महान् कोशकार और हिन्दी-अनुरागी फ़ादर कामिल बुल्के की निधन-तिथि (१७ अगस्त) पर विशेष
आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
'सर्जनपीठ', प्रयागराज के तत्त्वावधान मे संस्कृत और हिन्दी के विद्वान् फादर कामिल बुल्के की निधनतिथि के अवसर पर 'फादर कामिल बुल्के एवं उनका हिन्दी-अनुराग' विषय पर १७ अगस्त को एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया था।
उस आयोजन मे रायबरेली से साहित्यकार डॉ० किरन शुक्ल ने कहा, "रामकथा के उद्भव एवं विकास पर शोधग्रन्थ लिखना, उनके हिन्दी प्रेम को दर्शाता है। उन्होंने 'बाइबिल' का हिन्दी-अनुवाद कर, भारतीयों को ईसाई-धर्म समझने का अवसर प्रदान किया। उन्होंने अँगरेज़ी-हिन्दी का प्रामाणिक शब्दकोश तैयार किया; एक नाटक का भी हिन्दी में अनुवाद किया। बुल्के राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिन्दी- विभागाध्यक्ष रहे। उनका सम्पूर्ण जीवन हिन्दीभाषा के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित था। उन्होंने सभी मंचों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने की आवाज़ बलंद की थी। वे ईसाई-पुरोहित अवश्य थे; लेकिन उनका समूचा जीवन हिन्दीभाषा के लिए समर्पित रहा।"
मुंगेर विश्वविद्यालय, बिहार से संस्कृत-विभाग मे सहायक आचार्य डॉ० कृपाशंकर पाण्डेय ने बताया ''फादर कामिल बुल्के में एक उत्कृष्ट श्रेणी का समन्वयवाद था। जीवन के अन्तिम समय तक; एक ओर जहाँ वे ईसा के प्रति एकनिष्ठ बने रहे वहीं दूसरी ओर, भारतीय जनमानस के आराध्य भगवान् श्री राम की मर्यादा के प्रति भी नतमस्तक रहें।पाश्चात्य विचारों को बिना छोड़े भारतीय संस्कृति और समाज के मूल्यपरक विचारों को भी अनुभूति के स्तर तक ले जाने का प्रयत्न करते रहे। उनके चरित्र का रूप उन्हें अन्य विद्वानों से पृथक् करता है।"
चौधरी महादेवप्रसाद महाविद्यालय, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक अध्यापक डॉ० सरोज सिंह ने कहा, "फादर कामिल बुल्के ने उपनिवेश को चुनौती देने हेतु हिन्दी सीखना आरम्भ किया था तथा हजारीबाग के पंडित बद्रीदत्त शास्त्री के निर्देशन में तुलसीदास के दो प्रमुख ग्रंथों :–श्री रामचरितमानस और विनयपत्रिका का गहन अध्ययन किया था। वे तुलसीदास की भक्ति, साधना, लोकमंगल तथा समन्वयवादी दृष्टिकोण से प्रभावित थे, इसीलिए उन्होंने 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' विषय पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी-माध्यम मे शोधकार्य किया था, जिसे भारतविद्या (इंडोलॉजी ) की प्रमुख रचना माना गया।"
आयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, "उन दिनों अँगरेज़ीराज था और तब शोधकर्म अँगरेज़ी में ही किये जाते थे। फादर कामिल ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी-माध्यम में शोधकर्म के लिए आग्रह किया था। उन्होंने हठधर्मिता प्रदर्शित करते हुए, 'हिन्दी' में ही शोध करने के लिए अपने शोध-निर्देशक डॉ० माताप्रसाद गुप्त से कहा था, जिसमे उनकी भी सहमति थी। अन्तत:, उस हिन्दी-अनुरागी के सकारात्मक हठ के सम्मुख इलाहाबाद-प्रशासन को झुकना पड़ा। तत्कालीन कुलपति पं० अमरनाथ झा ने शोध-सम्बन्धित नियमावली में वांछित संशोधन कराते हुए, कामिल बुल्के को हिन्दी-माध्यम में शोध करने की अनुमति दे दी थी, परिणामस्वरूप देश के समस्त विश्वविद्यालयों में 'हिन्दी-माध्यम' में शोध करने की अनुमति मिल गयी थी। इस प्रकार बुल्के का 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' शोधकर्म पूर्ण हुआ था। उल्लेखनीय है कि फ़ादर बुल्के ने 'राम' पर शोध करते समय रामायण के तीन सौ रूपों की खोज की थी। इस प्रकार शोध के इतिहास में पहली बार 'राम' पर विधिवत् शोधकर्म करने का श्रेय फ़ादर कामिल बुल्के को जाता है।"
आर्यकन्या डिग्री कॉलेज, प्रयागराज मे हिन्दी की सहायक प्राध्यापक डॉ० मुदिता तिवारी ने कहा, "बेल्जियम के रेम्सचैपल में जन्मे और भारत को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले संन्यासी फादर कामिल बुल्के ने रामकथा के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव और बेहतर मनुष्य बनने में इसकी भूमिका को स्वीकार किया। उन्होंने राँची के सेंट जेवियर्स कॉलेज में संस्कृत और हिंदीविभाग के अध्यक्ष रहते हुए अंग्रेजी-हिंदी कोश के शब्द-संकलन और सम्पादन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहण किया था।"
सेवाभारती, दिल्ली मे शिक्षक रसराज डॉ० अवनेन्द्र पाण्डेय ने कहा, "डाॅ० फादर कामिल बुल्के ने इलाहाबाद मे अपने प्रवास काल को 'दूसरा वसंत' कहा है । वे तत्कालीन हिन्दीभाषा के विद्वानों से परिचित थे , जिनमे धर्मवीर भारती , जगदीश गुप्ता, रामस्वरूप चतुर्वेदी, रघुवंश, महादेवी वर्मा तथा अन्य लोग थे ।बुल्के डाॅ० धीरेन्द्र वर्मा को अपना प्रेरणास्रोत और महादेवी वर्मा को बड़ी बहन मानते थे । वे सच्चे अर्थों मे हिन्दी और तुलसी-साहित्य से अतीव प्रेम करते थे।"
हिन्दी-संग्रहालय, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयागराज के संग्रहालय-प्रभारी दुर्गानन्द शर्मा ने बताया, "एक अनुवादक, सम्पादक, कोशकार तथा रचनाकार के रूप में डॉ० फादर कामिल बुल्के का जीवन मील का पत्थर बन चुका है। उनके लिए तुलसी उतने ही प्रिय थे जितनी उनकी मातृभाषा फ्लेमिश के महाकवि गजेले वा अंग्रेजी के महाकवि शेक्सपियर महत्त्वपूर्ण थे। वे फ्रेंच, जर्मन इत्यादि भाषाओं के कविता-रसग्राही पाठक थे। उन्होंने तुलसी के संदर्भ में न केवल हिंदी में लिखा वरन् अंग्रेजी, फ्लेमिश और फ्रेंच भाषा में भी लिखा। श्री रामचरितमानस की जिन चौपाइयों ने डॉ० बुल्के को हिंदी पढ़ने की प्रेरणा दी उन्हीं चौपाइयों के रचयिता तुलसीदास का अनुसरण और गुणगान वे आजीवन करते रहे।''
विद्यार्थी इण्टर कॉलेज, कुशीनगर मे हिन्दी की सहायक अध्यापक वृन्दा पाण्डेय ने कहा, फादर कामिल बुल्के का रामकथा-विषयक शोधकर्म का कोई तुलना नहीं है; क्योंकि रामकथा पर जितने भी शोध हुए हैं, उनमे कामिल बुल्के का शोधकर्म 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' शीर्ष पर दिखता है। बुल्के अन्य कई पुस्तक-रचना कर अपनी विद्वत्ता प्रकाशित कर चुके ह़ै, जिनमे मुक्तिदाता, नया विधान, हिन्दी-अंग्रेज़ी शब्दकोश आदिक प्रमुख हैं।"
No comments:
Post a Comment