बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

 "बोल लेखिनी कुछ तो बोल"


बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

अपने मन की गांठे खोल,

सदियों से जो दर्द पल रहा,

उसकी सारी परतें खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

दुनिया में जो कोहराम मचा हैं,

उसकी सारी परतें खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


त्राहि - त्राहि मची हुई है,

बेरोज़गारी मुँह फाड़ रही है,

भूख - प्यास से व्याकुल हैं सब,

सरकार ने जो ख़्वाब दिखाये,

उनकी सारी परतें खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


हवस के दरिंदे घूम रहें हैं,

इज़्ज़त के ठेकेदार जो बने - फ़िरते हैं,

वो ही इज़्ज़त लूट रहें हैं,

तूने जब आवाज़ उठाई,

उनकी करनी आगे आई,

उनको बीच चौराहें पे रौंद,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


जिसकी जग में सत्ता आई,

उसने अपनी बीन बजवाई,

कशीदे अपनी शान में लिखवाये,

जो सच्चाई लिखना चाहें,

उसके कलम संग हाथ कटवाये,

खोल उनकी सबकी पोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


सोने की चिड़िया था भारत,

किसने यहाँ पर लूट मचाई,

आपस में जंग छिड़वाई,

मच गई चारों तरफ तबाही,

बन गये यहाँ सभी सौदाई,

किसने यहाँ पर लाशें बिछवाई,

कैसे मच गई होड़म - होड़,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

अपने मन की गांठे खोल,


जिनको हम पूज रहें हैं,

वही हमको लूट रहें हैं,

भीख माँगने वोट की आये,

फिर हमको आँखें दिखलाये,

पैसा हमारा तिजोरी उनकी,

भूख उनकी बढ़ती जाये,

लाशों के भी मोल लगाये,

उनकी सारी सच्चाई खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,


कितनों के घर बर्बाद हुए हैं,

कितनों के चिराग बुझ गये हैं,

कितने ही बच्चें अनाथ हुए हैं,

किसकी मिली - भगत से महामारी आई,

कौन करेगा लाशों की भरपाई,

उनकी काली कमाई का चिट्ठा खोल,

बोल लेखिनी कुछ तो बोल,

"शकुन" अपने मन की गांठे खोल ||                


- शकुंतला अग्रवाल

विजयदशमी विजय का पर्व

 विजयदशमी विजय का पर्व है, अपनी दस आसुरी प्रवृत्तियों का संहार करने और मानवता में विश्वास स्थापित करने का पर्व है। यह हमारी सांस्कृतिक एकता का परिचायक पर्व भी है। यह पर्व नौ दिवसों तक शक्ति की आराधना के पश्चात् विष्णु स्वरूप प्रभु श्रीराम द्वारा अहं के स्वरूप खल रावण के विनाश का प्रतीक है , आज ही के दिन दुर्गतिनाशिनी दुर्गा द्वारा अत्याचारी महिषासुर का भी संहार किया गया था। आज का दिन शिवमुख से रामकथा की नियताप्ति श्रवण का भी दिन है। इस प्रकार यह दिन शैव, वैष्णव और शाक्त मतों की एकता का दिन है और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आतंकवाद रूपी असुर के विनाश की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा का भी दिन है। 

विजयादशमी के पावन अवसर पर यदि हम समाज में फ़ैली दस बुराइयों का दशानन के दस सिरों की भांति वध कर सकें तो निश्चय ही एक समतामूलक समाज और रामराज्य की दिशा में देश आगे बढ़ सकता है--

1- आतंकवाद का शीश 

2- भ्रष्टाचार का शीश

3- महिला, बालिका, बालक एवं दुर्बलों के उत्पीड़न का शीश

4-  कुशासन और अन्याय का शीश

5- गंदगी का शीश

6-  निर्धनता का शीश

7- अशिक्षा का शीश

8- बेरोजगारी का शीश

9- कुप्रथाओं का शीश

10- छुआछूत का शीश

दशानन के ये दस शीश तभी निर्जीव होंगे, जब हम दृढ संकल्प के रामबाण से इनकी नाभि (मूल) पर प्रहार करेंगे। तभी शायद हमारी विजयादशमी (दस दुर्गुणों पर विजय) तथा दशहरा ( दसों शीशों का हरण) सार्थक और संभव होगा। 

आज का यह पावन पुनीत दिवस आप सबके जीवन में शांति, सुख, समृद्धि, तोष, दीप्ति और प्रशस्ति दे, यही नव मातृकाओं तथा प्रभु श्रीराम से पुनीत प्रार्थना है।आप सभी को जय पर्व दशहरा और विजयदशमी की हार्दिक बधाई।

जय राम जी की, हर हर महादेव, जय भवानी।

प्रशस्ति, दीप्ति और प्रो. पुनीत बिसारिया

आचार्य एवं पूर्व अध्यक्ष हिन्दी विभाग

बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी, उत्तर प्रदेश 284128

कृति चर्चा- 'सुंदर सूक्तियाँ' - पठनीय मननीय कृति -

-आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'

*

कृति विवरण - सुंदर सूक्तियाँ, सूक्ति संग्रह, हीरो वाधवानी, आकार डिमाई, पृष्ठ संख्या २७५, मूल्य ₹ ५००,  प्रथम संस्करण २०२३, अयन प्रकाशन दिल्ली। 

*

किसी भी भाषा में उसे बोलने वालों के जीवन अनुभवों को सार रूप में व्यक्त करने के लिए सूक्तियाँ कही जाती हैं।

 सूक्तियों के दो रूप देखने में आते हैं- गद्य और पद्य। सूक्तियाँ, लोकोक्तियों से सृजीत होती हैं, मुहावरे बनकर जन-जन के अधर पर विराजमान रहती हैं और वर्तमान काल में जब शिक्षा सर्व सुलभ है, मुद्रण सहज और मितव्ययी हो गया है, सूक्तियाँ अधरों से उठकर पन्नों पर अंकित हो गई हैं।

सूक्तियाँ परंपरागत भी होती हैं और नई सूक्तियाँ भी रची जाती हैं। चिंतक हीरो वाधवानी अपने विचार सागर से जो विचार बिंदु विचार मणिया प्राप्त करते हैं उन्हें सूक्ति के रूप में सर्वसुलभ कराते हैं। उनकी पूर्व कृतियाँ 'प्रेरक अर्थपूर्ण कथन और सूक्तियाँ', 'सकारात्मक सुविचार', 'सकारात्मक अर्थपूर्ण सूक्तियाँ', 'मनोहर सूक्तियाँ' पूर्व में प्रकाशित हो चुकी हैं और अब इस क्रम में उनकी छठवीं कृति 'सुंदर सूक्तियाँ' पाठक पंचायत में प्रस्तुत हुई है। भाई हीरो वाधवानी सूक्ति सृजन करते हुए हिंदी साहित्य को एक लोकोपयोगी विधा से संपन्न कर रहे हैं।

सूक्ति सजन का कार्य पूर्व में वियोगी हरि जी, प्रभाकर माचवे जी तथा कुछ अन्य साहित्यकारों ने किया है।

सूक्ति का उद्देश्य सामान्य जन को कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक सारगर्भित संदेश देना होता है।सूक्ति मानव मन की धरती पर भावनाओं के बीज बोकर कामनाओं की खरपतवार को नियंत्रित करती है, सूक्ति मानवीय आचरण को दिशा दिखाती है। सूक्ति का कार्य किसी डंडधारी की तरह प्रताड़ित करना नहीं होता अपितु किसी सद्भावी मार्गदर्शख की तरह अँगुली पकड़ कर सत्पथ पर चलाना होता है। सूक्ति था

जीवनानुभवों से प्राप्त सीख को सर्वजन सुलभ बनाती है, सूक्ति गागर में सागर है, सूक्ति बिंदु में सिंधु है, सूक्ति अंगार में छपी मशाल है।

सूक्ति का सृजन बहुत सरल प्रतीत होता है किंतु होता नहीं है। एक सूक्ति के सृजन के पूर्व गहन चिंतन की पृष्ठभूमि होती है। हीरो वाधवानी जी सूक्ति के माध्यम से कम से कम शब्दों में सार्थक संदेश देते हैं, आदर्श का मंत्र देते हैं, आचरण का सूत्र देते हैं। जिस तरह सड़क पर यातायात को नियंत्रित करने के लिए संकेतक चिन्ह लगाए जाते हैं, उसी तरह मानव जीवन के पथ पर आचरण को संतुलित और सम्यक बनाने के लिए सूक्ति का सृजन अध्ययन और अनुसरण किया जाता है। 


शिशु को शैशव काल काल में ही सूक्तियाँ सुनाई जाएँ तो वह उसके मानस पर अंकित होकर उसके आचरण का भाग बन सकती हैं। आज समाज में जो अराजकता व्याप्त है, जो पारिवारिक विघटन हो रहा है, पारस्परिक विश्वासघात रहा है,़ आदर्श सिमट रहे हैं और उपभोक्तावादी संस्कृति बढ़ रही है उसका निदान सूक्ति के माध्यम से किया जा सकता है। सूक्ति की सरलता, सहजता संक्षिप्तता तथा बोधगम्यता मनोवैज्ञानिकता तथा आचरण परकता है। यह सूक्तियाँ सिर्फ किताबी नहीं है, इन्हें पढ़-समझ कर आचरण में उतारि जा सकता है।


'सुंदर वह है जिसका व्यवहार और वाणी सुंदर है' यह सूक्ति मनुष्य जीवन में सुंदरता को परिभाषित करती है कि सुंदरता तन की नहीं होती, वस्तुओं में नहीं होती, व्यवहार और वाणी में होती है।


'ब्याज पर लिया गया धन कृपा और आशीर्वाद रहित होता है' इस सूक्ति को अगर आचरण में उतार लिया जाए तो ऋण लेकर न चुका पाने वाले आत्महत्या कर रहे लोगों को जीवन मिल सकता है। विडंबना है उपभोक्तावादी संस्कृति ऋण लेने को प्रोत्साहित करती है। यह सूक्ति उसे नियंत्रित करती है।

'ईश्वर परिश्रम करने वाली की पहले और प्रार्थना करने वाले की बाद में सुनता है' इस सूक्ति में समस्त धर्म का मर्म छिपा हुआ है। लोक इसे स्वीकार कर लें तो अंध श्रद्धा के व्याल-जिल से मुक्त होकर श्रम देवता की उपासना करने लगेगा जिससे देश समृद्ध और संपन्न होगा।एक और सूक्ति देखें जो आचरण के लिए महत्वपूर्ण है। 'बाल की खाल निकालने वाला बुद्धिमान नहीं मूर्ख है'

सामान्य तौर पर बुद्धि का प्रदर्शन करने के लिए लोग छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति अपनाते हैं। यह उक्ति इस प्रवृत्ति का निषेध करती है।

दांपत्य जीवन को लेकर एक बहुत सुंदर सूक्ति देखिए 'पत्नी और पति दाईं और बाईँ आँख हैं', जिस तरह एक आँख के न रहने पर भी दूसरी आँख से देखा तो जा सकता है किंतु वह अशुभ या कुरूप हो जाती है, सम्यक दृष्टि तो तभी है जब दोनों आँखें हों। दोनों का समान महत्व हो, दोनों से समान दिखाई देता हो।

इस सूक्ति में पति-पत्नी दोनों की समानता और पारस्परिक पूरकता का भाव अंतर्निहित है।

ईश्वर गाना देता है, गुड़ और शक्कर नहीं', इस सूक्ति में पुरुषार्थ और प्रयास दोनों की महत्ता अंतर्निहित है। ईश्वर उपादान तो देता है स्वास्थ्य देता है किंतु आस पूरी करने के लिए प्रयास मनुष्य को ही करना होता है। 

एक और सूक्ति देखें- 'अच्छी नींद नर्म बिस्तर की नहीं, कठोर परिश्रम की दीवानी है', यह कटु सत्य हम दैनिक जीवन में देखते हैं जो श्रमिक दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करता है, रिक्शा चलाता है कुली बनकर सामान उठाता है वह पत्थर पर भी घोड़े बेचकर सोता है और समृद्धिमान पूँजीपति नींद न आने के कारण रेशमी मखमली गद्दे होते हुए भी नींद की गोलियों का सेवन करते हैं।

इस संग्रह के हर पृष्ठ पर अंकित हर सूक्ति जीवन में उतारने योग्य है। मुझे तो ऐसा लगता है कि यह सूक्ति संग्रह हर विद्यालय में होना चाहिए और सूक्तियाँ दीवारों पर लिखी जानी चाहिए।

भाई हीरो वाधवानी इस सार्थक सृजन हेतु साधुवाद के पात्र हैं। ऐसी लोकोपयोगी कृति अल्प मोली होनी चाहिए ताकि वे बच्चे खरीद सकें जिनके लिए यह आवश्यक है।

संपर्क - विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१.

अंतरराष्ट्रीय पुरातत्व दिवस पर ऑनलाइन सेमिनार

श्री भारत वर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ संरक्षण महासभा एवं निर्ग्रंथ सेंटर ऑफ आर्कियोलॉजी  के तत्वाधान में 21 अक्टूबर 2023 को अंतरराष्ट्रीय पुरातत्व दिवस पर ऑनलाइन सेमिनार का आयोजन किया गया ।सेमिनार का प्रारंभमंगलाचरण से किया गया श्रीमती शिखा विकास जैन जबलपुर ने मंगलाचरण किया

 दीप प्रज्वलन अध्यक्ष श्री राजकुमार सेठी जी ने किया सेमिनार का विषय प्रस्तुतिकरण एवं भूमिका संयोजक डॉo यतीश जैन जबलपुर ने प्रस्तुत की। वरिष्ठ पुरातत्व संयोजिका डॉ नीलम जैन ने पुरा संपदा पर  जलवायु से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में विस्तार से बताया और अपनी हेरिटेज को सुरक्षित रखने के उपाय भी बताएं इस विषय पर अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखें अध्यक्ष श्री राजकुमार सेठी जी ने महासभा द्वारा किए जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की

सर्वश्री महावीर प्रसाद ठोले औरंगाबाद, कैलाश चंद जैन रायपुर, देवेंद्र कुमार बाकलीवाल गोवा, आकाश जैन गुड़गांव ,शैलेंद्र जैन लखनऊ, राजेश कुमार जैन हैदराबाद पीसी जैन भद्रावती डा o एल सी जैन जबलपुर ,श्री विमल प्रसाद जैन जबलपुर आदि ने अपने अपने क्षेत्र की पुरातत्व संबंधी जानकारी दी आकाश जैन गुड़गांव एवं शैलेंद्र जैन ने पुरातत्व के प्रति मीडिया के माध्यम से अधिक से अधिक प्रचार पर बल दिया। सेमिनार का संचालन संयोजक डॉक्टर यतीश जैन जबलपुर में किया सभी ने इस प्रकार के सेमिनार को उपयोगी बताया और समय-समय पर ऐसी ऑनलाइन मीटिंग्स और सेमिनार रखने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसका सभी ने सहर्ष स्वागत किया 

जैन प्रतिनिधि मंडल ने किया रायपुर संग्राहलय की तीर्थंकर प्रतिमाओं का अवलोकन


श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा एवं निर्ग्रन्थ सेंटर फॉर आर्कियोलाजी के संयुक्त तत्वावधान में अमेरिकन आर्कियोलॉजीकल एस्टीट्यूट की तर्ज पर अक्टूबर के तीसरे शनिवार (21 अक्टू 2023) को मनाये जा रहे विश्व पुरातत्व दिवस के अवसर पर श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कैलाश रारा के नेतृत्व मे जैन समाज के एक प्रतिनिधि मंडल ने महंत घासीसीदास संग्राहलय रायपुर मे जाकर वहां की तीर्थंकर प्रतिमाओं का अवलोकन किया तथा संस्कृति विभाग के उपनिदेशक प्रताप पारख एवं संग्राहलय के क्यूरेटर प्रभास सिंह के साथ बैठक कर छत्तीसगढ़ में स्थान स्थान पर संग्रहीत जैन तीर्थंकर प्रतिमाओं की उचित देखरेख एवं सुरक्षा के साथ साथ जैन पुरा निधि के व्यापक अन्वेषण के सम्बंध में विस्तृत चर्चा की।

चर्चा मे श्री रारा के द्वारा छत्तीसगढ़ मे जैन संस्कृति की धरोहर पर पुस्तक लिखने के संकल्प के साथ अंचल की असंरक्षित पड़ी जैन पुरानिधी की उचित सुरक्षा के लिए संग्राहलय बनाने की रूपरेखा पर विचार मंथन किया गया।


श्री रारा के अनुसार ईसा से दूसरी शताब्दी पूर्व से उपलब्ध प्रमाणों के साथ जैन धर्म के 24 तीर्थंकरो में से 15 तीर्थंकरो की पुरातात्विक महत्त्व की प्रतिमायें उपलब्ध है। 


रायपुर संग्राहलय में डाहल क्षेत्र की 33, रतनपुर की 6 तथा सिरपुर की 1, इस प्रकार 40 तीर्थंकर प्रतिमायें विद्यमान है।


तीर्थंकर प्रतिमाओं के अतिरिक्त बिलासपुर संग्राहलय में रतनपुर से प्राप्त भगवान बाहुबलि की प्रतिमा तथा मल्हार में चर्तुविंशती जिन पट्ट संग्रहीत है। 


छत्तीसगढ़ में बकेला तीर्थ की भूमि रेवन्यू रिकार्ड में जिनेन्द्र देव के नाम से दर्ज है तथा बस्तर में जिनग्राम, गुंजी को ऋषभ तीर्थ तथा अमरकंटक क्षेत्र को ऋषभ क्षेत्र के ऐतिहासिक पौराणिक नाम से जाना जाता है। यहां पर 5वीं 6ठी शताब्दी में आरंग में राजऋषितुल्य कुल के जैन राजा हुए है।


आरंग में ही भूमिज शैली का एक मात्र जैन मंदिर संरक्षित है, जिसमें जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ, ग्यारहवें श्रेयांसनाथ तथा चौदहवें अनंतनाथ भगवान की गहरे हरे ग्रेनाइट की  खडगासन प्रतिमायें अवस्थित है।

इस अवसर पर श्री रारा एवं प्रतिनिधि मंडल के सदस्य भरत जैन एवं मनीष जैन ने श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा के द्वारा विश्व स्तर पर किये गये जैन पुरा अनुसंधान कार्य की जानकारी प्रदान करने हेतु एक पुस्तक डिप्टी डायरेक्टर प्रताप पारख को भेंट की।


-कैलाश रारा 

संयोजक छ.ग. प्रान्त

अंतरराष्ट्रीय पुरातत्व दिवस अभियान

विजयदशमी पर्व पर चक्रव्यूह

 

महाभारत की बात है,

जैसे कल की बात है,

कौरव पिटते जाते थे,

द्रोण नहीं कुछ कर पाते थे।

दुर्योधन उन पर घुन्नाया,

गुरु ने चक्रव्यूह तब रचवाया,

अभिमन्यु पाण्डव वीर चला,

देख उसे शत्रु दहला। 

कौरव सारे टूट पड़े,

अभिमन्यु रण-बीच अड़े,

दुर्योधन-दुशाषन ने वार किया,

द्रोण-कृपाचार्य ने साथ दिया।

कर्ण, विकर्ण, अश्वत्थामा भी वार करें,

सातों मिलकर मानवता का नाश करें,

अभिमन्यु ने पाई वीर गति, 

थी शायद उसकी यह नियति।

अर्जुन रथ चढ आया,

देवकीनंदन संग लाया,

दुष्टों का आखिर नाश हुआ 

धर्म का फिर से वास हुआ।

               *

महाभारत अब भी होता,    

अभिमन्यु हर दिन मरता, 

सारे रक्षक हैं भक्षक बने,

गिनती पापों की कौन गिने। 

योगी करते पाखंड महा,

साधु ने व्यभिचार गहा,

गुरु के उर में सद्भाव नहीं

मानवता का नाश सही।

हे, अर्जुन अब आ जाओ,

दुष्टों से पिंड छुड़ा जाओ,

कृष्ण तुम्हारे साथ सदा,

कर दो पापों को आज विदा।

हो धर्म पुनः से स्थापित,

हे कृष्ण, केवल तेरे आश्रित,

विजयादशमी सफल करो,

कृपा ‘ओम’ पर आज करो।

ओम गुप्ता, ह्यूस्टन

विजयादशमी, 2023

स्वार्थ के बजते ये पायल |

 जो चल रहें हैं साथ में,

गुलदस्ता ले के हाथ में |


हाँ में हाँ मिलाने वाले,

तुम्हारी जो हर बात में |


हैं सभी मौका के कायल,

स्वार्थ के बजते ये पायल |


छुरा लेकर अवसरों के,

वार कर करते हैं घायल |


दूर जो तुमसे खड़ा है,

लग रहा वो चिड़चिड़ा है |


संकटों के समय में,

तेरी खातिर वो लड़ा है |


मित्र ही दुःख सुख का साथी,

तूँ जिसे न जान पाया |


जिसके बलबूते जगत में,

तूने आन मान सम्मान पाया |


भूल न उसकी भलाई,

प्यार की वो रस मलाई |


तूँ भले ही कृष्ण सा हो,

सुदामा सी पर रख मिताई |


                    संजय तिवारी सरोज

तू क्या है...


पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा की रोडवेज बसों का कोई कंडक्टर जब 'आप' या 'सर' कह कर बात करता है तो लगता है कि किसी पिछले जन्म का कोई पुण्य कर्म उदय हुआ है। वरना तो इन बसों में यात्रा करते हुए तू, तुम, तझे, तुझे की ऐसी आदत पड़ जाती है कि इन शब्दों को न सुनने पर दिनभर कुछ अधूरापन महसूस होता रहता है। (वजह, हम जैसे अनेक लोगों की जिंदगी तू, तुम की संगत में ही शुरू हुई है। इसलिए इन शब्दों के साथ भरपूर सहजता है।) पिछले दिनों ऐसा ही एक शुभ वाकया हुआ। कंडक्टर द्वारा 'आप कहाँ जाएंगे सर' कहे जाने पर मैं इतना विस्मित, बल्कि  हतप्रभ रह गया कि बस से उतरने के घंटों बाद भी उस कंडक्टर की दिव्य छवि मेरी आत्मा के गुह्य कोनों में जस की तस विराजमान है।

वैसे इन कंडक्टरों की भी क्या गलती! जब ग़ालिब जैसा शायर अपनी रचनाओं में 'तू क्या है' (तुम ये कहते हो कि तू क्या है...) जैसे प्रयोग कर सकता है तो इन कंडक्टरों, ड्राइवरों का तो स्वाभाविक अधिकार ही है। हालांकि, ये बात भी ध्यान रखने वाली है कि हरयाणवी, कौरवी बोली में 'तू' शब्द अपने से छोटों के लिए सहज रूप में प्रयोग में लाया जाता है। वहाँ तुम (तम, तझे, तम्हें आदि भी) आदरसूचक शब्द की तरह प्रयोग में लाये जाते हैं। इन दोनों ही बोलियों में 'आप' एक बाहरी और शहरी शब्द है, जिसका प्रयोग व्यक्ति के बनावटीपन की तरफ इशारा करता है।


बहुवचन’ वाले बच्चे!

कुछ लोग इतने भले मानस होते हैं कि घर के अंदर अपने बच्चों से भी ‘आप-आप’ कहकर बात करते हैं। उनके लिए चार-पांच साल के अपने बच्चे भी इतने आदरणीय, फादरणीय हो जाते हैं कि हमेशा ‘बहुवचन’ में ही बात करते हैं। अच्छी बात है। इसमें कुछ बुराई नहीं। जिसको जैसा रुचता हो, जैसा उनके अभ्यास में हो, वे कर सकते हैं। पर, मेरे जैसा भदेस आदमी सहम जाता है। जब ये बच्चे खुली दुनिया में होंगे, चारदीवारी के बाहर होंगे तब इन्हें कैसा सदमा पहुंचेगा! वहां इन्हें आसानी से ‘आप’ जैसा संबोधन नहीं मिलेगा, इस संबोधन को पाने में दशकों को लग जाएंगेे, जबकि घर के भीतर ये पका-पकाया मिल रहा है। किसी मेहनत के बिना ही मिल रहा है। 

ये बच्चे किस तरह तू, तुुम, तेरा, तुम्हारा का मुकाबला कर पाएंगे! और बाहर के लोग भी इन्हें कैसे समझेंगे, क्योकि ये मैं, मेरा की बजाय ‘हम, हमारा’ वाले बच्चे हैं। इनके ‘हम, हमारा’ में ‘समूह’ नहीं है, बल्कि ‘अहं‘ है। यह एक ऐसा आवरण है जिससे बाहर के लोगों को लग सकता है कि ये ’सर्व’ की बात कर रहे हैं, लेकिन बाद में पता चलेगा कि ये तो ‘स्व’ की बात कर रहे थे। असल में, ये तमीज वाले बच्चे हैं, इनके संस्कार खरे हैं, ऊंचे पायदान के हैं। पर, क्या करें, दुनिया इतनी खोटी है कि हर किसी को जमीन पर खींच लेती है। तब इन्हें लगेगा कि ये कितने ‘वाहियात’ और ‘संस्कारहीन’ लोगों से घिरे हैं।

कुछ दिन पहले एक परिचित सज्जन से पूछा, आपका नवजात बेटा कैसा है? उन्होंने कहा, हां, वे एकदम अच्छे हैं। अब तो मुस्कुराने भी लगे हैं। मुझे लगा कि जुड़वा हैं शायद! मैंने पूछा कि क्या-क्या नाम रखे हैं? उन्होंने जवाब में एक ही नाम बताया। मैंने पूछा कि दोनों का एक ही नाम रख दिया ? ना मैं उनकी बात समझ पा रहा था और न ही वे मेरी। खैर, बाद में पता चला कि उनके लिए भी उनका बेटा ‘बहुवचन’ ही है। ऐसे भले लोगों से मिलते हुए अपरिभाषित-सा डर लगने लगता हैै। पता नहीं, कहां चूक हो जाए। हम जैसों की परवरिश में तो पहली सांस से ही तू, तेरा, मैं, मेरा छिपा हुआ है। ‘आप’ को संभालने में जबान लड़खड़ाने लगती है।


पुनश्चः जिन मित्रों की भाषा में बहुवचन सहज रूप से समाहित है, इस पोस्ट का उनसे संबंध नहीं है।


सुशील उपाध्याय


ईश भजन ही एक कमाई

 

मर्म समझ रे कुछ तो भाई, 

ज़िन्दगी क्यों व्यर्थ गँवाई ।

धरी रहेगी वाही-वाही,

ईश-भजन ही एक कमाई । 

नहीं किसी का बहिन-भाई, 

नहीं किसी का बाप-माई, 

कोई किसी का न हरजाई, 

ईश-भजन ही एक कमाई ।

कभी न स्थिर पाई-पाई, 

चलती-फिरती हाय-बाॅय । 

इधर कुआँ उधर है ख़ाई, 

ईश-भजन ही एक कमाई ।

जितना जीना जी ले भाई,

भला-बुरा यहीं है भाई,

हर इक चलता-फिरता राही,

ईश-भजन ही एक कमाई  ।

(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)

बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

            कोटा (राजस्थान)

मन का विरोध : मौनं विरोधस्य लक्षणम्



प्रो अनेकांत कुमार जैन,नई दिल्ली 


क्या जरूरी है जुबां बात करे ओंठ हिले 

खमोशी देती है पैगाम जो बस खुदा जाने 

कभी कभी वातावरण इस तरह के निर्मित हो जाते हैं कि यदि आप समर्थन में नहीं हैं तो भी प्रत्यक्ष विरोध करना आपको इष्ट नहीं होता है । 

खासकर सज्जन, विनम्र और अचाटुकार तरह के लोग अपनी अन्य अनुत्पन्न समस्याओं से बचाव के लिए इस तरह के स्पष्ट और प्रत्यक्ष विरोध से बचते हैं । वे अमर्यादित होकर ,चीख और चिल्ला कर विरोध करने की प्रवृत्ति नहीं रखते हैं क्यों कि विरोध के पीछे भी वे कोई अन्य लाभ की वांछा से रहित हैं । अन्य दूसरे लाभ जिन्हें चाहिए वे इससे परहेज नहीं करते और अक्सर उन्हें प्रत्यक्ष अमर्यादित और उग्र विरोध का पुरस्कार भी मिल जाता है । 

सज्जन और विनम्र व्यक्तित्त्व मन से विरोध करके सत्य के प्रति अपनी निष्ठा को बचा कर रखता है ।उसे प्रत्यक्ष विरोध से पुरस्कार की वांछा नहीं है तो अन्य हानि भी उसकी अंतरंग शांति को कहीं भंग न कर दे इसलिए वो भी वह नहीं चाहता । इसलिए कभी वह स्वयं को चुपचाप इस सत्य हनन के तांडव से अलग कर लेता है । पूंजीवादियों के प्रति,धार्मिक दुराग्रहों के प्रति ,सत्ता अहंकार के प्रति , कुशासन के प्रति वह मौन रह जाता है । वह अपने अन्य दायित्वों में रमकर या विद्या साधना में डूबकर खुद को सामाजिक ,अकादमिक या धार्मिक संगठनों से अलग थलग कर लेता है । विरोध तो दूर कोई सलाह या सीख देना भी वह ठीक नहीं समझता ।

इस तरह वह एक मौन विरोध को अंगीकार करता है । एक विद्वान्,सज्जन और विनम्र व्यक्ति का यह विरोध वर्तमान की प्रणाली का सबसे बड़ा विरोध इसलिए माना जाना चाहिए क्यों कि यह हर तरह के व्यवस्थापकों ,नीति निर्धारकों और सत्ताधीशों के लिए बहुत बड़ी अदृश्य चुनौती है कि वे सही राह पर नहीं हैं । और प्रायः उन्हें इस बात का भान नहीं है क्यों कि असत्य के समर्थकों के समर्थन की भीड़ ने उनके दृष्टि पथ पर अपना चश्मा लगा दिया है । 

हज़ारों असत्यों और स्वार्थों के समर्थन के शोर में  मौन विरोध के स्वर लाखों की संख्या में होने पर भी कहाँ सुनाई दे पाते हैं ,उनकी तरफ तो दृष्टि भी नहीं जाती । लेकिन उस मौन विरोध को परमात्मा जानता है देखता है ,प्रकृति जानती है देखती है और प्रतिक्रिया भी देती है । किन्तु समय बीत जाने पर इसके दुष्परिणाम भुगतने पर भी अदूरदर्शिता से युक्त अहंकारी मनुष्य उसे नहीं समझ पाता है ।

इसलिए वर्तमान परिदृश्य में "मौनं स्वीकृति: लक्षणम्" के साथ  "मौनं विरोधस्य लक्षणम्" सूक्ति भी स्वीकार्य होना चाहिए ।

नवरात्रि कार्यक्रम में डॉ ममता जैन का नारी सशक्तिकरण पर उद्बोधन एवं सम्मान

 

पुणे में विश्व हिंदू परिषद द्वारा इस वर्ष विभिन्न स्थानों पर दुर्गा पूजा एवं नवरात्रि कार्यक्रम बड़ी भव्यता  से मनाया जा रहा है, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाओं की उपस्थिति रहती है इसलिए शक्ति की अवतार मां  दुर्गा का यह पर्व  हड़पसर क्षेत्र में महिलाओं में महिला सशक्तिकरण का ओज  प्रवाहित करने हेतु प्रख्यात साहित्यकार डा ममता जैन जी का विशेष वक्तव्य रखा गया जिसमें डॉ ममता जैन जी ने इन पवित्र दिनों में होने वाली शक्ति पूजा का महत्व बताया। और साथ महिलाओं को सशक्तिकरण के सूत्र दिए। किस तरह से महिलाएं प्रतिभा का उपयोग कर समाज को सशक्त कर सकते हैं उन्होंनेबताया मां दुर्गा ने अपनी पूर्ण शक्ति से महिषासुर का मर्दन किया था वे हमारी प्रेरणा शक्ति है उन्होंने इस अवसर पर संस्था की महिलाओं की प्रशंसा की जो विभिन्न अस्त्र शस्त्रों का संचालन कर आत्म सुरक्षा करना सीखती है।इस विषय पर विशेष चर्चा हुई। शाखा प्रमुख श्रीमती सुरेखा ताई श्रीमती कविता जी, द्वारा पुष्पगुच्छ एवम श्री सूरज घोडगे ( धर्मवीर शंभूराजे प्रतिष्ठान) की ओर से मराठा शान श्री छत्रपति शिवाजी प्रतीक चिन्ह डॉ. ममता जैन जी को भेंट कर सम्मान किया गया।


Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular