नाल-रिश्ता



      छाया दो बुजुर्गों को अब उम्र आ ढली है। 

छोटी सी दुनिया उनकी बच्चों की हथेली है।।


लाठी सँभालने की आदत भले हुईं हैं। 

खुद को सँभालने की हिम्मत में खुशदिली है।। 


आसाँ नहीं सफर ये है डूबता सा सूरज

सतरंगी किरण देना जो धूप संग खिली है।। 


बचपन तेरा सहेजा इन हाथों ने फूलों सा

चल थाम ले लकीरें आशीषों संग फली हैं ।।


झुकती कमर लरजती पैरों से लड़खड़ाती

तेरी भरी सी दुनिया उन आँखों में पली है।।


माँ से है नाल-रिश्ता नौ महीने पहले वाला

कम ना पिता की महिमा रग-रग में ज्यों वली है।। 


चेहरे की झुर्रियों में अनुभव की गहन पाती 

केशों में चमके चाँदी मुख पे हँसी पोपली है।


परछाईंयाँ ये धुँधली कभी तेरी जिंदगी थीं

कठपुतलियाँ पुरानी नेह-डोरी कट चली है।।


ये दूर तक निहारें तेरी राहों के सितारे 

दिल में बड़ी है जगमग नजरें भले धुँधली हैं।। 


कदमों के निशाँ मानो शिला लेख हैं अमिट से

इतिहास युगों-युग के थाती अमर बली है।।


कहे मानवी रखो तुम सम्मान बुजुर्गों का  

छतनार बरगदों को ना समझो ठिठोली है।।


हेमलता मिश्र "मानवी" नागपुर महाराष्ट्र 440010

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