दिया जा सकता। ये शाश्वत पर्व है चूँकि आत्मा द्रव्यार्थिक नय (द्रव्य दृष्टि) से नित्य अजर-अमर है और धर्म के दशलक्षणों का भी संबंध आत्मा से है। अत: जब से आत्मा है तभी से यह पर्व है। अर्थात् अनादि अनन्त चलने वाला यह पर्व किसी जाति संप्रदाय या मजहब से नहीं बंधा है। आत्मा को मानने वाले तथा उसे ज्ञान दर्शन चैतन्य स्वभावी मानने वाले सभी लोग इस पर्व की आराधना कर सकते हैं।


पुराणों में दशलक्षणधर्म के व्रतों को पूर्ण करके मुक्त होने वाले अनेक भव्य जीवों की कथायें प्रसिद्ध हैं। मृगांकलेखा, कमलसेना, मदनवेगा और रोहणी नाम की कन्याओं ने दशधर्मों की आराधना मुनिराज के वचनानुसार की तो उनको भी अगले भव में इस पर्याय से मुक्ति मिली तथा आत्मानुभूति प्राप्त हुई। इसके अलावा भी सैकड़ों उदाहरण हैं जिनसे यह पता लगता है कि सम्यग्दर्शन पूर्वक दशलक्षण धर्म की आराधना करने वाले जीवों को मुक्ति प्राप्त हुई।


दशलक्षण पर्व की पूजन


दशलक्षण पर्व पर अन्य पूजनों के साथ साथ कुछ विशेष पूजनों को भी किया जाता है | प्रातः काल जिनमंदिरों में सार्वजानिक रूप से जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक होता है जिसमें श्रावक बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं | उसके उपरांत संगीत और बाजे गाजे के साथ सामूहिक पूजन पाठ भी बहुत भक्तिभाव पूर्वक होता है |नित्य नियम देव शास्त्र गुरु आदि पूजन के साथ साथ इसमें लगभग सभी जगह पंडित द्यानतराय जी की दशलक्षण पूजन अवश्य होती है ,सोलहकारण और रत्नत्रय पूजन भी अवश्य की जाती है |किन्हीं किन्हीं स्थानों पर दशलक्षण विधान का भी विशेष आयोजन होता है |


दशलक्षण पर्व मनाने की व्रत विधि


दशलक्षण पर्व पर तीन प्रकार के व्रत किये जा सकते हैं। अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार गृहस्थ इसका चुनाव करते हैं। उत्तम, मध्यम तथा सामान्य की अपेक्षा से व्रत की तीन विधियां हैं—(1) उत्तम विधि—इसमें दस दिन का दस उपवास रखा जाता है। इसमें अन्न तथा फल दूध इत्यादि किन्हीं भी पदार्थों का सेवन साधक नहीं करता। कुछ साधक निर्जला उपवास भी करते हैं इसमें जल भी ग्रहण नहीं करते। यह विधि किसी उत्तेजना प्रतिक्रिया अथवा क्रोधवश नहीं अपनानी चाहिए; अन्यथा व्रत का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता। सामान्य विधि तथा मध्यम विधि का कई बार अभ्यास हो जाने पर ही उत्तम विधि को क्रम से अपनाना चाहिए।(2) मध्यम विधि—पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी इन चार तिथियों में उपवास करना तथा शेष छह दिनों में एकाशन किया जाता है। एकाशन का अर्थ है दिन में एक बार, एक आसन में बैठकर, शुद्ध सात्विक भोजन ग्रहण करना तथा दोबारा मुंह भी जूठा न करना।

(3) सामान्य विधि—दसों दिन मात्र एकाशन करना। इसके आलावा भी बाजार में  बनी खाद्य वस्तुओं का भोग ना करना ,रात्रि में भोजन नहीं करना तथा सामायिक करना आदि नियम भी लोग कड़ाई से पालते हैं.


स्वाध्याय की अनिवार्यता

 उक्त तीनों विधियों को अपनाते समय सकुशल व्रत पूरे हों इसके लिए कुछ बातों की ओर भी ध्यान रखना चाहिए। कोई भी व्रत आकुलता-व्याकुलता में तथा जबरदस्ती न करें। अपना अधिकांश समय स्वाध्याय, पूजन तथा ध्यान करके बितायें।दशलक्षण पर्व पर शास्त्र प्रवचनों का भी विशेष आयोजन होता है। जैनदर्शन का मूलसूत्र ग्रन्थ है – तत्त्वार्थसूत्रम् , जिसकी रचना आचार्य उमास्वामि ने संस्कृत भाषा में प्रथम शताब्दी में की थी । इसमें दश अध्याय हैं ,पर्व के दस दिनों में इस ग्रन्थ का विशेष स्वाध्याय अनिवार्य माना गया है ।

नगर में यदि किन्हीं मुनिराज या आर्यिका (जैन साध्वी) जी का चातुर्मास हो रहा हो तो उनके मुख से तत्वार्थसूत्र का शुद्ध उच्चारण तथा दशों अध्यायों का भलीभांति सही अर्थ अवश्य समझ लेना चाहिए। दशधर्मों का मर्म भी वे समझाते हैं। यदि चातुर्मास स्थापना नहीं हो तो किन्हीं शास्त्र पारंगत विद्वान पंडित जी को इन दशदिनों में आमंत्रित कर उनका उचित सम्मान व सत्कार करके उनके मुख से तत्वार्थ सूत्र का सही उच्चारण सीखना चाहिए। तत्वार्थसूत्र के दशों अध्यायों का एक बार मनोयोग पूर्वक पाठ करने से एक उपवास का फल मिलता है।अपने आत्मा के समीप बैठने को भी ‘उपवास’ कहते हैं। यदि क्रोध ,मान ,माया ,लोभ आदि सभी कषायों को त्याग कर स्वसन्मुख पुरुषार्थ की मुख्यता से शुद्धात्मानुभूति के लिए हम पर्युषण महापर्व को मनायेंगे और शास्त्रोक्त विधि से पालन करेंगे तो एक दिन अखण्ड शुद्ध बुद्ध सत् चित् आनन्द स्वभावी अपनी शुद्धात्मा की अनुभूति अवश्य प्राप्त कर लेंगे|

अनंत चतुर्दशी


पर्व के अंतिम दिन को अनंत चतुर्दशी पर्व के रूप में मनाया जाता है | इस दिन छोटे छोटे बच्चे भी उपवास रखते हैं और विशेष पूजन आदि करते हैं |

क्षमावाणी पर्व

जैन परंपरा में दशलक्षण महापर्व के ठीक एक दिन बाद एक महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता है वह है- क्षमा पर्व ।


                         जीवखमयंति सव्वे खमादियसे च याचइ सव्वेहिं ।

‘मिच्छा मे दुक्कडं ' च बोल्लइ वेरं मज्झं ण केण वि ।।

 क्षमा दिवस पर जीव सभी जीवों को क्षमा करते हैं सबसे क्षमा याचना करते हैं और कहते हैं मेरे दुष्कृत्य मिथ्या हों तथा मेरा किसी से भी बैर नहीं है |

इस दिन श्रावक(गृहस्थ)और साधू दोनों ही  वार्षिक प्रतिक्रमण करते हैं ।पूरे वर्ष में उन्होंने  जाने या अनजाने यदि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के किसी भी सूक्ष्म से सूक्ष्म जीव के प्रति यदि कोई भी अपराध किया हो तो उसके लिए वह उनसे क्षमा याचना करता है ।अपने दोषों की निंदा करता है और कहता है-  ‘ मिच्छा मे दुक्कडं ' अर्थात् मेरे सभी दुष्कृत्य मिथ्या हो जाएँ । वह प्रायश्चित भी  करते  हैं ।इस प्रकार वह क्षमा के माध्यम से अपनी आत्मा से सभी पापों को दूर करके ,उनका प्रक्षालन करके सुख और शांति का अनुभव करते हैं  । श्रावक प्रतिक्रमण में  प्राकृत भाषा में एक गाथा है-

खम्मामि सव्वजीवाणं सव्वे जीवा खमंतु मे ।

मित्ती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज्झं ण केण वि ।'

अर्थात मैं सभी जीवों को क्षमा करता हूं सभी जीव मुझे क्षमा करें। मेरा प्रत्येक प्राणी के प्रति मैत्री भाव है, किसी के प्रति वैर भाव नहीं है

इस प्रकार दिगम्बर जैन परंपरा में दशलक्षण पर्व का अचिन्त्य महात्म्य है ।

राष्ट्रीय जैन एकता मंच का सम्मेलन संपन्न


जैन नारी रत्न सम्मान दिया गया


इंदौर / भगवान महावीर के 2550 में निर्वाण महोत्सव के अंतर्गत राष्ट्रीय जैन एकता मंच मध्य प्रदेश महिला प्रकोष्ठ द्वारा  विशाल सम्मेलन का आयोजन जाल सभा ग्रह में किया गया । आयोजन के अंतर्गत मध्यप्रदेश में पहली राष्ट्रीय जैन एकता मंच का स्थापना दिवस, महिला प्रकोष्ठ मध्य प्रदेश द्वारा किया गया । उक्त जानकारी देते हुए मंच की प्रदेश अध्यक्ष बरखा बड़जात्या एवम  प्रदेश महामंत्री डॉली जैन ने बताया की प्रारंभ में श्रीमती संजना जैन द्वारा मंगलाचरण किया गया ।कार्यक्रम के शुभारंभ अवसर पर  दीप प्रज्वलन समाज श्रेष्ठी महिला अतिथि श्रीमती रेणु  जैन कुलपति देवी अहिल्या विश्वविद्यालय एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सतीश जैन, दिल्ली राष्ट्रीय अध्यक्ष महिला प्रकोष्ठ श्रीमती सुनीता काला, दिल्ली संस्थापक सदस्य एवं राष्ट्रीय निर्वाचन अधिकारी श्रीमान विनोद  जैन, प्रदेशअध्यक्ष श्री जय कुमार जैन एवं समस्त राष्ट्रीय एवं प्रदेश पदाधिकारीयों द्वारा किया गया ।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आकाश विजयवीर्गीय थे।


मानव सेवा, समाज सेवा के विभिन्न क्षेत्रो में समर्पित भाव से अपना योगदान देने वाली जैन नारी शक्ति को "जैन नारी रत्न सम्मान" से राष्ट्रीय एवं प्रदेश पदाधिकारियों ने सम्मानित किया । श्रीमती सुमन जैन, श्रीमती विजया पहाड़िया, श्रीमतीरेखा  जैन,श्रीमती प्रतिभा बाबेल, श्रीमती मणिप्रभा अजमेरा, श्रीमती प्रतिभा  बाबेल जैसी जैन महिला शक्ति राष्ट्रीय स्तर पर हमारे समाज क़ी प्रेरणा बने यही इस सम्मान का उदेश्य रहा । इंदौर क़ी सम्मनीय नारी श्रीमती सुधा जैन एवं अतुलनीय प्रतिभा क़ी धनी श्रीमती संगीता  विनायका, श्रीमती चित्रा जैन को राष्ट्रीय मंच पर सम्मानित किया गया ।

प्रदेश के  समस्त जिलाध्यक्ष एवं कार्यकारिणी सदस्यों क़ी शपथ विधि ,शपथविधि अधिकारी श्रीमती कौशल्या पतंग्या ने करवाई ।जिलाध्यक्ष झाबुआ श्रीमती पुष्पा शाह, बड़वानी श्रीमती विनीता जैन भोपाल श्रीमती मीना कोठारी मंदसौर श्रीमती रेखा रतादिया मुरैना श्रीमती भावना  जैन, धार श्रीमती ममता गंगवाल नरसिंहपुर श्रीमती स्मृति  जैन, रतलाम श्रीमती निविता गंगवाल सागर श्रीमती शिवानी जैन डबरा श्रीमती बबली जैन शिवपुरी श्रीमती रजनी  जैन श्योपुर श्रीमती ममता जैन खरगोन श्रीमती मुक्ति  जैन ग्वालियर श्रीमती मनोरमा जैन देवास श्रीमती रचना तलाटी, मुरैना श्रीमती भावना जैन एवं इंदौर श्रीमती कल्पना  पटवा  एवं समस्त जिला अध्यक्ष की कार्यकारिणी ने शपथ ग्रहण की । 


इस अवसर पर  श्रीमती शिल्पा इंद्र जैन ने प्रदेश अध्यक्ष बरखा जी द्वारा रचित जैन एकता मंच के गीत को प्रस्तुत किया ।

इंदौर जैन समाज के समाज श्रेष्ठी श्री अशोक मेहता, श्री प्रकाश कांता भटेवरा जैन , श्री पियूष  जैन, श्री दीपक  जैन, श्री हॅसमुख गाँधी, श्री अनिल जैनको जैन, श्री संचेती , श्री अनिल  पदमा  भोजे, श्रीमती पंखुरी दोषी प्रमुख रूप से उपस्थित थे ।

सिलाई मशीन वितरित 

आओ चले स्वावलम्बन के तहत मंच के माध्यम से जैन समाज क़ी सिलाई कौशल में माहिर बहनो को आर्थिक सम्बल प्रदान करने के लिए 11 सिलाई मशीन वितरण किया गया । प्रदेश कार्याध्यक्ष श्रीमति मंजू जैन देवास, उपाध्यक्ष श्रीमती रेखा सुराणा ने कहा की मंच द्वारा आगे भी ऐसी योजनाएं जारी रहेगी ।

प्रदेश में बेहतर काम करने के लिए प्रदेश अध्यक्ष बरखा बड़जात्या को राष्ट्रीय समिति द्वारा सम्मनित किया गया ।

देश के विभिन्न प्रांतो एवं माध्य प्रदेश के विभिन्न जिलों से पधारे लगभग 300 अतिथियों ने आयोजन में भाग लिया ।आभार प्रदर्शन प्रदेश सचिव श्रीमती किरण बाफना ने किया  ।

[6:10 PM, 8/25/2023] Barkhajbad: इसमें.... रेणु ज़ी कुलपति महोदया ने जैन एकता मंच के उदेश्ययों क़ी प्रसंशा करते हुए समाज में महिलाओ के शक्तिकरण क़ी बात कही. एवं आकाश विजयवीर्गीय ज़ी ने कहा जैन समाज आज अकेला नहीं है समाज के सहयोग के लिए हम आपके साथ हैविशेष सहयोग इंदौर जिला कार्यकारिणी का रहा



नाल-रिश्ता



      छाया दो बुजुर्गों को अब उम्र आ ढली है। 

छोटी सी दुनिया उनकी बच्चों की हथेली है।।


लाठी सँभालने की आदत भले हुईं हैं। 

खुद को सँभालने की हिम्मत में खुशदिली है।। 


आसाँ नहीं सफर ये है डूबता सा सूरज

सतरंगी किरण देना जो धूप संग खिली है।। 


बचपन तेरा सहेजा इन हाथों ने फूलों सा

चल थाम ले लकीरें आशीषों संग फली हैं ।।


झुकती कमर लरजती पैरों से लड़खड़ाती

तेरी भरी सी दुनिया उन आँखों में पली है।।


माँ से है नाल-रिश्ता नौ महीने पहले वाला

कम ना पिता की महिमा रग-रग में ज्यों वली है।। 


चेहरे की झुर्रियों में अनुभव की गहन पाती 

केशों में चमके चाँदी मुख पे हँसी पोपली है।


परछाईंयाँ ये धुँधली कभी तेरी जिंदगी थीं

कठपुतलियाँ पुरानी नेह-डोरी कट चली है।।


ये दूर तक निहारें तेरी राहों के सितारे 

दिल में बड़ी है जगमग नजरें भले धुँधली हैं।। 


कदमों के निशाँ मानो शिला लेख हैं अमिट से

इतिहास युगों-युग के थाती अमर बली है।।


कहे मानवी रखो तुम सम्मान बुजुर्गों का  

छतनार बरगदों को ना समझो ठिठोली है।।


हेमलता मिश्र "मानवी" नागपुर महाराष्ट्र 440010

- आमजन हुआ बहुत लाचार...


 गायत्री देवी (निकुंज) रतलाम

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करो कोई लाख जतन करते है 

बाद कोई दुराचार होते है 

आम जन होते हैं बहुत  लाचार

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 कही लुट मची है कही कोई भागम भाग

कोई कानुन के  सताए है किसी ने कीया अत्याचार

रोते सीसकते 

बे गुनाह  सजा भुगतते  होते है परेशान 

आमजन हुआ बहुत लाचार 


काम काज नही मीलते  दो वक्त की रोटी  जुटाना हुआ मुहाल 

बीना रिस्वत के काम करे ना 

गरीब को देते धुतकार

   दिन पर दिन हाला बिगड़ ते जा रहे हैं 

आम जन हुआ बहुत लाचार 


देवनागरी का एक-एक वर्ण ब्रह्म है।

                                                     डॉ. रामा तक्षक

                    ऊर्जा सर्वत्र व्याप्त है तथा देवनागरी लिपि का प्रत्येक वर्ण ऊर्जावान है। नागरी लिपि का प्रत्येक वर्ण सजगता की सीढ़ी है। ओम का उच्चारण एक ध्वनि पुंज है। अतः देवनागरी का एक-एक वर्ण ब्रह्म है। इस आशय का प्रतिपादन डॉ. रामा तक्षक, साझा संसार, नीदरलैंड्स ने किया। 

साझा संसार, नीदरलैंड्स के तत्वावधान शनिवार,12 अगस्त,2023 को "देवनागरी लिपि: ध्वनि-उच्चारण, लिप्यंकन और सजगता" विषय पर आयोजित आभासी अंतरराष्ट्रीय गोष्ठी में बीज वक्ता  के रूप में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। गोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. मीरा गौतम, चंडीगढ़, पंजाब ने की। डॉ रामा तक्षक ने आगे कहा कि नागरी लिपि का सृजन ऐसे मनीषियों ने किया है, जिन्हें जीवन की ऊर्जा का आत्मबोध रहा। विज्ञान की बारीकियां जीवन दर्शन की सीढ़ी हैं। नागरी लिपि का प्रत्येक वर्ण सजगता की सीढ़ी है। 

उन्होंने यह भी कहा कि कंप्यूटर की गणना ऋग्वेद के आधार पर हुई है। कम्प्यूटर के निर्माण के समय कम्प्यूटर को देव गणेश स्वरूप माना गया। इसी कारण गणेश जी का चूहा, कम्प्यूटर का माउस है। 

अतः लिपि एक साधना है। नागरी के वर्ण मंत्र हैं। 

विशिष्ट अतिथि डॉ सुनीता थत्ते, कोलंबिया ने कहा कि वर्ण अविनाशी है, जो ब्रह्मांड में गूंजते हैं।  नागरी वर्णमाला की उत्पत्ति की कथा बड़ी रोचक है। भगवान शंकर के डमरू से नागरी वर्णमाला की उत्पत्ति हुई हैं। क्योंकि डमरु को 14 बार बजाने से 14 सूत्र निकलते हैं‌। यह 14 सूत्र हमारी सभी भाषाओं के मूल हैं। देवनागरी लिपि की  वर्णमाला चमत्कृत है। उसमें एक-एक वर्ण का उच्चारण निश्चित है। नागरी में स्वर स्वतंत्र रूप से उच्चरित होते हैं। व्यंजन पराश्रित होते हैं। जैसे क् + अ= क,  अंतस्थ वर्ण य, र, ल, व स्वर तथा व्यंजन के मध्य में हैं। इनमें स्वर और व्यंजन दोनों सम्मिलित हैं। ऊष्म और महाप्राण ध्वनियों के उच्चारण में समय लगता है। ऊष्म व्यंजनों के उच्चारण में ऊर्जा अधिक मात्रा में खत्म होती हैं। 

मुख्य अतिथि प्राचार्य डॉ शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने व्यक्त किया कि देवनागरी लिपि अन्य प्रचलित लिपियों की तुलना में अत्यधिक वैज्ञानिक और समृद्ध है। उच्चारण की दृष्टि से भी अत्यंत सरल व सुगम है। देवनागरी वर्णमाला के प्रत्येक वर्ण से मनुष्य के शरीर पर विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। लिप्यंकन और लिप्यंतरण की दृष्टि से भी देवनागरी उपयुक्त लिपि है।

देवनागरी के मानक रूप को अपनाने में आज सावधानी बरतनी चाहिए। केंद्रीय हिंदी निदेशालय, शिक्षा मंत्रालय ,भारत सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तिका के आधार पर मानक रूपों को प्रयोग में लाना चाहिए। वर्तमान समय में हिंदी भाषा के लेखन में देवनागरी लिपि के स्थान पर रोमन लिपि अपना स्थान बनाती जा रही है। इस प्रकार की लेखन शैली से देवनागरी के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह उपस्थित होने लगा है। 

डॉ मीरा गौतम, चंडीगढ़, पंजाब ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि देवनागरी लिपि ध्वनि-उच्चारण, लिप्यंकन और सजगता ये सभी एक दूसरे पर अन्योन्योश्रित है। भाषा के बाद लिपि अस्तित्व में आयी। बाएं से दाएं लिखी जाने वाली देवनागरी लिपि के व्यापक प्रचार-प्रसार व विकास के लिए कार्यकर्ताओं में नागरी के प्रति रुचि एवं प्रेम का भाव हो। देवनागरी अक्षरात्मक लिपि होने पर भी कहीं-कहीं वह वर्णिक हो जाती है। हिंदी देवनागरी और संस्कृत देवनागरी की वर्ण व्यवस्था अलग-अलग है। लिप्यंकन और लिप्यंतरण की महत्ता पर, साथ ही नागरी लिपि के उद्भव और विकास विस्तार से प्रकाश डाला।

नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल ने नागरी लिपि परिषद की गतिविधियों पर संक्षिप्त में प्रकाश डालते हुए कहा कि भाषा  को बचाने का कार्य केवल लिपि ही कर सकती है। गोष्ठी का मंच संचालन करते हुए डॉ शोभा प्रजापति, इंदौर, मध्य प्रदेश ने कहा कि, नागरी लिपि अपनी वैज्ञानिकता सिद्ध करने में सक्षम है। इस अंतरराष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में अमेरिका  से नीलू गुप्ता भी जुड़ी। साथ ही डॉ. सरोजिनी प्रीतम, डॉ मुक्ता कान्हा कौशिक, श्रीमती अपराजिता शर्मा, रतिराम गढेवाल, रायपुर, छत्तीसगढ़; फरहत उन्नीसा, विदिशा, मध्य प्रदेश; डॉ  हरिराम पंसारी, भुवनेश्वर, उड़ीसा ; डॉ. सैफुल इस्लाम, असम; श्रीमती रजनी प्रभा, मुजफ्फरपुर, बिहार ; डॉ बी एल आच्छा, चेन्नई, तमिल नाडु; प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र; डॉ रामहित यादव, डॉ. पूर्णिमा पांडे, नवी मुंबई; श्रीमती उपमा आर्य, लखनऊ; डॉ नजमा मलेक, नवसारी, गुजरात सहित अनेक गणमान्यों  की गरिमामयी उपस्थिति रही ।

आयोजन का तकनीकी संचालन राजेन्द्र शर्मा ने किया। 

गोष्ठी के संयोजक डॉ. रामा तक्षक, साझा संसार, नीदरलैंड्स  ने सभी के प्रति आभार प्रदर्शित किए।


--दीक्षा दिवस प्रतियोगिता भव्यता से संपन्न

 20अगस्त--दीक्षा दिवस प्रतियोगिता भव्यता से संपन्न

निर्यापक श्रमण मुनि श्री वीर सागर जी महाराज , मुनिश्री विशाल सागर जी महाराज और मुनिश्री धवल सागर महाराज जी के दीक्षा दिवस पर आयोजित प्रतियोगिता में  देश-विदेश के प्रतिभागियों ने उत्साह से भाग लिया 423  प्रविष्टियां प्राप्त हुई ।

प्रथम पुरस्कार अंशु शर्मा (शहादरा दिल्ली) द्वितीय पुरस्कार राजीव जैन( मेरठ) तृतीय पुरस्कार  शिल्पी जैन सुस गाँव (पुणे ) का है एवम 5 सांत्वना पुरस्कार शिवानी जैन वाकड़( पुणे) प्रशम कासलीवाल (पुणे) अनीता जैन (भीकनगांव) सुधीर जैन (खरगोन )महावीर जैन (बड़ागांव )ने प्राप्त किए  .  प्रतियोगिता ऑनलाइन थी समान अंक के प्रतिभागी अधिक होने के कारण लकी ड्रॉ द्वारा पुरस्कार विजेताओं के नाम निकाले गए. सभी उपस्थित विजेताओं को प्रतीक चिन्ह और निर्धारित नकद राशि के चेक शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट की ओर से डॉ नीलम जैन और डॉ ममता   जैन के द्वारा प्रदान किए गए। उल्लेखनीय है कि प्रथम पुरस्कार विजेता को ११०००रु    (ग्यारह हज़ार रुपए ) की राशि प्रदान की गयी  प्रथम पुरस्कार विजेता अंशु शर्मा जन्म से जैन नहीं है किंतु पूज्य श्री वीर सागर जी के परम भक्त हैं और जैन धर्म का पालन करते हैं सभी विजेताओं को और प्रतिभागियों को मुनि श्री ने आशीर्वाद  प्रदान किया।

प्रथम पुरस्कार विजेता

महान् कोशकार और हिन्दी-अनुरागी फ़ादर कामिल बुल्के की निधन-तिथि (१७ अगस्त) पर विशेष हिन्दी के अनुकरणीय अनुरागी थे, फादर कामिल बुल्के


महान् कोशकार और हिन्दी-अनुरागी फ़ादर कामिल बुल्के की निधन-तिथि (१७ अगस्त) पर विशेष

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय 

   'सर्जनपीठ', प्रयागराज के तत्त्वावधान मे संस्कृत और हिन्दी के विद्वान् फादर कामिल बुल्के की निधनतिथि के अवसर पर 'फादर कामिल बुल्के एवं उनका हिन्दी-अनुराग' विषय पर १७ अगस्त को एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था।

     उस आयोजन मे रायबरेली से साहित्यकार डॉ० किरन शुक्ल ने कहा, "रामकथा के उद्भव एवं विकास पर शोधग्रन्थ लिखना, उनके हिन्दी प्रेम को दर्शाता है। उन्होंने 'बाइबिल' का हिन्दी-अनुवाद कर, भारतीयों को ईसाई-धर्म समझने का अवसर प्रदान किया। उन्होंने अँगरेज़ी-हिन्दी का प्रामाणिक शब्दकोश तैयार किया; एक नाटक का भी हिन्दी में अनुवाद किया। बुल्के राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिन्दी- विभागाध्यक्ष रहे। उनका सम्पूर्ण जीवन हिन्दीभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित था। उन्होंने सभी मंचों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवाज़ बलंद की थी। वे  ईसाई-पुरोहित अवश्य थे; लेकिन उनका समूचा जीवन हिन्दीभाषा के लिए समर्पित रहा।"

मुंगेर विश्वविद्यालय, बिहार से संस्कृत-विभाग मे सहायक आचार्य डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय ने बताया ''फादर कामिल बुल्के में एक उत्कृष्ट श्रेणी का समन्वयवाद था। जीवन के अन्तिम समय तक; एक ओर जहाँ वे ईसा के प्रति एकनिष्ठ बने रहे वहीं दूसरी ओर, भारतीय जनमानस के आराध्य भगवान् श्री राम की मर्यादा के प्रति भी नतमस्तक रहें।पाश्चात्य विचारों को बिना छोड़े भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यपरक विचारों को भी अनुभूति के स्तर तक ले जाने का प्रयत्न करते रहे। उनके चरित्र का रूप उन्हें अन्य विद्वानों से पृथक् करता है।"

  चौधरी महादेवप्रसाद महाविद्यालय, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक अध्यापक डॉ० सरोज सिंह ने कहा, "फादर कामिल बुल्के ने उपनिवेश को चुनौती देने हेतु हिन्दी सीखना आरम्भ किया था तथा हजारीबाग  के पंडित बद्रीदत्त शास्त्री के निर्देशन में तुलसीदास के दो प्रमुख ग्रंथों :–श्री रामचरितमानस और विनयपत्रिका का गहन अध्ययन किया था। वे तुलसीदास की भक्ति, साधना, लोकमंगल तथा समन्वयवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे, इसीलिए उन्होंने 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी-माध्यम मे शोधकार्य किया था, जिसे भारतविद्या (इंडोलॉजी ) की प्रमुख रचना माना गया।"

     आयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, "उन दिनों अँगरेज़ीराज था और तब शोधकर्म अँगरेज़ी में ही किये जाते थे। फादर कामिल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी-माध्यम में शोधकर्म के लिए आग्रह किया था। उन्होंने हठधर्मिता प्रदर्शित करते हुए, 'हिन्दी' में ही शोध करने के लिए अपने शोध-निर्देशक डॉ० माताप्रसाद गुप्त से कहा था, जिसमे उनकी भी सहमति थी। अन्तत:, उस हिन्दी-अनुरागी के सकारात्मक हठ के सम्मुख इलाहाबाद-प्रशासन को झुकना पड़ा। तत्कालीन कुलपति पं० अमरनाथ झा ने शोध-सम्बन्धित नियमावली में वांछित संशोधन कराते हुए, कामिल बुल्के को हिन्दी-माध्यम में शोध करने की अनुमति दे दी थी, परिणामस्वरूप देश के समस्त विश्वविद्यालयों में 'हिन्दी-माध्यम' में शोध करने की अनुमति मिल गयी थी। इस प्रकार बुल्के का 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' शोधकर्म पूर्ण हुआ था। उल्लेखनीय है कि फ़ादर बुल्के ने 'राम' पर शोध करते समय रामायण के तीन सौ रूपों की खोज की थी। इस प्रकार शोध के इतिहास में पहली बार 'राम' पर विधिवत् शोधकर्म करने का श्रेय फ़ादर कामिल बुल्के को जाता है।"

      

       आर्यकन्या डिग्री कॉलेज, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक प्राध्यापक डॉ० मुदिता तिवारी ने कहा, "बेल्जियम के रेम्सचैपल में जन्मे और भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले संन्यासी फादर कामिल बुल्के ने रामकथा के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और बेहतर मनुष्य बनने में इसकी भूमिका को स्वीकार किया। उन्होंने राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में संस्कृत और हिंदीविभाग के अध्यक्ष रहते हुए अंग्रेजी-हिंदी कोश के शब्द-संकलन और सम्पादन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया था।"


    सेवाभारती, दिल्ली मे शिक्षक रसराज डॉ० अवनेन्द्र पाण्डेय ने कहा, "डाॅ० फादर कामिल बुल्के ने इलाहाबाद मे अपने प्रवास काल को 'दूसरा वसंत' कहा है । वे तत्कालीन हिन्दीभाषा के विद्वानों  से परिचित थे , जिनमे धर्मवीर भारती , जगदीश गुप्ता, रामस्वरूप चतुर्वेदी, रघुवंश, महादेवी वर्मा तथा अन्य लोग थे ।बुल्के डाॅ० धीरेन्द्र वर्मा को अपना  प्रेरणास्रोत और महादेवी वर्मा को बड़ी बहन मानते थे । वे सच्चे अर्थों मे हिन्दी और तुलसी-साहित्य से अतीव प्रेम करते थे।"

      

       हिन्दी-संग्रहालय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज के संग्रहालय-प्रभारी दुर्गानन्द शर्मा ने बताया, "एक अनुवादक, सम्पादक, कोशकार तथा रचनाकार के रूप में डॉ० फादर कामिल बुल्के का जीवन मील का पत्थर बन चुका है। उनके लिए तुलसी उतने ही प्रिय थे जितनी उनकी मातृभाषा फ्लेमिश के महाकवि गजेले वा अंग्रेजी के महाकवि शेक्सपियर महत्त्वपूर्ण थे। वे फ्रेंच, जर्मन इत्यादि भाषाओं के कविता-रसग्राही पाठक थे। उन्होंने तुलसी के संदर्भ में न केवल हिंदी में लिखा वरन् अंग्रेजी, फ्लेमिश और फ्रेंच भाषा में भी लिखा। श्री रामचरितमानस की जिन चौपाइयों ने डॉ० बुल्के को हिंदी पढ़ने की प्रेरणा दी उन्हीं चौपाइयों के रचयिता तुलसीदास का अनुसरण और गुणगान वे आजीवन करते रहे।''


      विद्यार्थी इण्टर कॉलेज, कुशीनगर मे हिन्दी की सहायक अध्यापक वृन्दा पाण्डेय ने कहा, फादर कामिल बुल्के का रामकथा-विषयक शोधकर्म का कोई तुलना नहीं है; क्योंकि रामकथा पर जितने भी शोध हुए हैं, उनमे कामिल बुल्के का शोधकर्म 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' शीर्ष पर दिखता है। बुल्के अन्य कई पुस्तक-रचना कर अपनी विद्वत्ता प्रकाशित कर चुके ह़ै, जिनमे मुक्तिदाता, नया विधान, हिन्दी-अंग्रेज़ी शब्दकोश आदिक प्रमुख हैं।"

राठ रंग महोत्सव

 


राठ रंग महोत्सव आलोक की स्मृति में, साझा संसार की पहल पर, विश्व रंग और वैश्विक हिंदी परिवार के सान्निध्य में, अनिल जोशी के मुख्य आतिथ्य और उपेन्द्र कुमार की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। 

लीलाधर मंडलोई जी का शुभकामना संदेश, आयोजन के संयोजक रामा तक्षक ने पढ़ा। 

इस आयोजन में श्री रामानंद राठी को साझा संसार द्वारा, 'राठ रंग सम्मान' से सम्मानित किया गया।सम्मान के तहत राठी को 11   हजार की नकद राशि, स्मृति चिन्ह, करते हुए शॉल एवं श्रीफल देकर सम्मानित  किया। इस अवसर पर शाहजहांपुर न एवं युवा संघ अध्यक्ष आकाश जोशी, आए हुए संजय गुप्ता, एबीवीपी प्रांत संयोजक अभिषेक कौशिक, लीलाराम चौधरी, तक्षक ( सियाराम यादव, सुरेन्द्र पचेरिया, साफा, ब्रह्मप्रकाश, सज्जन सिंह, मुकेश स्वागत महलावत, जयप्रकाश, राजेन्द्र तक्षक, दौरान विनोद तक्षक, गजेसिंह, डॉ. चरण साहित्य सिंह चौधरी, प्रताप सिंह, बाबूलाल  पंच आदि उपस्थित रहे। 





स्वतंत्रता दिवस पर नए संकल्पों के साथ शुभचिंतक फाउंडेशन ट्रस्ट*





भारत की स्वतंत्रता को 76 वर्ष हो गए हैं, शिक्षा तकनीक स्वच्छता सभी में बहुत परिवर्तन आया है, किंतु फिर भी यह सत्य हैं कि जिले की प्राथमिक शाला में शिक्षा तो है लेकिन उतनी सुविधा अभी भी नहीं है जो बड़े-बड़े अंग्रेजी स्कूलों में है , शुभचिंतक फाउंडेशन ने इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर यही संकल्प किया है कि पुणे जिले की प्राथमिक पाठशालाएं में जाकर उनकी जरूरतों समस्याओं को समझना और शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने में अपने स्तर से जो भी प्रयास हो सके जो भी सहयोग हो सके देना जिससे  सभी को स्तरीय शिक्षा प्राप्त हो सके इस क्रम में सर्वप्रथम मुंडवा स्थित एक प्राथमिक शाला में ट्रस्ट द्वारा वेशभूषा , शिक्षण सामग्री प्रदान की गई ताकि विद्यालय आते समय बच्चों को प्रसन्नता अनुभव हो।शुभचिंतक ट्रस्ट के श्री अक्षय कुमार जी एवं डॉक्टर ममता जैन जी ने विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन किया बच्चों ने देशभक्ति के गीत सुनाए।

मित्रता

 

मित्रता उसका नाम है , जहाँ नहीं  है तोल। 

कटुता मन से दूर हो , मीठे जिसमें बोल।। 


साथी सुख दुख का रहे , आये हरदम काम। 

अपने मुँह से ना कहे , गौण रहे बस नाम।। 


झूठ नहीं वो बोलता ,चाहे जो परिणाम। 

स्वारथ मन में कुछ नहीं , माँगे ना कुछ दाम।। 


भूले मित्र को वो नहीं ,करे सदा ही बात। 

साथ सदा ही हो खड़ा , करे नहीं आघात।। 


चाहे जैसी बात हो , करे नहीं बदनाम। 

खुलकर अपनी राय दे , हाथों को ले थाम।। 


अहम कभी पाले नहीं , देता है सम्मान। 

साथी राहों का बने ,देखे नहीं मकान।। 


श्याम मठपाल ,उदयपुर

दोस्ती है अनमोल


रिश्ते तो बहुतेरे जग में पर एक रिश्ता बड़ा खास है, 

सीधा दिल से दिल को पहुंचता यह ऐसा एहसास है।

रक्त से भले जुड़ा नहीं लेकिन होता काफी मजबूत है, 

दोस्त-सखा हम चुनते कृष्ण-सुदामा सुंदर सबूत हैं।

दूर कभी पास भी होते मगर होती ना दिलों की दूरी, 

दूर देश रहने पर भी अपनी दोस्ती की मिसाल पूरी। 

दोस्ती का कोई मोल नहीं ना ही होता कोई तोल है, 

वैसे तो मिलते लोग कई पर खास वही अनमोल है। 

किस्मत से मिलते अच्छे दोस्त यह ना इत्तेफाक है, 

बंध जाता खुद ही बंधन यह बस इसमें जज़्बात हैं। 

दोस्त जान तो नहीं देते मगर देते सच्ची मुस्कान हैं। 

पक्के दोस्त तो बारिश में आंसू तक लेते पहचान हैं।

जीवन में घोले मकरंद हमारे वह मिठास दोस्ती है, 

मालूम हो हमें पूरी हो जाएगी ऐसी आस दोस्ती है। 

मुसीबत में तन कर खड़े हों ये रिश्ते ऐसे सच्चे हैं। 

जो तोल कर देखें इसे वह तो अक्ल के कच्चे हैं। 

सन्मार्ग पर अग्रसर करें सच्चे वही यार हमारे हैं।

जीवन की बस यही है पूंजी ये दिलदार हमारे हैं।

ईश्वर से प्रार्थना इतनी ये साथ आजन्म बना रहे, 

दूर हो या पास हों एक दूजे पर विश्वास सदा रहे। 

लगे ना नज़र इस रिश्ते को कभी भी इस जमाने की,

पड़े ना जरूरत कभी यारी में रूठने और मनाने की।

💕डॉ. श्वेता सिन्हा

 #swetauwatch 

आयोवा, अमेरिका

दोस्ती'

'

ये दोस्ती भी क्या चीज़ होती है

एक बड़ा अनोखा सा बीज होती है

जैसे खाने में फूड फरक होता है

इसका भी कुछ मूड फरक होता है

कभी किसी का मन खिला देती है

कभी किसी का मन बुझा देती है

जैसे हर साज फरक होता है

दोस्ती का अंदाज़ फरक होता है

कभी इसमें गुल भी खिलते हैं

कभी दो मिलकर पुल भी बनते हैं

कहीं कोई प्यार में हाथ पकड़ता है

कहीं दो लोगों में झगड़ा होता है

कभी प्यार में भी कुछ इंकार है

कभी तकरार में भी इजहार है

अगर हँसी है तो रुलाई भी है

अगर मिलन है तो जुदाई भी है

इसके अहसास से दिन महकता है

इसके मृदु-हास से मन लहकता है

यह मुरझाये जीवन में एक बहार है

मन की राहत को ठंडी बयार है

ये भावनाओं की एक गठरिया है

इसे देखने का अपना ही नजरिया है। 

शन्नो अग्रवाल

पानी छानकर उपयोग करें

जैनत्व का दूसरा चिन्ह है,पानी छानकर प्रयोग करना ।यह जैन कुल में जन्मे व्यक्ति का आवश्यक कुलाचार है जिसे पालन करना ही है ,यदि नहीं करते तो समझिए आपको अगले भव में पुनः जैन कुल नहीं मिलने वाला।

विज्ञान पानी की एक बूंद में 36450 जीव स्वीकार करता है परन्तु जैन धर्म की मान्यता 

1 बून्द में असंख्यात जीवों की है।सोचो दिन भर में हम जितना पानी प्रयोग लाते हैं उसमें कितने जीव हो गये व अपने पानी न छानने से मर गये व अपने पेट में जाकर भी रोग के कारण बने।विज्ञान भी छानने की बात स्वीकार करता है तभी तो water filter बने।धर्म ऐसे मोटे कपड़े से जिसमें सूर्य की ओर देखने पर किरणें न दिखाई दें ऐसे मोटे ,दोहरे बड़े कपड़े से छानने की विधि कहता है तथा छानने के बाद छन्ने में आये जीवों की उसी स्रोत में बिलछन करने की बात भी जीव रक्षण के भाव से कहता है जो वस्तुतः कुंआ नदी बाबड़ी आदि में ही पूरी तरह संभव है।परन्तु वर्तमान में कुओं की समाप्ति से समर का जल ही प्रयोग होने लगा है जिसमें उतनी विधि सम्भव नहीं है फिर भी यथासंभव /यथाशक्ति जल छनना ही चाहिए।एक तो यह विभिन्न कीटाणु व सूक्ष्म बैक्टीरिया से बचाकर रोगों से रक्षा करता है,दूसरे जीवों की प्राण रक्षा होती है।

कपड़े से छने पानी की मर्यादा 48 मिनिट है उसके बाद वह अनछना हो जाता है सो जो आप फ्रिज में एक बार छना भर दिन भर पीते हो वह सही नहीं।छने पानी में कोई सुगंधित द्रव्य लोंग, इलायची,सौंफ मिलाने से(इतना मिलाना कि उसका रंग स्वाद बदल जाये) उसकी मर्यादा 6 घंटे की,थोड़ा गर्म करने पर12 घंटे की व उबालने पर 24 घण्टे की हो जाती है।विज्ञान भी उबालना सही कहता है।आप ORS में पोउडर वाली दवा में उबला पानी ही मिलाते हैं।सुबह एक भगोना पानी छानकर उबाल कर एक टंकी में भर कर दिन भर प्रयोग करें व वही एक बोतल में भरकर दिन भर अपने साथ रख कर पियें।नलों में थैली बांधने की प्रक्रिया सही नहीं है।छोटी छोटी गलनी रखें उससे छानकर गलनी को उल्टा कर छना पानी से उसे धो दें।पहिले  कलशों के प्रयोग में सही था।इसी प्रकार गीजर में बहुत हिंसा है उसका प्रयोग तो करना ही नहीं चाहिये।बाजार की बोतलों का पानी पीना भी पाप का ही कारण है,अपनी बोतल घर से लेकर ही चलें।

थोड़ी मेहनत कष्ट तो है,हर अच्छे कामों में मेहनत कष्ट होता है,

बुरे काम आसानी से हो जाते हैं।पर पाप, हिंसा से बचना है तो ये सब करना ही होगा।

विवेकी बनें जिन आज्ञा का पालन करें।

मंगल शुभ आशीर्वाद

वर्णी क्षुल्लक सहज सागर,

क्रमशः

ब्र.वालचंद काका संघवी(दशम प्रतिमाधारी आल्हादसागर जी) की क्षुल्लक दीक्षा

 तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी डोंगरगढ़ की पावण पुण्यधरोवर में प्रथम बार क्षुल्लक दीक्षा 

   संत शिरोमणि आचार्यश्री विद्यासागर जी महामुनिराज के कर कमलों से आज डोंगरगढ़,(छग) में बारामती, महाराष्ट्र निवासी 98 वर्षीय ब्र.वालचंद काका संघवी(दशम प्रतिमाधारी आल्हादसागर जी) की क्षुल्लक दीक्षा सम्पन्न हुई,आपकी विगत डेढ़ माह से क्षेत्र पर सल्लेखना चल रही है।

 क्षुल्लक श्री आल्हादसागरजी पुर्वाश्रमी का नाम श्री वालचंदजी काका संघवी बारामती के रहनेवाले कुंथलगिरी (महाराष्ट्र) क्षेत्र के ट्रस्टी में रहकर कुंथलगीरी क्षेत्र के विकास मे बहोत बडा योगदान रहा है..

अपणे जिवन का आखरी पडाव ओ गुरुवर विद्यासागरजी के चरणो मे रहना चाहते थे और वैसी ही हुआ....

विगत 42 दिन से चंद्रगिरी में सल्लेखनारत है 

18 दिन से ओ सिर्फ जल ही ग्रहन कर रहे है


साभार- विद्याधर पाटील

संकलन-शांति विद्या धर्म प्रभावना संघ



नित्य देव दर्शन आवश्यक

देव दर्शन जाने के सोचने मात्र से 1000उपवास के समान,दर्शन हेतु निकलने पर लाख उपवास  के समान फल मिलता है व जिनवर के दर्शन से कोटिकोटि कर्मों की निर्जरा होती है।

वासुपूज्य भगवान की स्तुति करते हुये आचार्य समन्तभद्र स्वामी कहते हैं कि जब सौधर्म इंद्र अपनी 2 आंखों से भगवान को देखकर तृप्त नहीं होता तो वह अपनी दोनों आंखों को सहस्त्र1000 कर लेता है।भक्तामर में मानतुंग आचार्य लिखते हैं "दृष्ट्वा भवन्ति मनिमेष विलोकनीयम.... भगवान के दर्शन बिना पलक झपकाये लगातार करने के बाद अब दुनियां में ऐसी कोई दूसरी चीज नहीं रह गयी जिसे देखने की वांछा शेष रह जाय।

ऐसी है महानता जिन दर्शन की।प्रतिमा में स्थापना होने के बाद आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहते हैं कि "अब ये वही है"अर्थात प्रतिमा ही जिन है।मतलब जिन प्रतिमा के दर्शन से भी महान कर्म की निर्जरा होती है व भाव विशुद्धि हो जाय तो मिथ्यात्व का नाश होकर सम्यक्त्व की प्राप्ति तक हो जाती है।

ऐसा है नित्य देव दर्शन का फल।आज प्राणी के पास हर बात का समय है सोने का,भोगने का, नहाने का,खाने का,पीने का,दुकान आफिस,किट्टी पार्टी,पर्यटनमें जाने का,मोबाइल देखने का ,चैट करने का, फालतू बातें दुनियां भर की ,सब बातों के लिए समय है,पर पूछो मंदिर जाते हो तो उत्तर मिलता है टाइम ही नहीं है।कुत्ते को टहलाकर पौटी कराने, बच्चों को स्कूल छोड़ने के लिये आपके पास टाइम है पर बूढ़ी मां कहे कि चलो मुझे भी दर्शन करा लाओ व तुम भी कर लेना तो आपका मन खराब हो जाता है,आफत लगती है।

पिछले जन्म में बहुत प्रार्थना की थी,हाथ जोड़े थे,माथा पटका था कि हे भगवान अगले जन्म में जैन कुल में पैदा करना और अब पैदा होने के बाद आपके पास समय नहीं है उस भगवान के दर्शन के लिए भी,बुद्धि विवेक नहीं है जैन कुलाचार पालन के लिये तो आप ही बताओ कि अगला जन्म फिर जैन कुल में मिलेगा?

यह नर भव फिर मिलन कठिन है।

एक जिनेन्द्र भक्ति मात्र ही संसार सागर से पार करने के लिए पर्याप्त है।मेंढक फूल की  एक पंखुड़ी लेकर के लिये समवशरण की ओर गमन करता है तो मृत्यु को प्राप्त होने पर देवगति को प्राप्त हो जाता है भक्ति भावना के फल मात्र से।वो तो जानवर था आप तो मनुष्य हो।मुश्किल से मानव पर्याय मिली है इसे बर्बाद न करो व्यर्थ में।

तो आज से हीमन बनाओ,

संकल्प करो नित्य देव दर्शन का

बिना इसके कल्याण होने वाला नहीं।आपका आज का गुरुवार आपको गुरु से जोड़े,गुरु कृपा आपके ऊपर बरसती रहे ऐसा मंगल शुभ आशीर्वाद✋✋✋-वर्णी क्षुल्लक सहज सागर कुंजवन 3अगस्त 

दुनिया के सबसे अमीर भिखारी भारत जैन

 भिखारी शब्द जुबान पर आते ही मन में एक ऐसे व्यक्ति का खयाल आता है जो फटे-पुराने कपड़े में होगा, जिसके बाल बिखरे होंगे या फिर कई दिनों से नहाया नहीं होगा. जिसकी वजह से देखने में वह कुरूप होगा, पैसों के संकट, खाने के संकट जैसी समस्याओं से जूझ रहा होगा। ये समाज के सबसे गरीब वर्ग से भी ताल्लुक रखते हैं. हालांकि भीख मांगना कुछ व्यक्तियों के लिए एक पेशा बन चुका है और वे इससे करोड़ों रुपये की संपत्ति जुटा चुके हैं। लेकिन वर्ल्ड लेवल पर सबसे अमीर भिखारी के रूप में मुंबई की सड़कों पर भीख मांगते हुए पहचाने जाने वाले है भरत जैन।


कौन है दुनिया का सबसे अमीर भिखारी 

दुनिया के सबसे अमीर भिखारी भारत जैन मुंबई शहर में रहता है। ग्लोबल स्तर पर भरत जैन दुनिया के सबसे अमीर भिखारी के रूप में पहचाने गए हैं। यह मुंबई की सड़कों पर भीख मांगते हुए पाए जाते हैं। आर्थिक तंगी के कारण वे शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाए। इनकी शादी हो चुकी है और उनके साथ उनकी पत्नी, दो बेटे, उनका भाई और उनके पिता रहते हैं।


हर महीने 60 हजार से ज्यादा कमाते हैं भरत जैन 

शुरुआत में आर्थिक समस्या के कारण भरत जैन ने अपने बच्चों की शिक्षा पूरी कराई है। मूल रूप से मुंबई के रहने वाले भरत जैन ने 7.5 करोड़ रुपये या 1 मिलियन डॉलर की कुल संपत्ति पा चुके हैं. भीख मांगने से ही उनकी मंथली कमाई 60 हजार रुपये से लेकर 75 हजार रुपये तक होती है।


1.2 करोड़ रुपये का भरत जैन के पास फ्लैट 

भरत जैन के पास मुंबई में 1.2 करोड़ मूल्य का दो बेडरूम वाला फ्लैट है और उन्होंने ठाणे में दो दुकानें बनवाई हैं, जहां से उन्हें हर महीने 30,000 रुपये किराया मिलता है। भरत जैन को अक्सर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस या आजाद मैदान जैसे प्रमुख स्थानों पर भीख मांगते देखा जा सकता है। इतनी संपत्ति होने के बावजूद भरत जैन मुंबई की संड़कों पर भीख मांगने का काम करते हैं। भरत जैन 10 से 12 घंटे के भीतर प्रति दिन दो हजार रुपये से लेकर 2500 रुपये जुटा लेते हैं।


कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ते हैं बच्चे 

अपने व्यवसाय से इनकम होने के बावजूद भरत जैन और उनका परिवार परेल में 1ठभ्ज्ञ डुप्लेक्स निवास 

जैन युवाओं का हो रहा है कॉन्क्लेव

 जैन युवाओं का हो रहा है कॉन्क्लेव

जहां बहेगी जीवन विकास की वेव

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भारतीय जैन संघटना सूरत की धरा पर एक नव इतिहास रचने जा रहा है और वो है, इस उर्वरा भूमि पर नेशनल जैन यूथ कॉन्क्लेव का रेसीडेंशियल आयोजन। यह आयोजन आगामी 1 व 2 सितम्बर 2023 को सूरत के डुमस रोड़ स्थित अग्र एग्जॉटिका के विशाल परिसर में होगा। इस यूथ कॉन्क्लेव में सूरत, गुजरात तथा देश भर से 18 से 35 वर्ष के अविवाहित जैन युवक-युवतियों का अदभुत संगम होगा जो कि देश के कोने-कोने से एकत्रित होंगे। इस आयोजन का उद्देश्य है, तमाम जैन युवक-युवतियां अपनी शिक्षा, केरियर, व्यवसाय, उद्योग तथा जीवन साथी का उचित चयन कर जीवन को सफलतम कैसे बनाएं व कौनसी उचित राह चुनें ? इस कॉन्क्लेव में देश-विदेश के ख्यातनाम, प्रेरक मार्गदर्शक, ट्रेनर, मोटिवेटर, सफल व चर्चित उद्यमी, एंटरप्रेन्योर, प्रशासनिक व अन्य डिपार्टमेंट के अधिकारी, शिक्षाविद आदि का समुचित मार्गदर्शन रहेगा व जैन युवक-युवतियां वन-टू-वन आपसी तथा सामूहिक मीटिंग, मुलाकात गोष्ठियां कर जीवन विकास का मार्ग प्रशस्त कर सकेंगे व जीवन को नई दिशा दे सकेंगे। सभी जैन बन्धुओं, बहिनों व युवाओं से अनुरोध है कि कृपया सूरत महानगर तथा गुजरात के मुख्य शहरों के समस्त जैन युवा संगठनों, युवती संगठनों, कन्या मंडलों से जुड़े उन युवा  प्रसिडेंटों, सेक्रेट्रियों, पदाधिकारियों तथा जैन यूथ आइकॉन, युवा विषय विशेषज्ञ के सम्पर्क सूत्र दें जो इस आयोजन को सफल बनाने में योगभूत बन सकें।

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प्रो डॉ संजय जैन       संजय शाह

(अध्यक्ष)                    (मंत्री)

  (भारतीय जैन संघटना,  गुजरात) 

अजय अजमेरा         रौनक कांकरिया

     (अध्यक्ष)                    (मंत्री)

       (भारतीय जैन संघटना, सूरत) 

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                 -सम्पर्क सूत्र-

 99746 77996-98250 86684

90990 37937- 89280 69796

आचार्य श्री विद्या सागर जी का एक हाईकू:

             भ्रमर से हो,

             फूल सुखी, हो दाता

             पात्र योग से ।

फूल अपनी जगह लगा है, पराग है, गंध है, आकर्षण है, लेकिन उस फूल को भी, प्रफुल्लिता बढ़ाने के लिए भ्रमर का होना बहुत ज़रूरी है। भ्रमर को भी फूल की ज़रूरत होती है पराग पाने के लिए। फूल के कारण भ्रमर आनंदित होता है और भ्रमर के कारण फूल भी आनंदित हो जाता है। मुनिराज (श्रमण) और गृहस्थ (श्रावक) दोनों अलग-अलग अपने कर्तव्य कार्यों में लगे होते हैं, मुनिराज अपनी तप-तपस्या-साधना में लीन रहते हैं, और श्रावक अपने धन उपार्जन में लगा रहता है, पर जब दोनों का एक साथ योग बनता है, यानि गृहस्थ दाता बनकर मुनिराज का पड़गाहन करता है और मुनिवर अतिथि (पात्र) बनकर अपनी आहार विधि के साथ निकलता है और उसकी आहार विधि दाता के यहाँ सम्पन्न हो रही होती है तो इस आहार-चर्या को देख हज़ारों नेत्र आनंदित हो जाते हैं। मुनिवर की अंजलि में गृहस्थ के द्वारा दिये जा रहे अन्न-जल के दृश्य को देखने मनुष्य तो क्या इन्द्र देव भी तरसते हैं। यही दृश्य सबसे महत्वपूर्ण होता है जब मुनि महाराज अपनी अंजलि में आहार ले रहे हैं और श्रावक गृहस्थ आहार दे रहा है।

आहार-चर्या एक ऐसी क्रिया है जिसमें सब कुछ छोड़ देने वाले तप-तपस्या-साधना करने वाले मोक्ष-मार्ग में अग्रसर मुनिराज शरीर पूर्ति के लिये, सब कुछ जोड़ने वाले के यहाँ आकर आहार ग्रहण करते हैं, उसे धन्य व भाग्य-शाली बना देते हैं, उसके घर को शुद्ध व पवित्र कर देते हैं। दाता का द्रव्य, पात्र के मोक्ष-मार्ग में सहायक बनता है। युग के आदि में घटी घटना इतिहास बन गई, वही परम्परा आज भी चली आ रही है, जब-जब युगादि पुरूष आदि प्रभु को याद किया जाएगा, राजा श्रेयांस को भी याद किया जाएगा। जब दाता और पात्र आमने-सामने होते हैं तो ऐसा लगता है जैसे पुष्प-उद्यान में खिले फूलों पर भ्रमर आकर रूक गया हो।

जय जिनेंद्र देव की ।

कुण्डलिया -बंटवारा


बंटवारा मत कीजिये , भारत देश महान|

हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख सभी,हैं इसकी संतान|

हैं इसकी संतान, सनातन है खतरे में, 

रखो प्रेम व्यवहार, रखा क्या है झगड़े में|

कहे श्याम समझाय, न बिगड़े भाईचारा, 

मिलजुलकर सब रहो, करो मत अब बंटवारा||1||


बंटवारा माँ बाप का, करे आज संतान|

टूकन के लाले पडे, वक़्त बड़ा बलवान|

वक़्त बड़ा बलवान, सभ्यता पश्चिम हावी, 

लख संस्कार विहीन, पीढियां आगे भावी|

करते श्याम गुहार, बनो माँ बाप सहारा, 

ये असली भगवान, करो मत इन बंटवारा||2||


बंटवारा धन धान्य का, होता हर परिवार|

पशु आभूषण सब बटे, छोडे पालन हार|

छोडे पालन हार, आश्रम उनको पठाया|

हुई संतति कुपात्र, तरस न उन पर खाया|

कहे श्याम समझाय, लखो चहुंओर नजारा|

बटे सुई सी चीज, होय न ज्ञान बंटवारा||3||


श्याम लाल सैनी

नगर भरतपुर राजस्थान

तुम्हारे ही लिए


बलिदान को न व्यर्थ जाने दो किया जिसके लिए, 

त्याग और अर्पण सभी कुछ हैं तुम्हारे ही लिए  । १ ।

ख़ून से जो सींच कर गुलशन सजाया बाग़ का,

उनके लहु का कर्ज़ सब कुछ इक तुम्हारे ही लिए  । २ ।

जी जान पर वो खेल कर करते हवन में स्वयं को, 

कुर्बान की वो इक निशानी अब तुम्हारे ही लिए  । ३ ।

"पुखराज" कर उनको अमल जिनकी थी महफिल की वो शाम,

छोड़ यादें कर हवाले गये तुम्हारे ही लिए  । ४ ।

बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

     कोटा (राजस्थान)

सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार


डॉ. अनेकान्त कुमार जैन,नई दिल्ली


वर्तमान में  जितनी तीव्रता से सोशल मीडिया का उपयोग बढ़ा है उससे कहीं ज्यादा तीव्रता से उसका विवेकहीन दुरुपयोग भी बढ़ा है । इसलिए अब इससे संबंधित अपराधों के लिए  कानून भी निर्मित हो गए हैं तथा सजाएं भी मिल रही हैं जो कि कुछ समय पहले तक संभव नहीं थी ।


आज यह आवश्यक हो गया है कि सोशल मीडिया पर कानून के साथ साथ सोशल कंट्रोल भी हो । हमें वर्तमान के अनुरूप अपनी प्रासंगिकता स्थापित करनी पड़ती है । 

कॅरोना काल में लॉक डाउन के कारण ज़ूम ,गूगल मीट,जिओ मीट, मीटिंग एप्प आदि का उपयोग उन लोगों ने भी सीखा जिन्हें मोबाइल लैपटॉप छूना भी पसंद न था । यूट्यूब,व्हाट्सएप,फ़ेसबुक,टेलीग्राम,इंस्टाग्राम,ट्विटर आदि जनसंचार के सबसे ज्यादा माध्यम बने हुए हैं ।


मोबाइल सभी के अधिकार और पहुंच में होने से आज इस पर कोई भी व्यक्ति किसी भी विषय पर कैसा भी लिख और लिखवा सकता है । कितने ही विषयों में ऐसा लगता है कि बंदरों के हाथों में उस्तरा लग गया है । आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ने इस समस्या को और जटिल बना दिया है ।


इसके लिए अब हमें सोशल मीडिया संबंधी श्रावकाचार के नियम स्थापित करने होंगे और उनका कड़ाई से पालन भी करना और करवाना होगा ।इस संबंधी विवेक जागृत करना होगा ।


एक श्रावक को प्रत्येक पोस्ट पर अनेकान्त दृष्टिकोण से विचार करना चाहिए । वर्तमान में फ़ोटो या वीडियो बनाना, उन्हें एडिट करना , ऑडियो रिकॉर्डिंग को मनोनुकूल सेट करना आदि बहुत ही सरल हो गया है तथा हम आप भले न कर पाएं पर आज का बच्चा बच्चा भी यह कार्य कर लेता है ।इस संबंध में कुछ सावधानियां हम सभी को रखना चाहिए - 


1.सबसे पहली बात तो किसी भी पोस्ट पर चाहे वह कितनी भी विचित्र हो एक बार में विश्वास नहीं करना चाहिए । 


2.उन सूचनाओं का मिलान अधिकृत अखबार की सूचनाओं से अवश्य करना चाहिए क्यों कि प्रिंट मीडिया अपेक्षाकृत अधिक प्रामाणिक होता है ।


3.जब हमें पता है कि प्रत्येक राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं ने एक सोशल मीडिया विंग सिर्फ मंडन खंडन के लिए ही बनवा रखी है तथा उसमें पेड कर्मचारी काम करते हैं तो हम इन बहकावों में क्यों आते हैं ? 


4.आज किसी को भी बदनाम करना, किसी के भी ऊपर कोई आरोप लगाना भी बहुत आसान हो गया है आज उस पर लग रहा है कल आप पर भी लग सकता है । 


5.अतः बहुत विचलित न होकर साम्य परिणामों से जानो और देखो रे संसार की नीति अपनाना बहुत आवश्यक है । 


6.मुझे स्वयं कभी किसी पोस्ट पर इस बात का अफसोस कभी नहीं हुआ कि मैंने इसे फारवर्ड क्यों नहीं किया ? बल्कि कभी कभी कई पोस्टों पर यह पछतावा जरूर हुआ कि इसे भावुकता में fwd क्यों किया ?  


7.हम

राजनीति में 

कभी कभी आपसी झगड़ों को बिना समझे किसी एक का पक्ष लेकर व्यर्थ का राग द्वेष कर लेते हैं और बाद में पता चलता है कि वे तो आपस में अंदर से मिले हुए थे या बाद में मिल गए या जिसका हम पक्ष ले रहे थे असली दोषी वही था और हम व्यर्थ ही फंसे ।


8.सोशल मीडिया पर प्रायोजित झगड़े बड़े बड़े बुद्धिजीवी,व्यापारी,राजनीतिज्ञ बिना अपना नाम आये करवाते रहते हैं और भावुक जनता को अपने स्वार्थ के लिए हथियार बनाते रहते हैं अतः हमें हमेशा इस बात से बचना चाहिए कि कहीं कोई हमारी श्रद्धा और विश्वास को हथियार की तरह इस्तेमाल तो नहीं कर रहा ।


9. बाद में वे तो एक हो जाएंगे लेकिन इस वजह से हम जरूर बंट जाएंगे। 

हमारी भावनाओं से खेलने वाले हमारे सबसे बड़े शत्रु होते हैं क्यों कि ये हमें कुछ भी निर्णय करने का मौका नहीं  देते ।


अभी आरम्भ में सोशल मीडिया से उत्पन्न होने वाली तमाम राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक समस्यायों को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित 5 नियमों का सभी श्रावकों को अवश्य पालन करने चाहिए - 


१. बहुत जरूरी होने पर मैं मात्र आगम सम्मत पुष्ट और प्रामाणिक ज्ञानवर्धक लेख,कविता,भजन,प्रवचन ,चित्र,वीडियो आदि ही प्रेषित या अग्रसारित करूँगा ।( क्यों कि यह कार्य आप यदि नहीं भी करें तो धर्म की कोई बहुत बड़ी हानि नहीं है और करते हैं तो बहुत बड़ा उपकार नहीं हैं)


२.मैं धार्मिक, सामाजिक और व्यक्तिगत झगड़ों को मीडिया पर सार्वजनिक नहीं करूंगा । ( यह आपको अनर्थदण्ड से बचाएगा )


३. मैं किसी भी मुद्दे पर अनावश्यक टीका टिप्पणी नहीं करूंगा और यदि कहीं बहुत आवश्यक हो तो विनम्रता से, भाषा संयम पूर्वक शालीनतापूर्ण कम शब्दों में अपनी बात कहूंगा । किसी पर अपमान जनक टिप्पणी नहीं करूंगा ।( यह आपकी छवि धूमिल होने से बचाएगा)


४. मैं ऐसे अनावश्यक चित्र और वीडिओ न स्वयं बनाऊंगा,न बनवाऊंगा और न अग्रसारित कर उसकी अनुमोदना करूँगा जो हमारे धर्म और समाज की शुद्ध छवि को जरा सा भी दूषित करने वाला हो । ( यह आपको पाप के कृत कारित अनुमोदना के दोष से बचाएगा)


५. मैं सप्ताह में कम से कम एक दिन सोशल मीडिया संबंधी उपवास रखूंगा और उसे बंद रखूंगा ।( यह आपको तनाव,बैचेनी आदि से बचाएगा)

***लघुकथा बंटवारा


मां पिता जी के जाने के बाद घर का बंटवारा कैसे हो,इसी बात पर बहस छिड़ी हुई थी। पांच बहनों में सबसे बड़ी आशा दीदी पहले हिस्सेदारी में शामिल नहीं थी पर अब "मां पापा की यादगार के रूप में हिस्सा लेना चाहती थी।छोटी के हिस्से में जो कमरा आया था, उसकी लम्बाई चौड़ाई कुछ ज्यादा थी। इसलिए उसे मां के पैसे में कटौती की गई। छोटकी की कानों में मां की बातें गूंज रही थी " ए बेटी,चल यह घर तेरे नाम लिख दूं।बेटे की साध तुझसे ही पूरी हुई है। तुम दोनों हमारी बहुत सेवा किए हो। मेरी हालत तो देख ही रही है।इस अवस्था में मुझे छोड़कर मत जाना। मैं सोच रही हूं कि पाहुन के पास नौकरी नहीं है जबकि तेरी अन्य बहनों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है। मुझे लगता है तेरे नाम इस मकान को करने पर किसी को बुरा नहीं लगेगा " पर वो मां को ऐसा करने से मना कर दी थी। मम्मी पापा के सेवा करने के वक्त किसी को फुर्सत नहीं थी पर अब हिस्सेदारी सबको बराबर चाहिए।यही दुनिया है।


मीरा सिंह "मीरा"

गणनाप्रसंग मे प्रेमचन्द के आगे ठिठक जाते हैं पाँव!..?

 आज (३१ जुलाई) प्रेमचन्द की जन्मतिथि/ जन्मदिनांक है। 

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     ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय 

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        कथा-विषय पर जब संवाद-परिसंवाद होता है तब समीक्षक पारदर्शिता के साथ 'प्रेमचन्द' से आगे बढ़ नहीं पाता है। यह अलग विषय है कि कतिपय साहित्यिक गुटों की खेमेबाज़ी के कारण गणना-प्रसंग मे कतिपय कहानीकार जुड़ पाते हैं। अतीत और वर्तमान के विश्रुत महिला-पुरुष कहानीकारों की एक दीर्घ पंक्ति है, जो धारा-विशेष के लिए जाने जाते हैं; परन्तु जब समग्र मे उनका मूल्यांकन होता है तब वे ठहर कर रह जाते हैं। ऐसे मे, इस प्रश्न का साधिकार ताल ठोंकना स्वाभाविक है :– आख़िर, प्रेमचन्द मे ऐसी कौन-सी बात थी? उत्तर सुस्पष्ट है, हिन्दी-साहित्य की प्रवृत्तियों, विषयवस्तुओं, रूपविधानों तथा उपकरणों का अनुशीलन करने से यह ज्ञात होता है कि प्रेमचन्द का कर्त्तृत्व असाधारण, क्रान्तिकारी, यथार्थवादी तथा राष्ट्रवादी जीवनधारा के अधिक निकट रहा है। प्रेमचन्द के पूर्व के हिन्दी-साहित्य के अधिकतर संस्कार, आलम्बन तथा उपकरण सामन्ती सीमाओं से घिरे हुए लक्षित होते हैं। साहित्य का आलम्ब, चाहे योद्धा हो अथवा विलासी; चाहे धार्मिक हो अथवा भक्त; चाहे ईश्वर हो अथवा देवता, सभी का जीवन-व्यापार, आदर्श और मर्यादाएँ सामन्ती उच्च वर्गों के विविध स्तरों से ग्रस्त हैं। उनमे देशकाल के व्यवधान से कुछ रूपभेद हो सकते हैं; किन्तु सामान्य जनता, कृषकों तथा श्रमिकों को साहित्य का आलम्बन नहीं चुना गया था और न ही उनके जीवन-व्यापार से साहित्य में सजीवता पैदा की गयी थी। प्रेमचन्द ने युग-जीवन से प्रेरणा ग्रहण कर, सामान्य जनता और किसानो के देहाती जीवन को अपने साहित्य का आलम्ब बनाया था। उन्होंने भारत की ७० प्रतिशत जनवाणी को अपनी कहानियों के प्रमुख पात्रों से मुखरित कराया था। प्रेमचन्द-द्वारा हिन्दी-साहित्य मे सामान्य राष्ट्रीय जीवन के लिए आधार बनाना, एक अभिनव और क्रान्तिकारिक प्रयोग था।                               

       प्रेमचन्द देख रहे थे कि तत्कालीन राष्ट्रीय आन्दोलन विदेशी शासन से राजनीतिक स्वाधीनता प्राप्त करने का आन्दोलन है। वर्ग मे विभाजित समाज मे श्रमिकों का शोषण पहले था और आज भी है। उस आन्दोलन मे जो भी व्यक्ति विदेशी शासन से लोहा लेने को तैयार था, वह राष्ट्रीय आन्दोलन का एक अंग बन जाता था, तब यह नहीं देखा जाता था कि वह किस वर्ग का है :– शोषित है अथवा शोषक है। प्रेमचन्द को यह कमी खटकी थी और उन्होंने अपनी कहानियों मे राष्ट्रीय आन्दोलन की झाँकियों के साथ-साथ महाजनी सभ्यता और वर्गभेदजन्य शोषण के यथार्थ चित्र भी खींचे हैं। प्रेमचन्द राजनीतिक स्वाधीनता के साथ-साथ शोषणरहित किसान-मजदूरों के 'राज' की भी कल्पना करते थे, इसीलिए उनकी कृतियों में 'राष्ट्रीय एकता' का एक बहुत बड़ा आधार वर्गहीन- शोषणहीन समाज की रचना का स्वरूप देखने को मिलता है।                        

      प्रेमचन्द ने जिस समय साहित्यक्षेत्र मे प्रवेश किया था, उस समय की साहित्य-परम्परा सामन्ती राष्ट्रीयता को  अपने साथ 'भारतेन्दु-युग' की विरासत के रूप मे ग्रहण की हुई पूँजीवादी राष्ट्रीयता के युग मे प्रवेश कर रही थी। साहित्य की प्रवृत्ति, भावाधार तथा चिन्तनधारा कहीं आदर्शवादी थी तो कहीं भावप्रवण थी। आदर्शवाद पर सामन्ती राष्ट्रीयता का वर्चस्व था और भावप्रवणता की धारा पर पूँजीवादी व्यक्ति-वैचित्र्य और वैयक्तिक असन्तोष का प्रभाव था।            

       प्रेमचन्द अपने पूर्व और समसामयिक साहित्य-प्रवाह मे अपर्याप्तता, जीवन से असम्पृक्तता तथा रूढ़ि के शिलाखण्डों को देख रहे थे, साथ ही चक्रवात की गति-सदृश बदलती हुई तत्कालीन सामाजिक चेतना और राजनीतिक जागरण के स्तर पर राष्ट्रीयता के आवरण मे आच्छादित आर्थिक शोषण और वर्गभेद के साथ साक्षात्कार कर रहे थे, इसीलिए उन्होंने कथा-सर्जन के लिए अपना पृथक् दृष्टिकोण अपनाया था, जिसका आधार जनता का सतत प्रवाही जीवनदर्शन था, जिसमे असन्तोष की आग, रूढ़ियों और भाव-रूढ़ियों की घुटन, जातीय परम्पराओं के प्रति आस्था तथा बदलते हुए समय के नव-नूतन के प्रति कुतूहलपूर्ण जिज्ञासा होती है।     

      प्रेमचन्द के लेखन की सार्थकता और प्रासंगिकता इस विषय मे है कि उन्होंने देश के मध्यवर्गीय चरित्र को विस्तीर्ण और वास्तविकता मे दृष्टिपात करने का प्रयास किया है। जैसा कि हम जानते हैं कि भारतीय मध्यम वर्ग का चरित्र अतीव जटिल, संश्लिष्ट तथा विभाजित है। वह प्रत्येक परिवर्त्तनकारी शक्ति को सहयोग का आश्वासन करता है और पारम्परिक विचारधारा की रक्षा भी करना चाहता है। सामाजिक जीवन-यापन मे वह स्वयं को उच्च-वर्ग के समीप अथवा समानान्तर रूप मे देखना चाहता है; किन्तु आर्थिक विपन्नता के कारण उसका आक्रोशवर्द्धन होता रहता है। उसकी आक्रोश और क्षोभमयी मुद्रा सर्वहारा की तो है, जबकि भोगवादी आकांक्षा उच्च-वर्ग से प्रेरित है।

       कथाशिल्पी की रचनाशीलता मे 'वर्ग-संघर्ष' अनेकश: जन्म लेता और मरता भी है। इसके बाद भी आन्दोलित मन-प्राण की क्रान्तिकारिता हर बार पाठक-वर्ग के दृष्टिपथ पर एक नयी आह और संवेदना की आड़ी-तिरछी रेखा चित्रित करती रहती है। यही वैशिष्ट्य प्रेमचन्द और उनकी सर्जनधर्मिता को प्रासंगिकता के साथ सम्पृक्त करता है।

      यही कारण है कि उनकी कहानियों मे मध्यवर्गीय चरित्र को अभिव्यक्त करने का श्लाघ्य प्रयास किया गया है। मध्यवर्ग के संकटापन्न और संशयशील मनोवृत्ति की पहचान मे प्रेमचन्द एकरस हो जाते हैं। आदर्श उनके लेखन का बाह्य कलेवर है और यथार्थ जीवनशक्ति। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रेमचन्द-जैसा कहानीकार 'कोई' नहीं।  

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