'
ये दोस्ती भी क्या चीज़ होती है
एक बड़ा अनोखा सा बीज होती है
जैसे खाने में फूड फरक होता है
इसका भी कुछ मूड फरक होता है
कभी किसी का मन खिला देती है
कभी किसी का मन बुझा देती है
जैसे हर साज फरक होता है
दोस्ती का अंदाज़ फरक होता है
कभी इसमें गुल भी खिलते हैं
कभी दो मिलकर पुल भी बनते हैं
कहीं कोई प्यार में हाथ पकड़ता है
कहीं दो लोगों में झगड़ा होता है
कभी प्यार में भी कुछ इंकार है
कभी तकरार में भी इजहार है
अगर हँसी है तो रुलाई भी है
अगर मिलन है तो जुदाई भी है
इसके अहसास से दिन महकता है
इसके मृदु-हास से मन लहकता है
यह मुरझाये जीवन में एक बहार है
मन की राहत को ठंडी बयार है
ये भावनाओं की एक गठरिया है
इसे देखने का अपना ही नजरिया है।
शन्नो अग्रवाल
No comments:
Post a Comment