***लघुकथा बंटवारा


मां पिता जी के जाने के बाद घर का बंटवारा कैसे हो,इसी बात पर बहस छिड़ी हुई थी। पांच बहनों में सबसे बड़ी आशा दीदी पहले हिस्सेदारी में शामिल नहीं थी पर अब "मां पापा की यादगार के रूप में हिस्सा लेना चाहती थी।छोटी के हिस्से में जो कमरा आया था, उसकी लम्बाई चौड़ाई कुछ ज्यादा थी। इसलिए उसे मां के पैसे में कटौती की गई। छोटकी की कानों में मां की बातें गूंज रही थी " ए बेटी,चल यह घर तेरे नाम लिख दूं।बेटे की साध तुझसे ही पूरी हुई है। तुम दोनों हमारी बहुत सेवा किए हो। मेरी हालत तो देख ही रही है।इस अवस्था में मुझे छोड़कर मत जाना। मैं सोच रही हूं कि पाहुन के पास नौकरी नहीं है जबकि तेरी अन्य बहनों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है। मुझे लगता है तेरे नाम इस मकान को करने पर किसी को बुरा नहीं लगेगा " पर वो मां को ऐसा करने से मना कर दी थी। मम्मी पापा के सेवा करने के वक्त किसी को फुर्सत नहीं थी पर अब हिस्सेदारी सबको बराबर चाहिए।यही दुनिया है।


मीरा सिंह "मीरा"

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