बलिदान को न व्यर्थ जाने दो किया जिसके लिए,
त्याग और अर्पण सभी कुछ हैं तुम्हारे ही लिए । १ ।
ख़ून से जो सींच कर गुलशन सजाया बाग़ का,
उनके लहु का कर्ज़ सब कुछ इक तुम्हारे ही लिए । २ ।
जी जान पर वो खेल कर करते हवन में स्वयं को,
कुर्बान की वो इक निशानी अब तुम्हारे ही लिए । ३ ।
"पुखराज" कर उनको अमल जिनकी थी महफिल की वो शाम,
छोड़ यादें कर हवाले गये तुम्हारे ही लिए । ४ ।
बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"
कोटा (राजस्थान)
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