स्वार्थ के बजते ये पायल |

 जो चल रहें हैं साथ में,

गुलदस्ता ले के हाथ में |


हाँ में हाँ मिलाने वाले,

तुम्हारी जो हर बात में |


हैं सभी मौका के कायल,

स्वार्थ के बजते ये पायल |


छुरा लेकर अवसरों के,

वार कर करते हैं घायल |


दूर जो तुमसे खड़ा है,

लग रहा वो चिड़चिड़ा है |


संकटों के समय में,

तेरी खातिर वो लड़ा है |


मित्र ही दुःख सुख का साथी,

तूँ जिसे न जान पाया |


जिसके बलबूते जगत में,

तूने आन मान सम्मान पाया |


भूल न उसकी भलाई,

प्यार की वो रस मलाई |


तूँ भले ही कृष्ण सा हो,

सुदामा सी पर रख मिताई |


                    संजय तिवारी सरोज

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